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तुम ख़ुद प्रकाश पुंज बनो – be yourself a beam of light
तुम ख़ुद प्रकाश पुंज (beam of light) बनो
किसी चमत्कार की आस छोड़,
अपना दीपक स्वयं बनो।
पराये उजाले की चाह छोड़,
तुम ख़ुद प्रकाश पूँज बनो।
जो कुछ भी आपके पास है,
उसमें ही जीवन संतोष धरो।
दूसरो से ईर्ष्या कर-कर के,
मन को ना अशांत करो।
घृणा से घृणा ख़त्म ना होगी,
प्रेम से उसे पटाने का यत्न करो।
शांत मन से सब मुश्किलें हल होगी,
झूठ को सत्य से मिटाने का जतन करो।
इस दुनिया में इतना अंधकार नहीं,
जो दीपक के प्रकाश को मिटा सके।
प्राकृतिक सत्य से कोई असंभव नहीं,
हजारों योद्धाओं पर विजय पा सके।
जूनून जैसी कोई आग नहीं,
नफरत के दरिंदों को नेस्तनाबुद करो।
मूर्खता जैसा कोई जाल नहीं,
लालच की धार को ध्वस्त ख़ुद करो।
चाहे किसी महापुरुष की बात हो,
अंर्तमन से उनका आभास करो।
पहले जानो फिर मानो जो भी बात हो,
खुद आजमाओ, फिर विश्वास करो।
सत्य अहिंसा करूणा अपनाकर,
पंचशील को आत्मसात करो।
मानव मानव को समान समझकर,
दंभ ईर्ष्या अभिमान को परास्त करो।
तुम बुद्ध की शरण लेकर,
दुःख के कारणों पर ध्यान करो।
अष्टांगिक मार्ग पर चलकर,
उचित राह की पहचान करो।
किसी चमत्कार की आस छोड़,
अपना दीपक स्वयं बनो।
पराये उजाले की चाह छोड़,
तुम ख़ुद प्रकाश पुंज (beam of light) बनो।
सुबह शाम थोड़ा-सा हो जाये योग
तन और मन ताज़गी महसूस करने लगे,
थकान सुमंतर होकर उत्साह बढ़ने लगे।
दिन-भर में से कुछ समय आए उपयोग,
सुबह-शाम थोड़ा-सा हो जाये योग।
भागमभाग की ज़िन्दगी में लड़खड़ाती है दौड़,
खान-पान और आलस का बनावटी है दौर।
अपने अन्तःकरण को बहुत बनाए नीरोग,
सुबह-शाम थोड़ा-सा हो जाये योग।
मन के बे-लगाम होने की हो आशंका,
प्राणायाम मिटा दे संचय जो मन का।
योग को हथियार बना लो, भाग जाये रोग,
सुबह-शाम थोड़ा-सा हो जाये योग।
ऋषि-मुनियों ने हमें शान्ति का संदेश दिया,
योग जप तप त्याग का उपदेश दिया।
शुद्धिकरण तन-मन का हो जाये बे-रोक,
सुबह-शाम थोड़ा-सा हो जाये योग।
पिता एक उम्मीद है
पिता की गोदी में सुख का सागर बसा है,
उसकी झोली में प्यार का भरपूर नशा है।
हर बाधा को मिटाती ख़ुशी है परेशान की,
पिता एक उम्मीद है, दिल के अरमान की।
पिता ख़ुद गिर अपनों को ऊपर उठाता है,
स्वयं छोटा बन अपनों को अमीर बनाता है।
फलिभूत हर सफल कहानी है वरदान की,
पिता एक उम्मीद है, बुलंदी के परवान की।
पिता परिवार की नैया को पार लगाता है,
उजड़ी हसरतों में वह सुमन खिलाता है।
सदा चाहत रखता बेटा-बेटी के महान की,
पिता एक उम्मीद है, सफलता के उड़ान की।
पिता फटे हाल रहकर, समर्पण करता है,
अपनों की शिद्दत में कई बार भूख मरता है।
उसकी कल्पनाओं में ऊँचाई है आसमान की,
पिता एक उम्मीद है, मंज़िल के पहचान की।
पिता संतानों की हर मुसीबत को हरता है,
मायूस मन को मुस्का दे हिम्मत भरता है।
वह द्वार खोलती चाबी है हर व्यवधान की,
पिता एक उम्मीद है, शंका के समाधान की।
पिता अपनी इच्छाओं को दमित करता है,
तप त्याग से औरों को सिंचित करता है।
अंतिम चाहत उसकी, ख़ुशी हर संतान की,
पिता एक उम्मीद है, सुनेपन में जहान की।
इंसान अब सुधर जाओ
तुम एक इंसान बनके रहो,
सहज राह पर चलते रहो।
मेरे स्वरूप को ना ध्वस्त करो,
तुम कृत्रिमता से मुझे ना पस्त करो।
पहाड़ जैसी ऊँचाई पाने में गिर जाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
लालच में ना अंधे बना करो,
मौज शौक में ना उजाड़ करो।
हरे पेड़ काटकर घर ना आबाद करो,
पशु-पक्षियों के आशियाने ना बर्बाद करो।
कहीं बाढ़ कहीं सूखा कहीं तूफानी कहर पाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
वन नदी नाले पहाड़ ना मिटाओ,
ऊँची-ऊँची इमारतें क्यों बनाओ?
अपनी उग्र इच्छाओं पर लगाम धरो,
अधिक की चाहत में ना विनाश करो।
कभी भूकम्प के आगोश में तुम बिखर जाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
अब ऋतुएँ समय-चक्र खो रही,
सावन सूखा सर्दी में बरसात हो रही।
वातावरण में ना विष घोला करो,
ग्रीन हाउस के द्वार ना खोला करो।
दम घोटू सारी स्किमों पर तुम लगाम लगाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
अपनी ताकत को पहचान लो,
कुदरत का कभी ना इम्तिहान लो।
ख्वाबों से तुम खुदा ना बन पाओगे,
आपदाओं के दौर में मिट जाओगे।
भयावह हालात के लिए मुझे ना तुम उकसाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
यह पर्यावरण तब ही बचेगा
जब घर आँगन में पेड़ लगेगा।
धरती का शृंगार सब मिल करो,
ओजोन की विरलता के घाव भरो।
अनहोनी आफ़तों से पहले संभल जाओ,
प्रकृति कहे प्रेम से, इंसान अब सुधर जाओ।
कागज़ के फूल
खिल जाना फिर मुरझाना, फूलों की जिंदगानी
महक भरी हो खुशबू, तब खिलखिलाती जवानी।
सच्चाई छुप सकती नहीं, बनावटी उसूलों से
खुशबू आ सकती नहीं, कागज़ के फूलों से।
सदाबहार खिले हुए, बेज़ान रंग-बिरंगे फूल
कब खिलते हैं, रोज़ सवेरे कागज़ के फूल?
असलियत बन सकती नहीं, दिखावटी महलों से
खुशबू आ सकती नहीं, कागज़ के फूलों से।
कृत्रिम फूल घर की सुंदरता बढ़ाते हैं
पर ओस की बूँदों को सोख ना पाते हैं।
रसगुल्लों-सी मिठास आ सकती नहीं गुलगुलों से
खुशबू आ सकती नहीं, कागज़ के फूलों से।
चित्रित जो किताबों और कच्ची दीवारों पर
हसीन दृश्य लगते फ़िल्मी गलियारों पर।
मुस्कुराहट आ सकती नहीं, बनावटी महफिलों से
खुशबू आ सकती नहीं, कागज़ के फूलों से।
दिल की उमंगें जगा दे, प्यार के पुष्प ख़त में
कम ही दिखते हैं, कागज़ के फूल स्वागत में।
प्यास बुझ सकती नहीं, क्षणिक बुलबुलों से
खुशबू आ सकती नहीं, कागज़ के फूलों से।
जो नशो तू धणैरो करैला
जो नशो तू धणैरो करैला
तो हाल थारां बुरा व्हैला।
तंबाकू बीड़ी सिगरेट पिएला
तनड़ौ थारो रोगी व्हैला।
जो नशो तू …
दिन आथ्याँ ताहि कमावैला
नशो कर-र उड़ा देवैला।
घर मांय दाणों नि होवैला
टाबर थारां भूखां मरैला।
जो नशो …
नशे मांय तू धूत व्हैला
कहणो कुणही नि मानैला।
रोज मिनखां रि मार खावैला
घराली थारी सूख जावैला।
जो नशो …
बौल्याँ सूँ महा भारत वैला
ढंग रौ मिनख संग नि करैला।
सगलां ने तू सिंस्कार नि दैला
बेटा-र बेटी सूतां ही रेवैला।
जो नशो …
कर्जें रो थोंपर पाहड़ बणैला
रिस्ता सिगपण सगलां टुटैला।
तू मौंग-मौंग चीजों लावैला
गिंडक गलि रां दोलै वहैला।
जो नशो…
सिनान सपाटा कदैक करैला
गाभां थारां गिंधज मारैला।
आशा वां थारी मर जावैला
तरसणा आर राड़ मचावैला।
जो नशो तू घणैरो करैला
तो हाल थारां बुरा व्हैला।
कानाराम पारीक “कल्याण”
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