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हिन्दी, हिंदू हिंदुस्तान
संस्कृतियों का संगम भारत,
विभिन्न बोलियों का श्रृंगार भारत,
हिन्दी हैं जिसकी राजभाषा,
हिंदू धर्म नहीं , हिंदुस्तान हैं,
साकेत, काशी, पुरी तीर्थों की गाथा,
पूरी सुन लो इनसे हिन्दी की गाथा,
देवों की वाणी हैं संस्कृत
जिसका नवरूप हिन्दी हैं,
मीरा की मस्ती भरते पद हैं,
तुलसी के विरले रघुनंदन हैं,
सूरदास करते व्याख्या राधे श्याम की,
रसखान मोहित हुए बालरूप के,
माखन,मिश्री, छाछ मन भाए,
ऐसे सुंदर सलोने राधे के श्याम हैं,
हिन्दी हिंद की आत्मा हैं,
हिंदू ही तो हिंदुस्तान हैं,
भूषण लाये उर उबाल मैं,
वीररस से भरी जुबान हैं,
हाला की गाथा है अब,
बच्चन जिसका प्रमाण हैं,
अपनी मस्ती में झूमे प्रतिपल,
जाति पांती का न मान हैं,
अपनी मस्ती अपनी हाला,
आज घुली उर में मधुशाला,
पंत की छाया प्रकृति में,
मिट्टी से बनाते बच्चे घरौंदे,
जहां गांव के किरदार हैं,
सुजान ज्योति अविनाशी है,
घनानंद के उर की भाषा,
दो युगल अनसुलझे प्यार हैं,
पद्मावत से मिली पहचान ,
जायस, जायस का निजगांव हैं,
नाटक, उपन्यास, कहानियां,
क्या कुछ नहीं है हिन्दी में,
कलम का सिपाही निरंतर लिखता,
प्रेमचंद जिनका नाम हैं,
भारतेंदु, मैथिली, देव, बिहारी,
पंत, प्रसाद और निराला ,
क्यों न कहूं इनका दीवाना,
महादेवी, सुभद्रा, शुक्ल सब बड़े विद्वान हैं,
हिंदी जगत अथाह समुद्र,
इसका नीर अमृत का सार है।।
निंदा और मैं
एक रात निंदा आकर बोली,
कैसे भर दूं खुशियों से झोली,
वो नफरत के बीज बोये उपवन में,
तुम खाली करो निंदा की झोली,
छीने गए होंगे अवसर सभी,
तुम फिर से अरमान जगा लेना,
मीठी मीठी बातें सुनकर मौन रहना,
मिले मौका तो जीत की बाजी हार लेना,
एक रात निंदा आकर बोली,
तुम फिर से ख्वाब सजा लेना,
छोड़ दिया मैनें उसके हाल पर,
वो निंदा सो गई किसी आश पर।।
चंद्रवीर गर्ग
बाड़मेर (राजस्थान)
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