Table of Contents
शिक्षक (Teacher)
मानव को इंसान बना दे।
जीवन की पहचान बना दे।
कहते गुरु (Teacher) हैं उस हस्ती को
तुच्छ को भी महान बना दे।
बिन गुरु ज्ञान कहाँ से पाते।
प्रश्नों के हल कहाँ से लाते।
ईश्वर ना बतलाते गुरु तो
कैसे जीवन पार लगाते।
पुंज प्रकाश, दया की मूरत
सख्त जुबां, ह्रदय है कोमल
ऐसी गुरु की हस्ती है।
आशीर्वचन मिले जैसे भी
समझो क़ीमत सस्ती है।
मोल नहीं कोई उन वचनों का
ज्ञान प्रभु का जो देते।
तम हर ले गुरु, मन का सारा
ज्ञान का दीप जला देते।
नया साल
नया साल ऐसा आये
सबकी खुशियाँ लाये।
गरीब का ठिकाना हो
सबको आबो-दाना हो
रहे नहीं तकलीफ कोई भी
सबकी बिगड़ी बात बनाये
नया साल ऐसा आये…
कोई ना बीमार रहे
खुशियों की बौछार रहे
बैर रहे ना कहीं किसी में
सब अपना कर्तव्य निभाये
नया साल ऐसा आये …
माता पिता का हो सम्मान
पूरे सबके हों अरमान
बनी रहे जीवन भर शान
बात समझ ये सबके आये
नया साल ऐसा आये …
कब किसको आना जाना है
वक्त के हाथ जमाना है
प्रेम की बाँधे डोर चलो
रब के मन को ये ही भाए
नया साल ऐसा आये
सबकी खुशियाँ लाये।
सर्दी की सरकार
ओढ़कर कम्बल रहो
अब सर्दी की सरकार है।
जिसकी चलती थी हुकूमत
हौसले अब पस्त हैं।
देर से आता है सूरज
जल्दी होता अस्त है।
छुपता, छुपाता ख़ुद को
जैसे गुनाहगार है।
ओढ़कर कम्बल …
बेवजह चिढ़ती थी
जो दुपहरी उन दिनों
सूखते थे पेड़, पौधे
होठों पर बस प्यास थी
हर तरफ़ है हरियाली
बिखरी अब बाहर है।
ओढ़कर कम्बल…
ओस से भीगे हैं पत्ते
बारिश का अहसास है
फूल, कलियाँ भीगें हैं जैसे
आया मधुमास है।
कोहरा ठहरा है जैसे
सर्दी ने रखा पहरेदार है
ओढ़कर कम्बल…
ठिठुरते हाथ लेकर
संध्या रात में समा गई
तारों की बारात लेकर
रात है अब आ गयी
सूनी हों हर गलियाँ, राहें
सबको खबरदार है
ओढ़कर कम्बल रहो
अब सर्दी की सरकार है।
आया राखी त्यौहार
आया जब राखी त्यौहार
तेरे रिश्ते की ख़ुशबू से
महक रहा सारा घर बार
तुम बिन हर त्यौहार अधूरा
बहना तुझसे आंगन पूरा
आती रहना भूल न जाना
समझ न लेना घर बेगाना
ये तेरे बचपन का संसार
आया जब राखी…
रखे हुए खिलौने, तेरा
बचपन याद दिलाते हैं
मूक भाव से लगता है
जैसे तुझे बुलाते हैं
सुन लेना ये मूक पुकार
जब आया राखी…
मां, पापा की आंखों में
तेरा बचपन रहता है।
खेल खिलौनों की हर बातें
घर का आंगन कहता है।
सबको तेरा, है इंतज़ार
आया जब राखी त्यौहार
तेरे रिश्ते की ख़ुशबू से
महका है सारा घर बार।
मैं क्यों मेहमान हुई
एक डाल के हम हैं पंछी
जिस घर की मैं शान हुई
पूछ रही भाई से बहना
फिर मैं क्यो मेहमान हुई।
किसने ऐसी रीत चलाई
बेटी जिससे हुई पराई
बहन, भाई के रिश्ते को
क्यों है ऐसी मिली जुदाई
कैसे मैं अनजान हुई
पूछ रही भाई से…
सुख, दुख में हैं हमजोली
एक द्वार की हम रंगोली
कितने दीप जलाये मिलकर
कितने रंग सजाये मिलकर
पर घर की क्यों पहचान हुई
पूछ रही भाई से…
साथ पढ़े हम साथ बढ़े हम
बिछुड़े तब थी आंखें नम
कौन बताए इसका उत्तर
इस रिश्ते पर हुआ सितम
अलग क्यों एक सन्तान हुई
पूछ रही भाई से बहना
फिर मैं क्यों मेहमान हुई।
रक्षाबंधन
पल दो पल की नोक झोंक
और क्षणिक तकरार
काश लौटकर फिर आ जाये
वो बचपन का संसार
वक्त को जैसे बाँधकर भेजा
राखी के धागों में
बंधी कलाई पर जब राखी
बचपन लौटा आंखों में
तिलक लगाना माथे पर
और वह मीठी मनुहार
पल दो पल की नोक झोंक
और क्षणिक तकरार…
बीतें साल महीने इतने
अम्बर में हों तारे जितने
रहे सलामत मेरी राखी
और बहना का घर बार
पल दो पल की नोक झोंक
और क्षणिक तकरार
काश लौटकर फिर आ जाये
वो बचपन का संसार।
आया सावन झूम के
काली बदली ने गागर से
जल बिखराया है।
लो, फिर देखो झूम के
सावन आया है।
आसमान ने सागर से
कुछ जल लिया उधार।
प्यासी धरती की उसने
जब भी सुनी पुकार।
प्रेम से अर्पण कर
जल बरसाया है।
लो, फिर देखो झूम के
सावन आया है।
ओढ़ चुनरिया हरियाली की
झूम रही है धरती
पाकर फूलों की रंगोली
कितना रही इतरती।
हवा के हाथों ख़ुशबू से
सन्देशा भिजवाया है।
लो, फिर देखो झूम के
सावन आया है।
बादल छूने धरती को
पर्वत पर उतरे हैं।
नहाकर फुहारों से
पर्वत कितने निखरे हैं।
रिम झिम बारिश का
फिर मौसम आया है।
लो, फिर देखो झूम के
सावन आया है।
नाच रहे हैं भीगे बालक
सब राहों गलियों में।
पत्ती-पत्ती झूम रही है
यौवन है कलियों में।
नाचे मोर पपीहा गाये
सबका मन हर्षाया है
लो, फिर देखो झूम के
सावन आया है।
आशीष कुमार
राजस्थान
यह भी पढ़ें-
2 thoughts on “शिक्षक (Teacher)”