कर्णावती (Karnavati)
कर्णावती (Karnavati) : व्यक्ति के जीवन में तक़दीर का खेल भी होता है। सुखमय जीवन में ना जाने कब संकट आ जाए इस बात का किसको पता। एक हंसती खिलती ज़िन्दगी में ना जाने कब दुख के बादल मंडरा जाए यह तो सब नसीब का खेल है। ऐसा ही हुआ था कर्णावती के साथ।
कर्णावती रतन सिंह राजपूत की इकलौती बेटी थी। रतन सिंह गाँव का नंबरदार था। उसके घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। धंन धान्य संपन्न था यह समझो कि गाँव की पंचायत का मुखिया रतन सिंह ही होता था, उसके सामने हर किसी के बोलने की हिम्मत नहीं होती थी। उसके एक ही बेटा था आजाद सिंह जो कि भारतीय सेना में बड़े ओहदे पर कार्यरत था। उसका घर खुशियों से भरा था, हर पल रतन सिंह के पास लोगों का जमावड़ा जमा रहता था।
घर पर रतन सिंह, कर्णावती और कर्णावती (Karnavati) की माँ ही रहती थी। आजाद सिंह अपने बच्चों को साथ लेकर चला गया था, वह अपने बच्चों को अपने साथ रखता था।
कर्णावती की उम्र लगभग १८ वर्ष हो चुकी थी। रतन सिंह उसके लिए अच्चे ठिकाने के ठिकानेदार से उसका रिश्ता करना चाहता था। वह अपनी इकलौती बेटी की झोली में हर खुशियाँ भरना चाहता था, इसलिए उसने उसके पास के परगना शेरगढ़ के सरदार बिशन सिंह का बेटा शैतान सिंह के साथ कर्णावती (Karnavati) का रिश्ता तय कर दिया। शैतान सिंह एक सुंदर छेल बन्ना था, जिसकी सुंदरता का हर कोई कायल था।
रतन सिंह ने अपनी बेटी की शादी बड़ी धूमधाम से की। बहुत सारा दहेज दिया। आस-पास के गाँव में कर्णावती की शादी चर्चा का विषय बनी सभी ने आश्चर्य से दांतो तले उंगली दबाई।
उधर विशन सिंह का परिवार भी फूला नहीं समा रहा था क्योंकि कर्णावती (Karnavati) एक सुंदर सुशील और हर कार्य में दक्ष थी। शैतान सिंह भी कर्णावती को पाकर बहुत खुश था। घर में हर पल खुशियों की गुंजार रहती थी। हर कोई एक दूसरे का सम्मान करता था। ना जाने ख़ुशी खुशी में कब दिन बीत जाता था।
परंतु यह किसको पता था कि खुशियों में कब ग्रहण लग जाए। एक दिन शैतान सिंह अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके वापस लौट रहा था। रास्ते में एक ट्रक से गाड़ी की टक्कर हो गई और शैतान सिंह मौके पर ही ख़त्म हो गए, और उसके सभी दोस्त गंभीर रूप से घायल हो गए। जैसे ही यह ख़बर बिशन सिंह के घर पहुँची घर में मातम छा गया। बिशन सिंह के इकलौते बेटे थे शैतान सिंह। यह ख़बर सुनकर सभी घरवाले सदमे में आ गए, पूरा गाँव शोक में डूब गया।
आस-पास के गाँव में यह ख़बर बिजली की तरह फैल गई। सभी ने इसका बहुत ही दुख हुआहसभी लोग बिशन सिंह के परिवार वालों का ढांढस बंधा रहा था।
उधर कर्णावती की शादी को ३ महीने ही हुए थे। उस पर पहाड़ टूट पड़ा १८ वर्ष की उम्र में कर्णावती विधवा हो गई थी। अब कर्णावती के जीवन में कौन सहारा बनता क्योंकि यह रीति रिवाज़ थी कि विधवा का दोबारा विवाह नहीं किया जाता है।
रतन सिंह कर्णावती घर पर ले आए। कर्णावती को देखते हीवह रोने लगता था क्योंकि उसके पास अभी तक कोई उपाय नहीं था कि वह कर्णावती के जीवन में खुशियाँ भर सके क्योंकि भगवान ने पहले ही छिन ली थी। कर्णावती के पेट में शैतान सिंह का बच्चा पल रहा था। रतन सिंह अब बड़ा परेशान रहने लगा। अब करे तो क्या करें?
कर्णावती अब किसके सहारे अपना जीवन काटेगी इस बात को लेकर परेशान थे। उसे अब कुछ भी नहीं सूझ रहा था। क्योकि समाज के रिति थी कि विधवा का दोबारा विवाह नहीं किया जा सकता। अब इतनी कम उम्र की लड़की अपना जीवन भला कैसे काटेगी। यही बात रतन सिंह को बार-बार कचोट रही थी।
आसपास के गाँव के लोग उनके पास आते और उनका ढाढंस बंधाते थे। इसका उपाय किसी के पास भी नहीं था। हिम्मत सिंह जो कि पास के गाँव का पढ़ा-लिखा लड़का जिसकी उम्र मुश्किल से २१ वर्ष होगी जो वह रतन सिंह से मिलने पहुँचा तो उसने दूसरी शादी के बारे में अपने विचार रखे जिस पर रतन सिंह ने ना कर दी परंतु कहीं ‘ना’ कहीं उसके ना में ‘हा’ भी शामिल थी क्योंकि एक तरफ़ समाज के रीति रिवाज़ को बचाने का प्रयास कर रहा था, तो दूसरी तरफ़ अपनी बेटी को खुशियाँ देना चाहता था।
वहाँ पर बैठे बहुत से लोगों ने हिम्मत की बात का समर्थन किया। अब प्रश्न आया की शादी करेगा कौन? हिम्मत सिंह ने अपनी सहमति जाहिर कर दी सभी लोगों ने हिम्मत सिंह की प्रशंसा की। अगले दिन परगना के गाँव के मुखिया बुलाए गये। पंचायत हुई। पंचायत में किसी ने इसको ग़लत बताया तो किसी ने सही बताया। पूरे दिन बहस हुई, रतन सिहं मुक बने सभी की बातों को सुन रहे थे।
पढ़े लिखे लोगों ने विधवा पुनर्विवाह पर ज़ोर दिया। अंत में पंचायत का फ़ैसला हुआ इस कुरीति का विरोध हुआ और कर्णावती की शादी हिम्मत सिंह से तय हुई। रतन सिंह ने कर्णावती को बड़े धूमधाम से घर से विदा किया। अब कर्णावती का जीवन खुशहाली से भर गया था। हिम्मत सिंह की समझदारी और हिम्मत ने कर्णावती को नया जीवन दिया। आज समाज में पनपी कुरीति को दूर किया।
रतन सिंह मन ही मन सोच रहा था। इस कुरीति से ना जाने कितनी कर्णावती ने अपना जीवन बर्बाद किया और यदि उसका अंत ना होता तो ना जाने कितनी कर्णावती अपना जीवन बर्बाद करती। अब रतन सिंह की आंखें खुल गई कि समाज में प्रचलित सभी कुरितियों का अंत होना चाहिए।
निरंजन सेन
गाँव पाटन अहीर
तहसील कोटकासिम
अलवर (राजस्थान)
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