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मुझे दहेज चाहिए (i want dowry)
मुझे दहेज चाहिए (i want dowry): आज सुबह से ही परिवार के सभी लोग उत्साहित नज़र आ रहे थे, मानो सूखे चमन में बहार का एक झोंका आकर वातावरण को महका गया हो। बैठक को व्यवस्थित करना है, बाज़ार से फल, मिठाइयाँ, नमकीन वगैरह लाना है, खाने में क्या-क्या बनाना है, आदि-आदि। परिवार के सभी लोग अपने-अपने कामों में जुट गए और अलका सपनों के संसार में खोई बेसुध बेड पर औंधी लेटी हुई आने वाले भविष्य के मधुरतम ताने-बाने बुन रही थी अपने होने वाले जीवनसाथी विनय की तस्वीर को मन मंदिर में संजोए हुए।
वेद प्रकाश शर्मा का एक छोटा-सा परिवार है जिसमें बूढ़े माता-पिता जो तमाम जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुके हैं, पत्नी सविता, एक बेटा रवि और एक बेटी अलका। बस इतना भर ही परिवार है। वेद प्रकाश ने पिता की आर्थिक तंगी के चलते बमुश्किल स्नातक तक अपनी पढ़ाई की और एक प्राइवेट कंपनी में सुपरवाइजर हो गया। कमाई का एक बड़ा हिस्सा दोनों बच्चों की पढ़ाई में ख़र्च कर दिया। घर का खर्च, महंगाई की मार, माता पिता की बीमारी का इलाज़ के चलते थोड़ी बहुत ही बचत हो पाई लेकिन दिल में संतोष का फव्वारा फूटता रहता था, क्योंकि बेटा ६ महीने पहले द्वितीय श्रेणी अध्यापक के पद पर नियुक्त हो गया था और बेटी भी अपनी पढ़ाई पूरी कर प्रतियोगिताओं की तैयारियों में लगी हुई थी। पिछले एक साल से वेदप्रकाश अलका के लिए सुयोग्य वर की तलाश में था। सोचता था, अच्छा घर परिवार मिल जाए तो अलका के हाथ पीले कर एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाए।
आज अलका को देखने लड़के वाले आ रहे थे। स्वयं के कस्बे से २५ मील दूर एक छोटे शहर में रहने वाले श्याम बिहारी जी के लड़के अमित से रिश्ते की बात चलाई थी। श्याम बिहारी जी रिटायर्ड अध्यापक है और उनका बेटा एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर। साठ हज़ार रुपये महीना तनख्वाह है अमित की। दरवाजे के बाहर कार का हॉर्न बजा और वेद प्रकाश ने लपक कर दरवाज़ा खोला। लड़के के माता-पिता स्वयं लड़का और दो बहिनें अलका को देखने आए थे।
“पधारिए, आप सबका मेरी इस कुटिया में स्वागत है।” हाथ जोड़कर वेदप्रकाश उन सब को बैठक में ले गए और बैठने के लिए कहा। बातचीत के बीच-बीच में चाय नाश्ते का दौर चलता रहा। अमित और अलका आमने सामने बैठे एक-दूसरे को कनखियों से देख रहे थे। अलका की सादगी, बातचीत करने का ढंग, व्यवस्थित शब्दों में सवालों के जवाब देना, सबको भा गया और फिर अलका के रोम-रोम से फूटते सौंदर्य ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। तीन-चार घंटे की रस्मी मुलाकात करने के बाद श्याम बिहारी जी ने रवाना होने की आज्ञा मांगी।
अलका के पिता ने पूछा-“आप सब अपनी राय बता दीजिएगा। देने लेने के लिए मेरे पास बेटी के अलावा कुछ नहीं है। बमुश्किल पढ़ा लिखा पाया हूँ। मुझे आप के जवाब का इंतज़ार रहेगा। कोई मांग हो तो पूरी करने की हैसियत तो नहीं है फिर भी मेरी औकात अनुसार कोशिश करूंगा।” कहते-कहते गला रूंध आया। “ठीक है, ठीक है, वेद प्रकाश जी, हम एक-दो दिन में आपको जवाब भिजवा देंगे।” कहते हुए मेहमानों ने विदा ली।
उनके जाने के बाद घर में अनजानी खामोशी छा गई। सभी यह सोच रहे थे, लड़का अच्छी नौकरी में है और इकलौता भी है, अगर उन लोगों ने बड़े दहेज की मांग कर ली तो कैसे पूरी कर पाएंगे? पांच दिन इसी उधेड़बुन में निकल गए। कोई जवाब नहीं आया। पत्नी सविता ने कहा-“सुनो जी, उन लोगों को गए आज पांच दिन हो गए हैं और अभी तक उन्होंने ‘हां’ या ‘ना’ में कोई जवाब नहीं दिया, फ़ोन तक नहीं किया, क्यों नहीं आप ही एक बार फ़ोन करके पूछ लो। आख़िर हम लड़की वाले हैं, चिंता तो हमें है।”
वेदप्रकाश ने निराश दृष्टि से सविता को देखा और बोला-“तुम ठीक कहती हो, मैं फ़ोन करके पूछता हूँ आख़िर उनका विचार क्या है? यही न, जवाब या तो ‘हाँ’ में मिलेगा या ‘ना’ में। मना भी कर देंगे तो क्या? हमारी बेटी लाखों में एक, पढ़ी-लिखी है, सुंदर है, लड़कों की कमी है क्या।” यह कह कर वेदप्रकाश ने श्याम बिहारी जी को फ़ोन मिलाया।
‘हेलो’ उधर से आवाज़ आई।
“आदरणीय मैं वेद प्रकाश बोल रहा हूँ नमस्ते।”
“हाँ जी, नमस्ते” श्याम बिहारी ने जवाब दिया।
“कैसे हैं आप सब?” वेद प्रकाश ने पूछा।
“सब ठीक है, आप की दुआएँ हैं, आप सब कैसे हैं?” श्याम बिहारी जी ने जवाब दिया।
“आपकी कृपा है। आदरणीय, हम सब आपके जवाब के इंतज़ार में हैं अगर आप सबको यह रिश्ता पसंद हो तो बात आगे बढ़ाई जाए।” वेद प्रकाश ने कहा।
” वेद प्रकाश जी हमें रिश्ता तो मंजूर है लेकिन ।
लेकिन क्या श्रीमान, खुलकर बोलिए। आपकी कोई मांग हो तो नि: संकोच बताइए। पूरी करने योग्य होगी तो मैं जी जान से कोशिश करूंगा। ” वेद प्रकाश ने चिंता के भाव छुपाते हुए कहा।
“वेद प्रकाश जी बात कुछ ऐसी है, मेरे परिवार के लोगों की कुछ मांगे हैं जिनको दहेज तो नहीं कह सकता लेकिन उपहार की श्रेणी में आते हैं। अगर आप पूरा कर सके तो लिस्ट भिजवा देता हूँ।” श्याम बिहारी के यह कहते ही वेद प्रकाश आवाक रह गए।
जिस बात का डर था वही सामने आ गई। फिर भी हिम्मत कर कहा-“जी ठीक है, आप लिस्ट भिजवा दीजिए, पूरी करने की होगी तो मैं ज़रूर कोशिश करूंगा, नमस्कार।” यह कहकर फ़ोन रख दिया। ऐसा लग रहा था जैसे पैरों में जान ही नहीं रही। सविता पास ही खड़ी दोनों की बातचीत और हाव-भाव से जान गई थी कि लड़के वाले दहेज की मांग कर रहे हैं। चिंतित स्वर में बोली-“कैसे करोगे उनकी मांगों की पूर्ति? क्या कर्ज़ लोगे? ले भी लोगे तो चुकेगा कैसे? अब तो बेटियों को जन्म देना, पालना पोसना भी दुश्वार होता जा रहा है। क्या होगा इस समाज का, इस देश का।” वेदप्रकाश ने कहा-“सब ठीक हो जाएगा, तुम चिंता मत करो।”
दो दिन बाद अचानक दरवाजे की घंटी बजती है। वेद प्रकाश ने कांपते हाथों से दरवाज़ा खोला। अपने सामने श्याम बिहारी को देख कर ठगा-सा रह गया। “अरे भाई, अंदर आने को नहीं कहोगे या बाहर से ही लौटा दोगे?” श्याम बिहारी ने कहा। अचानक जैसे नींद से जागते हुए वेद प्रकाश ने कहा-“हाँ, हाँ, आइए ना, पधारिये।” दोनों बैठक में बैठ गए। सविता चाय पानी की व्यवस्था करने लगी। देखिए वेद प्रकाश जी, बिना दहेज या उपहारों के हम शादी नहीं करेंगे। यह हमारा सब का सामूहिक फ़ैसला है। यह लिस्ट है, दहेज में हमें जो चाहिए वह सब इसमें लिखा है, कहते हुए श्याम बिहारी ने काग़ज़ वेद प्रकाश की ओर बढ़ा दिया। वेद प्रकाश ने कांपते हाथों से काग़ज़ लिया और खोलकर पढ़ने लगा-
०१) लड़की में सहनशीलता होनी चाहिए और परिजनों के प्रति यथायोग्य सम्मान की मांग है।
०२) चेहरे पर हमेशा मुस्कान होनी चाहिए।
०३) कामकाज में एक्सपर्ट ना हो तो कोई बात नहीं लेकिन सीखने की इच्छा होनी चाहिए।
०४) घर परिवार की मान मर्यादा का पूरा-पूरा ख़्याल रखना होगा।
०५) रूढ़ीवादी, अंधविश्वासी नहीं होना चाहिए।
०६) पठन-पाठन के प्रति अरुचि का भाव हमें पसंद नहीं।
०७) आप की लड़की की खिलखिलाहट से मेरा घर आंगन हमेशा महकता हुआ रहना चाहिए।
०८) पति के साथ हम बूढ़ों के प्रति उत्तरदायित्व का भाव जिम्मेदारी होनी चाहिए।
०९) हम दोनों परिवार एक दूसरे के सुख-दु: ख में भागीदार होने चाहिए।
१०) आपका जितना बजट शादी का है उसका आधा ही आप शादी में ख़र्च करेंगे। कर्जा नहीं लेंगे।
११) फालतू का दिखावा हमें किसी को पसंद नहीं, इनसे आप बचेंगे।
१२) बुलाने पर नहीं बल्कि बिन बुलाए आने जाने का रिश्ता हमारे बीच रखना होगा।
१३) आपको मुझसे या मुझे आप से कोई शिकायत होती है तो हम दोनों बैठ कर सुलझाएंगे, तीसरा व्यक्ति बीच में नहीं आना चाहिए।
१४) शादी साधारण ढंग से होगी।
१५) हमें दहेज में सिर्फ़ बेटी चाहिए। जो प्यार, स्नेह, अपनापन, आदर भाव, जिम्मेदारियाँ, मुस्कुराहट, मान-सम्मान, संस्कार लेकर मेरे घर में आए। बस और कुछ नहीं चाहिए।
पढ़ते-पढ़ते वेद प्रकाश की आंखों से झर-झर आंसू टपक रहे थे। मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। आंसुओं से भरी नजरों से एकटक श्याम बिहारी को देखे जा रहे थे जो मंद-मंद मुस्करा रहे थे। वेदप्रकाश के दिल से एक ही आवाज़ उठ रही थी, श्याम बिहारी, काश! सभी बेटों के पिता तुम्हारे जैसे हो जाए।
मदन मोहन शर्मा ‘सजल’
कोटा (राजस्थान)
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