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बच्चों के हृदय को (heart of the children) पढ़ लेता है शिक्षक
बच्चों के हृदय को (heart of the children) पढ़ लेता है शिक्षक: शिक्षक दिवस पर शिक्षक की क़लम से
पुवायाँ, शाहजहाँपुर। प्रत्येक बच्चा सीख सकता है, यह सबसे अदभुत बात है बच्चों की और एक बहुत बड़ी संभावना है हम शिक्षको की।
चलो चले उस ओर जहाँ रचने को है नया जहान।
नन्हें हाथों की उंगलियाँ आतुर हैं छूने को सारा आसमान।
यह उद्गार व्यक्त किए हैं एसआरजी (राज्य सन्दर्भदाता समूह) के पद पर सेवारत शिक्षिका ममता शुक्ला ने।
बच्चे अपनी छोटी-सी घर की दुनिया से निकलकर अपनी माँ व पिता का हाथ थामें जब पहली बार विद्यालय में क़दम रखते हैं तो कुछ डरे-सहमें, कुछ लाज से सिमटते, कुछ कौतुहल से विद्यालय को निहारते, कुछ अपने ही भाई-बहनों, साथियों को नये रूप में देख आश्चर्यचकित होते हैं। घर परिवार की स्वच्छंद दुनिया से निकलकर व माँ का आंचल छोड़ते तो रो-रोकर विद्यालय की दीवारें हिला देते हैं माँ का दिल भी तो कांपता है जब बच्चे को किसी अजनबी हाथों में सौंपती है विश्वास के साथ कि उसके बच्चे का सुंदर भविष्य निर्माण होगा।
यहीं से हम-हम शिक्षको का कार्य शुरू हो जाता कि बच्चे को इतना स्नेह से रोके कि वह हमारे स्नेह व सीख में माँ का प्यार व पिता का लगाव महसूस करें और फिर एक दिन ऐसा आता है कि यही अजनबी व्यक्ति माँ से बढ़कर हो जाता है और माँ शिकायत लेकर आती है कि गुरूजी ये अमुक शैतानी करता है आप समझा दीजिए। यह है एक शिक्षक का स्थान।
एक बात बार-बार मेरे मस्तिष्क में गूंजती है कि शिक्षक की नज़र में बच्चा क्या है? जब भी हम यह बात करते हैं तो कच्ची मिट्टी का घड़ा, कोरी स्लेट, एक पौधा न जाने क्या क्या…लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है प्रत्येक बच्चा एक संभावना है शिक्षक के लिए, संभावना एक अच्छा नागरिक बनने की, संभावना एक अच्छा इंसान बनने की, संभावना डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, व्यापारी, कलाकार बनने की।
कभी देखा है अपने किसी बढ़ई को काम करते हुए लकड़ी को हाथों में लेकर कितने प्यार से निहारता है निरख परख कर उसका कहाँ उपयोग कर सकता है ये तय करता है और कुछ काटकर, कुछ छीलकर सुन्दर आकार दे देता है। देखिए किसी राज मिस्त्री को निर्माण का कार्य करते हुए एक-एक ईंट को नज़र से गुजारता है कहाँ पर पूरी ईंट लगेगी कहाँ पर आधी, कहाँ पर टुकड़ा और अंतत: शानदार इमारत तैयार कर देता है। शिक्षक को भी बच्चे में यही सम्भावना देखनी चाहिए। अपनी सम्भावना परखने के लिए जुड़ना होगा एक-एक बच्चे से, पढ़ना होगा हर बच्चे का मन, जानने होंगे उसके अन्दर छिपे गुण।
अपार सम्भावनाएँ छिपी हैं प्रत्येक बच्चे में कोई बहुत अच्छा बोल लेता है, कोई लिख लेता है, कोई कलाकारी कर लेता है, कोई खेलकूद में प्रवीण हो सकता है, किसी में कक्षा अनुशासित करने का गुण हो सकता है।
आवश्यकता है तो बस एक नज़र डालने की, निरखने की, परखने की और कौन-सा गुण उभारना है तथा कौन-सा कुछ दबाना है यह तो एक शिक्षक की पारखी नज़र ही जान सकती है।
बच्चों की जो विशेषताएँ माता-पिता नहीं जान पाते वह एक शिक्षक जान लेता है। तभी तो शिक्षक को भविष्य निर्माता कहा जाता है और भगवान से भी ऊंचा स्थान दिया जाता है। हम इन नन्हें हाथों को थामकर उनकी ही दुनिया में रहकर उनको उनकी रुचियों, खुशियों को पहचानकर उन्हें तराशते रहे। इन नन्हीं आंखों के बसे सपनों को आख़िर एक शिक्षक ही तराश सकता है क्योंकि इन मासूमों में अपार संभावनाएँ हैं।
ममता शुक्ला
शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश
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