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अयोध्या के राम (Ram of Ayodhya)
Ram of Ayodhya: “यह जीवन तेरा बीत रहा, अब कर ले तू कुछ काम
जप ले मानव प्रेम भाव से, तू सिया राम, सिया राम”
श्री राम चंद्र शिष्टाचार, नैतिकता, करुणा, क्षमा, धैर्य, त्याग, पराक्रम और सदाचार का प्रतीक हैं। उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात् सिद्ध पुरुष के नाम से अलंकृत किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार श्री राम ने त्रेता युग में अवतार लिया। उन के जीवन काल एवम् पराक्रम को वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य रामायण में दर्शाया गया है। गोस्वामी तुलसीदास ने उन के जीवन पर केंद्रित सुप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की। इस के अतिरिक्त कई भारतीय भाषाओं में भी रामायण की रचना हुई।
श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी रानी कौशल्या के पुत्र थे। उन का जन्म चैत्र मास की नवमी तिथि को हुआ। उन के तीन भाई-भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे और उन की पत्नी का नाम सीता जी था। रघुकुल में जन्मे श्री राम जी के गुरु श्री वशिष्ठ जी थे। किशोर अवस्था में ही गुरु विश्वामित्र उन्हें और उनके छोटे भाई लक्ष्मण को राक्षसों का संहार करने वन ले गए। उस के उपरांत मिथिला गए जहाँ राजा जनक की पुत्री सीता जी का स्वयंवर आयोजित किया गया था। श्री राम चंद्र जी द्वारा शिव धनुष तोड़, देवी सीता का विवाह उनसे सम्पन्न हुआ।
राजा दशरथ अपना राज्य श्री राम को सौंपना चाहते थे परन्तु मंथरा के कहने पर कैकेयी ने उनसे अपने दो वचनों को माँगा जिस में भरत को अयोध्या का राज्य और राम जी को चौदह वर्ष का वनवास मिला। वहाँ उन के साथ सीता जी और लक्ष्मण जी वन गए। दशरथ जी पुत्र वियोग न सह सके और प्राण त्याग दिए। लंका के राजा रावण ने कपट से तपस्वी का भेष बना कर सीता को हर लिया।
सुग्रीव, हनुमान और जामवन्त इत्यादि की सहायता से सागर पर सेतु बना लंका पर विजय प्राप्त की, रावण और अन्य राक्षसों का संहार किया, विभीषण को लंका का राज्य सौंप दिया और वनवास की अवधि को पूर्ण कर अयोध्या पहुँचे। उन के शासनकाल को आज भी राम राज्य की उपमा दी जाती है। उन के दो पुत्र-लव और कुश हुए जो अपने पिता की भाँति पराक्रमी थे।
राम का जीवन हमेशा ही सत्यम, शिवम् और सुंदरम जीवन हेतु पथ प्रदर्शक रहेगा।
“अयोध्या के वासी राम, रघुकुल के कहलाये राम
पुरुषों में उत्तम पुरुष, जपते रहो हरी राम का नाम”
अवध में बाजे है शहनाई
पावन पग धर दिए रघुराई
कैसी अद्भुत यह रुत आई
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई
राम लला के आने से…
मिट जाएँगे दर्द जन-जन के
कैसी ख़ूब है बेला आई…
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई…
सब मिल मंगल गीत गाओ
रघुवर के दर्शन पाओ…
ख़त्म होगी ये कठिन घड़ी…
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई…
राम तो सुख का सागर है
तर जाए जो यह जपता है
राम का नाम है सुखदाई
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ छाई…
आत्महत्या (suicide)
“खूबसूरत है ज़िंदगानी बस अपना ख़्याल कर
भुला दुनियाँ के सारे ग़म तूँ ख़ुद से प्यार कर”
आत्महत्या अक्सर गहरी निराशा और तनाव के चलते अपने जीवन को समाप्त करने की क्रिया को कहते हैं। सामाजिक, आर्थिक या मानसिक विकार इस के मुख्य कारण हो सकते हैं। सामाजिक कारण परिवार, मित्रो या सगे सम्बन्धियों से दिक़्क़तों का सामना होना; आर्थिक कारण जैसे परीक्षा में अनुत्तीर्ण होना, नौकरी छूटना, व्यापार ठप्प हो जाना, क़र्ज़ में डूबना और मानसिक कारण जैसे लाइलाज शारीरिक या मानसिक बीमारी, डिप्रेशन और बुढ़ापा इत्यादि होते हैं।
ज़्यादातर इस का इलाज़ दवाइयाँ या टॉक थेरेपी है जिस से नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों में बदल दिया जाता है। इस के अतिरिक्त सब से ज़रूरी है-जीवनशैली में बदलाव। नशीले पदार्थों के सेवन से परहेज़ कर के इस के लक्षणों को कम किया जा सकता है। नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, जिस से हम अपने में नयी स्फूर्ति महसूस करते हैं। इस के अतिरिक्त कम से कम छह से आठ घंटे की नींद लेना बहुत आवश्यक है।
सचेत और सम्वेदनशील रह कर हम ऐसे व्यक्ति जो इस स्थिति से गुज़र रहा होता है, की मनोदशा को पहचान सकते हैं। सही समय पर उसकी गतिविधियों पर नज़र रख और उस की सहायता कर के हम उसकी ज़िंदगी बचा सकते हैं। पीड़ित व्यक्ति को परामर्श (काउन्सिलिंग) की भी आवश्यकता होती है। उसे अपने भीतर ही न सिमटने दें। असली काम उस व्यक्ति को ध्यान से सुनना, ताकि उस के मन का गुबार निकल जाए और वह अपने भीतर हल्कापन महसूस करे।
ऐसी स्थिति में अक्सर देखा गया है कि उस की समस्या का समाधान ख़ुद ही निकल जाता है। असल में, उस समय उस की स्थिति धुंधले चौराहे जैसी होती है, जहाँ पर रोशनी दिखाना हमारा दायित्व है। उसे किसी भी बात पर शर्मिंदगी महसूस नहीं होने देनी चाहिए। न ही उस की निजी बातों को सार्वजनिक होने देना चाहिए। ज़रूरत है उसे दलदल से निकाल ज़िन्दगी के हर पल को जीने की आशा दिखाने की। इस का इलाज़ सिर्फ़ दवाइयों तक सीमित नहीं अपितु इस से उबरने के लिए परिवार, दोस्तों और अपनों का साथ चाहिए।
ऐसे व्यक्तियों को चाहिए कि वे अपनी रुचियों को पूरा करें, गीत-संगीत सुनें और प्रभु भक्ति में मन लगाएँ ताकि उन का ध्यान परिवर्तित हो जाए। भरपूर पौष्टिक भोजन खाएँ, ख़ूब पानी पिएँ, तनाव दूर भगाने के लिए योग करें, उगते सूरज में सूर्यनमस्कार करें, जिस से शरीर में नयी ऊर्जा का आवाहन होता है। दोस्तों और परिवार के साथ अपना दुःख साँझा करें। दुनियाँ में ऐसा कोई शख़्स नहीं जिसने मुश्किलों का सामना न किया हो। लगातार हो रही असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि कई बार गुच्छे की आख़िरी चाबी ताला खोल देती है।
ज़िंदगी बहुत ख़ूबसूरत है। यह नर तन बार-बार नहीं मिलता। उतार-चढ़ाव गाड़ी के दो पहियों की तरह हैं। बेबस हो कर ज़िंदगी से मुँह मोड़ लेने का फ़ैसला कायरता की निशानी है। जब भी परेशानी हो, आईने के सामने खड़े हो जाएँ, उस में आपको वह व्यक्ति नज़र आएगा जो आपकी हर समस्या का हल कर सकता है। इसलिए हमेशा आत्म-विश्वास बनाए रखें।
“रख जज़्बा तो मुश्किलों का हल भी निकलेगा
माना बंजर हैं ज़मीं, पर कभी जल भी निकलेगा
न भटक जाना होकर मायूस कभी अंधेरों में तुम
है तेरे धैर्य की परीक्षा, सुनहरा कल भी निकलेगा”
आभा मुकेश साहनी
पंचकूला
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