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गौरवशाली बिहार (Glorious Bihar)
गौरवशाली बिहार (Glorious Bihar): मिथिला के पहचान बिहार के,
हम भारत के रखवाले हैं।
विद्यापति के काव्य ध्वनि हम,
कुंवर सिंह के भाले हैं।
गौरवशाली बिहार की गाथा,
आज इतिहास सुनाती है।
चक्रवर्ती अशोक की शौर्य,
कण कण में बिहार गाती है।
दिनकर की इतिहास संजोए,
अविरल गंगा धार है।
वीर कहानी तिलका की,
गा रही इतिहास है।
धन्य धन्य बलिहारी हूँ,
क्योंकि मैं बिहारी हूँ।
विक्रमशिला और नालंदा की,
पदचिन्ह और पुजारी हूँ।
कहें निकेश हे माँ मिथले,
कोटि-कोटि है नमन तुझे।
अगले जन्म में भी देना,
गौरवशाली बिहार मुझे।
जब साथी ही नासूर हुए
नयनों से अविरल नीर चली,
दिल आह कर अकुला उठी।
सपने सारे चूर हुए,
जब साथी ही नासूर हुए।
अंतर्मन की इस द्वंद्व में,
जब युद्ध मैं हार गया।
मेरी कान्हा की क्या मजबूरी,
जो सुदामा को ही भूल गया।
मित्र मित्र की शक्ति है,
मित्र मित्र की भक्ति है।
मित्र है वह अनमोल रतन,
जो दें दुनिया को टक्कर।
दुर्योधन की कर्ण कहाँ है,
कहाँ है कृष्ण की सुदामा।
हे राम तेरा निषाद कहाँ है,
कहाँ है मेरा अलवेला।
जब अपने सारे छोड़ चले,
जब संकट में घिर जाओगे।
तब मित्र ही ऐसा नाता है,
जहाँ खोजों वहाँ पाओगे।
कहें निकेश निभाएंगे,
मित्रता की अनमोल रीत।
रुपेश निकेश की यह जोड़ी,
अमर रहे जग में यह प्रीत।
राष्ट्रघात
गांडीव कहाँ है और गदा,
कहाँ है, अर्जुन भीम भला।
भारत माँ की ज़ुबान कटी है,
फिर भी हैं, हम मौन खड़ा।
हे चन्द्रगुप्त अब जाग जरा,
युद्ध घड़ी है, आन पड़ा।
शिक्षा नीति के नाम पर,
हो रहा अन्याय बड़ा।
हे भीम तेरी संविधान का,
होता है, नित दिन अपमान।
राज्यभाषा अधिनियम भी,
करती अंग्रेज़ी को प्रणाम।
शिक्षा नीति उन्नीस आज
बनी एक ऐसा तलवार।
जिसके एक प्रहार से,
कट गई भारत की जुबान।
हे गंगा लौटा दे चन्द्रगुप्त को,
लौटा दे यमुना तुम चौहान।
हिन्दी के हित युद्ध लड़ेंगे,
करो क्रांति का जयनाद।
राष्ट्रवाद की नारा देकर,
सिंहासन पर तुम आये।
लज्जा नहीं तनिक भी तुमको,
राष्ट्रघात कर तुम दिखलाए।
कहे निकेश गांडीव उठाओ,
हे नव युग के अर्जुन वीर।
अब खड़ा क्या देख रहें हो,
बढ़ाओ क़दम चलाओ तीर।
मां भारती
जागो हे माँ भारती,
देखो एक नेता उठा है।
नव भारत के निर्माण में,
देख तेरा बेटा उठा है।
अदम्य साहस लिए अपार,
भुजाओं में शक्ति के ढाल।
मस्तक पर चमके चंद्र भाल,
वहीं है भारत का रखवाल।
डूब रही है संस्कृति हमारी,
डूब रहा है सकल विचार।
जागो हे नव युग के नेता,
डूब रही भारत मजधार।
भारत की शान बचाने को,
हिन्दी को पुनः सजाने को।
हर युवा आज नेता बनेगा,
भारत का प्रनेता बनेगा।
कहे निकेश देखो माँ भारती,
अब दिन वह दुर नहीं।
जब होगा सकल हिन्द आंदोलित,
तब होगें हम मजबूर नहीं।
क्रंदन में हुंकार दें
क्रंदन में हुंकार दें मां,
अधरो में झंकार दे।
हे सात स्वरों की देवी तु,
हमें अमोल वरदान दे।
न मांगू मैं धन और दौलत,
न चांदी न सोना।
जन गण मन की पीड़ा गाऊ,
बस यही वर हमें देना।
हे माँ वस यहीं साहस भर दो,
सत्य को सत्य कहने की।
दरवारों में कभी न बिके,
मेरी लेखनी धरम की।
जब भी संकट में आयेगा,
जन्मभूमि यह मेरा।
कभी न मैला होने दूंगा,
हे माँ आंचल तेरा।
मुर्ख निकेश वर मांग रहा,
जन गण की पीड़ा गाने की।
धन दौलत को छोड़ चला,
वस राष्ट्र प्रेम में जीने की।
भारत गाथा
जिस भारत के ज्ञान निधि में,
सकल विश्व नहलाता है।
खड़ी नालंदा बता रही है,
सकल विश्व ललचाता था।
जिसके आगे मैक्समूलर भी,
माँ कह न फूल समाता था।
इतिसांग भी जिसके गुण को,
गाते ही थक जाता था।
जब जगत में फैला था,
तिमिर का व्यापक सम्राज्य।
तभी लिखकर छोड़ा भारत,
पावक का अनुपम इतिहास।
पढ़ना लिखना कोई न जाने,
सकल विश्व में कौन सिखावें।
छः शास्त्र नव ग्रन्थ के ज्ञाता,
सकल विश्व भारत को मानें।
कहे निकेश भारत की गाथा,
सकल विश्व में भाग्य विधाता।
देकर सकल विश्व को ज्ञान,
आज बनीं है स्वयं अंजान।
अब तो मौन तोड़ जरा
हनुमान-सी शक्ति पाकर,
क्यो बैठें हो देह छुपाकर।
बनके दिखा क्रांति की ज्वाला,
अब तो मौन तोड़ जरा।
राजभाषा तो बना दिया,
सन् तिरसठ से काग़ज़ में लिखा।
अपनी महत्त्वाकांक्षा के कारण,
घोट दिया हिन्दी की गला।
हर पत्राचार यहाँ होती है,
अंग्रेज़ी से बहु भांति लेंस।
मौन खड़ी है जननी हिंदी,
लिए अपार कष्ट क्लेश।
क्या कहुं अब क्या छिपाऊँ,
भारत की पतन गाथा शेष।
स्वदेश की छवि कहाँ अब,
चहुं दिश मानों है विदेश।
अब जामबंत हमें बनना है,
हिन्दी के शरण में चलना है।
सोयी हुई सिंहनी हिन्दी को,
अब जगा के रहना है।
झूम रहीं है सृष्टि सारी
झूम रहीं है सृष्टि सारी,
पवन सुमन बिखेर रही।
नववर्ष के स्वागत में,
मेरी लेखनी झूम रही।
उदयाचल में चलों सूर्य,
अब नयी सवेरा आयी है।
अभिनन्दन है भारत माँ की,
सृष्टि भी रंग लायी है।
नये नये पकवानों के संग,
नया साल मनाएंगे।
मित्रो के संग घुम घुमकर,
हलुआ पुरी खाएंगे।
कहे निकेश सुनो रे मित्रों,
नया साल की नयी बधाई।
हंसते गाते गुजरेंगे।
नया साल की नयी कहानी।
अभिलाषा
अभिलाषा है मेरे मन में,
तिरंगा का लिवास हो।
देश प्रेम में डूबे रहे मन,
दिल हिन्दुस्तान हो।
जब भी निकले अर्थी मेरी,
भारत माँ की गलियों में।
तन पर कुछ भी हो न हो,
लेकिन कफ़न तिरंगा हो।
जब भी मुंह खोलू तो बोलूं,
वन्देमातरम वन्देमातरम।
जब भी लिखे मेरी लेखनी,
वन्देमातरम वन्देमातरम।
कहें निकेश यही अभिलाषा मेरी,
तन मन कि यही आशा मेरी।
जब गुंजे एक ही नारा,
वन्देमातरम वन्देमातरम।
पुलवामा हमला
रक्तो की अभिषेक देख,
धरती अम्बर कांप उठा।
हिन्द सागर की लहरें भी,
क्रोधित हो तिलमिला उठा।
ये कैसी मजबूरी है,
अपनों से रक्तो की होली है।
तिरंगा से लिपट-लिपट कर,
नित दिन उठती डोली है।
चौबालीस वीर सपूतों की,
कुर्बानी आज ललकार रहीं।
पुत्र मोह में शस्त्र त्यागें,
द्रोण को धिक्कार रहीं।
आतंकी आदिल के नेतृत्व में,
जैस ए मुहम्मद की थी चाल।
खुदा नहीं बक्सेगा तुमको,
नापाक दिल ए हैमान।
कहें निकेश नहीं होने देंगे,
शहीदों की शहादत बदनाम।
शरहद पर हम कूच करेंगे,
कर देंगे तुम्हारा काम तमाम।
मातृभूमि
अमृत सम जिसके रज में,
लोट पोट कर बड़े हुए हैं।
जिसकी आंचल में बीता था,
हर्षयुक्त अतिसुखद बालापन मेरा।
ऐसी पावन मातृभूमि को,
बारम्बार हो नमन मेरा।
जिसकी गोद में सोऊँ जब मैं,
परमानंद सम अनुभव हो।
अति प्रसन्न रहें मन मेरा,
अलौकिक सुख का अनुभव हो।
प्रकृति से भरा जिसका आंचल,
गंगा यमुना की पहचान हो।
विदेशी खिलौना मन नहीं भावे,
बस प्रकृति से ही प्यार हो।
हे नाथ! एक विनती मुझसे,
पूरन हो अभिलाषा मेरा।
जब भी मरूं तो तेरे गोद में,
हे मातृभूमि! बस यही इच्छा मेरा।
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र
रक्तो की इन होली में,
गुंडों की इन टोली में।
थर थर कांप रही जनतंत्र,
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
गांधी को गाली मिलती है,
गुंडों को ताली मिलती है।
नष्ट भ्रष्ट सरकारी तंत्र,
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
लुट हत्या होती नित दिन,
गरीबों की घर रोती है।
मौन खड़ा है नौकर तंत्र,
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
धर्मों के नाम पर देखो,
दंगा नित दिन होती है।
मानों हम सब हैं परतंत्र,
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
कहे निकेश जल रही है,
स्वार्थ में हमारा देश।
राग आलापे झूठा मंत्र,
अनुशासन मांग रहा गणतंत्र।
कैसा हो मेरा स्वदेश
समवेत स्वरों में दो संदेश,
कैसा हो मेरा स्वदेश।
सकल विश्व में ध्वज लहराऐ,
भारत की यश कीर्ति गाएँ।
मिटे, भव, भय, तम, रोग क्लेश,
ऐसा हो मेरा स्वदेश।
सकल विश्व में नेता बनकर,
उभरे विश्व प्रनेता बनकर।
कण कण में बसे गीता संदेश,
ऐसा हों मेरा स्वदेश।
हर पुत्र में राम बसे,
हर पिता में दशरथ लखे।
मानवता का हो राज्याभिषेक,
ऐसा हों मेरा स्वदेश।
स्वदेशी बनने की इच्छा,
आज निकेश फैलाएगा।
हर युवा में भारत माँ की,
स्वर्ण छवि दिखलाएगा।
निकेश सिंह निक्की
समस्तीपुर बिहार
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