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बिरह की बेला (time of separation)
बिरह की बेला (time of separation)
मन मतवारा नदी किनारे गीत बिरह के गाए
पिया गए परदेश सखी री अब हूँ तक ना आए
१. मैं विरहन री पिया विरह में बैठी रहूँ द्वारे
तक तक रस्ता सूख गए री नयन मेरे कजरारे
सावन की रुत शीतल वायु तन में आग लगाए
२. तब तक रास्ता देखूं उनका जब तक सांस हीया में
साजन मुझ में लीन सखी मैं रहती लीन पिया में
रस्ता देखूं कब आकर वह मुझको गले लगाए
३. छा गई री रात अंधेरी छुप गए चांद सितारे
हो गए आंखों से ओझल जीवन के सभी नजारे
भीतर ही भीतर मुझको आली ग़म पिया का खाए
४. उड़ कर जा रे काले कागा पहुँचा दे संदेशा
मेरे विरह में रोते होंगे पिया मेरे परदेसा
कोयल गाए बैठ डाल पर वह भी नहीं सुहाए
शब्द ज्ञान
व्यवहार अच्छा राखीए कर सबका आदर मान
व्यवहार से ही होती है इंसानों की पहचान
धर्म जात की छोड़ दो आप खींचना रेख
सभी बराबर हम सबके हैं परम पिता भी एक
कमी और में ढूँढता चले फुलाकर नांक
खुद में लाख कमी कभी अपने अंदर भी झांक
जिस दिन मन का मैल रे छलनी से छन जाए
हीरा मोती की छोड़िए पारस का बन जाए
तुम
तुम ही हो दिल की धड़कन और शान हो तुम।
लगे तुम बिन सब-कुछ सूना मेरी जान हो तुम।
१. जब तुम नहीं हो संग में, हमें कुछ नहीं भाता।
तेरे बिना अब हमको, जीना नहीं आता।
इस अजनबी जहाँ में, मेरी पहचान हो तुम।
२. कोई भी फिर हमसे, यहाँ करता नहीं बातें।
तनहाई खाने को दौड़े, ये कटती नहीं रातें।
सच कहूँ तो जीने का अरमान हो तुम।
३. हर पल तेरे संग का, बड़ा ख़ास होता है।
मेरे रोम-रोम को तेरा, अहसास होता है।
इस जग में जीवित रहने का वह भान हो तुम।
४. हमें यूं ही जगमग रखना, ये नूर मत खोना।
कभी भूलकर भी हमसे, तुम दूर मत होना।
सचमुच में मेरी दुनिया जहान हो तुम।
जगबीर कौशिक
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