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कालिदास (Kalidas) थे अजातशत्रु
Kalidas: अमृतघट को अल्पबुद्धि भी,
कभी नहीं गंदा करती।
जो जिसके काबिल होता है,
उसको वह देती धरती॥
जिस डाली को हमें काटना
जाना उस पर पड़ता है।
कहाँ मूडता इसमें कोई,
कैसी इसमें जड़ता है॥
किवदंतियाँ जो चल पडती हैं,
नहीं सत्य सब होती हैं।
जोर बुद्धि पर हम भी दें कुछ,
क्या अपनी मति सोती है॥
विद्युत्तमा तो मूर्ख नहीं थी,
फिर कैसे उनको वरती।
जो जिसके काबिल होता है,
उसको वह देती धरती॥
दास काली के रहे सर्वदा,
मन उनका अति पावन था।
किसने देखा लोगों बोलो,
कैसा उनका बचपन था॥
बना प्यार का कवि अगर वो,
प्यार जन्म से पाया था।
मिले जन्म से जो गुण उनको,
असर क़लम में आया था॥
कालिदास थे अजातशत्रु,
मति कैसे उनकी मरती।
जो जिसके काबिल होता है,
उसको वह देती धरती॥
थे उद्दात गुणों के मालिक,
विश्व गगन पर छाए हैं।
नैतिक मूल्यों के वाहक वे,
नैतिकता को लाये हैं॥
अलंकारमय भाषा उनकी,
क्या सौन्दर्य समाया है।
महाकवि के ओहदे पर वो,
अपने दम से आया है॥
“अनन्त” उनको दुनिया अपनी,
भाषा में पढ़ ग़म हरती।
जो जिसके काबिल होता है,
उसको वह देती धरती॥
मेरा भारत ऐसा हो
मेरा भारत ऐसा हो, हों जिसपे सब कुर्बान।
बने मेरी पहिचान विश्व में, मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई हैं सब भारतवासी।
पंडित मुल्ला गुरु पादरी हों या हो संन्यासी॥
सब धर्मों को इज़्ज़त दें, दें सबको प्यार समान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिन्दुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
शोषण की हो रोक तिजारत ना हो इंसानों की।
जीव भले कोई हो, रक्षा करें प्राणवानों की॥
इंसां बनकर रहें शराफ़त का पहनें परिधान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
हक समानता का हो सबको रहें सभी स्वतंत्र।
सबका चलता राज रहे जो कहलाए जनतंत्र॥
करें लोक कल्याण दें शरणागत को भी पहचान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
रोजी रोटी ख़ूब कमाएँ कभी न रोके कोई।
ले आएँ सोने की चिड़िया वाली इज़्ज़त खोई॥
होगें मसनदनशीं तभी, हम पाएंगे सम्मान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
मन चाहे घर बार रखें हम, मनचाहे स्थानों पर।
रखें सुरक्षा की समदृष्टि निर्धन पर धनवानों पर॥
कहीं रहें भारत में, होकर भारत की संतान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
यारी रखें अहिंसा से हिंसा को दूर भगाएँ।
“अनंत” तब सबका विकासहो सबको आगेलाएँ॥
जीव मात्र से प्यार करें, देखे सब में भगवान।
बने मेरी पहिचान विश्व में मेरा हिंदुस्तान॥
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
ये मेरा प्यारा हिंदुस्तान
कुछ रहम अपने कोमल बदन पर करो
यूँ न झुलसाओ अपना गुलाबी बदन,
कमसिनी है अभी, काबू मन पर करो।
मखमली तन सहेगा चुभन किस तरह,
कुछ रहमअपने कोमल बदन पर करो॥
प्यार की राहें कांटों भरी गुलबदन,
तरबतर खून से पांव तड़पायेंगे।
इससे पहले कि मेहंदी रचे प्यार की,
टूट कर ख़्वाब सारे बिखर जाएंगे॥
इसलिए है नहीं ठीक इस मोड़ पर,
मूंद आंखें भरोसा नयन पर करो।
मखमली तन सहेगा चुभन किस तरह,
कुछ रहमअपने कोमल बदन पर करो॥
फूल बनने से पहले जो कुचली गई,
जिंदगी उस कली की अधूरी हुई।
रूप रस गंध की प्यास जो रह गई,
साध जीवन की बोलो क्या पूरी हुई॥
इंतजारी में भी लुत्फ जीवन का है,
पार सरहद न तन के वतन की करो।
मखमली तन सहेगा चुभन किस तरह,
कुछ रहमअपने कोमल बदन पर करो॥
रातरानी बिखेरेगी ख़ुशबू बहुत,
जब धरा नम रहेगी तो फल पाएगी।
उर्वरा शक्ति भी काम आएगी तब,
जब “अनंत” बहारों की रूत आएगी॥
तब तलक सब्र से काम लो नाजनी,
कम ना होगी भरोसा अगन पर करो।
मखमली तन सहेगा चुभन किस तरह,
कुछ रहमअपने कोमल बदन पर करो॥
किस तरह फिर चांद से बातें करेंगे हम
चल रहा है चीन से तकरार का मौसम!
किस तरह फिर चांद से बातें करेंगे हम॥
प्यार की बातें अभी इस वक़्त लानत है।
बाँधना सिरपर कफन भी अपनी आदत है॥
माँ के दामन में भरें खुशियाँ ज़रूरी है।
गर नहीं भर पाएँ कैसी माँ से उल्फ़त है॥
चल के अंगारों पर दिखलाना है हमको।
कब तलक शम्मा पर देंगे जांं मारेंगे हम॥
चल रहा है चीन से तकरार का मौसम।
किस तरह फिर चाँद से बातें करेंगे हम॥
ईट के उत्तर में तो पत्थर ज़रूरी है।
एक के बदले में लें दस सर ज़रूरी है॥
जीहजूरी से न सिंहासन कभी हिलते।
शक्ति के उत्तर में शक्ति हर ज़रूरी है॥
करना है स्वीकार हमको हर चुनौती को।
कोई हो बम वम नहीं हर्गिज डरेंगे हम॥
चल रहा है चीन से तकरार का मौसम।
किस तरह फिर चाँद से बातें करेंगे हम॥
“अनंत” अपना हर क़दम रिपुको रूलाएगा।
वार अपना हर तरह का कहर ढाएगा॥
है वतन की आबरू ही आबरू अपनी।
आबरू पर जां लुटाना हमको भाएगा॥
खून उतरा है अभी हर आँख में अपनी।
नेह के दरिया ना आँखों में भरेंगे हम॥
चल रहा है चीन से तकरार का मौसम।
किस तरह फिर चांद से बातें करेंगे हम॥
तेरे आने से
आज धरा ने ली अंगडाई।
सोंधी सोंधी महक उड़ाई॥
आलिंगनरत दिखें बदलियाँ, बहती मस्त बयार के।
तेरे आने से आएंगे, मौसम मस्त बाहर के॥
कर कर नया श्रंगार प्रकृति जगमंदिर में आई है।
रंग बिरंगे फूलों के उपहार साथ में लाई है॥
हरसूं मादक कोलाहल है।
हर कुटियाब राजमहल है॥
द्वार द्वार पर गूंज उठे हैं गीत नये मल्हार के।
तेरे आने से आएंगे मौसम मस्त बाहर के॥
विरह वेदना बढ़ जाती है उर में जो संगीत रहे।
रात दिवस बनजाते हैं जबदूर किसीका मीत रहे॥
बिनपानी मछली की तडपन।
जैसे सीता बिन निर्जन वन॥
व्यथितहृदय मतऔर दुखा, गुल सूखे ना प्यार के।
तेरे आने से आएंगे मौसम मस्त बाहर के॥
चंचल मन झरने-सा मेरा तेरे दिल की गहराई।
पाकर लेगा चेतनता के आंगन में फिर अंगडाई॥
चेन मिलेगा नयन मिलेंगे।
अरमानों के सुमन खिलेंगे॥
जीवनगुलशन महक उठेगा बाहों में दिलदार के।
तेरे आने से आएंगे मौसम मस्त बाहर के॥
खामोश लब हैं
खमोश लब हैं मगर निगाहें,
करें निमंत्रित साजन आ जा।
महक लुटाजा चमन खिला जा,
खुशी मिले वह ख़बर सुना जा॥
रहेगा पर्दा सही सलामत,
करीब सरिता का कूल होगा।
नूर होगा अंधेरे घर में,
रहमतों का नजूल होगा॥
खिल जाएँ कलियाँ सतरंगी,
ऐसा मौसम हंसी बना जा।
महक लुटाजा चमन खिलाजा,
खुशी मिले वह ख़बर सुना जा॥
कमी है तेरी पूरी उसको,
करेगी तू ही सुकून होगा।
अगर न आई तो देख लेना,
आरजूओं का खून होगा॥
दिल में ठंडक कर दे मेरे,
ऐसी मादक हवा चला जा।
महक लुटाजा चमन खिलाजा,
खुशी मिले वह ख़बर सुना जा॥
“अनंत” का दिल आइना है,
बिखर न जाए संभाल रखना।
तुम्हें महारत है गुलबदनी,
नकेल बाधा के डाल रखना॥
अपनी गोटी रहे सलामत
जिस खाने में उसे बिठाना।
महक लुटाना चमन खिलाना,
खुशी मिले वह ख़बर सुनाना॥
तेरी पायल की झंकार
तेरी पायल की झंकार,
बनाए मुझे ये पागल।
तेरा खींच रहा ये प्यार,
बनाए मुझे ये पागल॥
पढ़ने में मन लगा रहा हूँ,
बंद किवाडों को करके।
दरी बिछा कर बैठा हूँ मैं,
वश में अपना तन करके॥
कानों के पट बंद न होते,
आती आवाजें प्रतिपल।
तेरी पायल की झंकार,
बनाएँ मुझे ये पागल॥
कानों में मैं रुई लगालूँ
जबजब कोई काम करूँ।
पूरे मनोवेग से बाँधू,
दिलको पर न तुझे बिसरू॥
कंकर कोई मन सागर में,
आकर कर देता हलचल।
तेरी पायल की झंकार,
बनाए मुझे ये पागल॥
तीर नज़र का लगे न दिल पे,
दूर दूर में रहता हूँ।
विरह वेदना कितनी भी हो,
मर्द बना मैं सहता हूँ॥
पायल की छमछम तेरी पर,
पथ में कर देती दलदल।
तेरी पायल की झँकार,
बनाएँ मुझे ये पागल॥
मुझे बदन की ख़ुशबू तेरे,
बहुत दूर से आ जाती।
“अनंत” अलकों की छाँया तो,
दिन में रातें गहराती॥
करें इशारे बिन बोले ही,
आँखें पायल की चंचल।
तेरी पायल की झंकार,
बनाएँ मुझे ये पागल॥
बरखा के मौसम में
अंगारे राहों में आकर,
बरसातें बरसाती है।
बरखा के मौसम में तुमसे,
दूरी बहुत सताती है॥
याद तुम्हारी आती है…
बाहर बादल बरसे जब जब,
आँखों में बरसात रहे।
सिरहन तनकी कैसे मिटती,
घेरे गीली रात रहे॥
टपटप छाती पर छत टपके,
गहरे दिलपर वार करे।
राहत की चाहत में नींदें,
दुश्मनसा व्यवहार करे॥
भले एक से दो होते घुन,
तन्हाई बन जाती है।
बरखा के मौसम में तुमसे,
दूरी बहुत सताती है॥
याद तुम्हारी आती है …
धरती का श्रंगार देखकर,
मन दर्पण पगलाते हैं।
बरसाती मौसम में गुलशन,
खिलते महक लुटाते हैं॥
धरती अंबर जब मिलते हैं,
पानी पानी कर देते।
प्यासी धरती के दु ख सारे,
बादल बिजली हर लेते॥
तेरे साथ गुजारे लम्हों,
की हर याद रुलाती है।
बरखा के मौसम में तुमसे,
दूरी बहुत सताती है॥
याद तुम्हारी आती है।
सावन के झूलों पर झूलें,
आरजूएँ मन आंगन में।
पंख लगाकर उड़ें हसरतें,
ऊंचे नीले अंबर में॥
बाहों के बंधन का क्रंदन,
सुननेको हैं कान विकल।
आँखों की देहरी पर बैठे,
राह देखते खग निर्मल॥
विरह वेदना की “अनंत” ये,
लिखी लहू से पाती है।
बरखा के मौसम में तुमसे,
दूरी बहुत सताती है॥
याद तुम्हारी आती है।
अपने घनश्याम की
पलपल जपती है माला नित, तेरे नाम की।
राधा ये दासी है रे अपने घनश्याम की॥
तू तो भवसागर तारे दिल तेरा धाम है।
तेरी सेवा करना ही बस मेरा काम है॥
बाहों का हार दे-दे दिल को क़रार दे दे।
लबों को तलाश मेरे प्यार के है जाम की॥
राधा ये दासी है रे अपने घनश्याम की॥
भक्ति का पथ है पावन तनको महकाने दे।
मुरली की धुन पर मोहन मन डूब जाने दे॥
कान्हा गारंटी है तू, हर बिगड़े काम की।
राधा ये दासी है रे अपने घनश्याम की॥
घटघट में श्याम बसते, मुझको ये ज्ञान है।
प्यार से “अनन्त” तुझको पाना आसान है॥
फिक्र क्यों करूँ मैं प्यारे अपने अंजाम की।
राधा ये दासी है रे अपने घनश्याम की॥
तेरी यादों के साये
तेरी यादों के साये धूप, से मुझको बचाते हैं।
विरह के वक़्त जब तन्हाई, के शोले जलाते हैं॥
वो वक्तेशाम अमराई में, आ आँचल को लहराना।
दीवानी बन के बेसुध हो, तराने प्रीत के गाना॥
बुलाकर के इशारों से वो, घंटों तेरा बतियाना।
मुझे सब याद है नजरों का, नजरों से वह टकराना॥
अकेले में गुजारे पल वो, मुझको गुद गुदाते हैं।
तेरी यादों के साये धूप, से मुझको बचाते हैं॥
बीमारी के समय सेवा में, तेरा जागरण करना।
दवाइयों के बिल सारे वो, ज़ेवर बेचकर भरना॥
न हिम्मत हारना दुर्दिन के, संतापों को बढ़ हरना।
बचाकर मौत के मुंह में से, लाना मुझको नडरना॥
मुझे जीने की देते वजह, ग़म सब हार जाते हैं।
तेरी यादों के साये धूप, से मुझको बचाते हैं॥
उदासियों के सागर जब भी, मेरे मन में लहराते।
कमी तेरी कभी मेहसूस, करता ग़म भी बढ़ जाते॥
न आती नींद रातों में ही, दिन, दिनभर कहर ढाते।
न मरने को ही मन करता ना, जीने में मजे आते॥
तेरे आदर्श जीने के, मुझे हंसना सिखाते हैं।
तेरी यादों के साये धूप, से मुझको बचाते हैं॥
मुझे सब याद है विधना ने, मुझपे बोझ लादा है।
शिकायत का कोई मौका न, दूँगा ये इरादा है॥
न साधन को कभी देखूंगा, कमहै याके ज़्यादा है।
लगाई तेरी बगिया को मैं, सींचूगा ये वादा है॥
“अनंत” पथ में पत्थर सारे, ही मुझको यूँ भाते हैं।
तेरी यादों के साये धूप, से मुझको बचाते हैं॥
हरते हैं अंधियारे राम
सत्य न्याय दया समरसता,
के सूरज को धारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
राम नहीं व्यक्ति एक पथ है,
करता भवसागर से पार।
आत्मसात करलो इस पथ को,
सफर नहीं होगा बेकार॥
रिश्तों की गरिमा सिखलाई,
करना सिखलाया व्यवहार।
सदाचार का अर्थ बताया,
और बताया पापाचार॥
इसीलिए है सबके प्यारे,
जीवन के उजियारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
जब दुनिया के ताने सुन सुन,
बनी अहल्या शिला सामान।
झरना सूख गया चंचल मन,
उसका नहीं रहा गतिमान॥
माँ कहकर जब उसे राम ने,
प्यार दिया, पाया सम्मान।
जीवन फिर से लगा चहकने,
भूल गई अपना अपमान॥
बिखर गई थी उसे सहारा,
देकर बने सहारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
साधन नहीं साधना से रण,
जीता जाता है सिखलाया।
अनुभव से लें परामर्श जब,
पूजा की, शक्ति को पाया॥
पुत्र नहीं थे मगर चिता को,
अग्नि दे सुत धर्म निभाया।
रिश्तों की परिभाषा इससे,
अच्छी कौन कहो दे पाया॥
कोई क़दम उठाते हैं कब,
बोलो बिना विचारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
साथ वंचितों का लेकर के,
शक्ति बढ़ाने वाले राम।
निर्बल को बल देने वाले,
बलशाली रखवाले राम॥
हनुमान-सा भक्त शिरोमणी,
पड़े ज़रूरत ढ़ाले राम।
बेलगाम होती मर्यादा,
के दर के हैं ताले राम॥
नंगे पांव भटकने पर भी,
कब मुश्किल में हारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
राजमुकुट दशरथ का बाली,
ने जो बल से कब्जाया था।
कैकई ने वह इज़्ज़त लाने,
प्रिय राम को पहुँचाया था॥
राजभवन में शोकाकुल जो,
दशरथ को जग ने पाया था।
फलित हुआ अभिशाप मृत्यु का,
पुत्र वियोग सम्मुख आया था॥
लिखा विधी का होता ही है,
नहीं किसी को मारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
“अनन्त” राज दिलों पर करने,
वाले अमर हुआ करते हैं।
दिव्यगुणों के रथ पर चढ़कर,
जो चलते हैं कब डरते हैं॥
धैर्य और संतोष लिए नभ,
में उड़ान अपनी भरते हैं।
शांति सिया मिलती है उनको,
राम बने सीता वरते हैं॥
अंधकार में ज्योति पुंज हैं,
करते वारे न्यारे राम।
सभी मोह माया लालच के,
हरते हैं अंधियारे राम॥
बहना लाई राखी बंधन
बहना लाई राखी बंधन, बाँध लो भय्या प्यार का।
लासानी भाई बहनों का रिश्ता ये संसार का॥
सब रिश्तों से एक अनोखा रिश्ता राखी बंधन है।
दो अनजानों में पैदा कर देता ये अपनापन है॥
नारी, नर को बाँध दे राखी तो भाई हो जाता है।
नहीं सहोदर होता लेकिन रिश्ता वही निभाता है॥
सृजन करें कच्चा धागा ये इक नूतन परिवार का।
बहना लाई राखी बंधन बाँध लो भय्या प्यार का॥
जिन बहनों का भाई ना हो या सरहद पर दूर रहे।
प्यार तड़पकर रह जाए दिल में बनके नासूर रहे॥
ऐसी बहना उन्हें बनाएँ भाई जो बहना चाहें।
महके प्यार बहन भाई का खुल जाएंं नूतन राहें॥
रिश्ते नए दिखा देगें तब, मार्ग नया उद्धार का।
बहना लाई राखी बंधन बाँध लो भय्या प्यार का॥
कर्णावती की रक्षा करने, चला हिमायू आया था।
अलेक्जेंडर की पत्नी को पुरू ने बहन बनाया था॥
रक्षाकवच बहन का भाई सदियों से ही कहलाया।
लाज बचाने कहो द्रोपदी कीक्या कृष्णनहीं आया॥
संधीपत्र है ये “अनंत” बस बहनों के अधिकार का।
बहना लाई राखी बंधन बाँध लो भय्या प्यार का॥
खुशियाँ बाढ ले गई मेरी
खुशियाँ बाढ ले गई मेरी
जिंदगी में आग भर गई,
मुझको वह तबाह कर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरतें भी मर गई॥
मेघ ऐसे बरसे टूटकर,
हो गया था सब इधर उधर।
हर तरफ़ था पानीपानी बस,
बरखा ढा गई थी वह कहर॥
याद तबाही है आज तक,
जिन्दगी में ग़म वह भर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गई मेरी,
सारी हसरतें भी मर गई॥
घर सभी वीरान हो गए,
दर्द की दुकान हो गए।
अब सिरों पर छत नहीं कोई,
अब सहन प्रधान हो गए॥
आसमानी छत को देखकर,
रूहे फलक तक सिहर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरतें भी मर गई॥
गाय भैंस बकरियों का धन,
जल में हो गया सभी दफन।
फसलें खेतों की चली गई,
तन हुआ हो जैसे निर्वसन॥
कुछ पलों में निर्दय चमक,
चेहरे से मेरे किधर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गयी मेरी,
सारी हसरत भी मर गई॥
कजरा मेरी आँख का धुला,
आंसुओं की धार में घुला।
स्वाद हो गया है बे मज़ा,
जब गले हँसी रुदन मिला॥
मांग सिंदूरी न हो सकी,
स्वप्न की मीठास झर गई।
खुशियाँ बाढ़ ले गई मेरी,
सारी हसरतें भी मर गई॥
भीगे मौसम में
वो किसको दर्द सुनाएगी,
वो चैन कहाँ से लाएगी।
भींगे मौसम में जब यादें,
बन बैरन उसे सताएगी॥
जब आते हैं काले बादल,
बिजलियाँ हृदय दहलाती है।
मनअंबर में जब उथलपुथल,
सब के होने लग जाती है॥
ये उथलपुथल उसके मनको,
भी तो विचलित करती होगी।
आंदोलित देह शिराओं का,
वो मन कैसे समझाएगी॥
वो किसको दर्द सुनाएगी,
वो चैन कहाँ से लाएगी।
भींगे मौसम में जब यादें,
बन बैरन उसे सताएगी॥
कोयल कूके जब बागों में,
गुलशन दिलके खिलजाते हैं।
मन मोर नाचने लगते हैं,
वे गाते हैं इठलाते हैं॥
मय के प्याले-सा यौवनघट,
जब छलक निमंत्रण देता हो।
कब तक बेसुध सांसें उसकी,
बेदर्द ज़ख़्म सहलाएगी।
वो किसको दर्द सुनाएगी,
वो चैन कहाँ से लाएगी।
भींगे मौसम में जब यादें
बन बैरन उसे सताएगी॥
मरमरी बदन इस मौसम में,
चलते होंगे अंगारों पर।
हर रात अमावस-सी होगी,
जब प्रेमरोग के मारों पर॥
ऐसे में कोमल गुलबदनी,
सुधबुध अपनी खोए होगी।
जब दर्द गले तक आएगा,
वो कैसे प्राण बचाएगी॥
वो किसको दर्द सुनाएगी,
वो चैन कहाँ से लाएगी।
भींगे मौसम में जब यादें,
बन बैरन उसे सताएगी॥
ये मौसम बडा रंगीला है,
उन्माद रगों में भरता है।
आँखें खोजा करती मंजिल,
विरहीदिल मातम करता है॥
मासूम सुवर्णी के सम्मुख,
जब सखियाँ रास रचाएंगी।
“अनंत” वोअंकुश किसविधि से,
मन हाथी पर रख पाएगी॥
वो किस को दर्द सुनाएगी,
वो चैन कहाँ से लाएगी।
भींंगे मौसम में जब यादें,
बन बैरन उसे सताएगी॥
हरी हरी मेंहदी
हरी हरी मेंहदी जब रचती,
बन जाती हथियार।
दिल पर घाव लगाती गहरे,
मन करती बीमार॥
तुम्हारी ये मेंहदी…
मेंहदी वाले हाथ सुकेशी,
तुम्हारे मन भाए।
रची कलाईयों तक मेंहदी,
जीवन मेंहकाए॥
करती हैं जीवन में जीवन,
का देखो संचार।
तुम्हारी ये मेंहदी…
दिल पर घाव लगाती गहरे,
मन करती बीमार।
तुम्हारी ये मेंहदी …
शोभा तन की बढ़ जाती है,
ऐसी है हत्यारन।
लहू लहू तन करके करती,
बेश कीमती कंचन॥
रिसते घावों पर भी करने,
से चूके कब वार।
तुम्हारी ये मेंहदी…
दिल पर घाव लगाती गहरे,
मन करती बीमार॥
तुम्हारी ये मेंहदी…
“अनन्त” तेरी मेहंदी महावर,
की जंजीरें जकड़े।
दूर नहीं जा पाए कोई,
कसके गर्दन पकड़े॥
झंकृत सोये कर देती है,
प्रिये दिलों के तार।
तुम्हारी ये मेंहदी…
दिल पर घाव लगाती गहरे,
मन करती बीमार॥
तुम्हारी ये मेहंदी …
मिलना मुझे
आके मिलना मुझे ज़िन्दगी दूंगा मैं,
लड़खड़ाता ये जीवन संभल जाएगा।
वक्त बदलेगा कपड़े अगर जानेमन,
देखना रुख हवा का बदल जाएगा॥
रूप निखरेगा होगा गुलाबी बदन,
खुशबूओं से महक जाएगा ये चमन।
तेरा मेरा मिलन वह मिलन होगा जो,
बन दवा व्याधियाँ सब निगल जाएगा॥
ये तो सच है सफ़र ये कटीली डगर,
घूमना होगा हमको शहर दर शहर॥
प्यार का जब सुहाना सफ़र भाएगा,
हौसला तेरा आगे निकल जाएगा॥
नेह की होगी तनमन पर बरसात तू,
ख्वाब देखेगी उड़ने के दिन रात तू।
तपते ख्वाबों को वरदान देने तेरे,
साँचे में ख़ुद खुदा देख ढल जाएगा॥
रब की प्यारी इबादत है ये प्यार तो,
पूज्य होता है सबका यहाँ यार तो।
ऐ “अनंत” समस्याओं का एक दिन,
सख्त पर्वत तू देखेगा गल जाएगा॥
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा
प्राणों का मन का शरीर का,
तालमेल समझाएँ हम।
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा,
को घरघर पहुँचाएँ हम॥
हल्दी अदरक अजवाईन के,
लोग सभी दीवाने हैं।
जीरा मिर्ची लोंग सौंफ से,
कौन यहाँ अनजाने हैं॥
धनिया सरसों राई खसखस,
सब नीरोग तन करते हैं।
लहसनप्याज कलोंजी अलसी,
भी दर्दों को हरते हैं॥
प्राकृतिक चिकित्सा शाला,
किचन चलो बनाएँ हम।
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा,
को घर-घर पहुँचाएँ हम॥
तुलसी पीपल नीम हमेशा,
से अपने आंगन में हैं।
अच्छी सोच भावनाएँ शुभ,
सदियों से जीवन में हैं॥
सोंठ मुनक्का मूंग तिलों के,
बिना काम कब चलता है।
पूजा घर की शोभा दीपक,
हैं जो घी से जलता है॥
रखें निरोगी व्याधि हरें ये,
इनके गुणनित गाएँ हम।
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा,
को घरघर पहुँचाएँ हम॥
वात पित्त कफ कारण हैं तो,
सतत संतुलन साधें हम।
जड़ी बूटियों फल फूलों में,
गुण हैं नहीं किसीसे कम॥
आयुर्वेद चिकित्सा प्रकृति,
पर निर्भर हितकारी है।
ये इलाज़ के साथ रोक में,
करती हिस्सेदारी है॥
जीवन की हिस्सेदारी में,
इसका भाग बढ़ाएँ हम।
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा,
को घरघर पहुँचाएँ हम॥
“अनंत” आयुर्वेद की महिमा,
गाना आज इबादत है।
दुष्प्रभाव से हमें बचाती,
पैथी ये जीवन छत है॥
दादी नानी माता मौसी,
सब इसके गुण गाती हैं।
किससे क्या आराम मिलेगा,
गिनगिन हमें बताती हैं॥
सब पैथी से इसको ज्यादा,
प्यार करें अपनाएँ हम।
आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा,
को घरघर पहुँचाएँ हम॥
हो जा सद्गुरु का
सदगुरु पा के नहीं रहेगा,
कोई भी अंजान।
यहीं खुदा से करवाएगा,
रे ख़ुद की पहचान॥
होजा सदगुरू का …
रंक हो अंतिम पंक्ति का,
या अव्वल पंक्ति नरेश।
सभी जानते हैं कि गुरु है,
ब्रह्मा विष्णु महेश॥
गुरु सेवा में लग जा,
सदगुरू कर देगा कल्याण।
होजा सदगुरू का…
सतगुरु है अंधे की लाठी,
है अपंग की बैसाखी।
भाई का सम्बल भी सदगुरु,
बहना की है ये राखी॥
मात पिता की सेवा में रत,
सुत का ये परिधान।
होजा सद्गुरु का…
सभी समस्याओं को जड़ से,
यही काटने वाला।
पथ की खाई को पुल बनकर,
यही पाटने वाला॥
कांटों पर भी चलने को,
कर देता है आसान।
होजा सदगुरू का …
ओट हटावे जैसे कोई,
गुरु हटावे तम को।
पीर वही जो पीर हरे,
पीले जीवन के तम को॥
खुद जलकर रोशन करता,
सबको जैसे दीनमान।
होजा सदगुरू का…
भरते को सब भरते हैं,
गुरु खाली को भरता है।
उसकी मदद करे गुरु जिसकी,
कोई नहीं करता है॥
कतरे को सागर कर देता,
कर देता बलवान।
होजा सदगुरु का …
अंतर्मन में जहाँ गुरु,
लिख देता है तेहरीर।
वहाँ संवरती देखी हमने,
बिगड़ी हर तकदीर॥
मोम बना देता है,
पाषाणों को सत्य महान।
होजा सतगुरु का …
करम गुरु का कर देगा ये,
तुझे गुणों की खान।
दुनिया में दिलवा देगा,
पद, यश, ऊंचा सम्मान॥
कल्ब तेरा रोशन कर देगा,
हर लेगा अज्ञान।
होजा सदगुरु का…
जीवन को ज्योतिर्मय करता,
है सदगुरु सद्ज्ञान।
भेद मिटाता है दुई का,
देता सिद्धि महान॥
निर्धन को पल में “अनंत” ,
कर देता है धनवान।
होजा सदगुरू का…
चलो चलें मितवा
चलो चलें मितवा पथ में पर,
भूल न जाना है।
जीवन का आनन्द हमें मिल,
साथ उठाना है॥
तीन टांग की दौड़ जिंदगी,
मिल के दोड़ेंगे।
बने हमसफर जीवनपथ पर,
साथ न छोड़ेंगे॥
साथ जिएंगे साथ मरेंगे,
साथ निभाना है।
जीवन का आनंद हमें मिल,
साथ उठाना है॥
जीवन दो पहियों की गाड़ी,
अलग कहाँ जाती।
गति दोनों की यकसां रहती,
मंजिल तब पाती॥
मरने से पहले जीवन का,
कर्ज चुकाना है।
जीवन का आनंद हमें मिल,
साथ उठाना है॥
उसे हमसफर कहती दुनिया,
जो हमराज़ रहे।
मन की बात समझ लें साथी,
लेकिन बिना कहे॥
कहने पर भी जो न समझे,
नर्क ठिकाना है।
जीवन का आनंद हमें मिल,
साथ उठाना है॥
“अनंत” मानवता के पथ पर,
कदम बढ़ाएँ हैं।
पर हितकारी कदमों ने तो,
सब सुख पाएँ हैं॥
स्वर्ग धरा पर भी होता है,
ये समझाना है।
जीवन का आनंद हमें मिल,
साथ उठाना है॥
अपना यह संकल्प
अपना यह संकल्प समूची,
दुनिया को बतला दें हम।
संकट सारे दूर करेंगे,
रखते अटल इरादे हम॥
सिर जो उठा रहा सीमा पर,
संकट नहीं छिपा हमसे।
दृष्टि हमारी सीमा पर है,
रहना है पर संयम से॥
दुश्मन के हर मंसूबे का,
तोड़ हमारे मन में हैं।
हथियारों का बड़ा जखीरा,
अपने भी आंगन में है॥
जो छाती पर मूंग दलेगा,
अपनी नींद उड़ाएगा।
जो हमको ललकारेगा वो,
खुद ही मुंह की खाएगा॥
गाजर मूली-सा काटेंगे,
रिपु को सीधे सादे हम।
संकट सारे दूर करेंगे,
रखते अटल इरादे हम॥
सीमा पर वह पाक पड़ोसी,
हलचल बढ़ा रहा देखो।
उल्टीसीधी, सेना को वो,
पट्टी पढ़ा रहा देखो॥
ऊँची ऊँची नाप रहा है,
विश्व विजेता हो जैसे।
बना नाखुदा नाव सभी की,
खुद वह खेता हो जैसे॥
जैसे सब उसके प्रभाव में,
हों जग को बहका देगा।
लेकिन क्या अक्षम हैं हम जो,
भूमि हमारी ले लेगा॥
क्या कांधों पर यूँ ही सिर को,
फिरते लादे-लादे हम।
संकट सारे दूर करेंगे,
रखते अटल इरादे हम॥
नालायक है चीन जानते,
आफत का परकाला है।
चिकना घडा हमें लगता पर,
हमसे उसका पाला है॥
कैसे सहन करेंगे सेना,
जब नाहक धमकाएगी।
बंदर भभकी उसकी हमपर,
काम नहीं कर पाएगी॥
ईट का उत्तर पत्थर से हम,
देंगे ये तैयारी है।
रंगे सियार को न छोड़ेंगे,
ये प्रयास अब जारी है॥
नहीं सहेंगे कोई बेड़ी,
माता को पहना दे, हम।
संकट सारे दूर करेंगे,
रखते अटल इरादे हम॥
हो बंद शहादत सीमा की
सीमाएँ आग उगलती जब,
सैनिक जब मारे जाते हैं।
व्यवहार बिगडते मुल्कों के,
आंसू जनता के आते हैं॥
भूमि के टुकड़ों के खातिर,
क्या लड़ना बुद्धिमानी है।
सरकारों का यूँ बैर भाव,
रखना लोगों नादानी है॥
सीमाएँ जब तय हो जाती,
क्या रोज़ बदलती रहती हैं।
दीवारें क्या मानव हैं जो,
उठउठ कर चलती रहती हैं॥
फिर क्या होता है सीमा पर,
क्यों शांत पड़ोसी लड़ते हैं।
हथियारों को हाथों में ले,
यूँ इक दूजे पर चढ़ते हैं॥
हो राजाओं का राज जहाँ,
सीमाओं का विस्तार करें।
निर्दोष जहाँ जनता कुचले,
बेरहम सिपाही वार करें॥
अब दुनिया अलगराह परजब,
सब की ही इज़्ज़त होती है।
हो छोटा बड़ा भले कोई,
हर एक की ताकत होती है॥
जब बने पड़ोसी दुःख क्यों दें,
मानवता का विस्तार करें।
सुख दुख बांटें मिल बैठ सभी,
मिलजुल कर सब त्यौहार करें॥
इन्सानी गरिमा को समझें,
हत्याएँ माने पाप सभी।
तेरा तू मेरा मैं खाऊँ,
तो मिट जाएँ संताप सभी॥
कोई न हताहत सैनिक हो,
उसके भी है परिवार यहाँ।
माँ बाप भी हैं बच्चे भी हैं,
उसको भी मिलता प्यार यहाँ॥
क्यों गोदी माँ की सुनी हो,
तड़पाए ममता नारी को।
क्यों बूढा बाप विलाप करें,
तज दें नफ़रत हत्यारी को॥
सिंदूर लुटा कर पत्नी कब,
सुखसेज पर सोया करती है।
अपने बच्चे जख्मी कर क्या,
सुख पाती देश की धरती है॥
हो बंद शहादत सीमा पर,
“अनन्त” बस इतना ध्यान करें।
सम्मान करें इक दूजे का,
सीमाओं का सम्मान करें॥
युद्ध थोपने वालों की हम
मानवता के साथ यकीनन,
ऐसा करना है गद्दारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी॥
युद्ध जहाँ पर महिलाओं को,
बेवा बना दिया जाता है।
युद्ध जहाँ पर गोदी सूनी,
करके खून पिया जाता है॥
अगर नहीं जीवन दे पाते,
जीवन लेने का क्या हक़ है।
हत्या करने या करवाने,
वाला सचमुच नालायक है॥
भले रहनुमा हो या राजा,
उसकी भी है हिस्सेदारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी॥
क्या जनता पर निर्मम होना,
काम नहीं बोलो शैतानी।
महल बनें ख़ुद के नित नूतन,
खोली उनके लिए पुरानी॥
तनपर भले न उनके कपड़े,
हाथों में हथियार थमा दें।
हिम्मत करें प्रश्न करने की,
हंटर भी दो चार जमा दें॥
भक्ति काश्रय लेकर हम,
बोझ न उनपर लादें भारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी॥
युद्ध युद्ध होता है भाई,
सतपथ पर चलना आराधन।
खून खराबा “अनंत” ना हो,
ऐसा हो अपना बस चिंतन॥
हार जीत की बात नहीं है,
नर संहार पर दृष्टि डालें।
कितनी सुन्दर ये दुनिया है,
इस पर कीचड़ नहीं उछालें॥
अंश सभी में ईश्वर का है,
ईश्वर की है दुनिया सारी।
युद्ध थोपने वालों की हम,
करें न लोगों पैरोकारी॥
संस्कृति अपने भारत की
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।
सत्य अहिंसा न्याय दया की,
जो जग में महतारी है॥
सच्चाई के पथ पर चलकर,
हम विपदाएँ सहते हैं।
झूठों की दुनिया में दो गज,
दूर सदा ही रहते हैं॥
धर्म युक्त जीवन जीने में,
झूठ नहीं चल पाता है।
युही सत्यनारायण लोगों,
जगत पिता कहलाता है॥
कोई भी युग हो असत्य की,
खिली नहीं फुलवारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है॥
हम हैं पथिक अहिंसक पथ के,
सब जीवों से प्यार करें।
एक घाट पर शेर बकरियाँ,
पानी पीएँ नहीं ड़रें॥
बिना वज़ह जीवों की हत्या,
घोर पाप कहलाता है।
हमको तो मन दुखे किसीका,
ये तक नहीं सुहाता है॥
उसे नरक में फेंका जाता,
जो नर अत्याचारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है॥
न्याय सुलभ हो सस्ता हो इस,
नीति नियम पर चलते हैं।
सबको न्याय समान मिले ये,
भाव दिलों में पलते हैं॥
मानव की गरिमा की रक्षा,
का संकल्प हमारा है।
अपने अंतर की गहराई,
से ये सच स्वीकारा है॥
अन्यायी को नहीं सहा है,
सही नहीं मक्कारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है॥
दया रही है मूल धर्म का,
सभी जीव हमको प्यारे।
करुणा के सूरज तम हरते,
करते हैं वारे न्यारे॥
वसुधा है परिवार एक ही,
कोई नहीं पराया है।
उसे मिला है अभय सदा जो,
शरण मांगने आया है॥
हानि लाभ हम नहीं सोचते,
करता ये व्यापारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है॥
धर्म समन्वय सदाचार की,
एक त्रिवेणी पावन ये।
खरा कसौटी पर उतरा जो,
लोक हितेषी चिंतन ये॥
इस चिंतन से सतत जिंदगी,
सफल यहाँ करते हैं हम।
बहुमूल्य अपना जीवन ये,
इसीलिए तो है अनुपम॥
“अनंत” त्याग तपस्या का ये,
सौदा अति हितकारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है॥
स्वदेशी चीजें अपनाएँ
आत्मनिर्भरता के पथ पर,
आओ ऐसे क़दम बढ़ाएँ।
बहिष्कार कर माल विदेशी,
स्वदेशी चीजें अपनाएँ॥
हिंदुस्तान बाज़ार बड़ा है,
जनसंख्या दिनरात बढ़ रही।
मांग हर तरह की चीजों की,
आसमान पर यहाँ चढ़ रही॥
इसीलिए दुनिया लालायित,
हिंदुस्तान में माल खपाएँ।
और यहाँ की धनदौलत को,
अपने देशों में ले जाएँ॥
देश भक्ति अपनी ये कहती,
चीजें देशी गले लगाएँ॥
बहिष्कार कर माल विदेशी,
स्वदेशी चीजें अपनाएँ॥
स्वदेशी चीजों की बढ़ती,
मांगे उत्पादन मांगेंगी।
नई नई तकनीकों से वो,
वांछित परिवर्तन मांगेंगी॥
पूर्ति बढ़ेगी सस्ता होगा,
उत्पादन क़ीमत कम होगी।
अत्म निर्भर बनें अगर तो,
कभीनहीं नजरें खम होगी॥
विश्व हमारी ओर देखकर,
चाहेगा हम प्यास बुझाएँ॥
बहिष्कार कर माल विदेशी,
स्वदेशी चीजें अपनाएँ॥
सस्ती चीजें बना-बना कर,
हथियाया बाज़ार चीन ने।
अपनी ज़रूरतों पर देखो,
जमालिया अधिकार चीन ने॥
कच्चा माल हमीं से लेकर,
टोपी हमको पहनाता है।
अपनी दौलत खुले आम वह,
देखो कैसे ले जाता है॥
हम उसको संरक्षण दें जो,
हमें बनाकर यहीं खिलाएँ।
बहिष्कार कर माल विदेशी,
स्वदेशी चीजें अपनाएँ॥
निर्भरता ना रहे किसी पर,
ऐसा जीवन अपना ढ़ालें।
कम हो चीजें निर्मित करलें,
या कम से ही काम चलालें॥
कम होगा आयात अगर तो,
घर की दौलत घर में होगी,
“अनंत” देश विकसित होगातो,
यश गाथा अम्बर में होगी॥
अपने लोगों को साहस दें,
सम्बल देकर सदा उठाएँ,
बहिष्कार कर माल विदेशी,
स्वदेशी चीजें अपनाएँ॥
सैनिकों के प्रति
माँ के प्रति जो श्रद्धा रखते,
मैं उनके गुण गाता हूँ।
अपना मस्तक श्री चरणों में,
उनके यार झुकाता हूँ॥
रक्षा हित सीमा पर सैनिक,
अपना शीश कटाते हैं।
जननी पर जां अर्पित करने,
बड़े शौक से जाते हैं॥
नतमस्तक जब देह समर्पित,
करते उनको पाता हूँ।
अपना मस्तक श्री चरणों में,
उनके यार झुकाता हूँ॥
जो चोला बलिदानी पहने,
शौर्य संग इठलाते हैं।
विपदाओं का विष पीकर जो,
तनिक नहीं भय खाते हैं॥
मैं उनके बलिदानी तेवर,
देख देख हर्षाता हूँ।
अपना मस्तक श्री चरणों में,
उनके यार झुकाता हूँ॥
क्या मजाल जो माँ पर आंख,
उठा कर कोई गुर्राए।
क्या मजाल जो अपशब्दों से,
लज्जित माँ को कर जाए॥
माँ के प्रति ऐसे भावों पर,
मैं सर्वस्व लुटाता हूँ।
अपना मस्तक श्री चरणों में,
उनके यार झुकाता हूँ॥
सर्दी गर्मी सहकर भी जो,
राष्ट्र प्रेम को गाते हैं।
जो दुष्टों को उनकी भाषा,
में ही सबक सिखाते हैं॥
मैं उनके संकल्पों को,
बल देते नहीं अघाता हूँ।
अपना मस्तक चरणों में,
उनके यार झुकता हूँ॥
अर्पित करूँ सैनिकों को मैं,
भाव सुमन ये जी चाहे।
हंसता खिलता रहे सदा,
मेरा गुलशन ये जी चाहे॥
मैं “अनन्त” कैसे उनको,
मजबूत करूँ अकुलाता हूँ।
अपना मस्तक श्री चरणों में,
उनके यार झुकता हूँ॥
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो
उसको मझधार में छोड़ो मत,
जो पल-पल बना सहारा हो।
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
वो पिता कि जिसने अपना सब,
न्यौछावर तुमपे कर डाला।
वो पिता कि जिसने ग़म सहकर,
तुमको नाजों से है पाला॥
वो पिता अगर हो दिल में तो
अंधियारों में उजियारा हो।
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
जिसने कुर्बान जवानी की,
जीवन का सबसुख त्याग दिया।
जिसमें अपने सुत के खातिर,
बढ़कर के पलपल गरल पिया॥
उसके खातिर सुत भी जग में,
उसकी आँखों का तारा हो।
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
दिन याद करो तुम राजा थे,
हर इच्छा का सम्मान रहा।
वो पिता तुम्हारा तम हर्ता,
देदीप्यमान दिनमान रहा॥
जिसने कांधों पर चढ़ा तुम्हें,
हर जीवन लक्ष निखारा हो,
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
नींवे वृद्धाश्रम की हम को,
मानवता का उपहास लगे।
छाती पर अपने वार लगे,
खंडित लोगों विश्वास लगे॥
मत भार कहो उसको जिसने,
कांटों पर वक़्त गुज़ारा हो।
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
“अनंत” पिता के स्वप्न आज,
साकार हुए खुशियाँ पाई।
पथ उसका रोक सकी है कब,
बढ़ती चीजों की महंगाई॥
अपना सुत जिसकी नजरों में,
दुनिया में सबसे प्यारा हो।
सम्मान पिता का करो अगर,
वृद्धाश्रम से छुटकारा हो॥
आओ मिलकर योग करें
अगर चमक चेहरे पर लाना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बढ़ाना,
आओ मिलकर योग करें॥
अर्थ योग का है के जोड़े,
कड़ी जुड़े तो शक्ति मिले।
समुचित देख रेख से ही तो,
देह गुलों-सी यार खिले॥
बिखरा जीवन कष्ट उठाना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बढ़ाना,
आओ मिलकर योग करें॥
मन शरीर भी खुशियाँ पाए,
आत्मानंद मिले भाई।
चेतनता रगरग में दौड़े,
पट जाए ग़म की खाई॥
किस्मत हमको है चमकाना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बढ़ाना,
आओ मिलकर योग करें॥
व्यक्ति से समाज बनता है,
तब फिर देश बने प्यारा।
देशों से ये विश्व बना है,
जगतपिता का जग सारा॥
जग को सुन्दर हमें बनाना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बुढ़ाना,
आओ मिलकर योग करें॥
योग हमारी रही विरासत,
दुनिया ने ये माना है।
डॉक्टरों ने भी तो इसको,
अति उपयोगी जाना है॥
रोग न साधे कभी निशाना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बढ़ाना,
आओ मिलकर योग करें॥
इंद्रियों पर करें नियंत्रण,
संयम नियम सिखाये ये।
सांसों का परिचालन साधे,
“अनन्त” तेज बढ़ाए ये॥
हर मुश्किल से हो टकराना,
आओ मिलकर योग करें।
गर हमको है आयु बढ़ाना,
आओ मिलकर योग कर
बच्चों से जब काम न लेकर
बच्चों से जब काम न लेकर, हम स्कूल पहुँचाएंगे।
तब विकसित देशों में गिनती, अपनी करवा पाएंगे॥
मौलिक अधिकार है शिक्षा का,
बच्चों को मुफ्त पढ़ाती हैं।
उत्तरदायी सरकारें यूँ,
अपना फ़र्ज़ निभाती हैं।
शिक्षित बचपन हो जाए बस,
लक्ष्य हमारा अपना है।
सूरज शिक्षा का तम हरले,
देखा हमने सपना है॥
काबिल होंगे बच्चे जब हर,
बाधा से टकराएंगे।
तब विकसित देशों में गिनती,
अपनी करवा पाएंगे॥
बोझ अगर जिम्मेदारी का,
बचपन में ही डाल दिया।
जिनसे उड़ते, पंख उन्हीं को,
जड़ से अगर निकाल दिया॥
बोझ तले दबकर बच्चों की,
क्षमताएँ गल जाएंगी।
बिना हौसले सभी उड़ाने,
बिल्कूल निष्फल जाएंगी॥
जीवन को उत्सव मानेंगे,
जब गुल ये, खिलजाएंगे।
तब विकसित देशों में गिनती,
अपनी करवा पाएंगे॥
बच्चों के सपने ही तो कल,
की तस्वीर बनाते हैं।
जैसे सपने वैसे ही तो,
फल दामन में आते हैं॥
बच्चे चोर आज ग़र होंगे,
कल डाकू बन जाएंगे।
अगर निराशा में डूबे तो,
घर कैसे मेहकाएंगे॥
“अनंत” सपने देखेंगे जब,
तो साकार बनाएंगे।
तब विकसित देशों में गिनती,
अपनी करवा पाएंगे॥
पत्नी मेरी शान
जितने भी गुण गाऊँ कम है कब तक करूँ बखान।
सचमुच देवी तुल्य है मेरी पत्नी मेरी शान॥
देवी वह है मुझे देवता बन करना व्यवहार।
वो कमला जब कमला पति-सा मेरा हो आचार॥
दुर्गा संग बने शिवशंकर रहना मुझको भाई।
जिसकी हो हमसफर शारदा अभिमान दुखदाई॥
उसके योग्य बनूं जब मैं तो जीवन हो आसान।
सचमुच देवी तुल्य है मेरी पत्नी मेरी शान॥
अर्धांगिनी रहे बनकर के वंश बढ़ाने वाली।
एक भक्त-सी लगती पावन है पूजा की थाली॥
संस्कारित करती बच्चों को संस्कार धानी है।
मैं हूँ कृष्ण कन्हैया उसका वह राधा रानी है॥
मुझको वह सर्वस्व मानती अलग नहीं पहचान।
सचमुच देवी तुल्य है मेरी पत्नी मेरी शान॥
पति पुत्र में जब विरोध हो वह पति पक्ष में रहती।
भले कपोलों पर जख्मी हो ममता झरझर बहती॥
सहन शीलता की मूरत वह संतोषी माता है।
समझौता सर्दी गर्मी सबसे करना आता है॥
कितना हूँ धनवान जोपत्नी मिली गुणोंकी खान।
सचमुच देवी तुल्य है मेरी पत्नी मेरी शान॥
सेवा में वह रहती निशदिन करती प्यार अपार।
काम नहीं कुछ करने देती करती है इंकार॥
कब क्या करना है मुझको ये रहता उसको ज्ञान।
कब क्या मुझे चाहिए रखती पहले से ही ध्यान॥
वो गुणसागर तट पर बैठा मैं “अनंत” अनजान।
सचमुच देवी तुल्य है मेरी पत्नी मेरी शान॥
मेरे पति, मेरे भगवान
उनसे पाई अपनी मैंने दुनिया में पहचान।
इसलिए धरती पर मेरे पति मेरे भगवान॥
नजरों में मैं गिर ना जाऊँ रहूँ आँख का तारा।
पति रूप में उन्हीं को पाऊँ जन्मू अगर दुबारा॥
करूँ समर्पण अपना सब मैं, करके भक्ति रिझाऊँ।
इतना प्यार करूँ अपनीही खुदमिसाल बनजाऊँ॥
मैं उनकी चन्दा वह मेरे, हैं लोगों दिनमान।
इसीलिए धरती पर मेरे, पति मेरे भगवान॥
फूले नहीं समाते जब वे मुझे पास में पाते।
रूठ अगर जाऊँतो प्रियतम मुझको सदा मनाते॥
इच्छा को आदेश मान कर पूरी करते मेरी
रोशन कर देते हैं रातें, मेरी घूप्प अंधेरी॥
कभी नहीं करते बेइज्जत रखते हैं सम्मान।
इसीलिए धरती पर मेरे पति मेरे भगवान॥
मेरी जिम्मेदारी का वह बोझ उठाने वाले।
रक्षा हित रहते हैं मेरी बन के वह रखवाले॥
बाधाओं में भी हंसते वे ताकि मैं हँस पाऊँ।
रूह तलक अंदर उतरे हैं क्योंन उनको गांऊँ॥
खाली हाथ नहीं लौटाते, कभी मेरे अरमान।
इसलिए धरती पर मेरे पति मेरे भगवान॥
मैंने भी यह ठान लिया है उनका मान रखूंगी।
भले कलेजा छलनी करलूँ उनकी शान रखूंगी॥
उनको फ़र्ज़ निभाने में मैं मदद हमेशा दूँगी।
रहना पड़े अकेला तो मैं दुःख ये भी सह लूँगी॥
“अनंत” उनके दम पर ही मैं धनी बड़ी धनवान।
इसीलिए धरती पर मेरे पति मेरे भगवान॥
अख्तर अली शाह “अनंत”
नीमच
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