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भूली बिसरी यादें (forgotten memories)
भूली बिसरी यादें (forgotten memories) : सूरज की किरणों की ऊर्जा के साथ वह शब्द, “बेटा उठ जाओ अब सुबह होन को आई” एक अलग ऊर्जा का निर्माण करती थी। वह माँ के हाथ का भोजन खाने के बाद मानो ऐसा लगता जैसे अमृत से अमरत्व चुरा कर किसी ने भोजन में परोश दिया हो। आशीर्वाद भरे हाथो से तैयार होने के बाद विद्यालय जाने पर लगता था जैसे मेरी सुंदरता से सूरज की किरणे लज्जा खा रही हों।
विद्यालय में यारो के साथ पठान क्रम में गप्पे लगड़ाना ईन खुशियों को और बढ़ा देती थी। और तभी अध्यापक जी की नज़र हमपे पड़ती और वह हमें भरी कक्षा के सामने कई दंड देते थे। पर उस दंड को हम प्रोत्साहन के तौर पर ग्रहण करते और अपनी हरकतों से बाज नहीं आते।
और जब भी कोई क्रियाकलाप विद्यालय में होता तो मैं और मेरा मित्र आदि (पुस्पेंद्रा) उसमे प्रथम और द्वितीय स्थान लाकर। प्रधानाचार्य और अध्यापक जी को ऐसा एहसास कराते मानो समुद्र मंथन के बाद अमृत की प्राप्ति हो गई हो।
आधे दिन में विद्यालय से घर भागने पर ऐसा लगता था। जैसे शरद से बहुत बड़ी जंग जीत कर आ रहे है। घर आकर दोस्तो के साथ कंचे खेलना कबड्डी, छिपंछिपाई और गिल्ली डंडा खेलने में जो सुकून मिलता था। मानो दुनियाँ में हमारे लिए कोई दुःख बनी ही नहीं।
रात होते ही दादी की कहानी के बाद माँ की नवजीवन दायक भोजन करने के बाद। नींद ना आने पर माँ के मुख से निकलती मधुर वाणी जब कानों में जाती तो पूरे दिन की दुःख और दर्द भूल कर सो जाना। किसी स्वर्ग के शुख से कम नहीं लगता था।
तेवाहरो में नए कपड़े मिलने पर ऐसा लगता जैसे पूरी दुनिया को दिखा दूं कि मेरे जैसे कपड़े किसी के पास नहीं। हर मौसम में फसलों से दोस्ती करना दूसरे के खेतों से चने और मटर चुरा कर दोस्तो के साथ खाना में एक अलग ही ख़ुशी मिलती थी। छुट्टियों में रिश्तेदारों के घर जाने पर मेरी हरकते ऐसी हो जाती जैसे कोई पंछी अभी-अभी पिंजरे से आजाद हुआ हो और कहीं छुट्टियों में नानी के घर चला जाता तो मेरी आजादी को चार चांद लग जाते। ऐसे बीते मेरे पल ऐसा था मेरा गुजरा हुआ कल॥
सोनू कुमार पाण्डेय
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