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नारी शक्ति (women power) का करो सम्मान
दिल दिया है, जान भी देगें,
नारी शक्ति (women power) का सम्मान करेगें!
सशक्त महिला-सशक्त भारत,
आत्मनिर्भतासे रहे कार्यरत,
तकनिकी कार्यसें
पूर्ण होत मनोरथ,
यही प्रण हम नित्य करेगें,
नारी शक्ति का सम्मान करेगें!
हाथ में हात लिये साथ चलेगें,
कदम-कदम से आगे बढ़ेगें,
सर्वथा ऊन्नती स्वयं करेगें,
देशका विश्वमें नाम करेगें,
नारी शक्ति का सम्मान करेगें!
सशक्त महिला, सुरक्षित महिला,
सशक्तीकरण का मंत्र पहिला,
पढ़कर, बढ़कर सशक्त महिला,
जीवन में अपने लाये उज़ाला,
उजाले से जीवन गतीमान करेगें,
नारी शक्ति का सम्मान करेगें—!
सुलभ, साहशी, संस्कार, सुरक्षा,
धैर्यवान हौशी हो जीवन कक्षा,
नारी जीवन का परीवार नियोजन,
आनंद से भरा हो उनका जीवन,
यही प्रयोजन हम नित्य करेगें,
नारी शक्ति का सम्मान करेगें—!
कभी ख़ुशी कभी गम
कभी आँखों में आसुं थे-
पलकों के पीछे छिपाये रखे,
कितने ग़म संभाले-
ज़माने को दिखा न सके!
अरमानों से भरी जिन्दगी-
उम्मीदों के सहारे चल तो रही,
दिन ब दिन ठोकरे खातें-
अपनोंको संभाल ते हुये,
कितने सपने मन में संजोये, पर—
बया न कर सके,
कभी आँखों में आसुं थे-
पलकों के पीछे छिपाये रखे,
कितने ग़म संभाले मन में-
पर ज़माने को दिखा न सके-!
कभी ओठों पर हंसी थी—
खुशिया बाट-बाट कर,
औरों के चेहरे पर मुस्कान देके-
हम अपना दिल बहलाते-
खुशिया तो दे दी, और-
ग़म ख़ुद के पास रखे,
कहा खुशिया, कहा गम,
हम पहचान न सके!
समय
ना मैं रुका, ना समय रुका,
बलवान तो मैं भी हुं—,
लेकीन समय से कुछ कम-
पर, करते-करवाते-
निकल पड़ा दम,
हम चाहें कितना भी-
सुलझे-समझे, पर—-,
समस्याओं का भण्डार-
ना होता कम,
मन चाहाँ करते-सोचते,
मैं रुका जहाँ के वहाँ,
समय तो निकल पड़ा हाथ सें,
वो चला गया, जो समय था—
मैं भटकता फिरता अकेला,
मौके के इंतज़ार में
वक्त
वक्त बीता, साल बीता,
दिन कितने बीत गये,
चलते चलते हम मिले,
कहि भूल न जावो—,
इस राह पर, हम तुम-
साथ साथ जो चले,
हमसफर हम इस जीवन के,
अनजाणे मोड़ पर जो मिले,
कितने सपने साथ लिये,
अरमानों को संभाले,
कभी बहारों में तो—-;
कभी विरानों में हम तुम—
हसते-हसाते, धूप-छाव
सहते चले—,
कहि भूल न जावो,
इस राह पर चलते चलते,
हम तुम मिले!
राखी
राखी बाँधवा लो भैय्या-,
मेरी पार लगाओ नैय्या——!
बाबुल के घर मेरा कौन सहारा,
तुम ही तो एक निवारा,
समय बड़ा कठिन हैं, भाई—,
चलते संभलते लाज राखो मेरी,
मैं तुम्हारी हूँ, हरजायी,
मेरे मनमे यही रवय्या,
राखी बाँधवा लो भैय्या,
मेरी पार लगाओ नैय्या——!
बचपन बीता लाड प्यारसे,
माॅ-बाप ने संभाला बड़े कष्ट से,
आशिष है, सर पर माता पिता के,
दिन आ चुके अब सयानी के,
पढ़ना-लिखना पुरा हुआ अब,
ब्याह कराके मिला दो सय्या,
राखी बाँधवा लो भैय्या,
मेरी पार लगाओ नैय्या——!
कली थी मैं आगंन की तुम्हरे,
खिला फुल तुम्हारे सहारे,
कितनी आयेगी सावन की बहारे,
कैसे बताऊ भाई मेरे,
बाबुल का घर छोड़ चली तो,
सुगंधीत करुंगी ससुराल का आगंन,
महक उठेंगा तन मन हे,
सय्या———,
राखी बाँधवा लो भैय्या,
मेरी पार लगाओ नैय्या——!
त्योहार सुहाना
बहुत पुराना, त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
श्रीकृष्ण-द्रौपदि थे, बहन-भाई,
मनही मन याद करें तो,
द्रौपदि की लाज़ रखवाई,
धर्म-अधर्म का अहसास पुराना-
इतिहास में छीपे हैं, कितने किस्से,
रेशीम धागे का महत्त्व जो जाणा,
बहुत पुराना, त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
राणी पद्मिनी राखी भेजे,
कबुल करें रीश्ता, हुमायून राजे,
राणीने बादशहा को भाई माना,
रक्षाबंधन का नजारा सुहाना,
रक्षाबंधन का वादा जिसनें जाना,
बहुत पुराना त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
रीश्तो में बटा हैं, परिवार अपना,
भाई बहन का-
कुछ अलग ही सपना,
रहे निरंतर प्यार हमारा,
रक्षाबंधन का त्यौहार हैं न्यारा,
देश के सीमा पर-
जो करें रखवाली,
राखी बाँधकर मनमें,
भावना निराली,
देश हमारा, बहना हमारी,
यही तो हैं, वतन का सपना,
बहुत पुराना त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
एक अनोखा करतूत जिसने जाना
अमीर ग़रीबी सें रीश्ता टूटेना,
एक नाज़ुक धागे ने रीश्ता माना
बहुत पुराना त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
भाग्यवान कितने भाई बहन हैं,
जिन्होने सिखा हैं,
रीश्तेको जोड़ना,
बहुत पुराना त्यौहार सुहाना,
छीपा राखीमें रीश्ता अनजाना—!
रेशमी धागे
रेशमी धागे सें प्यार बंधा हैं,
सामने इस प्यार के—,
फिका पड़ता है, धन—,
त्योहारोंमें त्यौहार बड़ा हैं,
वो है, रक्षाबंधन————!
भाई बहन का, प्यार उमड़ता,
तो रीश्ता भी निभाना पड़ता,
राखी का जब दिन आता,
हर एक बाई, वादा निभाता,
धर्म-जाती के बंधन तोड़के-
भाई बहन का हो जाता,
दृढ कर के नाता भाई बहन का,
यही तो हैं त्योहारों का स्पंदन,
त्योहारोंमे त्यौहार बड़ा हैं,
वो है, रक्षाबंधन——————!
कितने बहाने, कितने तराने,
राखी ने तो रीश्ते बनाये अनजाने
रीश्तोंकी पहिचान यही है,
सीमायें लांघकर होता “रक्षाबंधन”
त्योहारोमे त्यौहार बड़ा हैं,
वो त्यौहार हैं, रक्षाबंधन———!
यादें ताजी करता बंधन,
वादे निभाता हैं ये बंधन,
रखवाली करता हैं ये बंधन,
रीश्ते बरकरार करता बंधन,
खुशीया भी लाता हैं ये बंधन,
त्योहारोमे त्यौहार बड़ा हैं,
वो है, रक्षाबंधन—————!
सावन आया, त्यौहार लाया,
रंगीबिरंगी राखीयों का,
सुनहरा मोसम छाया-,
रेशीम धागे देख देखके,
अनकही प्यार उमड़ आया,
भीड़ पड़ी राखी खरीदनें,
प्यार मोहब्बत का छोटासा साधन
त्योहारोमे त्यौहार बड़ा हैं,
वो त्यौहार हैं, “रक्षाबंधन”
सावन मास
मासोत्तम मास सावन कहें तो,
झूम-झूमकर सावन आया,
हरी-भरी होकर झूमे धरती,
भर-भरकर सावन खुशियाँ लाया!
बरस-बरसकर बरसी धारा
दर्द भुलाये सावन प्यारा,
कितना अनोखा मोसम है यह,
त्योहारों का उपहार भी लाया,
झूम-झूमकर सावन आया!
मस्ती भी देखो बूंद-बूंद में,
चमक उठती वह किरणों में,
लुका-छुपी खेली बादलों ने,
कमान निकाली इंद्र धनुष ने,
देख सूरज बरसे सावन,
सोने की बरसात कराया,
सुंदर सावन मन को भाया,
झूम-झूमकर सावन आया!
रंग सुनहरे बादलों के,
फलक पर अपनी छाप छोड़े,
देखकर नजारा होश उड़े,
चमचमाते मोती बरसते
मोर भी बन में नाच नचाया,
मनभावन वह दृष्य दिखाया,
झूम-झूमकर सावन आया!
रुक-रुककर बारिश शोर मचाये,
झरनों की झरझर सुर में गाये,
आवाज़ सुरमयी मन द्वन्द करें तो,
आनंद से सबका मन मुस्काया,
झूम-झूमकर सावन आया!
शाॅल ओढकर सजी है धरती,
नटखट नारी जैसी शृंगार करती,
रंग रंगीला सावन प्यारा,
लगता दिखता बहुत न्यारा,
सतरंगो ने रंग बिखेरकर,
विश्व को कितना सुंदर बनाया,
झूम-झूमकर सावन आया!
सुबह-शाम
अभी सुबह थी, अब शाम हूयी,
समजमें भी नहीं आया—
दोपहर कब ढल गयी———!
खेल-खिलौने लिये संभाले,
सूरज़की किरणे झेले—
सुख पाये बचपण देख-देखते,
उड़ते पंछी नज़र में आये,
आकाश की ओर छलांग लगाते,
कुछ समझ गये, बात कुछ समझ न आयी—,
अभी सुबह थी अब शाम हूयी—!
सूरज़ने अपना रूप बदला तो—
दोपहरकी धूप निकल आयी,
तेज़ धूप में हम, दौड़ने लगे हम-
गर्म लहू दौड़ रहा था,
थमने का नाम न ले,
बोझ जिम्मेदारी का, उठाये-संभाले
चल तो रहे थे,
खुन-पसीना बहते-बहाते,
रीश्तोने हात पकड़ लिया,
उलझते गये, कुछ शिकवे-गिले,
अब ना रहे शिकवे ना रहें गिले,
सभी तो प्यार मोहब्बत वाले,
यूहीं गले मिले, शाम होते-होते,
दिन ढलने की बात,
पलभर में सामने आयी,
अभी सुबह थी अब शाम हूयी,
चैन कहाँ, सुकुन कहाँ,
रात आते-आते—,
अंधेरेने घेर लिया तब,
फिर सुबहकी आस मनमे आयी,
अभी सुबह थी अब शाम हूयी—!
माँ
सालों साल चलता आया,
तेरा हात थामकर माँ…
कहीं सीधे रास्ते, कहीं मोड़ मिले,
मतलब समझा दो ना माँ…!
सही राह़ पर सही हमसफर मिले,
जरा तऱकीब़ बताओ ना माँ…,
हम कितने जायज़ है, यह तो,
नाजायजों को कह़ दो ना माँ…!
तुमने कितने कष्ट उठाये, यह-
मेरा दिल जानता हैं ना माँ…!
कितना कर्ज़ तुम्हारा हम पर,
जनम चाहे जितने मिलें-
नहीं घटेगा ना माँ…!
कदम-कदम पर कठ़नाई पड़ी है,
लांघने की शक्ति दो ना माँ…!
नेक काम करें इन हाथों से-
ऐसी शिक्षा दो ना माँ…!
हे नारी तुम
हे नारी तुम कला की कामिनी,
तुमही चॉंद की चमचमाती चांदनी,
तुम विद्यूलता, नभ से निकली दामिनी
तुम सकल मन की, मनभाविनी,
सौंदर्य-शृंगार की लावण्यखणी,
हे नारी तुम कला की कामिनी!
तुम प्रेम प्रीत की यामिनी,
सकल संतांनी जननी,
विश्व की उद्गामिनी,
तुम संसार सुखदायिनी,
हे नारी तुम कला की कामिनी!
तुम परिवार की, संजोगिनी,
रण रागिणी सिध्द संगिनी,
शौर्या, शुरों की प्रेरणादायिनी
तुम ही संसार की दुर्गा भवानी,
हे नारी तुम कला की कामिनी!
तुम कलियाँ फूलों की पंखुड़ी,
सुवास सुगंध की आरम्भिनी,
सर्वांगसुंदर सहचारिणी,
सप्तसुरों की स्वयंभू स्वररागिणी,
हे नारी तुम कला की कामिनी!
सकल संसार के संस्कृति की
तुम ही हो उपाशिनी,
हे नारी तुम कला की कामिनी!
वक्त
वक्त कहॉं रुकता हैं कहीं?
भला हो या बुरा,
किसी के कहने पर
वक्त रुकता कहॉं?
जो घड़ी निकल गयी, वो
मन में ठहर गयी, यादें बनकर,
वक्त आता है, वक़्त जाता है,
चलते-चलाते हम
चले वक़्त के साथ,
समय-समय की बात है,
हम मिले थे कहीं, छूट गये थे कहीं,
कहाँ ठहरता कौन किसी के वास्ते
जिन्दगी के कितने रास्ते
कौन कहॉं तो, कौन कहॉं
हम वहीं के वहीं, पर
वक्त रुकता है कहीं,
समय का रुख बदल सकते हैं,
लेकिन, समय को नहीं रोक सकते,
यह तो वक्त-वक्त की बात है,
यह सोच दिखती कहीं-कहीं,
पर, वक़्त रुकता है, कहीं?
ऐ जिन्दगी
ऐ जिन्दगी, मैं हकदार हूँ तेरा,
तू ही बता मुझे,
कितने सारे ग़म यहाँ,
मैं जियूं या मरु,
कुछ तो सुना मशवरा,
ऐ ज़िन्दगी मैं हकदार हूँ तेरा!
जीवन तो दे दिया तुने-
रास्ते दिखाये हजार,
कितना सामान सामने रखा,
क्या-क्या खरीदूं,
कितना ले लूँ उधार,
औकात होती तो-
अमीर बन जाये, पर,
नियत कहाँ मानती,
काम ना चले, सिर्फ़ पैसों से,
अपने बना लो प्यारे इन्सानियत से,
क्या क्या किसे करें इशारा,
ऐ जिन्दगी,
कुछ तो सुना मशवरा!
सुरेश भड़के
नाशिक
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2 thoughts on “नारी शक्ति का करो सम्मान (respect women power)”