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कड़वाहट को जाने दो
क्यूं लगा ली गांठ दिल में, मुस्कराहट को आने दो
भूल जाऔ कडवी बातें, कडवाहट को जाने दो (Let go of bitterness),
नीम पर लगती है निंबोली, स्वाद में मीठी होती है
क्षमा मांगो की जो गलती, सकपकाहट को जाने दो।
मन अशांत हो तो, कुछ भी अच्छा लगता नहीं
शांत हो मन मीठी बातों से, घबराहट मत आने दो।
शुद्ध विचारों से हमारी, जिह्वा वाणी सजती है
दो बोल कर्ण प्रिय से, भाषा सजावट होने दो।
सुबह का भूला वापस आये, तैयार रहो गले मिलो
पलक पांवडे बिछा देना, एक आहट को आने दो।
तन गंदगी मिट जाती, मन द्वेष मिटता नहीं
कडवाहट को दूर रखो, बनावट को जाने दो।
कोई बाधा बने राह में, झुकने में शर्म क्यूं करें
डाल लदी तो झुकेगी, रुकावट को मत आने दो।
किसान
खुदा के ही भरोसे वह रहा है हर बुवाई में
मुनाफा कुछ नहीं होता यहाँ खेती जुताई में
बहाता खून भी अपने पसीने संग ही देखो
मिले कुछ भी नहीं उसको खेती की इस कमाई में
दिखें नेता किसानों के लिये राजनीति करते ही
खडा है कौन सच में साथ इनके हक़ लडाई में
उठा के फायदा हालात से इनकी मजबूरी का
तिजोरी लोग भरते हैं किसानों की रूलाई में
जमीं को और नीले आसमां को देखता रहता
गिने है रात दिन दो वक़्त की रोटी दवाई में
नज़ारे खूबसूरती के खिले मेहनत से उसकी
उसीके खेत में कुदरत दिखाये मुँह दिखाई में
किसानों संग ही देवेश सुंदर है हमारा कल
भले इनके भला है हम सभी की ही भलाई में
जिंदगी लम्बी बहुत
जिंदगी लम्बी बहुत इंतिजारी के लिये
सीख रोना दिल से अश्क बारी के लिये
क्यूँ भला बैचेन ये दिल समझ आता नहीं
तू नहीं तय्यार इस बेक़रारी के लिये
मान कैसे लूँ रखेगा सलामत दिल मेरा
चोर लगता तू इस निग़ाह दारी के लिये
जान ले यह हाल तू या पूछना छोड दे
कब लबों को खोलती गिला ग़ुजारी के लिये
अब ज़माने में क़दम ना बढ़ाते लोग क्यूं
वो चलें चालें बडी ज़ूद रफ़्तारी के लिये
की मुहब्बत ये ज़रूरत समझ के उन्होनें
चाहने वालों में अपने बस शुमारी के लिये
इस गली में आँख उनसे लडी पर वह अदा
फिर गिरा पर्दा फर्ज़ वफ़ा शिआरी के लिये।
छोड कर उम्मीद सारे जहान से मैं जी रहा
फिर बढ़ाये हाथ साकी मददगारी के लिए
अब शराफ़त क्हाँ बची है दीवानों में यहाँ
नाम लेते हैं मेरा एक ख़ाकसारी के लिये
ज़ख्म पर मेरे नमक वह लगा है छिडकने
शुक्रिया मैंने की तीमारदारी के लिये
इन गमों से ही भरी ज़िन्दगी देवेश है
है नहीं कोई इसी हिस्सेदारी के लिये
नये साल में
जी रहे थे हम सभी, कैसे इस हाल में
साल गुजरा है बुरा, कोरोना काल में
हो नहीं फिर से, दुआ ऐसी हम ये करें
दें बधाई एक दूजे को, नये साल में
कल ठहर से जो गये, आगे बढते कदम
मिल गये हैं पथ नये, क्या बचा सवाल है
ढूँढ लेता आदमी, सब कष्टों की दवा
बस रहें हम अब सदा ही सुरक्षा ढाल में
शांति सुख हो सभी के, जीवन में सदा
एक नयी उर्जा भरी हो हर एक लाल में
लोग जो खो चुके हैं, अपना सब-सभी
हम सहारा दें, मिला ताल अपनी ताल में
जो बीता है भूल जायें सपना समझ कर
प्रभु सहारा साथ है बस अपने ख़्याल में
नाचिये अब झूमिये, हो बातें जश्न की
फिर ख़ुशी हो फिर मचे जादूई धमाल है
हो नया उत्साह नव अवसर नव हो समय
हो नये संकल्प नई संभावना हर चाल में
आने वाला साल लग जा मेरे तू गले
जग जले यह देख यारी के इस कमाल में
दौर गुजरा है बडी कठिनाईयों भरा
अब नयी देवेश यात्रा, इस नव साल में
आज नये संकल्प बनायें
आज नये संकल्प बनायें
स्वप्न नये एक बार सजायें
ज्ञान सफल हो मानवता हित
वह पथ प्रभु हर समय दिखायें
त्रस्त अभावों से क्यों हम हैं
उत्तर इसका खोज बतायें
अनुभव ने बतलाया हम को
सजग रहें दिन मस्त बितायें
राह सृजित हो लक्ष्य मिलेंगे
आज क़दम हम साथ मिलायें
ठान लिया हमने अब यह तो
भारत माँ का नाम बढ़ायें
बात वही देवेश सुनाता
आपस में बस प्रेम जतायें
आकाश
पंच तत्वों में हुआ एक आकाश है
प्रभु रहे उस पार मन में विश्वास है
दूर अनंत तक दिखे वह हमको कहे
पार जाना छोडकर सब बकवास है
है रहस्यों से भरी दुनिया दूर गर
मनुज को रहती सदा वही तलाश है
रंग नीला आसमानी काला दिखे
इन्द्रधनुष का कौन रंग तराश है
थाह इस आकाश की किसको है पता
यह ज़मीं ही ओढ ली कोई लिबास है
चांद तारे सूर्य रहते आकाश में
फैलता उनकी दया से ही प्रकाश है
उड रहे पंछी गगन में हर एक तरफ
हम उडानें ही भरें तो हर आस है
जो उडे हैं धन नशे में ही रात दिन
वो गिरे आकाश से खजूर तलाश है
वो सितारे देख भटका देवेश भी
क्यूं लगे दुल्हन सजी यह आभास है
पतंग
आसमां में उड रही तरह-तरह की पतंग है
और ऊंची और हो रही लगे ये विहंग है
नाज़ इतराने मचलने का बहुत है इसे अपने
भूल जाती डोर और इस हवा का भी संग है
उत्तरायण सूर्य हो रहे हैं सक्रांति पर्व यह
अब ख़ुशी है बहुत और इस फिज़ा में उमंग है
सर्द मौसम मार डाल देगा इस बार तो मुझे
है गनीमत ये रज़ाई और मेरा पलंग है
यूं गले मिलती लगे सभी पतंगे एक साथ ही
पर गलों को काटती रही जो सबसे दबंग है
जो उडी है दूर आँख से ही औझल हुई कहीं
कब कटी माटी मिली कहे ज़िन्दगी भी जंग है
अब नदी में डूबकी लगा मिठाई तिलों की खा
देखता देवेश जिधर मस्त फैली तरंग है
ये इंतजार
ये इंतज़ार कहाँ करती हैं हसीं बहारें
ख़ामोश ही रहो तुम तो ये नहीं पुकारें
बेखबर ही सही हूँ मैं पर सदा रखी है
हर वक़्त नज़र उम्मीद की सभी कतारें
इस रौशनी की है क्यूं उम्मीद सूर्य से ही
अहमियत दीप जुगनू की भी नहीं नकारें
जो राह में दिखी हर बाधा मिटा सके हैं
वो तोड दें शिलायें दिखी अगर दरारें
ता उम्र धडकता दिल उम्मीद में किसी की
ये ज़िन्दगी सकूँ से दहलीज़ में गुजारें
उम्मीद पर टिकी है सारी यही तो दुनिया
हर काम सफल होगा हर पल यही विचारें
देवेश क्यूं रखे है उम्मीद हर किसी से
पहले ज़रा स्वयं को ठीक से तो सुधारें
देशभक्ति का अथाह सागर
देशभक्ति का अथाह सागर, भरा हुआ सीने में।
मातृभूमि की रक्षा का लक्ष्य, था जीवन जीने में।
स्वाभिमानी वीर प्रताप की, गाथा हम सब गायें।
कुछ अलग ही शान-सी दिखती, मेवाड नगीने में।
सारे शत्रु नाम सुनकर ही, भय से थर्राते थे।
अकबर की घबराहट दिखती, आ रहे पसीने में।
उन्नत ललाट, विशाल कंधे, वह अद्भुत कद काठी।
फिर चेतक की टाप गूंजती, शत्रु को भगाने में।
हर माँ की अभिलाषा है, प्रताप-सा सपूत हो।
जननी बन कर धन्य बने, यही गाती गाने में।
संजय गुप्ता ‘देवेश’
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