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सदैव शुभ कार्य में मुहूर्त का महत्त्व (Importance of Muhurta) क्यों?
प्राचीन काल से चली आ रही यह परम्पराएँ किसी भी कार्यक्रम के शुरुआती दौरान शुभ मुहूर्त (Importance of Muhurta) की बात कही गई, जेसे गृह प्रवेश, गृह निर्माण, या विवाह इत्यादि किसी भी प्रकार के अनुष्ठानों के पहले हम शुभ मुहूर्तों के बारे में अनेक बार सोचते आये हैं। आज आधुनिक युग में कुछ पढ़ें लिखे युवाओं ने इसे कुछ दकियानूसी, अंधविश्वास भले ही कह ले परन्तु शुभ मुहूर्त की अपने ही कुछ विशेषताएँ महत्त्वपूर्ण है।
वैज्ञानिक प्रयोगों से पता चला चौबीस घंटे में कुछ गिनी-चुनी धड़ियाँ ही ऐसी होती है जिनमें किये कार्य कलाएँ केसे सफल होने की संभावनाएँ प्रबलता में होती है। विचारधारा पूर्व शुभ कार्य हर समय शुभ ही होती है बुद्धिमान व्यक्ति न ही किसी सहारे लेते और न ही कोई सहारों के आश्रित होने ज़रूरी समझते यानी मन चंगा तो कठौती में गंगा।
अगर अशुभ है तो वह है हमारे अंदर का संशय परोपकारी कार्यों को जितना जल्द किया जाय वहीं शुभ है। जिस प्रकार जन्म और मृत्यु कभी भी किसी भी शुभ अशुभ मुहूर्त को नहीं देखा विधाता ने और उसके प्रारब्ध कर्मो ने अनुसार पहले से ही निर्धारित किया हुए होता है देर तो हमें उन कार्यों में करना चाहिए जो अशुभ है जिन्हें करना अन्तःकरण में भय संकोच संचारित होने वाध्य करते हो इस प्रकार के कार्य किसी भी शुभ मुहूर्त में करें वह दुःख ही तो देंगे मेरे गुरु महाराज कहते बेटा एक बार अर्जुन श्री कृष्ण के साथ जा रहे थे तो अर्जुन को अपशुकन का एहसास हुआ उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा हे केशव शगुन बड़ा की श्रीराम श्रीकृष्ण बोले अर्जुन रथ को हांक तेरी भली करेगा श्रीराम अर्थात सदुद्देश्य से प्रारंभ किए कार्यों पर किसी भी अशुभ मुहूर्त का प्रभाव नहीं पड़ता।
शुभ मुहूर्त देखें ज़रूर लेकिन अपने अंतर्मन में भय संशय को न पनपने दें राजा राम जी का विवाह तो शुभ मुहूर्त कितने धूमधाम से ऋषि मुनि जन ने निकाला विधि का विधान अटल है। जिस सुबहें राजतिलक होने वाला था वहाँ अनुज और भार्या के साथ वन को जाना पड़ा माता के भाग्य में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की भार्या होते हुए भी ऋषियों के आश्रम में अपने पुत्रों का लालन-पालन करना पड़ा। मैं कभी नहीं कहूँगी की मुहूर्त न देखें ज़रूर देखें लेकिन अपना हृदय में संशय और भय को स्थान न देकर ईश्वर प्रति विश्वास रख हर कार्य को करना ही श्रेयस्कर होता है।
होली का त्यौहार
होली का अर्थ क्या है? और हम इसे क्यो मनाते है। होली का त्यौहार हर साल फागुन की पुरणिमा को मनाते है, होली का अर्थ है बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व है। इसका अपना एक अलग ही महत्त्व है आज के दिन आपसी बैर भाव भूलकर सभी इस परव को मनाते है, होली हर्सोल्लास का परव है। भक्त प्रह्लाद के पिता हरिण्यकश्यप अपने आपको भगवान समझते थे लेकिन प्रह्लाद भगवान विष्णु की पूजा करते पिता को ये सब पसन्द नहीं था और प्रह्लाद विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने प्रह्लाद को विष्णु भक्ति से रोका पर वह न माने हरिण्यकश्यप ने अपनी बहन होलका के साथ मिलकर उसे जलाकर मारने का षडयंत्र रचा क्योंकि होलिका केपास दिव्य चुनर थी जिसे ओढकर वह आग में कभी नहीं जलेगी लेकिन भगवान विष्णु की कृपा हुई जेसेही होलका प्रह्लाद को लेकर अग्नि कुंड में कूदी चुनर उड कर भक्त प्रह्लाद के उपर गिरी होलका जल कर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद सकुशल अग्नि कुंड से बाहर आ गये तभी से हम होलका दहन के दूसरे दिन से आपसी बैर भाव सब भूलकर एक दूसरे को रंग, अबीर, गुलखल लगाते मिठाई खिलाकर खुशियाँ मनाते।
वही दुसरी और ब्रज की होली, वृंदावन की होली बरसाने की लठ मार होली पूरे भारतवर्ष ही नहीं विदेशों में भी मशहुर है। आज सालो से कोलकाता के प्रसिद्ध सत्यनारायण पार्क के सामने सत्यनारायण भगवान का बहुत पुराना मंदिर है यहाँ से फागुन के शुकलपक्ष की दसमी तिथि को भगवान माता लक्ष्मी एंव अपने सभी भक्तों के साथ होली खेलने हावडा में स्थित सत्यनाराय मंदिर से बाबा की शोभायात्रा हावडा में स्थित सत्यनारायण बगिची की ओर प्रस्थान कर दो दिन अपने भक्तों के साथ फाग का आंनद लेते हुए त्रयोदशी को वापस होली खेलते हुए नगर भ्रमण कर होली खलते हुए शाम को अपने मंदिर में विराजमान होते है। ऐसा अदृभुत दृश्य होता है मानो आज सच में आज कान्हा राघे संग मिल अपने भक्तों के साथ होली खेल रहा है।
रोम रोम पुलकित हुआं
चढों मो पर श्याम को रंग
होरी खेले शयाम राधा भक्तों के संग
जय हो होरी के रसिया की जय हो
कृष्णा भिवानीवाला
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