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स्वपरायणता (Self-Reliance)
स्वपरायणता (Self-Reliance): माय नेम इज खान का वह किरदार रिजवान जो एसपर्गर सिंड्राम से पीड़ित हैं जिसमें वह बार-बार अपनी बात दोहराता है, अपनी भावना समझा नहीं पाता है, पर जीनियस भी हैं या फिर वह वो धारावाहिक आपकी अंतरा जिसमें एक ६ साल की बच्ची अपने शरीर के अंगों को हिलाती रहती हैं या फिर किसी भी चीज को लगातार करती जाती हैं।
क्या है स्वपरायणता (Self-Reliance)?
इसे स्वलीनता, आत्मविमोह, स्वपरायणता या ऑटिज्म स्पेक्टर्म सिंड्राम कहते हैं इसमें बच्चा अपने आस पास से, दुनियाँ से बेख़बर रहता हैं जब हम किसी को देखकर मुस्कुराते हैं तो सामने वाला भी मुस्कुराता हैं लेकिन ये बच्चे नहीं मुस्कुराते हमें ये अजीब लग सकता हैंलेकिन इसमें इनकी गलती नहीं बल्कि ये तंत्रिका विकार हैं जो मस्तिष्क को प्रभावित करता हैं ये एक आंतरिक विकासात्मक विकार हैं जो अनुवांशिक या पर्यावरणीय कारणों से हो जाता हैं कभी गर्भ के समय भावी माता द्वारा नशे के सेवन, कुपोषण, ग़लत दवाईयों द्वारा गर्भस्थ शिशु को हो जाता हैं।
भारत में स्वपरायणता की स्थिति
भारत में हर ५०० बच्चों में एक ऑटिज्म का शिकार हो जाता हैं, बच्चों में इस रोग पता सर्वप्रथम लियो कैनर ने लगाया था अतः इसे कैनर व्याधि भी कहते हैं। अशिक्षा और जागरूकता के अभाव में लोग झाड़ फूंक जादू टोना करवाते हैं माता पिता समझ ही नहीं पाते हैं कि ये मस्तिष्क का विकार हैं जहाँ मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र एक साथ काम नहीं कर पाते हैं माता पिता के लिए सबसे नाज़ुक घड़ी होती हैं जब वे दूसरे बच्चों को एक्टिविटीस करते देखते हैं और अपने बच्चे को चुपचाप पड़ा हुआ देखते हैं
बच्चा कोई अंतः क्रिया नहीं करता या सामाजिक व्यवहार नहीं करता तब बड़ा मुश्किल हो जाता है इस रोग से पीड़ित सभी बच्चे एक से लक्षण नहीं दिखाते क्योंकि ये कई प्रकार का होता हैं जैसे क्लासिक सिंड्राम इसमें बच्चा संप्रेषण तो करता हैं किन्तु सामाजिक व्यवहार नहीं इसी प्रकार एस्पर्गर जिसमें बच्चा बोलता नहीं हैं या यूँ कहें कि वन वे कम्युनिकेशन करता हैं मतलब जब उसका मन करेगा तब बोलेगा, समय पर प्रतिक्रिया नहीं करेगा।
क्या हैं उपाय?
अतः उसकी ज़रूरत को समझते हुए स्पीच थेरपी, ऑक्यूपेशनल थेरपी या एप्लाइड बिहेवियर एनालिसिस कर सक सकते हैं जिसमें बच्चे को अधिगम के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दे सकते हैं चूँकि ये बच्चे अपनी ज़रूरत को बता नहीं पाते जैसे जब उसे पानी चाहिए होगा तो वह माँ का हाथ पकड़कर रसोई में ले जाएगा तब हमें पानी नहीं देना हैं बल्कि उसे पानी शब्द सिखाएंगे जब वह पानी बोलेगा तब हम ताली बजाएंगे। ठोस अनुभव के लिए उसे क्षेत्र भ्रमण करवाएँगे।
ऑक्यूपेशनल थेरपी में बच्चे को फाइन मोटर स्किल सिखाएंगे जैसे क्लिप्स का खेल जिसमें वह क्लिप्स से कपड़ो को पकड़ेगा इससे वह धीरे-धीरे चम्मच का प्रयोग, पेंसिल को पकड़ना सीखेगा। इनकी डाइट ग्लूटीन, कैसीन, शुगर फ्री होनी चाहिए। उसमे जिंक, विटामिन सी, प्रोबायोटिक्स, ओमेगा ३फैटी एसिड हो इन्हे पाचन की समस्या नहीं होगी और इनके रक्त में शर्करा नहीं बढ़ेगी जिससे इनका नकारात्मक व्यवहार नियंत्रित रहेगा। कभी ये सामान्य बच्चों की तुलना में जीनियस भी होते हैं और वह कार्य कर देते हैं जो हम सोच भी नहीं सकते।
क्या कहती है रिसर्च?
हाल ही में एक रिसर्च में पता लगा कि ये माँ के चेहरे के भावों को सामान्य बच्चों की तरह समझ सकते हैं जब कि अब तक यहीं बात आम थीं कि ये अपनी भावना जाहिर नहीं कर सकते और दूसरे की भावना को समझ नहीं सकते हैं लेकिन अब ये बात सटीक नहीं लगती। अगर धैर्य के साथ सही दिशा में माता पिता बच्चे के साथ श्रम करें और अपना समय दे तो इन्हे अँधेरे से रोशनी में लाया जा सकता हैं राष्ट्रीय न्यास अधिनियम १९९९ इन्हे आत्मनिर्भर जीवन देने की दिशा में तथा विधिक संरक्षण देने के लिए कार्य करता हैं आवश्यकता आधारित सेवा प्रदान करने में विधिक संरक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया विकसित करता हैं
इन्हे खेल-खेल में सिखाया जा सकता हैं चार्ट पोस्टर द्वारा चित्रों के कार्ड द्वारा इन्हे शब्द सिखाए जा सकते हैं इनसे साधारण छोटे वाक्यों में बात करने की पहल करनी चाहिए न कि अलंकारिक भाषा की। इन्हे पार्क ले जाओ ताकि ये लोगों को देखें, गतिविधि देखें। जब इनके साथ खेलें तो खेल में धीरे-धीरे सदस्यों की संख्या बढ़ाना चाहिए ताकि ये अंतः क्रिया करें ये बच्चे रूढ़ि बद्ध व्यवहार करते हैं लेकिन हमें इन्हे परिवर्तन देना हैं जो बहुत सारे आत्मबल की सहायता से ही हो सकता हैं।
सभी पतंगे बँधी एक डोर से
मकर संक्रान्ति
मकर संक्रान्ति एक ऐसा त्यौहार जो सूर्य की उपासना और दान का महापर्व हैं। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रान्ति कहलाता हैं। मान्यता हैं कि इस दिन सूर्य के उत्तरायण होने पर देवताओं का सूर्योदय और राक्षसों का सूर्यास्त होता हैं। ये भी कहा जाता हैं कि इस दिन माँ गंगा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली यहीं वज़ह हैं कि पश्चिम बंगाल में गंगा सागर में इस दिन बहुत बड़े मेलें का आयोजन होता हैं। इस पर्व में स्नान के बाद दान देने की परम्परा हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार में इसे खिचड़ी पर्व भी कहते हैं। बिहार में आज के दिन उड़द, तिल, चावल, ऊनी वस्त्र देने की परम्परा हैं।
अलग-अलग हैं नाम
पंजाब, हरियाणा में इसे लोहिड़ी के रूप में मनाते हैं। तमिलनाडु में पोंगल के रूप में चार दिन तक इसका आयोजन चलता हैं। राजस्थान में इस दिन बहुएँ अपनी सास को मिठाई देती हैं और आशीर्वाद लेती हैं, असम में इसे माघ बिहू या भोगाली बिहू के नाम से जाना जाता हैं। इस दिन सभी अपनी छतो पर पतंग उड़ाते हैं, पतंग से सम्बंधित प्रतियोगिता भी होती हैं।
मकर संक्रान्ति का इतिहास
कहते हैं कि भगवान राम चंद्र ने सबसे पहले पतंग उड़ाई थीं जी उड़कर इन्द लोक में चली गईं थीं और इंद्र के पुत्र जयंत को मिली थीं और उसने अपनी पत्नी को दें दी, जब हनुमान जी को राम जी ने पतंग वापिस लेने भेजा तो उन्होंने कहा वे राम जी के दर्शन करना चाहते हैं फिर पतंग देंगें। तब राम जी ने उन्हें चित्र कूट में दर्शन दिए थे। नेपाल में इसे माघे सक्रांति नाम से मनाते हैं झारखंड के गुमला जिले में जो आदिवासी जनजाति बहुल्य इलाक़ा हैं वहाँ इस दिन बहुत बड़े मेलें का आयोजन होता हैं थारू जनजाति का उत्साह भी देखते बनता हैं।
मनाता है सारा देश
सारा देश एक ही त्यौहार को तरह-तरह के नामों से बुलाता हैं और भाँति-भाँति से इसे मनाता हैं। भारत एक बहुसांस्कृतिक देश हैं रीति रिवाज़ अलग हैं फिर भी हम सब एक हैं यहीं विविधता हमें एकता में बाँधती हैं जब सब एक दूसरे को तिल के लड्डू खिलाते हैं साथ पतंग उड़ाते हैं तब न कोई हिंदू होता हैं न मुस्लिम न सिख न ईसाई। बस एक डोर होती हैं जिसका नाम हैं भारतीय। यहीं हमारी पहचान हैं। हमें आपस में धर्म के नाम पर नहीं लड़ना चाहिए जो आपस में लड़ना सिखाये वह धर्म कैसे हो सकता हैं? कोई धर्म भेद, अलगाव, हिंसा नहीं सिखाता। धर्म का मूल प्रेम हैं। अगर आप धार्मिक हैं तो आपको समानता और बन्धुत्व में विश्वास रखना चाहिए।
नेहा अजीज़
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