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अध्यात्म की यात्रा (spiritual journey)
spiritual journey : मेरे पिता एक पुलिस आफीसर थे, कृष्ण भक्त थे, रोज़ सुबह उठकर प्रभु से विनती करते थे कि कभी भी कोई ग़लत काम प्रभु मुझसे ना हो, बहुत इमानदार और गरीबनिवाज थे, मुझे भी कृष्ण से बड़ा प्यार था। मैंने बचपन से प्रभु का एहसास हमेशा किया था लेकिन किसी से बताया नहीं था, लेकिन जीवन में इक ऐसा मौक़ा आया जब मैं बहुत परेशान थी…
मेरा बड़ा बेटा चंदीगढ में नौकरी करता था और छोटा बेटा भोपाल में इंजीनियरिंग के पहले साल में पढ रहा था, अचानक मुझे सपने में अजीब आभास हुआ कि मेरे छोटे बेटे का भयानक एक्सीडेंट होगा, यह बात किसी से बताना भी ठीक नहीं था, अगर बताती तो मुझे बातें ही सुननी पड़ती, मैंने ईश्वर से प्रार्थना करनी शुरू कर दी, प्रभु अगर मैंने शुद्ध हृदय से तेरा नाम हमेशा लिया है तो मेरी एक विनती मान लेना, मेरे बेटे को जीवन दान दे देना उसके बदले मेरा जीवन आपके चरणों में अर्पित है, मुझे रोज़ यही कहते हुए तीन महीने हो गये, किसी काम में मन नहीं लगता था बस यही ध्यान रहता कि क्या होगा, फिर भी ना जाने क्यों एक विश्वास भी था कि ईश्वर मेरी ज़रूर सुनेंगे.
३१ जनवरी १९९८ को मैंने एक सपना देखा आकाश में शिव भगवान दिखाई दे रहे है उनके हाथ से विभूति निकल रही है और अंधकार छा रहा है, मुझे एहसास हुआ शायद अब एक्सीडेंट होने वाला है, मैं और मेरे पति भिलाई स्टील प्लांट में कार्यरत थे, मेरे पति जनरल मैनेजर थे, बड़ी पोस्ट के कारण छुट्टी मिलनी काफ़ी मुश्किल थी लेकिन मैने उन्हें मजबूर किया कि हम चंदीगढ जायेंगे क्योंकि मेरा बड़ा बेटा यहाँ कार्यरत था.
मुझे लग रहा था अगर एक्सीडेंट होना है तो हम पूरा परिवार एक साथ हों, ससुराल में एक शादी भी थी मैने उस शादी के लिए पति को छुट्टी लेने के लिए मजबूर किया, हम शादी पर पूरा परिवार पहुँचे, वापसी पर हमने अम्बाला से गाड़ी पकड़नी थी, अम्बाला में मेरा भाई रहता था हमें दो दिन वहाँ रुकना था मेरे छोटे बेटे ने अपने भाई का स्कूटर ले लिया मैं अम्बाला स्कूटर से जाऊँगा मेरा बड़ा बेटा दिल्ली टूर पर गया हुआ था और वह भी दिल्ली से अम्बाला आने वाला था.
इसलिए वह स्कूटर वापिस चंदीगढ ले जायेगा, मेरा बेटा और मेरे पति स्कूटर से चंदीगढ से अम्बाला जा रहे थे और मैं बस से जा रही थी, मैने काफ़ी मना किया स्कूटर पर जाने के लिए लेकिन मेरी बात किसी ने नहीं मानी फिर मन ही मन मैने सोचा कि एकसीडेंट तो होना ही है जिसके लिए मैं यहाँ चल कर आई हूँ तो ठीक है दोनों हेलमेट पहन के जाओ, सारा रास्ता मैं यही प्रभु से मनाती रही प्रभु जो नियति है वह तो कोई बदल नहीं सकता, बस इतना करना कि इन दोनों की जान बच जाये हड्डियाँ जितनी भी टूटेगी तो मैं सेवा कर लूँगी.
अम्बाला में मेरे भाई के घर हमे दो दिन रुकना था, मेरी बस पहुँच गई लेकिन ये दोनों स्कूटर से नहीं पहुँचे, मुझे यक़ीन हो गया कि एक्सीडेंट हो गया है, मैं रिक्शा से भाई के घर पहुँची तो भाबी मेरा रास्ता देख रही थी, भाबी को एक्सीडेंट की ख़बर फ़ोन से मिल चुकी थी, मैं अंदर पहुँची ही थी कि फ़ोन बजा भाबी ने दौड़कर फ़ोन उठाया मैने पूछा किसका फ़ोन है तो बोली बेकार का फ़ोन है तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ.
लेकिन मैं समझ गई थी कि कुछ गड़बड़ फ़ोन है फिर फ़ोन बजा तो भाबी दौड़कर गई तब मैने पूछा एक्सीडेंट का फ़ोन है क्या? भाबी हैरान मुझे देखने लगी और बोली फ़िकर नहीं करो वह दोनों को पुलिस हासपिटल ले गई है बेटे को अभी होश नहीं आया लेकिन मेरे पति होश में थे, मैने बड़े विश्वास से ही कहा, हा भाबी वह दोनों को कुछ नहीं होगा मेरे भोलेनाथ उनके साथ हैं, मैं और भाबी अस्पताल के लिए चल पड़े.
बारह बजे एक्सीडेंट हुआ था और हम पूरा एक घंटा चालीस मिंट बाद पहुँचे, पूरा रास्ता मैं भोलेनाथ से बातें करती रही प्रभु आप तो बिना पैर चलते हो हर जगह पहुँच सकते हो, आज मेरा हाल भी पूछ लेना आकर, कोई नहीं जिसे मैं अपना हाल बताऊँ, जब अस्पताल पहुँचे तो एक कमरे में मेरे पति के हाथ में डा. टाँके लगा रहा था और जब मैंने बेटे के लिए पूछा तो इशारे से एक स्ट्रेचर की ओर दिखा दिया.
बहुत बड़ा कमरा था एक कोने में स्ट्रेचर था, बेटे की धडकन बंद थी इसलिए वह स्ट्रेचर पर ही था, मैं जल्दी से दौड़ी बेटे की ओर लेकिन स्ट्रेचर से कुछ क़दम पहले ही मेरे पैर रुक गये, मेरे बेटे के सिर के पीछे हज़ारों वाट की लाईट थी आँखों में भी लाईट निकल कर मुझ तक आ रही थी और होंठों पर अद्भुत मुसकान थी, मैं हाथ जोड़कर वही खड़ी हो गई, लाईट में अर्धनारीश्वर रूपभोलेनाथ दिखाई दे रहे थे.
मेरे बेटे के होंठ हिले और बोला आप कैसी हो, मुझे लगा किसी ने मुझे जगा दिया है, तब होश में आई तो मैंने कहा हाँ तुम ठीक हो अब मैं भी ठीक हूँ बस इतने में लाईट ग़ायब हो गई और मैं जल्दी से दौड़कर डाक्टर को पकड़ कर लाई उसे कहा मेरे बेटे को आप क्यों नहीं देख रहे, डा को तो दो घंटे से प्लस नहीं मिल रही थी, लेकिन जब उसने बेटे की प्लस देखी तो प्लस नारमल चल रही थी, डा भी हैरान था.
उसी समय डा ने ज़ोर से आवाज़ लगाई वार्डब्वाय जल्दी आओ, वार्डब्वाय ने आकर डा के कहने के मुताबिक़ पेंट काटी क्योंकि बेटे का फ़ीमर बोन टूटा था बाज़ू हाथ की हड्डियाँ भी टूटी थी, बाई तरफ़ की फीमर, बाज़ू अंगुलियाँ सब हड्डियाँ टूटी थी और मेरे पति की दाईं तरफ़ की टाँग, बाज़ू हाथ की हड्डियाँ टूटी थी, दोनों चलने के क़ाबिल नहीं थे, लगभग दोसाल दोनों बिस्तर पर थे लेकिन मैं हर पल प्रभु का धन्यवाद कर रही थी कि प्रभु तुमने मेरी विनती सुन ली, दोनों जीवन बच गये, मेरे पति ने आधा कष्ट बेटे का अपने पर लिया दोनों का दाया और बायाँ मिला कर पूरा एक हो जाता है, एक्सीडेंट की अगली रात मैंने सपने में लिखा,
तुमने हालेदिल पूछा तो दिल को बड़ा आराम मिला
मुझको अपने ही दिल में इक प्यारा-सा मेहमान मिला
तेरा नज़रें करम हुआ है मैं यह कभी ना भूलूँगी
करूँगी सदा इबादत तेरी प्यारा-सा मुझे काम मिला
यह आज से बाईस साल पहले की घटना है, बस उस दिन मैंने अपना जीवन उस प्रभु के नाम कर दिया था क्योंकि प्रभु को मैने कहा था मेरा जीवन ले लेना बेटे को देना लेकिन प्रभु ने मेरा पूरा परिवार बचा दिया, मेरा जीवन तो अब मेरा है ही नही, जब तक जीना है प्रभु का गुनगान करना है, इन बाईस साल में सोलह सूफ़ी गीत ग़ज़ल की किताब पबलिश हुई, प्रभु कृपा से मेरे हृदय में गीता गीत प्रकट हुआ जिसकी लाखों कापी बँट चुकी हैं, चैनल पर भी गीता गीत चल रहा हैअंत में प्रभु का शत-शत बार धन्यवाद।
सुदेश मोदगिल नूर
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