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मन कौन?
मन कौन?
मन कौन जो मेरे बस में नहीं रहता है।
कभी यह कभी वह भटकता रहता है।
सब पा ले धन, पद लेकिन न जाने क्यों और पाने की दौड़ में ही लगा रहता है।
मन कौन जो मरूस्थल में,
मृग मरीचिका दिखाता है।
जीवन बीत जाती बुझती नहीं
लोभ, तृष्णा, कामना और मौत आ जाता है।
मन कौन जो कभी हंसाता है
कभी रुलाता है।
जो होते हैं मेरे अपने,
उसे न जाने क्यों।
पल में पराया कर जाता है।
मन कौन, जो हमें आपस में।
वैर कराता है इस सुंदर दुनिया
में क्यो नफ़रत घोल जाता है
मन वह भी है जो प्रेम भी सिखाता है।
मन से जो जीत जाये वह।
दुनिया पा लेता है।
मन से जो हार जाते हैं वह जीवन से भी घबराते हैं।
मन ही वह मंदिर है।
जीसके भीतर ईश्वर का वास है
जीसके जीवन में नहीं ईश्वर प्रेम वह हर पल उदास है।
मन तो विचारों का जंगल है।
विचार मीटे तो मन भी चला जाता है।
अच्छे विचारों से ही सुंदर।
ज्ञान की उपवन बन जाता है
हिंदी दिवस
हिंदी दिवस मनाते हैं।
गीत है भाषा संगीत है भाषा,
जीवन के पुरी हो आशा।
कितनी मधुर है हिन्दी भाषा,
हिंदी भारत की शान है।
संस्कृत की देन है हिन्दी।
देव भूमि आर्यव्रत की प्राण है
सम्बोधन में, आप, हिन्दी में कहते हैं।
प्रेम जगाती दिलों में।
उसे हिन्दी भाषा कहते हैं।
स्वर और व्यंजन वर्णो का,
सुंदर मेल से बनी हिन्दी भाषा
व्याकरण और रसो का मेल है
हिंदी भाषा।
छंदों और अलंकार से सजा।
जगत की सबसे सुंदर है। हिन्दी भाषा।
हिंदी दिवस में हिन्दी।
की बात कर मैं गर्व से,
भर जाता हूँ, सभी भाषाओं,
को करके नमन, हिन्दी दिवस
की बधाई देता हूँ॥
सूख गया खून
क्या सुख गया खूंन युवाओं का।
नशे से हार जाते हैं।
याद करो तुम हो ऋषियों के संतान।
तुमने ही सर्वप्रथम शुन्य खोजा था।
सोने के चिड़िया के हो तुम वासी विश्व में थी अलग पहचान।
आज क्यो कई युवाओं में नशे
की लत जीत रहा है।
दुःख आ जाता परिवार में।
क्या तुम्हारा खूंन सुख रहा है
जहाँ अधर्म को मीटाने महाभारत हुए।
उस देश के तुम वासी हो।
फिर तुम जैसे अर्जुन के,
रहते नशा, क्यो भर्ष्टाचार बढ़ रहा है।
जगाओं अपने शक्तियों को।
रूधीर में अभी वह रवानी है।
सुखने न दो खूंन को तुम।
देश को विकसित करो।
तुम में ही नये भारत की कहानी है।
नशा नाश न करें भारत को
रोग सोख भर्ष्टाचार से मुक्त भारत हो।
भारत है पुण्य भूमि हर युवाओं के दिल में बस यही बात हो।
स्वपन बोस ‘बेगाना’
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