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सुहाना सफ़र (nice trip)
जीवन का हर मोड़,
एक सुहाने सफर (nice trip)-सा लगता है।
संग बैठा हर मुसाफ़िर,
जाना पहचाना-सा लगता है।
मिली नज़रे अनजानों से,
कुछ बाते भी हुई,
मंजिल पर उतरा हर शक्स,
थोड़ा बेगाना-सा लगता है।
बस का निरंतर बढ़ते जाना,
यू ही सर्पिली राहों पर,
हर नए मुसाफ़िर को,
रोमांचित, आनंदित करता है।
कोई रूठता, मनाता, हसता,
हसाता है तो,
कोई मोन धारण, फ़ोन धारण,
व्यस्त अजीब-सा लगता है।
जिंदगी भी एक सफ़र है यारों,
हर सफ़र सुहाना-सा लगता है।
किसने खोया, क्या पाया,
कर्म यही तो झलकता है।
मंजिल के अंतिम सफ़र में हर अपना,
एक मुसाफ़िर-सा लगता है॥
आया सावन झूम के
कैसी सर्दी गर्मी की माया,
कोरोना में काल गवाया।
जो बाहर जाने की होड लगी
थी पीछे से फिर सावन आया।
चार दिनों तक छाए बादल,
कैसी है ये इन्द्र की माया।
सोन किरण जब नभ में छाई,
तब मन में हर्ष, उमंग भर आया।
धान सूखेगा, आस डूबी थी,
कृषक बंधु फिर से मुस्काया।
जो ताल तलैया बाट जो रही,
फिर उमंगो का पानी आया।
कोकिल पपिहा बोल उठे है,
देखो सावन झूम के आया।
झरनों की छल-छल आहट में,
पंछियों ने देखो कलरव गाया।
मेघों ने भी है तरस खाया,
फिर से सावन झूम के आया॥
युवा प्रतिज्ञा
मेरा हर साहस,
तूफानों को मोड़ने वाला हो।
मेरा हर जूनून,
सपनों को जोड़ने वाला हो।
मेरे हाथ लगा हर लक्ष्य,
सपनों का सितारा हो।
चाहूंगा लिखना कुछ मीठे शब्दों को,
जब मिल जाऊ मिट्टी में मै,
इस धरा पर जन्म दुबारा हो॥
आंगन की बारिश
बिना दान पुण्य कुछ नहीं होता,
ये तो कर्मो की भरपाई हैं।
गर्मी की अब तड़प मिटी है,
जब बारिश आंगन आईं हैं।
तृण तरु की प्यास भूजी है,
कृषक की मुस्कान हर्षाई हैं।
पपीहा दादुर भी बोल उठे,
घनघोर मेघा जो छाई हैं।
ताल तलैया हुए लबा लब,
एक नई उम्मंग भर आई हैं।
जो आस रखी थी ईश्वर से हमने,
ये उसकी ही अगुवाई हैं।
लोगो की अब आस जगी है,
जब बारिश आंगन आईं हैं॥
देश के युवा
हम देश के युवा है,
चलों देश हित काम करते हैं।
छूडा के सारी बंदिशे,
नई साहस, हिम्मत भरते हैं।
जो मिट गए हैं अमर शहीद,
उन्हें शत-शत प्रणाम करते हैं।
हम भी लड़ेंगे रणबांकुरों की तरह,
चलों शत्रु पर आगाज़ करते हैं।
हम देश के युवा है,
चलों देश हित प्राण धरते हैं।
जो राख हुए है हक़ की खातिर,
हम उनकी खातिर लड़ते हैं।
जो हारे जीते देश खातिर,
उन वीरों में उमंग भरते हैं।
हे गर्व हमें भारत मॉ पर,
मॉ की लाज़ बचाने लड़ते हैं।
हमें गर्व है अपनी अहिंसा पर,
पर बोल नरेंद्रनाथ के चलते हैं।
बाँध के कफ़न, मेरा स्वच्छ हो वतन,
चलों भ्रष्टाचार देश का हरते हैं।
झेल कंधों पर भार देश का,
चलों देश को आगे करते हैं।
एक पथ हो, नेक प्रण हो, कर मन में विश्वास,
चलों अपने एक वोट से, हर नज़ारा बदलते हैं।
जय जवान, जय किसान, है मेरा भारत महान॥
बेहतर
तू बेहतर है किसी और से,
तू ख़ुद से ही बेहतर होया कर,
तू तो आज की युवा शक्ति है,
अंधकार में समय खोया न कर।
तू मुसाफ़िर है जिस मंज़िल का,
उस मंज़िल के सपने जोया कर।
तुझे तो नितकर्म, भागदौड़ करनी है,
यू रात दिन-दिन भर सोया न कर।
तू महान बनेगा ख़ुद से जीतकर,
तू ख़ुद से ही बेहतर होया कर।
भले ही बेहतर है तू यार मित्र से,
इस महानता में, तू खोया न कर।
सच्चा मज़ा तो स्वयं से जितने में,
तू अपने स्वरूप से बेहतर होया कर।
बेवफ़ाई
मैं शिकवा करू क्या किसी से,
यहाँ हर कोई बेवफ़ाई है।
कुछ हंस कर झूठ बोलते हैं यहाँ,
कुछ झुठो में सच्चाई है।
तुझे धोका दिया किसी ओर ने,
सज़ा उसकी भी हम भरे।
ठेका ले रखा है क्या हमने,
कामयाब तू हो ओर दुआ हम करे।
जो चाहत थी मेरी कभी,
उस बेवफ़ा की हुई सगाई है।
मैं ने हीरा समझा था जिसको,
वो तो कोयले की भरपाई है।
यहाँ जो आज मौज करते हैं,
क्या पता कल, किसकी जुदाई है।
मैं सरिता कि धारा हूँ, तू नाविक की पतवार,
कहा तक रोकेगा बंदे, चली मैं सागर पार।
अहम / घमंड
माना कि मेरे लिए अहम हो आप,
मगर इस बात का कभी अहम मत करना।
रिश्ते कच्चे धागों जैसे होते हैं,
रिश्तों में कभी वहम मत करना।
जो मानते है आपको आदर्श, प्रिय सहपाठी,
उनके अधिकारों का कभी दहन मत करना।
मैं ही श्रेष्ठ हूँ में अहम झलकता है,
प्रतिष्ठा चली जाएँ, ऐसा कर्म मत करना।
चुभते तो होंगे मेरे शब्द भी तिरो की तरह,
जख्मों पर नमक रगड़ने की गलती, तुम मत करना।
माना कि मेरे लिए अहम हो आप,
मगर इस बात का कभी घमंड़ मत करना।
नारी शक्ति
जो करते है नित्य दिन, अघन्य पाप,
उन पापियों को मिटाना होगा।
क्यों आंच आती है, समाज की बहनों पर,
संघर्षों से लड़ना, हमें ही सिखाना होगा।
कलयुग के नर तो सोये है, कुंभकर्ण निंद्रा में,
किसी नारी को ही, दुर्गा का रोल निभाना होगा।
क्यों चुप रहता है समाज, अंधो, गुंगो जैसा,
किसी को तो, आगे आना ही होगा।
शायद प्रशासन ही है जिससे थोड़ा डर क़ायम है,
परन्तु द्रोपदी को अपना चिर, तो बचाना ही होगा।
भले तुम न बचा सके, हत्याएँ निर्भया जैसे कांडो में,
पुरूषों आज घर की लंका को तो बचाना ही होगा।
जो करते हैं घिनौना, अपराध समाज में “ज्योति” ,
ऐसे धरती के बोझ को तो, मिटाना ही होगा।
शिक्षा उधार लेता हूँ
भूल चुके दोस्तो को याद करता हूँ,
कुछ से मांगता माफ़ी, कुछ को माफ़ करता हूँ।
कुछ बीते लम्हों की फ़रियाद करता हूँ,
कुछ भूले बिसरे यारों को याद करता हूँ।
थोड़ा इश्क़ भी करता हूँ पराए लोगों से,
कभी गुस्सा, तो कभी प्यार करता हूँ।
बाज़ार-ए-यारी में सब बेच दिया मैने,
उम्र गिरवी रख के, शिक्षा उधार लेता हूँ।
डूब मरने को जब दिल करता मेरा,
मै पानी में कुछ पत्थर मार लेता हूँ।
चिंतित मन जब विचलित होता मेरा,
मेरी माँ के आंचल में सिर डाल देता हूँ।
मंजिल तलाश का तरीक़ा बदल दिया मगर,
कही भटका देंगे रास्ते नए, यहीं अहसास करता हूँ।
अर्थ जब खोने लगे
पढ़े लिखे जब से
अनपढ़ होने लगें।
संस्कार, संस्कृति
तब से रोने लगे।
मर्ज जब खोने लगें
दर्द भी होने लगे।
आदमी की जब सांसे गीनी तो
सपने सब बौने लगें।
ज़ख्म न देखें गए जब
अश्रू से धोने लगे।
जो हौसला था अब तक
क्यों जज्बाती होने लगें।
जब अर्थ का अनर्थ हुआ
अपने भी रोने लगे।
अर्थ जब खोने लगे।
शब्द भी रोने लगे।
कब तलक ये ख़्वाब देखूं
वो मेरे होने लगें।
मेरी प्यारी गुड़िया (बेटी)
चांद-सा सुंदर मुखड़ा,
चांदनी-सी मुस्कान है,
सूरज-सी लालिमा होंठो की,
उसका रूप परियों समान है।
एन्जॉय करते हर शरारत को,
बड़े भी बच्चे बन जाते हैं,
जब रोती है वह सिसकियाँ लेके,
आंखे बड़ों की नम हो जाती हैं।
देखती है पंछियों को जब,
वो भी उड़ना चाहती हैं,
पंख बना के अपने हाथों को,
घर आंगन घूम आती हैं,
छोटी छोटी खुशियों में,
गुड़िया फूली नहीं समाती है,
मासूमियत है बचपने की,
तुतलाती उसकी जुबां है,
घर जाते ही प्यार से बुलाती,
चाचा आओ, मेरी गुड़िया ही जहाँ है।
भय्या-भाभी की परछाई है वो,
मेरे घर कि बच्ची शैतान है,
ज्योत-सी घर की रौनक है वो,
दादा-दादी की जान है।
” सूखी बगिया भी बहार बनती हैं,
संघर्ष ही व्यक्ति का उपहार बनते है,
टूटने लगते है सारे बोझिल से रिश्ते,
बेटियाँ होती हैं तभी परिवार बनते है। “
” बेटा बेटी हो एक समान,
बेटी की भी तो है जान,
क्यों करवाते भ्रुण हत्या,
क्यों पापी बनता जहान है। “
संघर्षी जीवन
विचार, विमर्श कर लक्ष्य को साधो,
तुम रहो संघर्षील सदा।
छुपे हुनर को तुम पहचानो,
भेड़ चाल से बचो जरा।
शिक्षा ही सबकुछ नहीं है,
पर बिन शिक्षित का मोल कहा।
मत सोच तू छोटा है, गरीब है,
क़दम बड़ा तू, तू दौड़ जरा,
फिर देख तू, सफ़र होगा साहस भरा।
अक्सर जीतकर भी कभी हारते हैं हम,
अपनों की कुछ कहावतों से,
डरते नहीं, पर डर को पालते हैं हम।
भटकी राहों में कुछ अनुभवी व्यक्ति भी होते हैं,
जो भटकी नावों को किनारे को ढोते हैं।
विचरण करो तुम, अम्बर में बैखोप सदा,
रखना पांव जमी पर, ऐ परिंदे कदा।
कभी घमंड न करना, तू अपनी उड़ान पर,
यहाँ उड़ते पंछियो पर भी करते वार,
एक दिन पंछी भी कट जाते हैं,
आता है जब, पतंगों का त्यौहार।
पैसो का खेल
पैसा होतो टेंशन,
न हो तो भी टेंशन,
कई वृद्धो के बैंको में,
अटकी पड़ी हे पेंशन,
देखो ये पैसो का खेल।
कितना विचरित हे इसका मेल,
इसके चक्कर में कितने चले गये जेल,
कई बना रहे चौराहे पर भेल,
देखो ये पैसो का खेल।
कई खेल रहे सच झुठ का खेल,
कई पटरियों पर अटकी पड़ी हे रेल,
जैसे लगा निरव को स्वाद पैसो का,
कई राजनैता मिटा रहे हाथों का मेल,
देखो अजिब पैसो का खेल।
कोई राजा, कोई रंक बना फिरता हे,
जब पैसा तांडव करता हे,
किसी का मुह निवाला छिनकर,
कोई अपना पिटारा भरता हे,
देखो ये पैसो का खेल।
आज-कल प्रेम भी होता हे, रुपयों को देख,
व्यक्ति का अहम् कभी न होता नेक,
रिश्ते बनते बिगड जाते हे,
जबसे लोग अहम् व पैसो को दिखाते हे।
देखो ये पैसो का खेल।
संघर्षिल व्यक्ति अपना खुन जलाते हे,
कोई हार्ड वर्क तो, कोई स्मार्ट वर्क से कमाते हे,
फिर भी चले चॉद पर, ढुढने पानी व तेल,
कितनी अविनाशी होती हे लालच कि बेल,
देखो ये पैसो का खेल।
बचपन
बचपन के दिन और भी अच्छे थे।
हम चले पगडंडी, वह रास्ते कच्चे थे।
बचपन के दिन ओर भी अच्छे थे।
वो चिथडो में रानी और मिट्टी का घर।
बड़ा मज़ा आता था, जब हम भी बच्चें थे।
सच-झूठ की न परवाह, न परायों का डर।
झूमते थे बेखौफ मस्ती से, जब हम भी बच्चें थे।
दोस्तों में अनबन, झूठे जगड़ों में प्यार।
दिल के सारे अच्छे थे, जब हम भी बच्चें थे।
न किसी से द्वोश था, न किसी से ग्लानि।
हारने वाले रोते थे, जीते वह बनते अंबानी।
खेलों का जुनून था, न रहा क्लासो का ध्यान।
शिक्षक की डाट खाते थे रोज़, जब हम भी बच्चें थे।
न कुछ समझ में आता था, न समझा पाते थे।
काला अक्षर भेस बराबर, मुहावरा दोहराते थे।
वो पहले टीचर, वह स्कूली यार कितने अच्छे थे।
जब मैं भी बच्चा था, ओर आसपास भी बच्चे थे।
स्वर्ण कालीन बचपन था, ओर हीरे जैसे थे यार।
न था कोयले का भण्डार, जब हम भी बच्चें थे।
वृद्ध युवा हूँ
मै गुनह गार नहीं, निर्दोष हूँ,
युवा जोश हूँ,
कुछ रिश्ते ओर निभाने है जीवन के,
तब तक तो मैंबहुत खुश हूँ, का
मै वृद्ध नहीं, वृद्ध युवा हूँ,
लाचार नहीं, मै सक्षम हूँ,
मानता हूँ तन से दिव्यांग हूँ मैं,
मै तुम से कभी न कम हूँ,
अपने बुलंद हौसलों से,
मै मरकर भी ज़िंदा हूँ
नहीं चाहत मुझे, वृद्धाश्रम
या किसी घर की,
भले ही भोगनी पड़े,
ठोकरें दर-दर की,
वृद्ध आदमी का मज़ाक
अगर तुम उड़ाओगे,
याद रखना जीवन में तुम भी
वृद्ध कहलाओंगे,
जीवन को संघर्षों में ज़िया हमने,
सुदृढ़ता का साक्ष्य हम भी दे आए हैं,
हम हारे नहीं है ज़िन्दगी से,
मेडल हम भी जीत के लाए हैं,
भुलाके सारे विलक्षण,
हम बनाएंगे उन्हें दीपमान,
जिस दिन हम मान लेंगे,
विकलांग को दिव्यांग,
चाहत ही जीवन की नाव है,
अंग तो एक खेवट की छलाव है।
चुनावी माहौल
कुछ झूठे फरेबी वादे, कुछ अनकहे इरादे।
राजनीति कर्ता देखो, बन जाएंगे शहजादे॥
कुछ ने पाया अपना हक, कई लोगों ने गवाया है।
वोटों का त्यौहार आया, अपना अधिकार आया है॥
मत बेचो तुम वोट अपना, खानपान के चक्कर में।
फिर बनेगा राजनेता, भ्रष्टाचार की टक्कर में॥
सोच बदलो, नेता बदलो, नॉट भले ही रखलों तुम।
स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा तीन मुद्दों को रख लो तुम॥
आज चुनाव है आपका, कल उनकी बारी आएगी।
आज का सही चुनाव, कल अधिकार दिलाएगी॥
सच झूठ के चक्कर में, अपना ईमान न खो देना।
एक वोट भविष्य है, भविष्य संजोह देना॥
न नॉट लेंगे, न घोट लेंगे, न ही चुनावी लंगोट लेंगे।
हम वोट धारी शक्ति है, सच्चाई को वोट देंगे॥
वीरों का देश हमारा है
न जात-पात के बंधन, वसुधेव कुटुंबकम् का नारा है।
हिंदू मुस्लिम सिख हो भाई यह स्लोगन हमारा है॥
मंदिर मस्जिद गिरजाघर में, क्यों बाट रखा भगवान् को।
मानवता के हर पुर्जे में बसा ईश्वर ही विधाता है॥
भारतीय माटी के कण-कण गौरव मई गाथाएँ है।
कई बलिदान त्याग समर्पण कई ब्रह्म ज्ञान के ज्ञाता हैं॥
वीर शिवा झांसी महाराणा, विरो का देश हमारा है।
विश्व पटल को शून्य दाता, भारत देश हमारा है॥
विवेकानंद जी शून्य पर बोले, युवा का उधघोश व था।
भाइयों-बहनों के सम्बोधन से, धर्मसभा का होश न था॥
न अपेक्षा थी विश्व से, मन में कोई रोष न था।
बजी तालियाँ चहुं ओर, जब भारतीय युवा जोश में था॥
आज देश की युवा पीढ़ी में, इतनी क्यों लाचारी है।
करते क्यों न अधिकार की रक्षा, क्यों दूसरो के अपकारी है॥
उठो जागो तब तक बड़ों जब तक लक्ष्य को पाना है।
युवाओं को यह सम्बोधन, कब नज़र में आना है॥
भारत माँ के उस बेटे का, मैं तहदिल से आभारी हूँ।
आभारी हूँ उस माँ का, शहीद जिसका लाल हुआ॥
युवा है देश का
तू ज्योत है घर के दीपक की,
तुझे भी सूरज-सा जलना होगा॥
अंधकार मिटाने घर आंगन का,
तुझे भी हवाओं से लड़ना होगा॥
लोग सोते रहते हैं दिन-दिन भर,
तुझे रातो को भी जगना होगा॥
प्रिय, समय तो गतिशील है बदलता रहेगा,
तुझे अपना समय स्वयं बदलना होगा॥
कलयुगी समाज में सही ग़लत तो चलता रहेगा,
तुझे हर दम सच्चाई के साथ चलना होगा॥
जोश, उमंग भरा तू युवा है देश का,
तुझे हर हाल में संघर्षों से लड़ना होगा॥
जो मिली है पहचान, तुझे मात पिता से,
उनका सम्मान तुझे, हर हाल में करना होगा॥
तू बर्बाद न कर युवाकाल, जूठे प्रेम के चक्कर में,
तुझे करना है प्रेम अगर, बन जा सैनिक व लिपट जा तिरंगे में॥
छल कपट भरे समाज में, चुना, मक्खन लेके चलना होगा,
जो जैसा मिले तुझे, वैसे लगाते निकलना होगा॥
नटवर चरपोटा
जिला – बांसवाड़ा, राज़
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