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आशा (hope)
आशा (hope)
रात घिरी तो क्यूं डरें, सूरज की है आस
पल में उजरा हो रहा, यह सारा आकाश।
बुरे से बुरा वक़्त हो, आशा रखियो थाम
कोशिश तुम करते रहो, भली करेंगे राम।
आशावान मनुष्य का, कल शानदार होय
घिरा निराशा में रहे, तो यह पल भी खोय।
भविष्य सुंदर चाहिए, तो सदा रखो आस
कर्म सदा करते रहो, मन में भर उल्लास।
जो सदा जलाये रखे, आशाऔं के दीप
सफल वही मनुष्य हुआ, यह है जग की रीत।
किसी की आशा पर तुम, कभी ना करो चोट
यही तो महापाप है, दूर रखो यह खोट।
आस में ही आस रखो, जब तक है यह सांस
सदा इन शब्द से बचें, किन्तु, परन्तु व काश।
जीत वरण उसका करे, रखता आशा जोश
निराश हुआ टूट गया, फिर ख़ुद को मत कोस।
दृष्टि व आशा को मिला, तू यह दुनिया देख
तेरी हर कठिनाइ के, हल मिलेंगे अनेक।
जो मंज़िल को पा गया, रखकर बस उम्मीद
लगातार चलता रहा, हो गया काम सिद्ध।
गांव की मिट्टी
मिट्टी यही है गाँव की, सोने-सी अनमोल
कहते इसे हम सब माँ, इसकी जय-जय बोल॥१॥
यही है पालक सब की, इसको शीश लगाय
धन धान्य को उपजती, धरती माँ कहलाय॥२॥
सौंधी ख़ुशबू है इसकी, मन को लेती मोहे
हरि हरियाली चदरिया, अंखियनों को सोहे॥३॥
खेले हैं जो गोद में, जी भरकर भरपूर
रिश्ता दिल से जो जुडा, कैसे जायें दूर॥४॥
खेले वह कंकड, गिट्टी, मिट्टी में मन लगाय
किसान बिताय उमरिया, इसी में जी बसाय॥५॥
सावन माह में जब भी, बरसात घनी होय
धरती की यह सुन्दरता, रूहानी-सी होय॥६॥
बाजरे के रोट मिलें, छाछ और गुड साथ
मिट्टी पर बैठ खाय जो, लगे प्रभु का प्रसाद॥७॥
माटी मेरे गाँव की, निराली बहुत खूब
चिकनी, रेतीली कहीं, सख्त, काला भी रूप॥८॥
कहीं घास, कहीं बगिया, कहीं खडे हैं पेड
दूर तलक खेत दिखें, दिखें पगडंडी, मेड॥९॥
गांव की मिट्टी से पले, इन शहरों का पेट
पर क्यूं लाचार हुआ, चढा कर्ज़ की भेंट॥१०॥
संजय गुप्ता ‘देवेश‘
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