Table of Contents
नीरू के सवैया (Neeru Ke Savaiya)
Neeru Ke Savaiya: अपूर्वा सवैया
सभी हिंदवासी लिए हैं तिरंगा, करें हैं उन्हें याद जो दे गए आजादी
लड़े थे भिड़े थे दिए प्राण को भी, नहीं कष्ट के जो ज़रा भी रहे थे आदी
मिली लाठियाँ भी मिली गोलियाँ भी, नहीं हार माने न बैठे कभी उन्मादी
चढ़े फाँसियों पर सदा मुस्कुराए, भगाए डराए विदेशी सभी आबादी
कान्हा सवैया
चलीं हैं हवाएँ घिरी हैं घटाएँ, सुहाना लगे व्योम का आँगन!
वनों में कलापी करें नृत्य प्यारा, घनों में बसा है सभी का मन!
सुनो मेघ प्यारे उठो तो सजा दो, जरा हीरकों से धरा का तन!
भरो ताल सारे भरो थाल सारे, मिले जीव को जो नया जीवन!
पुष्प सवैया
जाना सभी को यहीं छोड़ के ही, तजे किंतु कोई न संपत्ति का दोहन है!
कोठे भरे स्वर्ण माणिक्य से हैं, रहा खींचता जो उन्हें पास सम्मोहन है!
सोचे नहीं मर्त्य मिट्टी सजाता, सदा छोड़ के स्वर्ण-सा सत्य जो गोहन है!
ढूँढे नहीं वह कभी सत्य को ही, लगे छद्म संसार ही तो उसे सोहन है!
श्री दुर्गा सवैया
ब्रह्माण्ड में है धरा ये अनोखी, यहीं पर मिला जीव को जीवन!
पानी मिला है मिली सौर ऊष्मा, मिला है हवाओं सरीखा धन!
खोजी बना है अचंभा करे ये, रहे ताकता शून्य में ही मन!
लाखों सजे पिण्ड ब्रह्माण्ड में जो, नहीं किंतु देखा धरा-सा तन!
मनोज सवैया
कर्मावती भेज राखी रहीं हैं, हुमायूँ बनें भ्रातृ तो मान बचे!
मेवाड़ पर मेघ हैं संकटों के, मिले मित्रता तो ज़रा आन बचे!
चाहे सदा आप हों मित्र राणा, अभी जो बनो मित्र तो शान बचे!
भ्राता बनो जो तजो धर्म बेड़ी, युगों ही कहानी व दास्तानबचे!
अपराजिता सवैया
रिश्ते बने स्वार्थ पर ही कभी जो, टिकें वह कहाँ संग देते न साथ!
छोड़ें कहीं भी किसी मार्ग में वह, पड़ें मुश्किलें तो बढ़ाते न हाथ!
राही चलो जो अकेले यहाँ तो, रखो ईश को पास होगे सनाथ!
संसार भी संग होगा तुम्हारे, गुनेगा युगों संग दृष्टांत गाथ!
मनोज सवैया
रक्षा करे बाँधवी की सभी से, बना भ्रातृ ही तो निराला गहना!
प्यारा सभी से व न्यारा सभी से, यही तो इन्हीं राखियों का कहना!
रिश्ता सभी से अनूठा जहाँ में, नहीं चाहता हो दुखी ही बहना!
बाँटे सुखों को मिटाए दुखों को, हमेशा कहे हर्ष में ही रहना!
शान्ति सवैया
है सृष्टि में श्रेष्ठ ये हिंद प्यारा, सजा विश्व के भाल पर ताज जैसा सलोना!
ऐसे तिरंगा उठा व्योम में जो, हुआ स्तब्ध ही विश्व का आज प्रत्येक कोना!
माँगे नहीं ये न छीने किसी से, धरा पर इसे शान्ति संदेश के बीज बोना!
छोड़े नहीं शत्रु को भी कभी ये, न सीखा कभी मित्र को अंक ले संग ढोना!
गुरुकुल सवैया
जूझता शीत से जूझता घाम में, अन्नदाता रहा है सभी से महान!
दे रहा धान्य जो देह को ही गला, भूख पाती सभी की उसी से निदान!
मर्त्य जाने नहीं फेंकता अन्न को, अन्न में ही छिपे ईश के हैं निशान!
घी लगी रोटियाँ दे रहा विश्व को, जो स्वयं खा रहा सिर्फ़ सूखा पिसान!
अदिति सवैया
रहे मर्त्य बाक़ी धरा पर भला क्या, मिटेगा सभी अर्थ बेकार है ये भार!
बचेंगें सदा कर्म जानो यही जो, अभी जोड़ लो जो सुधी ईश से ही तार!
नया जो सवेरा खड़ा द्वार पर है, लगा लो हिया से बना के गले का हार!
रहोगे बचोगे यहाँ विश्व में जो, वरोगे भरोगे स्वयं में सही संस्कार!
गुरुकुल सवैया
जूझता शीत से जूझता घाम में, अन्नदाता रहा है सभी से महान!
दे रहा धान्य जो देह को ही गला, भूख पाती सभी की उसी से निदान!
मर्त्य जाने नहीं फेंकता अन्न को, अन्न में ही छिपे ईश के हैं निशान!
घी लगी रोटियाँ दे रहा विश्व को, जो स्वयं खा रहा सिर्फ़ सूखा पिसान!
गुरुकुल सवैया
बैठ के ही कहाँ से मिलें मंजिलें, चूमनी ही पड़े पाँव को राह ख़ार!
मोतियों की करे कामना जो हिया, खोजना ही पड़ेगा उसे सिंधु सार!
भाग्य साथी उसी का बना है सदा, जो तपा है कहीं सूर्य-सा बार बार!
कंटकों से सजाता सदा शीश को, आ मिले हैं उसी व्यक्ति को पुष्प हार!
सरोज सवैया
कंटकों से सदा जूझता ही रहा, वो हठी मर्त्य था आँधियों से न हारा था!
मातृभू के लिए जो लड़ा ही सदा, घास की रोटियों पर दिनों को गुज़ारा था!
शूर राणा प्रतापी अड़ा ही रहा, शान मेवाड़ की वह सभी का दुलारा था!
मान सम्मान पर आँच आने न दी, आन पर जान देना उसे तो गवारा था!
उड़ान सवैया
प्रेम को जानना तो करो साधना, प्रेम का रूप तो व्योम आकार जग में!
जो लिया अंब का रूप देता दुआ, तो बना वृक्ष छाया पिता रूप मग में!
जो मिटा देश पर तो किया ढेर ही, शत्रु को जो डराया भरी हूक रग में!
जो धरा रूप राधा बना साधिका, तो झुकाया सदा ईश-सा कृष्ण पग में!
मनुज सवैया (सगण *७ + भगण)
सुख से हट के दुख से हट के, मनु प्रेम सुधा बरसाता चल!
भव में अटके मग में भटके, जन को जगदीश जताता चल!
जग है यह नश्वर जान सके, जग को यह सत्य बताता चल!
किस लोभ यहाँ नर मोह करे, युग के युग हाल दिखाता चल!
मनुज सवैया
अरि वक्ष दबाकर पाँव तले, जय भारत गान सुनाता वह!
डरता, सहता, रुकता न कभी, क्षिति द्यौ तक आन बढ़ाता वह!
रहता बन चौकस नायक-सा, खल को बढ़ ख़ार चुभाता वह!
पिघले तब पत्थर के दिल भी, लिपटा ध्वज में जब आता वह!
मनुज सवैया
शिशु की पदचाप सुने जब भी, ममता बढ़ के खुश होती तब!
तज़ती खुशियाँ सपने अपने, खुद को उसमें बस खोती तब!
रखती उसको जग से पहले, मग पुष्प बिछा खर ढोती तब!
सब रक्त निचोड़ भले शिशु ले, पर माँ कब नेत्र भिगोती तब!
गोकर्ण सवैया
हैं अन्नदाता सभी ये डरे से, कि माली उजाड़े न प्यारा चमन
देते करों को झुकाते सिरों को, कि क्रोधी बने जो न सामंत मन
राजा बना जो कभी क्यूँ न पूछे, कि भूखा नहीं तो उसी का वतन
बैठे सभी पादरी हैं अनोखे, मिटाते नहीं क्यूँ किसी की चुभन
प्राची सवैया
करे बादलों से सदा होड़ प्यारा तिरंगा बने हिंद की शान।
मिले बैरियों की चुनौती तुम्हे जो, बढ़ाना सदा हिंद की शान।
सुनो तीन ये रंग हैं एकता के, रखो हाथ में वक़्त की तान।
यही गर्व है दर्प है ये तिरंगा, झुकाना नहीं देश की आन।
रेशमा सवैया
रिश्ते टिके हैं सभी स्वार्थ पर जो, करो दूर सारे रहो ही अकेले भले!
मार्तण्ड-सा ही जलो विश्व में जो, जला है अकेला तभी सृष्टि सारी फले!
ढूँढो नहीं ही सहारा किसी का, अकेला सदा सिंह ही काननों में चले!
पर्जन्य-सा ही उड़ो व्योम में जो, हटा पीर भारी हिया की रुई-सा ढले!
कमला सवैया
रोपती हैं खड़ी धान की जो लड़ी, सींचतीं हैं तृषा को अगन से!
माँगती हैं सभी नेह की बूँद ही, जो धरा से मिले या गगन से!
पीर सारी भुला साधिका-सी बनीं, ज्यूँ तपस्या करें ये लगन से!
क्षेत्र में वह रहें या रहें गेह में, गीत गाती सभी ही जतन से!
हरीश सवैया
यूँ मुखौटे सभी जो लगाए हुए, देख के तो इन्हें हो रहा है भरम!
सत्य बैठा हुआ न्याय की चाह में, झूठ शेखी बघारे खड़ा बेशरम!
बोलबाला सदा तो उसी का रहा, जो दिखाता रहा है स्वयं को परम!
मूक बैठा रहा जो बना नींव-सा, विश्व भी तो सिखाता उसी को धरम!
महाभुजंगप्रयात सवैया
बनी रोटियाँ ये धरा पर मदारी, नचाती रही हैं सदा मर्त्य को ही!
छुड़ाती रहीं हैं सदा गेह प्यारा, घुमाती रहीं है सदा मर्त्य को ही!
दिखें ईश-सी ही क्षुधा में सभी को, लुभाती रही हैं सदा मर्त्यको ही!
नहीं अन्न जैसा कहीं स्वर्ण होता, जताती रहीं हैं सदा मर्त्य को ही!
सर्वगामी सवैया
सम्बंध सारे हुए हैं न स्वार्थी, अभी भी बची है बिना स्वार्थ ज्वाला!
मोती निराले जड़े हैं लड़ी में, न छेड़ो इन्हें टूट जाए न माला!
विश्वास बाती जले जो हिया में, छँटेगा भ्रमों का अँधेरा व जाला!
गाँठे खुलें जो हिया की पुरानी, तभी ठीक हों घाव नासूर छाला!
नीरजा ‘नीरू’
यह भी पढ़ें-
१- मुसाफिर
२- खुदीराम बोस