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जयद्रथ वध (jayadrath vadh)
जयद्रथ वध (jayadrath vadh)
टुटते उम्मीदों में उम्मीद की
काव्य कथा सुनाता हूँ पुत्र
शोक प्रतिज्ञा जयद्रथ पिता
पुत्र का नियत मोक्ष सुनाता हूँ॥
अभिमन्यू युवा पुत्र के
कुरुक्षेत्र के कपट क्रूर काल से
आहत युग ब्रह्मांड महारथी श्रेठ धनुर्धर॥
किया प्रतिज्ञा सूर्यास्त तक
जयद्रथ को मारूँगा युद्ध
भूमि में या चिता स्वयं की
सजा भस्म हो जाऊंगा घायल अन्तर्मन॥
महानिशा का अंधकार की
प्रतीक्षा देखेगा महारथी
का महासमर सूरज भी अस्त
हुआ था उदय उदित होगा
फिर लेकर भीषण महासमर॥
सूरज निकला मधुसूदन का
शंखनाद परम् प्रतिज्ञा का
नव संग्राम महासमर॥
युद्ध शुरू हो गया गिरते
मुंड बहने लगा रुधिर समंदर
ज्वाला से चलते अस्त्र शत्र काल
स्वयं खड़ा देख रहा था महासमर॥
कमलविह्यू की रचना के मध्य
खड़ा जयद्रथ कंप रहा था थर थर
पार्थ आज कुरुक्षेत्र में काल साक्षात
महा काल का रूप प्रत्यक्ष॥
केशव ने देखा असम्भव है
वध जयद्रथ का पार्थ करले
चाहे लाख जतन नारायनः
ने चक्र सुदर्शन को दिया आदेश॥
ढक लो सूरज को आदेश
सुदर्शनधारी का पाते ही
सूरज को ढक लिया सुदर्शन
अंधेरा छा गया हा हाकार मचा
पांडव दल में छा गए निराशा का बादल॥
महारथी अर्जुन अब रण में
स्वयं चिरनिद्रा को गले लगाएगा
प्रतिज्ञा की चिता अग्नि में भस्म स्वयं हो जाएगा॥
कौरव दल में उत्साह हर्ष
विजय पांडव अब ना पायेगा
चलो देखते है अर्जुन ख़ुद ही
कैसे भस्म हो जाएगा॥
अर्जुन की जब चिता पर
चिरनिद्रा के लिए प्रस्थान
किया कहा मधुसूदन ने
सुदर्शन आज तुमने क्या काम किया॥
अब आओ लौटकर मेरे पास
अंधेरा अब फिर छटने दो
ज्यो लौटा मधुसूदन का सुदर्शन
सूरज निकला कहा नारायणन ने
पार्थ अब ना देर करो॥
पूर्ण करो प्रतिज्ञा जयद्रथ खड़ा
सामने टूटते उम्मीदों की उम्मीद
का सत्कार करो कायर नही
कहेगा युग के टुटते ऊम्मीदो की उम्मीद में
धर्म युद्ध टंकार करो॥
मारो ऐसा वाण शीश कटे जयद्रथ
का पिता गोद में गिरे पिता पुत्र दोनों
को युग से मोक्ष प्रदान करो॥
मधुसूदन के आदेश मिला
गूंजी गांडीव प्रत्यंचा कौरव दल
में हा हाकार मचा कटा शीश जयद्रथ
का धड़ कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में
शीश पिता गोद में चक्रधारी की
महिमा से अर्जुन ने पिता पुत्र का उद्धार किया॥
धर्म युद्ध में टुटते उम्मीदों की उम्मीद
विजय अवसर उपलब्धियों की
युद्ध राजनीति का महासमर नीति
नियत चक्रधारी ने मार हार विजय
निर्णायक कर्म धर्म मर्म का मान किया॥
जीवन साथी
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना साथ निभाना
सुख दुःख में मिल कर हाथ बटाना॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
अभी तो ख्वाबो की दुनियाँ
दूल्हा दुल्हन रस्म रिवाज
कसमे वादे के संग जन्म
जन्म तक रहना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
जीवन की राहों में कांटे बहुत फूल
कम कांटो के शुलों से बचना फूलों से दिल दामन का राह बनाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
मधुमास की शुरुआत
मेरे नज़रों में तेरी दुनियाँ
तेरी नज़रों में मेरी दुनियाँ
नज़रों में ही सिमटी दुनियाँ
नज़रों से दिल दरिया की
गहराई में डूब जाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
दिल की गहराई से उठते
तूफान कभी तूफानों में
डगमगाती ज़िन्दगी की कश्ती
दिल नज़रों में दर्द का एहसास
दिल के उठते तूफानों में प्यार
को पतवार बनाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
गर दिल को चोट ही
लग जाय अनजाने में
एक दूजे से दिल दर्पण
ना टूटे ना रूठे ऐसा
साथ निभाना सीखे कुछ जमाना॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
वक्त की मार की रफ़्तार में
प्यार ना हो फीका
रंग ना दूजा चढ़े प्यार के सिवा
प्यार की नई दुनियाँ बनाना है॥
वक्त की कोई धूल प्यार
की इबादत की इबारत
ढक न पाए दुनियाँ
भूल ना पाए जहाँ जन्नत बानाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
दिल सांसे धड़कन
एक दूजे से एक दूजे
की खातिर क़दम कदम
लम्हा लम्हा जवां जज्बा
साथ चलते जाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
जवां जज़्बा जज़्बात ही
आखिरी लम्हे तक साथ
बुढ़ापा बोझ बासीपन का नही
नाम हर लम्हा नए जोश
का जश्न बनाना है॥
जीवन साथी जीवन साथी
साथ में रहना॥
पिता हमारे
जीवन की पल प्रहार हमारे
पिता एक उम्मीद सवांरे॥
जीवन की राहों में होता कभी
निराश पिता एक उम्मीद नई राह दिखाते॥
बचपन से सपनों का संसार
प्यार दिया पहचान दिया जीवन अरमान दिखाते॥
उम्मीदों का आसमान में उम्मीद
पिता की जीवन के हर मोड़ पर राह बताते॥
कंधों के झूले पर उनके बैठा
मुझे जन-जन को बतलाते
इतराते कुल का गौरव मान बताते॥
बचपन में हाथ पकड़ कर चलना
सिखलाया जीवन के आंधेरों में पिता
एक उम्मीद के दीपक जैसे॥
कोई मुश्किल आ जाये जैसे
प्रत्यक्ष आ जाते जीवन की दुविधा
मुश्किल कस्ती को हस्ती हद ले जाते॥
सपनोँ क़ि चाहत अरमानो कि मैं दुनियाँ
मेरे भाग्य भगवान् पिता भगवान हमारे मैं उनकी संतान॥
रखा पहला क़दम जब धरती पर बजे ढोल मृदंग थाल
उनके जीवन की खुशियो क़ी मैं मूल्यवान् सौगात॥
बड़े शान से दुनियाँ को बतलाया मेरे कुल का दीपक
चिराग कुल मर्यादा महिमा का भविष्य वर्तमान॥
मेरे सद कर्मो का परिणाम लाडला मेरी संतान मेरी
उम्मीदों की दुनियाँ का प्रज्वालित मशाल मेरी संतान॥
शक्ति क्षमता प्यार परिवारिस शिक्षा संस्कृत
सांस्कार लाल पालन का शाश्वत संसार॥
संकल्पों का यज्ञ हमारा अपने खून पसीने की दूंगा आहुति
मेरे मकसद मंज़िल का अभिमान मेरी संतान मैं पिता बगवान
जीवन में पिता एक उम्मीद अभिमान
जीवन यथार्थ उड़ान आसमान॥
परमेश्वर-सा परम् प्रताप पिता हमारे मैं उनकी संतान॥
लम्हा लम्हा ज़िन्दगी
जिंदगीका सफ़र ग़म ख़ुशी आंसू मुस्कान तन्हाई कारंवा
नफरत मोहब्ब्त की दासता दरमियान॥
मन के कागज़ पर लम्हे कुछ लिख जाते ऐसा
जिन्दगी जज़्बात ज़मीं आसमान जैसा॥
नित्य निरंतर प्रभा प्रवाह का ठहराव चलती जिंदगी
रिश्ते नाते प्यार मोहब्बत दुश्मनी दोस्ती।
मन के काग़ज़ पर ज़िन्दगी की याद इबारत॥
कुछ भूलता मिटाता कुछ साथ याद जख्मो की शक्ल
कुछ ज़िन्दगी के हसीन लम्हे हम सफ़र॥
मन के कोरे काग़ज़ पर हुश्न इश्क़ मोहब्बत जज़्बा जुनून
सुरूर गुरुर ईमान गुनाह के अक्षर अल्फ़ाज़ दर्ज॥
इंसान की चाहत मन के कोरे काग़ज़ पर सोने के अक्षर
अल्फ़ाज़ के खूबसूरत चमकते सोहरत की इबारत॥
मंजूर नहीं खुदा को इंसान अपनी मर्जी से दर्ज करे मन के कोरे कागज
अपने ज़िन्दगी लम्हो कदमो की तारीख इबारत॥
तमाम हद हैसियत की लाइने खिंच देता मन में चाहत नफरत
दोस्ती दुश्मनी जज्बे के बीज फ़सल लहलहाते॥
इंसान की ज़िन्दगी का सफ़र जंग के मैदान का लम्हा-लम्हा मन के कोरे
कागज़ पर रंग बिरंगी बहुरंगी इबादत के इबारत॥
पृथ्वी
पृथ्वी कहती है युग मानव
तुम ही अस्तित्व अभिमान॥
प्रकृति मूक मेरा श्रृंगार
चाहत है बनी रहूँ तेरी
जननी तू मत कर मेरा परिहास॥
मौसम ऋतुएँ मेरा भाग्य सौगात
वर्षा से बुझती मेरी प्यास
अन्न से धन्य कर देती मेरा आशीर्वाद॥
शरद सर्द मेरा स्वास्थ्य शिशिर
हेमंत मेरी गर्मी स्वांस वसन्त
यौवन प्रकृति का मधुमास॥
मां की कोख में रहता सिर्फ़ नौ माह मेरे आँचल में तेरे जीवन का
पल पल पलता चलता लेता सांस॥
मैं तेरे भाँवो की जननी
तेरे मात पिता की भूमि
अविनि तेरी मातृ भूमि
पुषार्थ पराक्रम मान॥
मेरे एक टुकड़े की खातिर
जाने कितने महासमर हुये मैं तो युग ब्रह्मांड प्राणि की माँ॥
जात पांत धर्म भाषा
बोली तुमने कर डाले जाने कितने टुकड़े बांट लिया मेरे आँचल को
चिथड़े चिथड़े॥
मैं अविनि युग मानव करती
तुमसे विनती मेरे टुकड़े कर
डाले तेरी खुशियों की खातिर
टुकड़ो में बंट जाना भी दुःख दर्द नही॥
मेरी हद हस्ती को कुचल
रहे प्रतिदिन मर्माहत रोती हूँ॥
तुमसे यही याचना मैं जननी
जन्म भूमि हूँ वसुंधरा धरा करती
हूँ धारण तुझको किया
मेरी लाज बचाओ तुम॥
मैं मिट ना जाऊँ अपना
कर्तव्य निभाओ तुम॥
प्रकृति मेरा है प्राण मेरे
यौवन का शृंगार मेरा प्राण
बचा रहे शुख शांति पाओ तुम॥
जल ही जीवन जल अविरल
निर्झर निर्मल मेरी जीवन रेखा है॥
जल संरक्षण मेरा संवर्धन
धर्म ज्ञान विज्ञान ने जाना है॥
वन ही जीवन जंगल पेड़ पौधे
तेरे लिये ही तेरी खातिर तेरा मंगल॥
प्रकृति पर्यावरण मेरे दो आवरण
ना दूषित कर संकल्प तुम्हे लेना है॥
पृथ्वी प्रकृति पर्यावरण में ही
तुझको जीना मरना है तुझको
ही निर्धारित करना है॥
दिल अरमानों का आईंना
दिल की क्या बात
कभी खुश कभी नाराज
खुशी ग़म दिल की गहराई जज्बात॥
चाहत के मील जाने पर
दिल बाग़ बाग
दिल आईंना देखता
सिर्फ खूबसूरत ख्वाब॥
दिल की खुशियों के बान
हज़ार मुरादों की हकीकत
दिल दुनियाँ का चमकता सूरज चाँद॥
हरियाली खुशहाली का
चमन बहार मील जाते जब दो दिल
जीवन मधुबन ख़ुशी बाहर॥
मिलते ही है दो दिल जब
जब मन विचार व्यवहार समान॥
दो दिलो का एक दूजे में
मिल जाना ही प्रेम प्यार
मिल जाते जब दो दिल
एक दूजे के साथ॥
विलय दो हस्ती का
दोस्ती मित्रता प्रेम प्यार
समान के रिश्तो का साक्षात्कार॥
दिलों की चाहत में न होता कोई मकसद
स्वार्थ दिलों की चाहत दिल
गहराई जज्बे की आवाज॥
दिल दिल पर मरता दीवानों सा
परवानों-सा जलता दुनिया में रौशन
इश्क हुश्न मोहब्बत का दीदार॥
दिल की मुस्कान से दुनियाँ वाकिफ
दिल दिल की आवाज
नही दरमियाँ फासले
नई जोश जश्न की चाह राह॥
दिल टुटता होती नही
आवाज़ बाहारों का चमन
उजड़ता ज़िन्दगी वीरान॥
मकसद मंज़िल का पता
पूछता भटकता इंसान
टूटे दिल के टुकड़े हज़ार॥
लाख जोड़ना चाहे कोई
दिल का हर टुकड़ा दिल
अरमानों का बिखरा संसार॥
दिल ना टूटे दिल ना रूठे दिल की ही दुनियाँ
जिंदगी प्यार मोहब्बत
हुश्न हक़ीक़त का सहकार॥
वर्तमान का सच
चहु ओर निराशा छाई है
आशा के बादल अब निराशा की परछाईं है॥
वीरान हो रही बस्तियाँ घर
घर बन गए श्मशान
ईश्वर तेरी सृष्टि का कैसा यह विधान॥
अंधेरे की चीख है
भटक रहा है इंसान॥
पावन नदियाँ कल कल
कलरव करती पाप नासिनी
ना जाने कैसे बन गयी है शमशान॥
एक दूजे से पूछ रहा है इंसान
क्या छंट पायेगा अँधेरा क्या
अंधेरे की चीख से उबर पायेगा इंसान॥
गलियाँ और मोहल्ले सुने
नही बचीअब मुस्कान॥
आज मिले जिससे कल
शायद हो उससे मुलाकात॥
दहसत कहर भय का दानव
अदृश्य कर रहा है नंगा नाच
खुद की गलती की सजा भोग रहा इंसान
या कुपित हो गया है भगवान॥
संमझ नहीं पाता कोई जाए
तो जाये कहाँ करे तो करे क्या इंसान॥
मातम का मंज़र खामोश
हो रहे प्राणि प्राण॥
एक दूजे से पूछ रहा सवाल
इंसान काल कोरोना हैं या
कल्कि से पहले ही यमराज लिये अवतार॥
रिश्ते से रिश्ता मुहँ छुपाता
शर्मसार हो रहा समाज
जिनकी खातिर जीवन
जल रहे दफन हो रहे लावारिस अनजान॥
बहुत हुआ मौत का
तांडव कहता है पीताम्बर
सुनो दुनियाँ के भगवान
आंधेरो की चीखों से
मुक्त करो अब युग को
आंधेरो की चीख है कब
तक सुन पाओगे मिट
जाएगा जब तेरी सृष्टि से
तेरा ही विधि विधान॥
भावनाएं
एहसास हूँ मैं
झोंका पवन विश्वाश हूँ मैं
भाव भावना का प्रवाह हूँ मैं
प्रत्यक्ष नहीं परोक्ष नहीं अंतर मन
कि आवाज़ हूँ मै॥
जिसने जैसा मेरा वरण किया
उसका वैसा ही मैंने भरण किया
मैं क्रोध की ज्वाला प्रेम की
शीतल छाँव हूँ मैं भावना हूँ मैं दिखती नहीं सिर्फ़ एहसास हूँ मैं॥
शक्ति जउत्साह हूँ पराक्रम
पुरुषार्थ हूँ वर्तमान की पहचान
अतीत का स्वर्णिम इतिहास हूँ
एहसास हूँ मैं॥
वीरान रेगिस्तान ग़म आंसू
मुस्कान आरम्भ अनिवार्य हूँ
मैं दिखती नहीं सिर्फ़ एहसास हूँ मैं॥
आग ज्वाला आँगर शोला धुंआ
धुंध अंधकार निराशा पराजय में
जय, जय में पराजय का आगाज़
अंदाज़ हूँ भावना हूँ एहसास हूँ मैं॥
प्रेम की परिभाषा भाषा
चाह चाहत इच्छा अभिलाषा
सृंगार हूँ, द्वंद द्वेष घृणा युद्ध
आवाहन शंख नाथ हूँ मैं एहसास हूँ मै॥
भरत राम मर्यादा महिमा युग धर्म
गोपियों की प्रेम भक्ति उद्धव का बैराग्य ज्ञान
गीता का कर्म ज्ञान हूँ मैं-मैं
दिखती नहीं एहसास हूँ मैं भावना हूँ मैं॥
मैं वर्तमान का शौर्य सूर्य अतीत की प्रेरणा
भविष्य की नव चेतना जागरण का सिंहनाद हूँ,
मैं भावना हूँ मैं दिखती नहीं युग में करा सब कुछ देती एहसास हूँ मैं॥
मुझे जगाओ शुभ संध्या की राग रागिनियों में प्रभा
पराक्रम आवाहन सिद्ध सफल सिद्धान्त में अविरल निर्झर निर्मल की निर्वाण,
निर्माण में मैं दिखती नहीं भावना हूँ मैं एहसास हूँ॥
जिसने जैसा मेरा वरण किया वैसा
ही उसका मैन विकास बैभव संवर्धन
किया क्योंकि मैं भावना हूँ सिर्फ़ एहसास हूँ मैं॥
मानव का अपराध
सन्नाटा पसरा, दहसत का साया
दर्द की महामार जीवन का विश्वास गायब
चीख रही मानवता को सूझ नहीं कोई राह॥
बेबस विवश लाचार सिसकी से स्तब्ध संसार
दिल टूटते रिश्ते छूटते लाख जतन करते कोई नहीं उपाय॥
विरह वेदना की सिसकी है सब लूट जाने की सिसकी है
युग के असाय हो जाने की सिसकी घनघोर निराशा
तमश में आशा के एक किरण की चाह॥
रिश्ते रिश्तो से मुहँ छिपाते मजबूरी आफत दुःख दर्द
साथ नहीं निभा पाते संग एक दूजे के जा नहीं पाते
सिसकी ही दिल की आवाज़॥
देखे बिना चैन नहीं था जिनको सपनो में भी नहीं आते
रूठ गया है क्या भाग्य भगवान नीति नियत का
तांडव का यही विधान॥
प्रकृति साथ जो किया खिलवाड़ सिसकी प्रकृति की मार
गलियाँ नगर मोहल्लों सड़को पर कोलाहल ध्वनि
गूँजता आकाश धुंए की दुन्ध से काला नीला आकाश॥
नदियाँ झरने झील राहत में नहीं बह रहा युग
मानव गंदा प्रवाह प्रकृति रूठने की है सिसकी मार॥
बैठो घर में कुछ मुक्त प्रदूषण होने
दो तब तक करो इन्तज़ार दावा दम्भ
अहंकार मानव के विखरे सिसकी
अंर्तमन की पश्चाताप॥
काल भी युग मानव की सिसकी
पर अट्टाहास मैं तो ख़ामोश देख
रहा हो ख़ुद मानव का मानवता काल॥
ईश्वर अल्ला भगवान गीता और कुरान
दर किनार किया युग मानव ख़ुद बन बैठा ईश्वर अल्लाह गीता और कुरान॥
विधाता नीति नियत को बौना कर
प्रकृति प्रयदुषित कर कितने ही
प्राणि को अतीत बना डाला अब
पछताना क्या जब सिसकी ही साथ॥
मानव अपराध का जैविक हथियार कोरोना
युग बेचैन कहर काल है
युद्ध लड़ रहा मानव शत्रु अदृश्य है॥
दिखता नहीं मानव ने कर लिये सारे यत्न
मचा कोहराम है॥
चारो तरफ़ जैसे विधाता स्वयं बन गए काल हैं॥
अस्त्र शात्र सारे निर्रथक संक्रमण से युद्ध का
शत्र मात्र संस्कृत सांस्कार है॥
मानव बेबस लाचार है कुछ बोल नहीं सकता
चेहरे पर मास्क है॥
शस्त्र भी नहीं हाथ पल पल करना पड़ता हाथ साफ़ है॥
कम से कम दो ग़ज़ दूरी आपस में दूरी
मानव की संयुक्त शक्ति का विखराव है॥
घर में ही बंद कैद मानव अदृश्य शत्रु की
सयुक्त शक्ति के क्रम टूटने का कर रहा इन्तज़ार है॥
रिश्तों की रिश्तों की दूरी
मजबूरी तड़फती मानवता शर्मशार है॥
युग कर रहा प्राश्चित स्वयं कर्म का या विधाता का
विधि विधान है॥
समझ में आता नही मर्ज का मर्म मानवता
खोजतो नित नए इलाज़ है॥
भय ख़ौफ़ का मंजर चारो तरफ़ मानव जो
अहंकार में कहता ख़ुद को महान हैं॥
प्रकृति प्रदूषण का हाहाकार है या प्रकृति की मार है चहुँ ओर
निराश का घन घोर अंधकार है॥
विज्ञान चमत्कार में मानव चमत्कार का
अपराध जैविक हथियार है॥
मानव मानवता का शत्रु स्वयं का बन चुका काल है॥
शवो से पटे शमशान अस्पताल है
पहचान नहीं पा रहा मानव अपनो को
पड़ा जो कोरोना के काल हैं॥
विश्व युद्ध हैं या बंधु युद्ध हैं युद्ध लड़ रही मानवता
सारा विश्व बना युद्ध मैदान है॥
शोर शराबा नहीं रक्तपात नही गोला तोप बम बारूद नही
ना मिसाइल की मार है॥
चीखती मानवता मृत्यु का का तांडव नंगा नाच है॥
रिश्तो लाशों का विश्व बना बाज़ार हैं॥
कृतिम साँसों की दरकार है मिल जाये तो शायद युद्ध
जितने के आसार है
कृत्रिम जीवन प्रणाली ईश्वर अवतार है॥
युद्ध के लड़ने का अस्पताल का विस्तर ढाल है लड़ रहे
जो बीर वह भी किसी माँ के लाल है॥
कितनी मांगे सुनी हो गयी कितनी माताओं ने खोए
अपने औलाद हैं॥
सुनी सड़के वीरान नगर गली मोहल्ले लगते रेगिस्तान है॥
लड़ाना हैं यदि इस भय भयंकर से
संयम संकल्प ही हथियार है॥
बनाना होगा हर मानव को नर में नरेंद्र जो इस युद्ध का
सबल सक्षम धैर्य धीर पराक्रम पुरुषार्थ नेतृत्व महान है॥
नैतिकता
चकाचौंध भौतिकता है
नैतिकता स्वच्छ मन बुद्धि की नियत
नैतिकता जीवन का मौलिक मूल्य
नैतिकता का ही अनमोल जीवन॥
नैतिकता ताकत है नैतिकता
मानव को मानवता विरासत
नैतिकता की नीति नियत से
भुवन यह आलोकित॥
थक जाना हार जाना निराशा
बेवस लाचारी भौतिकता के
चका चौध की बीमारी॥
भौतिकता में परतन्त्र पुरुषार्थ
भौतिकता की लोलुपता दीमक
खोखला कर देती व्यक्तित्व बैभव विराट॥
छंट जाएगा अँधेरा सूरज का
निकलना नितांत सिद्धान्त विधान
सूरज का भी अंधेरो के बाद ही अस्तित्व है।
नैतिकता मूल्यों के मानव
जीवन में ईश्वर इच्छा और परीक्षा नैतिकता दृढ़ता परिणाम॥
नही टुटता नहीं विखरती नैतिकता
सच्चाई भौतिकता की चकाचौंध में
दिखती आडम्बर की परछाई॥
निराश नहीं होती नैतिकता
नैतिकता का ह्रास नही
नैतिकता संघषों की नीयत होती
कभी परास्त नही॥
शत्रु हो जाये जो भी युग में चिंता परवाह नहीं निष्छल निर्मल निर्विकार
नैतिकता जीवन मौलिक मूल्य प्रवाह॥
नैतिकता कपोल कल्पना नही
नैतिकता विडम्बना नही
नैतिकता निष्काम कर्म धर्म
जीवन संसार॥
नंदलाल मणि त्रिपाठी ‘पीताम्बर’
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