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हम नवयुग का दीप (new age lamp) जलायें
हम नवयुग का दीप (new age lamp) जलायें: थे हिम्मतवाले, वे मतवाले, शांत, सनेही, भोले-भाले,
पाँव बिवाई, हाथ में छाले, मेहनत पूरी, रोटी के लाले,
नेकी मन में, रखते ना ताले, बोले ना मुंह से, प्रबंध निराले,
जो कुछ था सब साथ मिलालें, बात वही मिल बांट के खा लें,
साथ रहें मिल बांटें खायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
ऐसा हो, घर कौन संभाले, पड़ौसी ने तब दो घर पाले,
बड़ों का निर्णय सभी निभा लें, बाबा की पाग थी, कौन उछाले,
यही कहानी थी, हर घर की, बड़ा कहे, सबने हाँ भर दी,
सम्मान मूंछ, उम्र, अनुभव का, कह दें वे तो सब संभव था,
बुजुर्ग वही प्रतिष्ठा पायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
गाय हकदार की ताजी रोटी, भिखारी कुत्ता, अंतिम व छोटी,
बिल्ली नाग को दूध पिलाते, मंदिर में सीधा भिजवाते,
रस्ते में जहाँ पेड़, परिंडे थे, अंडों के लिए बरिंडे थे,
आटा चींटी को, जोगी को, कडवी गोली मीठे में रोगी को,
हर-घट, चौखट, पनघट पट जाये, हम नवयुग का दीप जलायें।
सब करते बदमाशी काफी, था दंड बड़ा, सामूहिक माफी,
बोझ बड़े से बड़ा उठा लें, चोट में थूंक, फूंक, सहला लें,
ठिठुरन से जल्दी उठ जाते, रोज़ दूर खेतों में जाते,
झिन-झिन हो, बहे नाक, दंत बोले, तपन अलाव ही हाथ-पग खोले,
सूरज सीचें, अनंत ऊर्जा आये, हम नवयुग का दीप जलायें।
सच की जय, उद्दंड को भय, बालक सबके, खेलें निर्भय,
तीखे अनुभव, मीठी मुस्कान, ख़ानदान ही थी पहचान,
ईमान, धर्म, विद्या की सौगंध, मंदिर, जल से सच का संधान,
साधनहीन, अनपढ़ लोगों में, जटिल समस्या, सरल निदान,
समस्या ख़ुद निदान बन जाये, हम नवयुग का दीप जलायें।
कहीं झोंपड़ में आग लगे, झट से चरस चढ जाती थी,
मटके लेकर सब लोग भगें, आग तुरत बुझ जाती थी,
बेघर का मिल भार उठाते, नये-नये कारीगर आते,
अलाव जलाकर चाव-चाव में, नये झोंपड़ की छाँव बनाते,
गिरे धरा पर, उसे उठायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
वे थके बहुत, हारे ना थे, निर्धन बहुत, बेचारे ना थे,
अनपढ-गँवार, खारे ना थे, आवश्यकता में, न्यारे ना थे,
आग तो थी, पर दाग ना था, खरी कही, कहीं लाग ना था,
सूखी रोटी पर साग ना था, कहीं तेल, कहीं चिराग ना था,
शून्य में अपना अस्तित्व बनायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
भोजाई और लुगाई को जब, साइकिल से खेत में ले जाते,
मुक्के और गाली खाने को, खड्डे में धीरे से लुढकाते,
मेहमानों की सजी थालियाँ, साथ खाने के गीत-गालियाँ,
झरोखे-जालियाँ, मजाक-तालियाँ, दिखाते लूगड़ी, साले-सालियाँ,
सरस जीवन की प्यास जगायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
धन, दौलत, सकल कमाई का, था न्याय बराबर भाई का,
साव, सगाई, कपड़े, घर, गहने, अंतर ना होता राई का,
उपचार नजर-व्यवहार ही था, अब बहलाकर खा जाते हैं,
रिश्ता, मान, प्यार, पैसा भी, सबक नया दे जाते हैं,
दिन निकला संग उनके रात बतायें, फिर वही रीत,
प्रीत-गीत दोहराएँ, हम नवयुग का दीप जलायें।
अशिक्षा, भिक्षा, गरीबी, अकाल, नित प्रलाप, शाप धोना ही था,
सरस जीवन में कुंठा जागी तो, कलयुग संताप होना ही था,
पक्षी को गोदी में सहलाते, अब पंख काट देते चुग्गा,
सड़े दांत गुड़धानी देते, कटे जड जल, अंग भंग बुग्गा,
जब तक कान्हा पृथ्वी पर आये, हम नवयुग का दीप जलायें।
बस्ते का बोझ, ना गोपीचंदर, खेल में मिट्ठू, मी-ठू का अंतर,
हार-जीत खुशियाँ छूमंतर, जीवन संघर्ष करें सब डटकर,
उलझे खुद, खुद में ही सिमटकर, अकेले सब, कलयुग का चक्कर,
नियम, प्रकृति, आकाश ना बदले, दौड़भाग है, मौन बवंडर,
दो पल बैठो, बोलें बतलायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
पशु-पक्षी सब जीव वही हैं, बिच्छू विष, मानव के अंदर,
दूध, पात, धान, सब संकर, लूटपाट का दौर भयंकर,
कलियुग-सतयुग कुछ नहीं, मीनख के मन का खोट,
निज स्वार्थ से चोट करे नित, लेता कलियुग की ओट,
बहरूपियों को उनका रूप दिखायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
गेंद झिल्ली, डंंडा-गिल्ली खेलें, बनाएँ घर, जहाज-हवाई चलायें,
भरा तल कीच होने से पहले, सूखे घट में शुद्ध जल छलकायें,
दिशा निशा में खो ना जाये, दीपदान कर पथ चमकायें,
बाती पूरी जलने से पहले, दीपक में घट का तेल मिलायें,
जीव जगत विश्वास जगायें, हम नवयुग का दीप जलायें।
बीते पल सपनों में आते हैं
जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं।
साथ मनाते दिन त्योहार, कहीं हाल पूछने जाते हैं,
मोरपंख शंख हो बस्ते में, साथी मिल जाये रस्ते में,
एक दूजे को खडे खडे, जीवन पूरा कह जाते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
पहला प्यार, छाती की धार, सर्जन का सुख, सारा संसार,
रुदन उत्पात में दूध दुलार, सोई-जागी संग लोरी-मल्हार,
सूखा मुझको, गीले में आप, सर्वस्व समर्पण, सोच ना ताप,
गुस्सा, लात, दोष सब माफ, प्रतिकार मुझसे, कहलाता पाप।
अब नन्हा-माँ दोनों शर्माते, दूध बोतल में, चाय पिलाते,
तब दही छाछ, माखन खाते, पकडी बकरी, मुँह धार लगाते,
हँसते सब धूम मचाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
बहनों का सम्मान था मैं, भाई के जीवन-प्राण था मैं,
पीढी का प्रतिमान था मैं, अपनों का अरमान था मैं।
बारी बारी से ग्रास खिलाना, शाला-मिट्ठू-रंग-तास जमाना,
डोर-बाल्टी ले कुए पर जाना, नहा धोकर जल भरकर लाना।
अब क्रेच-प्ले, बोझिल बस्ते, कब होमवर्क नींद, रोते हँसते,
छुट्टी में पाटी फेंक खिसकते, लिपट पल्लू के, मचल-सिसकते,
दादा बिन डाँट डराते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
चढ इमली खाई, डाले से झूले, आया लंगूर, उतरना भूले,
कुत्ते-बिल्ली-खरगोश दौडाये, झाडे बेर, निंबोरी खाये,
लुका-छिपी, च्याऊँ-म्याऊँ, पकडे पिल्लै, प्याऊँ-प्याऊँ,
तीज रेशमी, मछली रंगीली, घर माटी का, दलदल ढीली,
दलदल से जब निकल ना पाते, गहरी हलचल छल लाभ उठाते,
तब हाथ विकल हों, अधर उठाते, महाकाल विजय, उद्घोष लगाते,
यहाँ प्रताप शिवा दिख जाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
कांच के कंचे, फल्डे का चंगा, गा चंग धमाल नाचे बेढंगा,
सोटा-गेंद, गिल्ली व झिल्ली, गद्दे पर रख दें जलती तिल्ली,
हंस की कार, ऊँट, बैलगाड़ी, दूर तक जाते, बाजे के पिछाडी,
ठेकरी के पैसे, चक्कर-ताड़ी, छुपकर बिन बाल बना लें दाढी,
ना शिक्षा नीति, यह फ़िल्मी दौर, ज्योति कम, कंधे कमजोर,
तब नाटक पाठ लीला में भोर, झाँकी देवों की, भाव विभोर,
क्षण क्षण मोद मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं।
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
राजा मंत्री, शेर का चेहरा, बाराती भी, बाँधे सेहरा,
थाने सिपाही, बने चोर जेल, पहरेदार बन गाँव का पहरा,
नाड़ी के वैद्य, डॉक्टर-रोगी, यजमान दाता भी, ज्ञानी जोगी,
कभी साधु, पंडित, राक्षस, ढोंगी, बचपन था, बहुत कहानी होंगी,
निकट संकट की आहट हो, कोई चोर, लुटेरा, लंपट हो,
खटपट हो, आते चटपट, कनपट पर चंपट, बिन संपट,
खाकर सीधे हो जाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं।
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
घंटी, अंटी और धक्कमपेल, रस्साकस-कुश्ती-पंजे का खेल,
मोटर की पों पों, सीटी तो रेल, हों-हों, खो-खो सब रेलम पेल,
पंचतंत्र और महाबीर स्वामी, बुद्ध, राम-कृष्ण के किस्से थे,
गुरू गोविंद, मीरा, तुलसी, सूर के पद, बचपन के हिस्से थे,
जले नीड, भीड़ देखा करती, आग-बाढ़ जीवों को चरती,
फुफकारे नाग, हिले धरती, बाघ-तड़ाग, कोई छत गिरती,
बचना भी खेल सिखाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं।
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
गाँव-गली-घर भेद न पाया, सबका बालक, सबने अपनाया,
आटा-दाल-चीनी लाया दे आया, मेहमान कोई, सबने बैठाया।
झगड़ा-टंटा बड़ों की माया, स्वतंत्र कहीं भी खेला खाया,
दंड क्यों-कब कोई भी पाया, रो-धो-पोंछ हंसता घर आया,
झगडे तगड़े हों आंखें मींच, बच्चों की बात, बड़ों के बीच,
तब जमूरा-तंबू-बंदरिया-रींछ, ससुराल चले सिर डालें कीच,
नई कोट के छाप लगाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं।
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
नंगे पांव, परिधान में पाती, भोजन और पोथी की पांती,
चाकी न चले, मां व्रत बतलाती, चरखे की धुन पर भजन सुनाती।
वे चाची-ताई-दाई-माई, दर्जी-पंडित-नाई-हलवाई,
बुजुर्ग सभी भाई-भोजाई, जीवन ही उनका, कैसी भरपाई?
अब दांव-पेंच है, होडा-होडी, डाकन ख़ुद का घर ना छोड़ी,
नंबर से घोड़ी, गधे की जोडी, लंगड़ी-टांग में हार की पोड़ी,
पद लाद-भार उतराते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं।
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
नितांत निर्धनता, अथाह प्यार, पथ देख बढे, लक्ष्य उस पार,
झेले सर्दी-गर्मी-बौछार, दौडे रातों, मानी ना हार।
कंप्यूटर पूरा फॉर्मेट हुआ, संस्कृति का मटियामेट हुआ,
डिलीट सब, उपसंहार हुआ, फिर अब पहला प्यार हुआ॥
जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं।
साथ मनाते दिन त्योहार, कोई हाल पूछने आते हैं,
विचारों के गुलदस्ते हैं, सब साथ पुराने रस्ते हैं,
अब यहीं अकेले पडे पडे, ख़ुद को वृतांत सुनाते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
निर्धन जीवन के उथल-धडे, जो एहसानों से दबे पड़े,
सुने कौन, भरे हिवडे, वे लुटे पिटे लाचार खड़े,
बच्चों की खैर मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
रग दुखती, दृग धुंध दिखे, कम्पन्न हाथ में, कौन लिखे,
पग डगमग, एक हाट सखे, हो कर्ण दोष, जिव्हा चीखे,
जब शब्द समझ ना आते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं,
पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं,
बीते पल सपनों में आते हैं।
फिर से मिल जाये
वह नशा कहाँ, जब निशा जगाकर, बातों में खो जाते थे,
दशा दिशा से श्वास मिलाकर, हाथों में सो जाते थे,
बचपन में लौट के देखा तो, मिली कहीं ना तन्हाई,
जाड़े की रातें, घोर अंधेरा, लिपट भाई के रात बिताई,
सपने लेकर, भोर जगाते, सूर्यदेव से गर्मी पाते,
बाहों में बाँह डाल इतराते, सबकुछ खोकर मुझे मनाते,
जंगल में दंगल कर रूठा तो, मेरे हंसने पर ख़ुशी मनाये,
काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये।
एक पेट से जन्म लिया है, एक ही माँ का दूध पिया है।
पोशाक सिलाई, थान एक, पढे पढ़ाये, एक दीया है,
मुझे जिताकर, ज़ोर की ताली, मेरी थाली रहे न खाली,
होती कोई चीज निराली, अपने हिस्से की मुझको डाली,
भूलूं कैसे, मुझे चोट लगे, तेरी आंखों से आंसू आये,
काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये।
चुका देता, मेरा उधार, लड्डू मुझको, चूरा ख़ुद खाये,
दोष कभी देखा ना मेरा, पौंछे आंसू, हाथ फिराये,
नभ में जो तूने पतंग चढ़ाली, हक़ था, मैंने उसे कटा ली,
अब क्या खोट देखूंगा तुझमें, ख़ुद की चादर मुझे उढा दी,
करके मनमानी, भूल सयानी, मैं कच्ची कौड़ी बन जाता,
राजा हो तेरा छोटा भैया, तू मेरी घोडी बन जाता,
जीतूं मैं जीवन का खेला, आशीष लुटाकर पाठ पढ़ाये,
काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाए।
दो लोटे डाल बाल्टी में, हम एक दूजे को नहलाते,
तन मन का मैल निकल जाता, जब तैल लगाकर सहलाते,
मां मेरी-मेरी करके पल्लू में, लुकाछिपी के खेल नये,
बाबूजी के दोनों कंधों पर, चिपके बैठे बाज़ार गये,
तेरा साथ रहा तब तक तो, एक भी बाजी ना हारी,
तय है सिर पर हाथ रहा तो, मैं जीतूंगा दुनिया सारी,
हंसराज गुप्ता
वरिष्ठ लेखाधिकारी
अजीतगढ जिला सीकर
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