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पर्यावरण को बचाएँ (save environment)
पर्यावरण को बचाएँ (save environment)
कदमो से क़दम मिलाते चलो।
पर्यावरण को बचाते चलो।
राह में जो भी मिले राही।
यह संदेश तुम देते चलो।
पर्यावरण को बचाते चलो।
कदमो से क़दम मिलाते चलो…॥
अभी न बचाओगें, पर्यावरण को तो।
बहुत तुम सब पस्ताओगें।
दिलसे वृक्षारोपण करने का,
जज्बा तुम जगाओ।
इससे ही चारो तरफ़ हरियाली आएगी,
शुध्द जलवायु फिर मिलने लगेगी।
कदमो से क़दम मिलाते चलो…॥
जो भी करे, भारत माँ से प्यार।
वृक्षारोपण करे वो
और लोगों को, वृक्ष लगाने
के लिए करे प्रेरीत वो।
यह संदेह को, हर घरो तक
लोगों के दिलों में बैठते चलो।
पर्यावरण को बचाते चलो॥
कदमो से क़दम मिलाते चलो…॥
जैसे घर के बच्चों को पालो,
एक वृक्ष को भी पालो।
और अपना दायित्व को
तुम दिलसे इसे निभाओं।
ये वह फल है, जो आगे चलकर,
रखेंगे ध्यान तुम्हारा।
इसलिए संजय कहता सबसे,
इसको दिलसे अपनाते चलो।
पर्यावरण को बचाते चलो।
कदमो से क़दम मिलाकर चलो…॥
कोई देख न ले
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें
नाजुक से है अरमान मेरे,
कही टूट न जायें॥
फूलों से भी नाज़ुक है,
उनके होठों की नरमी
सूरज झुलस जाये,
ऐसी सांसों की गरमी
इस हुस्न की मस्ती को,
कोई लूट न जायें
इस बात का डर है,
वो कहीँ रूठ न जायें।
चलते है तो नदियों की,
अदा साथ लेके वो।
घर मेरा बहा देते है,
बस मुस्कारा के वो
लहरों में कही साथ,
मेरा छूट न जायें
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें।
छतपे गये थे सुबह,
तो दीदार कर लिया
मिलने को कहा शामको,
तो इनकार कर दिया
ये सिलसिला भी फिरसे,
कहीं टूट न जायें।
इस बात का डर है,
वो कहीं रूठ न जायें।
क्या गारंटी है कि फिरसे,
कही वह रूठ न जाएँ।
मिलने का बोल कर
कही भूल न जाये।
हम बैठे रहे बाग़ में,
उनका इंतज़ार करके।
वो आये तो मिलने पर
देखकर हमें चले गये॥
उन्हें डर था इस बात का,
की कोई हमें देख न ले।
आप मेरे हो
कही कोई मेरा दोस्त
कही कोई मेरा दुश्मन
मगर मुझको है सच में
सभी लोगों से बहुत प्यार।
करे क्या हम अब,
उन सभी लोगों का।
जिन्होंने दिया है,
हमें बहुत प्यार।
इसलिए कविता गीत और लेख,
मोहब्बत पर ही लिखता हूँ।
और लोगों के दिलो में,
बसने की कोशिश करता हूँ॥
निभाता हूँ दिलसे हर रिश्ता,
तभी तो जल्दी अपनो का
बन जाता हूँ।
बड़े ही प्यार से हर पल,
याद उन्हें सदा करता हूँ।
क्योंकि मैं अपने मित्रो को,
संदेश स्नेह प्यार का देता हूँ।
इसलिए उनके हृदय में
जल्दी बस जाता हूँ॥
आप क्या रखते है,
मेरे बारे में अपनी राय।
और कुछ तो सोचते होंगे।
की किस तरह का
ये इंसान है।
जो लोगों के दिलो में
बहुत जल्दी बस जाता है।
और मोहब्बत के गीतों से
सबका दिल बहलाता।
और सपनो की दुनियाँ में
लोगों को ले जाता है॥
बंधन और सम्बंध
बंधन और सम्बंधों का
जो अंतर समझता है।
वो ही इंसान इस जग में
सबको प्यारा लगता है।
वो ही इंसान इस…॥
कोई कह यदि दिलकी बातें
महफिल या उत्सव आदि में।
तो तुरंत नहीं देना चाहिए
उस को अपनी प्रतिक्रियाँ।
वैसे तो दिल वाले जन
पड़ लेते है उसकी आँखे को।
क्या कुछ वह बोल रहे और
किस संदर्भ में कुछ पूछ रहे॥
बंधन और सम्बंधों का
जो अंतर समझता है…॥
आज मिली है महफ़िल में नजरे
जिसके लिए तरस रहे थे वर्षो से।
चहाकर भी वह मनकी बातें
कह न पा रहे थे वर्षो से।
आज गीत मनहर का गाकर
दिया उन्होंने कुछ नया संदेश।
अब तो तुम भी गाओ जी
प्रेम प्रीत और मिलन के गीत॥
बंधन और सम्बंधों का
जो अंतर समझता है…॥
समझो अब तुम इन बातें को
कब तक न समझ बने रहोगे।
कितने दिनों से लगा रखी है
आपस में हम दोनों ने प्रीत।
हम तुम्हें देखे तुम हमें देखो
कब तक और चलेगा ऐसा।
और प्रेम पूजारन बनने का
क्या मुझे सौभाग्य मिल पायेग॥
बंधन और सम्बंधों का
जो अंतर समझता है।
वो ही इंसान इस जग में
सबको प्यारा लगता है,
सबको प्यारा लगता है॥
क्यों लुभाती हो
खनकती चूड़ियाँ तेरे
मुझे क्यों लुभाती है।
खनक तेरी पायल की
हमको क्यों बुलाती है।
हँसती हो जब तुम
तो दिल खिल जाता है।
मोहब्बत करने को मेरा
मन बहुत ललचाता है॥
कमर की करधौनी
भी कुछ कहती है।
प्यास दिल की वो
भी बहुत बढ़ाती है।
होठो की लाली हंसकर
हमें लुभाती है।
और आँखे आंखों से
मिलना को कहती है॥
पहनती हो जो
भी तुम परिधान।
तुम्हारी ख़ूब सूरती
और भी बढ़ाती है।
अंधेरे में भी पूनम के
चांद-सी बिखर जाती है।
और रात की रानी की
तरह महक जाते हो॥
तभी तो जवां दिलो में
मोहब्बत की आग लगाते हो।
और चांदनी रात में अपने
मेहबूब को बुलाते हो।
और अपनी मोहब्बत को
दिल में शामाते हो।
और अमावस्या की रात को भी
पूर्णिमा की रात बन देते हो॥
इंसान हो…
इंसान की औलाद हो,
इंसान तुम बनो।
इंसानियत को दिलमें,
अपने ज़िंदा तुम रखो।
मतलब फरोश है ये दुनियाँ,
जरा इससे बचके रहो।
लड़वा देते है अपास में,
भाई बहिन को।
ऐसे साँपो से तुम,
अपने आप को बचाओ॥
कितना कमीना होता है,
लोगो ये इंसान।
सब कुछ समझकर भी,
अनजान बन जाता है ये।
औरो के घर जलाओगें तो,
एकदिन ख़ुद भी जलोगें।
फिर अपनी करनी पर,
तुम बहुत शर्मिदा होगें।
और अपनों की नजरों में,
खुद ही गिर जाओगें॥
जो अपनो का न हुआ,
वो गैरो का कैसे होगा।
इंसान की औलाद है,
फिरभी जानवर बन गया।
जानवर तो जंगल में,
हिल मिलकर रहते हैं।
इंसान होते हुए भी,
जानवरों से भी नीचे गिर गया।
और इंसान कहलाने का,
हक भी उसने खो दिया॥
संदेश
नींद आती नहीं,
चैन पाते नहीं।
फिर भी तड़पाने से,
बाज आते नहीं।
थोड़ा-सा बदलो,
अपना तुम दृष्टिकोण।
कुछ तो जैनधर्म का,
अनुसरण करो॥
खुद जीओ औरों को,
भी जीने दो।
महावीर स्वामी का संदेश,
जीवन में अमल करो।
छोड़कर हिंसा को,
अहिंसा पर चलो।
और जीवन को अपने,
सफल बना लो॥
दूसरे की लोकप्रियता से,
तुम मत जलो।
बने जहाँ तक,
औरों की मदद करो।
और इंसानियत को,
जिंदा दिल में रखो।
अपने कर्तव्यों से,
मुँह मत फेरो॥
जिंदगी की हकीकत,
तुम जान लो।
फर्ज ईमान का,
तुम निभाते चलो।
दिलों में प्यार,
अपने जागते चलो।
प्यार की दुनियाँ,
तुम बसते चलो॥
इंसानियत को जिंदा,
इंसानों में रखो।
भाईचारे का माहौल,
बना के रखो।
एक दिन तेरी,
करनी रंग लाएगी।
और फिरसे हम सब,
चैन से रह पाएंगे॥
उलझनें
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।
न जीने की चाह है
और न मरने का डर।
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये॥
घर से चले थे हम तो
खुशियों की तलाश में…२.
गम राह में खड़े थे
वो ही साथ हो लिए..२.
गम और उलझनों ने मुझे
लेखक बना दिया।
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये…॥
जिंदा होते हुए भी
हम मर जैसे ही है।
न जीने में है हम
और न मरने में ही।
अपनी की गलतियों की
अब सजा भोग रहे।
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये॥
होठो को-सी चुके तो
जमाने ने ये कहा।
क्यों चुप हो जनाब
अजी कुछ तो बोलिये।
पहले तो बहुत गाते
और लिखते थे तुम।
अब क्या हो गया है
तुम्हें कुछ तो कहो॥
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये।
न जीने की चाह है
और न मरने का डर।
यू ज़िन्दगी की उलझनों में
हम उलझते चले गये॥
चलना पड़ेगा
ओ हो-हो हो…
संसार चक्र ऐसे ही चलेगा।
जीना और
मरना इसमें पड़ेगा।
फिरभी चलना पड़ेगा
जीना मरना पड़ेगा॥
समय कभी भी
ठहरता नहीं है… २
आंधी से तूफां से
डरता नहीं है।
तू ना चलेगा तो
खुद चल देगा समय
फिर से दुवार
ये आयेगा नहीं।
फिरभी चलना पड़ेगा
जीना मरना पड़ेगा॥
हो हो हो।
संसार चक्र ऐसे ही चलेगा।
जीना और मरना
इसमें पड़ेगा॥
सफल हुआ वह ही जीवन में।
जो रुका नहीं अपने मिशन में।
मंजिले उसने ही तो है पाई
चाहे रास्ते में आई कितनी कठनाई।
फिरभी चलना पड़ेगा।
जीना मरना पड़ेगा॥
हो हो हो…
संसार चक्र ऐसे ही चलेगा।
जीना और मरना
इसमें पड़ेगा।
तुझको जीना पड़ेगा
तुझको मरना पड़ेगा॥
हो हो हो।
संसार चक्र ऐसे ही चलेगा
इसमें जीना और
मरना पड़ेगा।
तुझको चलना पड़ेगा
तुझको मरना पड़ेगा…॥
गलतियों का फल
इंसान की गलतियों का
फल भोग रहे हम।
यही दुर्भाग्य हमारा
यही दुर्भाग्य हमारा॥
विश्वगुरु बनने के चक्कर में
दो देश में छिड़ गई जंग।
बाकी पीछे-पीछे हो लिए
देकर अपना समर्थन।
सबके लिए मिला है
अब ये प्रसाद बराबर॥
यही दुर्भाग्य हमारा
यही दुर्भाग्य हमारा।
इंसान की गलतियों का
फल भोग रहे हम॥
हरके देश से कहो के
ये जिद्द छोड़ दे अब वो।
छोटे और बड़े देश में
रखे नहीं कोई फ़र्क़ अब।
इस धरती पर हो प्यार का
हर देशों में उजियारा।
यही संदेश हमारा
यही संदेश हमारा।
इंसान की गलतियों का
फल भोग रहे हम।
यही दुर्भाग्य हमारा
यही दुर्भाग्य हमारा॥
आचार्यश्री से जाने दुनियाँ
आचार्य श्री से जाने दुनियाँ,
ऐसे गुरु हमारे हैं
नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है।
करका पावन आशीष जिनका,
कंकर सुमन बनाता है
पग धूली से मरुआंगन भी, नंदनवन बन जाता है।
स्वर्ण जयंती मुनिदीक्षा की,
रोम रोम को सुख देती
सारे भेद मिटा, जन-जन को,
सुख शांति अनुभव देती॥
आचार्य श्री से जाने दुनियाँ,
ऐसे गुरु हमारे हैं
नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है॥
अकिंचन से चक्रवर्ती तक,
चरण शरण जिनकी आते
कर के आशीषों से ही बस, अक्षय सुख शांति पाते
योगेश्वर भी, राम भी इनमें, महावीर से ये दिखते
सतयुग, द्वापर, त्रेता के भी, नारायण प्रभु ये दिखते
युग युग तक रज चरण मिले,
यही संजय मन नित मांगे।
आचार्य श्री विद्यासागर का, सदा हो आशीष मम माथे॥
आचार्य श्री से जाने दुनियाँ,
ऐसे गुरु हमारे हैं
नयनों में नेहामृत जिनके, अधरों पर जिनवाणी है॥
दर्शन से मिले चैन
दर्शन से तेरे मिलता है चैन,
बिन दर्शन के राहु बेचैन,
चंद्रा प्रभु भगवन की,
महिमा ऐसी जो है।
गा रहा संजय है,
ऐसी महिमा को,
दर्शन से तेरे मिलता है चैन,
बिन दर्शन के राहु बेचैन॥
ऊँचे-ऊँचे पर्वत,
पर तेरा बसेरा है,
चढ़ न पाऊँ मैं,
जब तक तेरा सहारा न हो।
कैसे करूँ, तेरा दर्शन…
मार्ग दिखाओ मुझे,
मेरे चंद्रा प्रभु,
दर्शन से तेरे मिलता है चैन,
बिन दर्शन के राहु बेचैन।
चंद्रा प्रभु भगवन की
महिमा ऐसी जो है॥
पाप किए हैं ज्यादा,
पुण्य का करता रहा दिखावा,
अंतर मन में ज़हर है,
फिर कैसे करूँ तेरा दर्शन।
सत्संग सुना,
जीवन को समझा…
अब में पछता रहा हूँ,
ये सब कुछ करके।
दर्शन से तेरे मिलता है चैन,
बिन दर्शन के राहु बेचैन…
चंद्रा प्रभु भगवन की,
महिमा ऐसी जो है,
गा रहा संजय है,
ऐसी महिमा को॥
खत उनके नाम
खत प्यार का एक
हमने उनको लिखा।
पर पोस्ट उस को
अब तक नहीं किया।
अपने दिलके लब्जो को
अपने तक सीमित रखा।
बात दिल की अपनी
उन तक पहुँचा न सका॥
डर बहुत मुझको उनसे
और अपनों से लगता था।
कही बात का बतंगढ़
कुछ और बन न जाये।
इसलिए मैं अपने प्यार का
इजहार उनसे कर न सका।
और जो आंखों से चल रहा था
उसे ही आगे जारी रखा॥
लगता था एक दिन
बात बन जाएगी।
प्यार के अंकुर
दिलों में खिल जाएंगे।
पर ऐसा अब तक
कुछ भी हुआ ही नहीं।
और दोनों को किनारे
अबतक मिल न सकें॥
फिर समय ने अपना
काम कर दिया।
उनकी ज़िन्दगी में एक
नया अध्याय जोड़ दिया।
और हम किनारे बैठकर
दुनियाँ उजड़ते देखते रहे।
और प्यार का जनाजा
निकलता हम देखते रहे॥
थक गया पर
कर कर के मैं थक गया
जीवन भर काम।
सबको व्यवस्थित करके
किया अपना काम।
जब आया थोड़ा-सा मौका
मिल ने को आराम।
तभी थमा दिया मुझे
एक प्यारा-सा पैगाम।
जाकर तुम अब देखो
पुन: एक नया काम।
वाह री मेरी किस्मत
और वाह रे मेरा नसीब।
कभी नहीं मिल सकता
क्या अब मुझे आराम।
फिरसे तुम शुरू करो
एक नया काम।
जीवन तुम्हारा निकलेगा
कर कर के ही काम।
नहीं लिखा है भाग्य में
तुम्हे कही भी आराम।
करते रहो संघर्ष
तुम जीवन पर्यन्त।
तेरा जीवन बीतेगा
कर कर के काम।
जिस दिन तू रुकेगा
अंत तेरा हो जायेगा।
फिर याद करेंगे तुझे
वो तेरे साथ वाले लोग।
जहाँ जहाँ तुम ने
किया था काम।
पर अब में क्या करू
जब रूठ गए अपने।
और हो गया शिकार
अपने ही लोगों का।
अब किसको दे दोष
जब क़िस्मत गई रुठ।
फिर भी क़दम नहीं
पीछे हम हटाएंगे।
और अंत समय तक
काम अब करते जाएंगे।
और कर्मी के बल पर
आगे क़दम बढ़ाएंगे॥
हमारा हिंदुस्तान
है प्यार बहुत देश हमारा हिन्दुतान।
है संस्कृति इसकी सबसे निराली है।
कितनी जाती धर्म के,
लोग रहते यहाँ पर।
सब को स्वत्रंता पूरी है,
संविधान के अनुसार॥
कितना प्यार देश है हमारा हिंदुस्तान।
इसकी रक्षा करनी है
आगे तुम सबको॥
कितने बलिदानों के बाद
मिली है आज़ादी।
कितने वीर जवानों को
हमने खो दिया।
गांधी सुभाष और भगतसिंह
चढ़े इसकी बलि।
चंद्रशेखर मंगल पांडेय
हो गए शाहिद।
तब जा के हम को
ये मिली है आज़ादी॥
अब देखो नेताओ का
ये नया हथकंडा,
आपास में बाट रहे
अपने ही देश को॥
इससे उन शहीदो को
कैसे मिलेगा सुकून।
जिन्होंने आज़ादी के लिए
गमा दिया प्राण।
क्या उन सभी की
कुर्बानियाँ व्यर्थ जाएगी।
फिर से देश क्या
गुलाम बन जायेगा।
यदि ऐसा अब हुआ तो
सब ख़त्म हो जाएगा।
भारत फिर से
गुलाम बन जायेगा।
इसका सारा दोष
देश के नेताओं को जाएगा॥
कितना प्यार देश
है हमारा हिंदुस्तान।
इसकी रक्षा करनी है
आगे तुम सब को॥
राखी का त्यौहार
आया राखी का त्यौहार,
जिसमें दिखता भाई-बहिन का प्यार।
साथ पले और साथ पढ़े हैं।
खूब मिला बचपन में प्यार।
भाई-बहन का प्यार बढ़ाने।
आया है राखी का त्यौहार॥
आया राखी का त्यौहार।
लाया खुशियों की बौछार।
बाँध रखा है एक धागे में।
भाई-बहन का अटूट प्यार।
आया राखी का त्यौहार॥
राखी का त्यौहार आया।
बहनों की दुआएँ
भाइयों को साथ लाया।
बना रहे यह बंधन हमेशा।
भाई-बहिन का पवित्र रिश्ता॥
प्रीत के धागो के बंधन में।
स्नेह का उमड़ रहा संसार।
सारे जग में सबसे सच्चा।
होता भाई-बहन का प्यार॥
देखो आया राखी का त्यौहार।
जिसमे दिखता भाई-बहिन का प्यार।
आया राखी का त्यौहार॥
सावन का महीना
मधुर मिलन का ये महीना।
कहते जिसे सावन का महीना।
प्रीत प्यार का ये महीना,
कहते जिसे सावन का महीना।
नई नबेली दुल्हन को,
प्रीत बढ़ाता ये महीना॥
ख्वाबों में डूबी रहती है,
दिनरात सताती याद उसे।
होती रिमझिम रिमझिम
बारिस जब भी,
दिलमें उठती तरंगे अनेक।
पिया मिलन को तरस रही है,
इस सावन के महीने में वो॥
रोग लगा है नया नया,
ब्याह हुआ है अभी अभी।
करे इलाज़ कैसे इसका,
मिट जाए ये रोग नया।
पिया मिलन तुम करवा दो,
सावन के इस महीने में।
हिन्दी मेरी माँ
मैं हिन्दी का बेटा हूँ
हिन्दी के लिए जीत हूँ।
हिन्दी में ही लिखता हूँ
हिन्दी को ही पड़ता हूँ।
मेरी हर एक सांस पर
हिन्दी का ही साया है।
इसलिए मैं हिन्दी पर
जीवन को समर्पित करता हूँ॥
करें हिन्दी से सही में प्यार
भला कैसे करे हिन्दी लिखने
पड़ने और बोलने से इंकार।
क्योंकि हिन्दी बस्ती है
हिंदुस्तानीयों की धड़कनों में।
इसलिए तो प्रेमगीत भक्तिगीत
हिन्दी में लिखे जाते।
जो हर भारतीवयों का
गौरव बहुत बड़ते है॥
करो हिन्दी का प्रचार प्रसार
तभी तो राष्ट्रभाषा बन पायेगी।
और हिन्दी भारतीयों के
दिलो में बस पायेगी।
चलो आज लेते है
हम सब एक शपथ।
की करेंगे सारा कामकाज
आज से सदा हिन्दी में।
तभी मातृभाषा का कर्ज़ उतार पाएंगे
और सच्चे भारतीय कहलाएंगे॥
श्री चंद्राप्रभु के दर्शन करने
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन-सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये॥
मन में उमड़ रही है ज्योत धर्म की।
उसको यूही दबाने से क्या फायदा।
प्रभु के बुलावे पर भी न जाये वहाँ।
ऐसे नास्तिक बनाने से क्या फायदा।
डग मगाते कदमो से जाओगे फिर तुम।
तब तक तो बहुत देर हो जायेगा॥
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्राप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना॥
नाव जीवन की तेरी मझधारा में पड़ी।
झूठ फ़रेब लोभ माया को तूने अपनाया था।
जब तुम को मिला ये मनुष्य जन्म।
क्यों न सार्थक इसे तू अब कर रहा।
जाकर जिनेन्द्रालय में पूजा अभिषेक करो।
और अपने पाप कर्मो को तुम नष्ट करो॥
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
थाल पूजा का लेकर चले आइये।
चंद्रप्रभु का जिनेन्द्रालय यहाँ पर बना।
आरती के दियो से करो आरती।
और पावन-सा कर लो ह्रदय अपना।
थाल पूजा का लेकर चले आइये॥
जैसा करोगे वैसा भरोगे
प्रभु के ध्यान में,
गुरु के ज्ञान में।
रहता हूँ मैं सदा ही मगन।
प्रभु को नमन, गुरु को नमन।
गुरु को नमन, प्रभु को नमन॥
जो प्रभु गुरु की करते है।
सुबह शाम वह आराधना।
ऐसे श्रावक और श्राविका।
पाते है खुश हाल जीवन॥
प्रभु को नमन, गुरु को नमन।
गुरु को नमन, प्रभु को नमन॥
जो आदर भाव रखते है।
अपने मात पिता के प्रति।
उनकी संतान भी उन्हें।
देती है उन को भी आदर॥
प्रभु को नमन, गुरु को नमन।
गुरु को नमन, प्रभु को नमन॥
जो कर्म तुम करोगे अब।
उसका फल तुम को मिलेगा।
जो भी कर्म तुमने किये है।
अगले भाव में फल वैसा ही पाओगे॥
प्रभु को नमन, गुरु को नमन।
गुरु को नमन, प्रभु को नमन॥
संजय जैन
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