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हमारी संस्कृति (our culture)
our culture: चित् मन शांत नित काम करें
सुबह शाम हरिनाम करें
मति मत एक, मर्यादित नेक
उत्साह उचित, तो राह अनेक
अस्थिर सुख-दुख, पीड़ा, अभिषेक
अवसर प्रतिक्षण, रहे धैर्य विवेक
अपनी माटी, अपनी रीत
अपनी संस्कृति, अपने गीत
अतीत प्रकट हो, पुनः पुनीत
मनु, ओम, गीता, भारत-संगीत
सब मिलकर आनंद करें
उकसावा छल बंद करें
विधि की काल व्यवस्था में
कर्म सुख धर्म नियत अवस्था में
घात मलिन-मन इच्छा द्वैष
अर्थ शोषण अहम् बहम् विशेष
छोडो अवसाद उन्माद आवेश
यही समय का शुभ संदेश
आओ सब मिल खेलें खायें
दूर रहें पर मनभेद मिटायें
‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ एकस्वर दोहरायें
अखिल विश्व विश्वास जगायें
नमस्ते हँसते चहुंओर योग हो
आत्मनिर्भर भारत, न्यून भोग हो
सब सुखी शांत नीरोग लोग हों
ध्वजा संस्कार हिंदगुरू योग हो
संवाद
एक माँ की असमय विदाई
नरनन पीडा, फिर भी मुस्काई
गालों बालों पर पति के हाथ
निःशब्द संवाद फिर छूटा साथ
तब तुमसे संवाद हुआ था,
इस घर को कौन चलायेगा।
आगे निशा अंधकार है,
ऊषा बन कौन जगायेगा।
सूरज किरण, आभा से चंदा,
तारा टिमटिम से भाता है।
बाती से ज्योति दीपक की,
तम हरता चमक जगाता है।
तुमने धीरे से कहा, भ्रमर!
इस भ्रम में समर न खो देना।
मीठा जल है, उपजाऊ मिट्टी,
श्रेष्ठ पौध हैं, बस बो देना।
मैं शक्तिरूप में साथ रहूँगी,
जब विषाद उन्माद करोगे।
संवाद का वचन दिया प्रियतम,
जब तुम मुझको याद करोगे।
तुलसी कालिदास प्रसाद की,
तुम ही तो कथा सुनाते थे।
‘बीत गयी सो बात गई’ ,
बच्चन की कविता गाते थे।
सृष्टि दृष्टि ऊर्जा उजियाली,
किरण लाली हैं, सब मतवाली।
वृक्ष-वल्लरियाँ, फल फूल कलियाँ,
विहंग सब होंगे, बन जाओ माली।
यह आस नई, संकल्प नया।
भ्रमर का नया समर होगा।
पथ में भटकाव न आने दें,
तव अंश से वंश अमर होगा।
वन्दन
तन में राम मन में राम
कण-कण में राम समाया है
पूजन धन जीवन जप तप में
त्रण प्रण में राम समाया है
सर्व स्वरूप विजय भूप अनूप
शब्द ओम व्योम सब माया है
कह सुन लिख पढ देख लिया
रोम रोम में राम समाया है
वाणी विद्या वेद वाङमय
भव अनुभव रघुराया हैं
भाव स्वभाव प्रेय दशा दिशा
चित अचित में राम समाया है
दृढ बन्ध रचना सुन्दर संरचना
प्रिय छंद में राम की छाया है
धर्म ध्येय सत् संस्कार सनातन
हिय बन्ध में राम समाया है
तन मन बुद्धि अहम् मोह में
सुख शांति सुधि विसराया है
शुभ मंगल कल्याण राम से
यम नियम में राम समाया है
एक पत्र
वृद्ध बडे निस्वार्थ समर्पित,
सब छोटों को खडा करें।
भार हीन खग बडे पँख से,
अखिल विश्व में उडा करें।
उनके निज कहने करने में,
स्वयं विश्वास ज़रूरी है।
रक्षित पोषित सबका मिलना,
घर में उल्लास ज़रूरी है।
होंगे सबके काम समय पर,
ऐसा एहसास ज़रूरी है।
सबकी नज़र व डगर सामने,
सभी का विकास ज़रूरी है।
बंधी डोर तंग उभय छोर,
खेंच पेंच का ज्ञान ज़रूरी है।
मगन गगन में पतंग उसे, भव
निज-जन का भान ज़रूरी है।
सुहृदय में भाग्योदय सबका,
समर्पण सम मान ज़रूरी है।
गो वत्स वे ही, गोधूलि नभ में,
पुनः प्रभात का ध्यान ज़रूरी है।
प्रार्थना
हे गंगा माँ कल्याणी! तुम
मातृशक्ति हो, सहायक हो,
बच्चों के भगवान तुम्हीं,
तुम ही भाग्य विधायक हो,
हे आत्मशक्ति! तुम शक्ति दो,
सबकी तुझमें अनुरक्ति हो,
बच्चों का आधार बनो,
अपने सपने साकार करो।
कर्म भाग्य में यश हो, सुख हो,
भावी उज्ज्वल, खिलता मुख हो,
हे भागवान! स्वयं खेवैया हो,
क्यों न अडिग यह नैया हो!
पर्याप्त जन धन ज्ञान हो,
भले बुरे का ध्यान हो,
परिजन, जग जन-मन में,
विश्वास हो, सम्मान हो।
नजर पारखी हो,
दीन-दया सद्भाव,
मन वाणी कर्म, धर्म से,
हरे पीडा, भरें सब घाव।
प्रगति हो ठहराव नहीं,
ना हो कभी टकराव,
सत्य श्वेत प्रकाश हो,
अमर जीवन की नाव।
दीर्घायु नीरोग हों,
साथ सारे लोग हों,
जन्मों तक साथ मिले तेरा,
ऐसे सब संयोग हों॥
ठाँव
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
ताव-शीतभाव में,
प्रभाव धूप-छाँव का।
सृजन-नाश प्रयास एक,
बंशी-तीर बाँस एक,
रम्मी-जूआ तास एक,
विषमद् अमृत प्यास एक,
प्यास, त्रास नाव में,
प्रभाव जल भराव का।
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
बचाव-फँसाव-उठाव में,
गाँठ एक लाव की।
अनुरक्ति में, विरक्ति में,
गाँठ एक लगाव की।
पथ्य, चाहत, चाव में,
प्रभाव कारणभाव का।
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
मिलन-विरह यह फाग एक,
चिता-चूल्हे की आग एक,
माँ की ममता अनुराग एक,
देवासुर दें यज्ञभाग एक,
सुख भोग साख में,
प्रभाव नीयत दाँव का।
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
शिक्षा दूध माय का,
गुरु शाला संकाय का,
संग दिक्काल आदाय का,
मानस मानुष राय का,
चाल फल जुडाव में,
प्रभाव अपने पाँव का।
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
उफ उफान तूफ़ान में,
साथ नाविक नाव का।
सुदूर देश ठहराव में,
प्रभाव भाव गाँव का।
सत्संग मंदिर श्मशान में,
सत्भाव अन्त पडाव का।
शुभ-अशुभ स्वभाव में,
प्रभाव अपनी ठाँव का।
सम्बंध अनूठा राखी का
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
मधुर अटूट सम्बंध अनोखा
भाई बहन का बंधन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
जैसे नारियल में पानी
डोरी में रेशम होती है
मिठाई में मिठास वैसे
भाई की बहना होती है
सावन की पावन पूनम को
भाई से बहनें मिलती हैं
बहिनों का हिवडा भरता
भाई की बाँहें खिलती हैं
भाई बहन का जीवन तो
जैसे सुगंध और चंदन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
नारियल मिश्री, स्नेह हृदय में
कच्चे धागों में पक्का प्यार
कुंकुम तिलक आशीष अमर
यश दीर्घायु ऊर्जा भण्डार
आजीविका और शस्त्र शास्त्र
उपहार में सीखूंगी मैं
हूँ लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती
अपना इतिहास लिखूँगी मैं
बहना घर का गहना है
भाई घर का रघुनन्दन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
कर्मा का जौहर याद करो
हुमायूं को राखी भिजवाई थी
शरण लेकर निर्धन के घर
आजाद ने राखी बंधवाई थी
बोले अनाथ ना हो बहना
उनकी सूनी ना रहे कलाई
सुबह रूपये पर्ची देख माँ
बेटी की आँखें भर आई
पावन संस्कृति, विश्वास का बंधन
होता कोई स्पन्दन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
शिशुपाल वध में कृष्ण ने
द्रोपदी से चीर बंधाया था
चीर बढ़ाकर भरी सभा में
धागों का कर्ज़ चुकाया था
विष्णु थे बलि के द्वारपाल
भक्ति की उन्हें दुहाई थी
बलि के राखी बाँध लक्ष्मी
अपने पति को ले आई थी
यजमान के राखी बंधन में
बलि का धर्म विबंधन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
दैवासुर संग्राम हुआ तब
निश्चित थी देवों की हार
इन्द्राणी की मंत्रित राखी
देवों की जीत, दानव संहार
सिकन्दर जब गिरा धरा पर
पोरस को राखी याद रही
बंदी बना ख़ुद वही सूत्र था
उनकी सीमा आबाद रही
(ब्रदर्स एण्ड सिस्टर्स)
भाइयों बहनों शिकागो में
विवेकानंद का उद्बोधन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
रजपूती शेर ललनाओं से
कुंकुम राखी ले निकलते थे
रक्त पीती असिधार चले
अगणित अरिशीश उछलते थे
बहनों! पूजा में राखी रखना
सेना के नाम से थाली में
शक्ति प्यार लम्बी आयु
गूंजेगी तोप दुनाली में
इस वन्दन में शत्रुदल का
संहार सकल अरि क्रन्दन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
हम सैनिक की बहन करोड़ों
सीमा पर राखी लायेंगी
वहीं होगा सत्कार तुम्हारा
त्योहार वहीं मनायेंगी
जिन वीरों ने आहूति दी
उनकी समाधि पर जायेंगी
हृदय भाव से तिलक राखी
श्रद्धा के दीप जलायेंगी
गौ गायत्री गंगा वन्दन
तिरंगे का अभिनंदन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
मधुर अटूट सम्बंध अनोखा
भाई बहन का बंधन है
सम्बंध अनूठा राखी का
प्यारा यह रक्षाबंधन है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि
जब छोटी-छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है
तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है,
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
जब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार
अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार
उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
धृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है
गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है
उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
भूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है
सहज मिलन मन राधेय राधेय, प्रणय राग जग जाती है
विष वरण, चाहे चीर हरण, होली चंग फाग सुनाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
जब रावण कंस हिरण्यकशिपु, यहाँ हाहाकार मचाते है
तब राम कृष्ण नृसिंह बनते, धरती का भार हटाते हैं
अर्जुन विषाद में रणबीच सारथी, गीताजी राह दिखाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
पल में विस्फोट विध्वंस करे, कितनी श्वासे थम जाती हैं
परेड पीछे मुड कहते ही, अन्तिमा प्रथम हो जाती है
झूठ धर्म का अच्छा मान, निर्दोष जान बच जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
प्रेम प्रारब्ध, मुख के अपशब्द, निर्दोष पीठ पिट जाती है
जड को पानी दें, तना हरा, पत्तों की प्यास मिट जाती है
बाल सखा की अक्षत भेंट ही, छप्पन भोग छुडाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
सांझ ढले, कोई किरण मिले, बातों में रात ढल जाती है
प्यासी हो साख, बरसे बदली, भरपूर फ़सल लहराती है
छूटा पथ पास, लौटे विश्वास, मरते में श्वास आ जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है
कान्हा तेरी बंशी की धुन में, सबकी सुध बुध खो जाती है
तेरी छवि के आगे रवि की, किरणें फीकी हो जाती हैं
दुनिया में प्यार का नाम बडा, राधे कहे श्याम बुलाती है
राधे कहे कान्ह बुलाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है॥
जब छोटी-छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है
तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है,
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही, जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन में ज्योति जगाती है॥
प्रभात फिर होगा
छोटा-सा घर, अंधी बुढ़िया,
उसका गुड्डा लाया गुड़िया,
पोते पोती सुंदर बढ़िया,
वह बूढ़ी माँ उनकी गुड़िया,
गुड़िया में माँ के जीवन प्राण,
वो ही थी उसके आँख कान,
गुड़िया गुड्डे की अद्भुत जोड़ी,
लगी एक दिन नज़र निगोड़ी,
इक दिन गुड़िया का सिर चकराया,
गुड्डा दौड़ा डॉक्टर के लाया,
सिर में असाध्य कैंसर बतलाया,
गहन व्यथा कुछ बोल ना पाया,
देखे-लिपटे हृदय भर आया,
फिर बोले भगवान की माया,
गुड्ढे! मुझको मुस्काते दीखो,
जीवन मुझ बिन जीना सीखो,
बैसाखी अब नहीं रहेगी,
उठकर पानी पीना सीखो,
मीठा खाकर, कड़ुवा चखना,
बहुत कठिन है, हिम्मत रखना,
दौड़ शेष है, टूट गया टखना,
छोड़ो घर के कोने में सुबकना,
उजड़ी बगिया में फूल खिलाना,
कंटक पथ पर दौड़ लगाना,
टूट ना जाना, पौरुष दिखलाना,
प्रभात फिर होगा, रात बिताना,
गुड़िया रानी ने प्लान बनाया,
गुड्ढे ने पूरा साथ निभाया,
सबसे कुछ-कुछ काम कराते,
साथ में उनको, करके दिखलाते,
सब के सब फिर से दोहराते,
खेल खेल में उन्हें सिखाते,
कौर खिलाने से जो खाते,
पानी डालें, तब वह नहाते,
बिना जगाए, कभी न जागे,
अब वे कर्मशील हैं, नहीं अभागे,
पापा स्कूल, छोड़ते-लाते,
बच्चों को ऐसा पाठ पढ़ाते,
परियों को भगवान बुलाता है,
छोटों को कौन खिलाता है,
छुटकी छोटू अब जल्दी जागें,
बनाएँ, खाएँ, स्कूल भागें,
वे माँ का साथ निभाते थे,
गुड़िया को दवा पिलाते थे,
गुड़िया को संतोष नहीं था,
बूढ़ी माँ का दोष नहीं था,
फिर उसको पीड़ा दे जाएगी,
वह रो-रो कर मर जाएगी।
उलझी गुत्थी, अब तुम सुलझाना,
प्रभात फिर होगा, रात बिताना।
सच होगा मेरा स्वप्न सलौना
खयालों में बस स्वप्न संजोए,
अपनी कमजोरी पर-सिर ढोये,
अमृत पाने को विषधर पाले,
चट्टानों पर चने जो बोये,
पकाया जल में, माटी का खिलौना,
सच कैसे होता स्वप्न सलौना।
नथुनी न सुहाई, चींटी संग सोना,
कंटक ना बुहारे किया बिछौना,
दूर-दूर ना अपना कोई,
सपनों से अपनों का खोना,
जल्दी की चाह में, राहें खोना,
सच कैसे होता स्वप्न सलौना।
अब अंतर्मन से देख रहा हूँ,
अपनी कमियाँ, उनका तपना,
सच होगा अब सपना अपना,
हर कोई होगा मेरा अपना,
आनंद अपार, रस्ते हजार,
जीवन से प्यार, ना बनूं खिलौना,
सच होगा मेरा स्वप्न सलौना।
अपनी कमियाँ दूर करूंगा,
मेहनत मैं भरपूर करूंगा,
शांत भाव और तृप्त हृदय से,
जीवन यथार्थ, अमृत्व भरूंगा,
भावी हलचल से, तनिक संभल के
कल का पल, मलमल धोना,
सच होगा मेरा स्वप्न सलौना।
बरखा जल से, दादुर दल में,
टर्र-टर्र उछल-कूद दलदल में,
नाव काग़ज़ की, दीपदान भी,
खेत बन बाग़ हरे आंचल में,
पांव उठे तो कठिन नहीं है,
नभजल से पगतल को धोना,
सच होगा मेरा स्वप्न सलौना।
पनघट पर नीर भरेगा कौन
भक्ति दान नेह धर्म कर्म, जन्मों तक साथ निभाते हैं,
परिपाटी, घर देह चौपाटी, माटी में मिल जाते हैं,
पूरी आहुति सांसों से, ख़ुद को ही देनी होती है,
अवशेष धर्म की बागडोर, सबको मिल लेनी होती है,
गंभीर समय की सीमा में, अधीर हो, पीर हरेगा कौन,
अभीष्ट ईष्ट के स्वागत को, पनघट पर नीर भरेगा कौन,
रैन सुखचैन, दे सेन लुभाने, छुप-छुप नयनन में उतरे,
अमर प्यार की ज्योति जगाने, बनके बाती घृतधार जरे,
थके हंस की हार मिटाने, निश दिन पांवों में विचरे,
प्रेम कहानी, मीठी वाणी, हियभर अधरों से उचरे,
गहरे घावों पर भावों से, धीरे मधुचीर धरेगा कौन,
अवशेष समर, सरसाने को, पनघट पर नीर भरेगा कौन॥
शरदरात्रि को अक्षय पात्र में, चँदा से अमृत लाते थे,
व्रत घृत मधु करवा घरवा, दीपों की थाल सजाते थे,
होली मंगल कर जल झलका, रंग चंग त्यौहार मनाते थे,
सर्दी सांझे गर्मी रांझे, रिमझिम से ताल मिलाते थे,
आशीष अमर सिर पल्लू ले, कंठी स्वर गीत झरेगा कौन,
वट पीपल तीज गौरी पूजन, पनघट पर नीर भरेगा कौन।
पुनर्मिलन की आस लिए, कभी अंतर्मन भी समझेगा,
पाले पलना मीठे सपने, कान्हा भी पूरे कर लेगा,
बान सांकड़ी मंगल गा, ललना को विदा कराए कौन,
ससुराल से चलकर हाल सुनाने, माँ बिन मायके आए कौन,
उपहार थार ले अगवानी, हिवडा भर प्यार करेगा कौन,
पथपीर हरण को चरण धवन, पनघट पर नीर भरेगा कौन।
हंसराज गुप्ता लेखाधिकारी
निवासी-अजीतगढ जिला सीकर
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