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सुरभि :
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में भांति भांति के लोग देखने को मिलते हैं। सुरभि नाम की एक सहपाठी मेरे साथ कभी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ती थी, वह अति सुंदर, घुंघराले बाल, कटीली आंखें, हिरनी जैसी चाल जो हर किसी के युवा मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी। वह हृदय से बहुत ही सरल वाणी से मृदुभाषी शांत स्वभाव की होने के साथ-साथ पठन-पाठन में भी बहुत लगन शील थी।
अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी जिसे बड़े लाड प्यार से पाला गया था उसके पिता एवं मां को अपनी पुत्री पर बहुत ही अभिमान था। समय व्यतीत होता गया, उसकी पढ़ाई एम. एस. सी. गणित/ अंग्रेजी भाषा में निपुण एवं मर्मज्ञ सी थी। “सुरभि” की माता ने उसके पिता से कहा कि–“पुत्री सुरभि की पढ़ाई के साथ-साथ उसके लिए वर भी ढूंढना चाहिए क्योंकि सुयोग्य वर मिलना इतना सरल काम नहीं है जितना की हम समझ लेते हैं!
“लड़कियां तो घास फूस की तरह जल्दी-जल्दी बढ़ जाया करती हैं! उचित समय पर लड़कियों का हाथ पीला कर देना चाहिए!” पिता सुयोग्य वर की तलाश में प्रतिदिन नाते रिश्तेदारों के यहां जो जहां बताता कि वहां अच्छा लड़का है, खोज में आने जाने लगे। मां भी सोचती थी कि अब मेरी पुत्री 19 वर्ष की हो गई है और वर ढूंढने में कितना अभी प्रयास करना पड़ेगा यह किसी को भी नहीं मालूम है। पिता (शालिग्राम) के दोस्त जो पेशे से इंजीनियर थे, उन्होंने स्वयं कहा कि–“मित्र मैं तुम्हारे घर चाय पीने आऊंगा और घर पर आकर कुछ शुभ वार्ता करना चाहता हूं! शालिग्राम ने अपने मित्र से कहा अवश्य!
रविवार के दिन मित्र को आना था, प्रतीक्षा में आस लगाए बैठे कि अब मित्र का आगमन होगा। कुंडी की खटकने की आवाज आई ही थी कि-“शालिग्राम ने कहा लो मेरा दोस्त भाई आ गया, दौड़ कर कुंडी खोली तो देखा दोस्त के साथ-साथ पत्नी और अपने पुत्र को भी साथ लेकर आए थे! दोनों एक दूसरे से गले मिले और भाव विह्वल हो गए, हाथ में मिठाई का डिब्बा पकड़ाते हुए कमरे में प्रवेश हुए।
आव भगत स्वागत सत्कार किया गया और बात ही बात में दोस्त ने स्वयं शालिग्राम की पुत्री “सुरभि” का परिचय एवं विवाह की बात कर डाली। “सुरभि” की माता एवं पिता दोनों ने मन ही मन सोचा ऊपरवाला जोड़ी बना कर भेजता है हम लोग ना जाने कहां कहां सुयोग्य वर की तलाश में दर-दर भटक रहे थे, ईश्वर ने स्वयं ही मेरी पुत्री के लिए सुयोग्य वर ढूंढ निकाला मैं उसकी आभारी हूं।—-जो सभ्य सुशील शांत तथा पेशे से डॉक्टर है! हमने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि-पंकज जैसा सुयोग्य वर इतनी शीघ्रता से मिलेगा!
वाह! ईश्वर तेरी मेहरबानी को कोई जान नहीं सकता, मैं तुझे बार-बार प्रणाम करती हूं! “सुरभि” को लड़का पसंद आया और “पंकज” को “सुरभि।” माता -पिता ने रिश्ता तय कर दिया, हाथ में शगुन रखकर आशीर्वाद प्रदान किया! मुहूर्त देखकर फरवरी माह में बड़े धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ, किसी प्रकार का कोई लेन-देन दान दहेज नहीं लिया दिया गया। घर पर दोनों पक्षों के लोग खुश थे। दोनों वर वधु “सुरभि” और “पंकज” बहुत अच्छे ढंग से खुशहाल रहते थे। प्रसन्न चित् देखकर लोगों की आंखें गढ़ी सी रह जाती थीं। “डॉक्टर पंकज” प्रतिदिन अपने क्लीनिक/हॉस्पिटल जाते और शाम को दोनों जब मिलते तो हमेशा ही खुशहाल रहते थे!
लोग उनको देख कर के बहुत प्रसन्न होते थे की लाखों में कुछ ही लोग ऐसे खुशहाल प्रकृति के होते हैं। एक वर्ष भी व्यतीत नहीं हो पाया कि पंकज ने क्लीनिक से शाम को आकर सुरभि से कहा–“आज मेरे हृदय की धड़कन तेज चल रही है, मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है, जैसे कुछ होने वाला है? तुम मेरे पास बैठो! यहां पर मां पिताजी और मम्मी पापा को भी बता दो कि मेरी आज तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही है !जरा शीघ्रता से बता दो कहीं देर ना हो जाए! “सुरभि” ने कहा- ऐसे मत बोलिए, वही बैठे-बैठे फोन करके मां पिताजी को बुलाती है और “पंकज” को दवा देकर पानी पिलाती ही रहती है कि- हाथ से गिलास छूट जाता है और शरीर निर्जीव सा होकर शांत हो जाता है।
“आसपास के वातावरण में घने बादल की काली छाया मडराने लगती है। सब देखकर आवाक से रह जाते हैं कि-अच्छा खासा व्यक्ति खुशहाल जीवन में अचानक से यह क्या हो गया?” समय थम सा गया, सुरभि की जिंदगी में वीरानगी सी छा गई। जो लाल जोड़े में सज धज कर घर से ससुराल आई थी, वाह आज फिर से सफेद वस्त्रों को धारण कर सुहाग के मायने ही बदल गए। जीवन में शून्य और सूनापन फिर से भर गया। “वक्त को किसी ने नहीं देखा कि समय किसके साथ कौन सा करवट बदलने वाला है!”
मां पिता ने पुनः अपनी पुत्री को घर बुला लिया और ढांढस बांधते हुए बोले-“तुम तो इतनी पढ़ी लिखी हो घर पर बैठकर क्या करोगी, तुम्हें भी अपनी पढ़ाई का सदुपयोग करना चाहिए!—–सुरभि ने मन में ठान लिया कि मैं अब अबला नारी नहीं, सबला नारी बनकर एक सशक्त नारी बनकर अपनी और देश की रक्षा करने योग्य अपने को तैयार करूंगी और मन को आत्म बल मिला, और सुरभि ने आई.ए. यस की परीक्षा दी जिसमें उसका प्रथम रैंक में नाम था! माता पिता का गर्व से सर ऊंचा उठ गया कि- “मेरी पुत्री का रखवाला वह ईश्वर है, प्रभु एक द्वार बंद करता है तो दूसरा रास्ता अवश्य खोल देता है!”
सुरभि जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के पद पर आसीन होते हुए गर्व का अनुभव तो कर रही थी किंतु बीते हुए समय को याद कर व्याकुल भी थी! “सुरभि” अब “डीएम” के पद पर आसीन और उसके आगे पीछे नौकर और अर्दली लगे रहते थे। पूरे जिले की देखभाल करना मीटिंग करना उसकी जिम्मेदारी थी वह बहुत ही व्यस्त रहने लगी अपने आप को हमेशा की तरह समझाती रही अब समय बदल गया।
एक बार दूसरे जिले में मीटिंग के दौरान अन्य जिलों के भी डीएम का कॉन्फ्रेंस बैठक हुई जिसमें वाराणसी के “डीएम” की और “सुरभि”की की लिस्ट में प्रथम/द्वितीय पर नाम था! बात बात पर चर्चा हुई वाराणसी के “डीएम” महोदय ने “सुरभि”को मन ही मन में अपना मान लिया! लेकिन “सुरभि” को कुछ भी ज्ञात नहीं था!
डीएम महोदय ने “सुरभि” से कहा–मेरी अभी शादी नहीं हुई है यदि आप कहें तो मैं घर पर बात करता हूं!”सुरभि” ने अपने जीवन में घटित घटना पूर्ण रूप से बखान करते हुए जैसे ही बताया, वैसे ही सुरभि की आंखों में आंसू डबडबा आये, आवाज घरघराने आने लगी, और आगे कुछ बोल ना सकी।
यह सब सुनकर और जान कर भी डी.एम. वाराणसी ने कहा–कोई बात नहीं! मैं आपको पसंद करता हूं, इसलिए इन सब से मेरा कोई भी संबंध नहीं है!
दोनों ओर के परिवार की सहमति और दो युगल हृदय की धड़कन के असीम स्नेह की डोर को एक साथ मिला देखकर ऊपर वाला भी मानो फूलों की वर्षा करने लगा हो। दोनों युगल जोड़ों को बड़ों का आशीर्वाद मिला और आर्य समाज से विवाह सात फेरों के साथ संपन्न हुआ। आज फिर से “सुरभि”अपने लाल जोड़े में सुंदर कांति मय मुख मंडल दमकता हुआ तेज से मुखरित हो उठा। फिर से जीवन में बसंत की बयार बहने लगी, जीवन खुशियों से भर गया। मन को आह्लादित करने वाले जीवन संगिनी का साथ पुनर्विवाह द्वारा फिर से भरा पूरा हो गया।
अन्नपूर्णा मालवीय ‘सुभाषिनी’
संस्कृत प्रवक्ता, गौरी पाठशाला इंटर कॉलेज प्रयागराज
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