Table of Contents
अथाह साहस (immeasurable courage)
अथाह साहस (immeasurable courage): मैं पथिक हूँ लड़खड़ाता सा
पथ विषम है डगमगाता सा
लक्ष्य दुर्लभ है आसमां सा
पर साहस अथाह है सागर सा।
नसीब ने मुझे हराया
पर हिम्मत न हरा पाया
साजिशें तो बहुत रची गई
पर सब बेकार हो गई।
जोश भरा था अपार
हार मानना था नागवार
जो थी हमारी कमजोरी
बनाया उसी को दमदारी।
दया न दिखाना हम पर
नहीं बुझे हुए चिराग हम
रोशन होती है महफिलें हमसे
जोश की है पहचान हमसे।
हक़ चाहते है खुलके जीने का
हीन भाव से ना हमें देखना
कम ना आंकना किसी से हमें
हाथ बढ़ाना आगे बढ़ने में।
हे ईश मेरे
हे ईश मेरे
रोशन करो मन
हर लो तम। (१)
मन में धीर
अज्ञानता नष्ट हो
साहस घोर। (२)
संकट दूर
शांत चित्त अंतर
हो नव भोर। (३)
प्रेम आलोक
जगमग जीवन
ज्ञान विस्तृत। (४)
भाव पावन
कृपालु देव बने
सक्षम जीव। (५)
वैमनस्यता
न रहे द्वेष वैर
हो मीत भाव। (६)
भर दो नैन
आशा संतप्त दीप
कृत संकल्प। (७)
अंतर्मन में
सहर्ष दीप जले
तम हर ले। (८)
हर दिवस
पर्व मने अंतस
हृत तमस। (९)
माँ
निःशब्द हो जाती हूँ माता
जब लिखने बैठूँ तेरी गाथा।
तुझसे शुरू तुझसे खतम नित दिन राता
बिन बताए जो समझे मेरी हर व्यथा
हर बार गिरकर उठना सिखाए मेरी माता
असफल होने पर भी जो चूमे मेरा माथा।
पथ भ्रमित होने पर सन्मार्ग दिखलाए
सामाजिक कर्तव्य और संस्कार सिखलाए
सही ग़लत की पहचान विवेक बुद्धि बनाए
खीर पूड़ी के साथ पीज्जा बर्गर भी खिलाए
पुरातन संग आधुनिकता का सामंजस्य बिठाए
सत्य कृत्य न्याय का पाठ पढ़ाए ऐसी मेरी माता॥
संघर्षों भर जीवन सारी खुशियाँ की न्योछावर
स्व इच्छाएँ सारी मार खजाना भरती अपार।
पुरानी यादें संजोए तुम्ही मेरी भविष्य निर्माता
कभी शिक्षिका कभी वैद्य बिन पढ़े वेदों की ज्ञाता
पूजे सारे देव माँगे दुआ तू सबसे बड़ी विधाता
दुःखों के थपेड़े सहना तू खुशियों की दाता।
ना शिकवा न शिकायत ना चेहरे पर कोई शिकन
हे माँ तूने हर अरमां अपना कर दिया दफन
सफल स्तुति वंदन मिल जाए तेरा स्पंदन
माँ के होने से महके हर कोना और भवन
मंदिर की घंटी-सी तेरी पायल चूड़ी की खनखन
घर बाहर सब संभाले दस हाथ लिए मेरी माता॥
निःशब्द हो जाती हूँ माता
जब लिखने बैठूँ तेरी गाथा॥
मनीषा सिंह जादौन
अध्यापिका
हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी
सवाई माधोपुर, राजस्थान
यह भी पढ़ें-
१- प्यार के फूल
1 thought on “अथाह साहस (immeasurable courage)”