दिल और भावनाएँ (heart and feelings)
दिल और भावनाएँ (heart and feelings) : एक बार एक गाँव में एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। परिवार के लोग आपस में बहुत खुश रहते थे। माता-पिता भी जैसे-कैसे अपने घर की थोड़ी-थोड़ी सुविधाएँ ज़ुटा कर खुश रहते थे। बच्चों को भी अच्छे संस्कार देते व उनको सारी खुशियाँ देने की कोशिश करते। जब बच्चे बड़े हुए तो उन्होंने सोचा कि माँ-पापा हमारी हर ख़ुशी का कितना ध्यान रखते हैं … हमें भी अपने मम्मी-पापा जी को कुछ ख़ुशी देनी चाहिए।
सब बच्चों ने मिलकर मम्मी-पापा की शादी की सालगिरह पर मम्मी-पापा के लिये उपहार लाने की सोची। सब बच्चों ने अपनी जेब ख़र्च में मिले रूपये इकट्ठे किए और उनके लिये नए कपड़े लाये। बड़े बेटे का विवाह हो चुका था। वह भी अब कमाने लगा था। बड़ी बहू भी अब उस परिवार में शामिल थी। बच्चों ने अपने माता-पिता के साथ घर में ही सादे रूप में मम्मी-पापा की शादी की सालगिरह मनाई। माता-पिता को भी अच्छा लगा कि उनके बच्चों ने उनको ख़ुशी देने के लिए ये सब किया। पर इस बात की ख़बर जाने कैसे फैल गई।
समय बीता एक दिन बच्चों की बुआ जी अपने भैया-भाभी से मिलने आई और अपने भैया-भाभी से मिली, कुशल मंगल जान लेने के बाद अपने भैया से कहने लगी कि भैया …मैंने सुना है कि आपने अपनी शादी की सालगिरह मनाई, इस (५०-५५) की उम्र में आपको सालगिरह मनाते शर्म नहीं आई …हम तो शर्म से ड़ूब मरे हैं … हम तो अपने शहर में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे …एक भाई ने अपनी छोटी बहन की बातें बड़े आराम से सुनी और कहा कि बच्चों ने हमें बताए बिना ही हमारी सालगिरह मनाई …तो आप मना कर देते … बच्चों की ख़ुशी थी, वो हमें ख़ुशी देना चाहते थे।
उस समय भाई ने सब बातें सुनी और बहन की बातों को मन से नहीं लगाया। लेकिन कहते हैं कि समय ख़ुद को दोहराता है। बहुत समय बीत जाने के बाद फिर वह दिन आया। जब कुछ बच्चों ने अपने माता-पिता को ख़ुशी देने की इच्छा से कुछ करना चाहा। वही इच्छा, वही भावना, वही अहसास थे। लेकिन पात्र बदल चुके थे। बच्चे अमीर घराने के थे। और जिनकी सालगिरह मनाई जा रही थी, वह वही मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों की बुआ थी।
उन बच्चों को भी पता लगा… बुआ जी भी उम्र के उसी पड़ाव पर थे, जिस पड़ाव पर कभी उनके माता-पिता थे। बच्चों को याद आया कि कैसे उनके माता-पिता की ख़ुशी के समय (बुआ ने) उन्होंने अपने बड़े भैया-भाभी को ख़ूब खरी-खोटी सुनाई, कितना नीचा दिखाया। बच्चों का दिल दुख रहा था, लेकिन बुआ की ख़ुशी को देखकर नहीं।
बल्कि ये सोचकर कि आज बुआ शर्म से क्यों ना ड़ूब मरी, आज किस मुंह से पूरे शहर के सामने अपनी सूरत दिखा पा रही है। क्या उनके बच्चों के द्वारा उनको ख़ुशी देना पुण्य का काम हो गया। तो मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों का अपने माता-पिता को ख़ुशी देना पाप कैसे हो गया।
क्या अमीर घर में पैदा होने से वहाँ की ख़ुशी पुण्य … और गरीब के घर में उसी ख़ुशी को मनाना पाप… क्या दिल की भावनाओं में, इच्छाओं में अंतर होता है… हाँ… दिल में अगर लालच या फ़रेब हो तो शायद भावनाएँ अलग हो सकती हैं। लेकिन दिल में अगर सच्चा प्यार है। तो भावनाएँ सबकी एक जैसी ही होंगी।
वह है ख़ुशी देना, प्यार देना … ज़रूरी नहीं की शीश महल में रहने वाले ही खुशियाँ मनाने का हक़ रखते हैं… तिनके के घरोंदों में रहने वालों को भी ख़ुशी मनाने महसूस करने का हक़ है।
इसलिये कभी भी किसी की खुशियों को छीनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। अगर हम किसी को ख़ुशी दे नहीं सकते, तो दुख भी नहीं देना चाहिए।
नीरू मैहता वीणा कँचन
कैथल, हरियाणा
यह भी पढ़ें-
१- प्यार के फूल
२- फेरीवाला
1 thought on “दिल और भावनाएँ (heart and feelings)”