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अम्बेडकरवाद (ambedkarism) से खौफ खाता प्रशासन
अम्बेडकरवाद (ambedkarism) से खौफ खाता प्रशासन: सभी मूलनिवासी साथियो को जय भीम नीला सलाम
जहाँ रहना मुश्किल हो वह घर कैसा
डर डर के जीने पड़े वह डर कैसा
“आग”
मूलनिवासी समाज का ध्यान में उस अम्बेडकरवादी (ambedkarism) कर्मचारी या यूं कहें उस बाबा साहब के मिशन के सच्चे सपूत की ओर ले जाना चाहता हु जो निरन्तर प्रशासन के मनुवादी व्यवस्था के थपेड़े सहकर भी अपनी मुछो पर ताव देता नज़र आता है जिसने रुकना और झुकना सिखा ही नहीं प्रत्येक महीने में तीन से चार बार ट्रान्सफर होने के बावजूद उसकी अम्बेडकरवादी विचारधारा पर किंचित आंच नहीं आने दी।
मनुवादी तंत्र उसके संविधान के प्रति लगाव निष्ठा और समर्पण से इतना खोफ खा चुका है कि उसके केवल मात्र एक माह किसी स्थान पर टिक जाने मात्र से मनुवादी तंत्र को अपनी जड़े हिलती नज़र आती है सोसियल मीडिया पर उनकी लगातार सक्रियता और अन्याय के प्रति एक जुंजारु रूप प्रशासन के दलालों के नाक में नकेल के स्वरूप नज़र आता है।
यही कारण है कि एक कर्मचारी जो ईमानदारी सत्य और निष्ठा से अपना कर्तव्य निभाता है उसे मैडल न मिलकर केवल मात्र स्थानांतरण मिलता है वह भी ५, ६, १० नहीं अपितु प्रत्येक माह में ३ से ४ बार हम बात कर रहे है राजस्थान पोलिश कर्मचारी तेजकरण परिहार के बारे में।
निरंतर प्रत्येक महीने में स्थानांतरण की यह पहली घटना नहीं है अपितु समय-समय पर ईमानदार कर्तव्यनिष्ठ कर्मचारियों के साथ सदैव ऐसी घटनाएँ होती है आई है। परंतु इस समय सभी सीमाएँ तोड़कर आगे बढ़ चुकी हूँ हर माह में तीन से चार स्थानांतरण किसी एक कर्मचारी का करना संवैधानिक मूल्यों का हनन है इसमें प्रशासन की ओछी मानसिकता और कार्य न करने देने की भावना जग जाहिर होती है।
मैं संपूर्ण समाज राष्ट्र प्रेमी देशभक्त और भारतीय जनता से विनम्र निवेदन करता हूँ कि ऐसी मानसिकता के खिलाफ पुरजोर आवाज़ बुलंद करने की आवश्यकता है आज एक कर्मचारी के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो रहा है तो सोचने की बात है वतन ऐ भारत की मासूम आवाम के साथ प्रशासन कैसा व्यवहार करता होगा। इन बेलगाम प्रशासन के नाक में नकेल कसने का कार्य अगर कोई कर सकता है तो वह है भारत की जागरूक जनता भारत की आवाम जो लोकतंत्र को बचाने की जो सामाजिक लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों को बचाने की हिम्मत साहस और सामर्थ्य रखती हैं।
मैं सभी प्रकार की जाती, संगठनों और संप्रदाय से विनम्र निवेदन करता हूँ कि इस प्रकार के स्थानांतरण समाज में प्रशासनिक क्षेत्र में कतई जायज नहीं है किसी व्यक्ति विशेष को इस तरह प्रताड़ित करना या यूं कहें किसी व्यक्ति को अपने कार्य को करने के लिए बाधा उत्पन्न करना राष्ट्रहित के खिलाफ है समाज के खिलाफ है संविधान के खिलाफ है।
सभी मूलनिवासी संगठनों को सभी जातियों को सभी वर्गों को इसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करनी चाहिए आज आदरणीय तेजकरण परिहार जी के साथ इस प्रकार का व्यवहार हो रहा है कल आप और हम और हमारे आने वाली पीढ़ी इसी प्रकार की व्यवस्था के शिकार होगी हमें इसके खिलाफ एक उचित और सार्थक क़दम बढ़ाने की आवश्यकता है अन्यथा पूरे भारत को इसका बहुत ही भयानक नुक़सान झेलना पड़ सकता है जो समाज जो लोग जो व्यक्ति अपने आपकी बारी का इंतज़ार करते हैं वह सदैव चीटियों की भांति कुचले जाते हैं हम आग्रह करते हैं कि इसके खिलाफ सभी बुद्धिजीवियों, संगठनों को विचार करना चाहिए कि क्यों एक व्यक्ति के साथ इस प्रकार का व्यवहार किया जाता है।
इस प्रकार से स्थानांतरण पर स्थानांतरण किया जाता है क्या प्रशासन को एक व्यक्ति की विचारधारा से इतना ख़ौफ़ है किसको कार्य करने नहीं दिया जाता उसको किसी एक स्थान पर एक माह तक टिकने नहीं दिया जाता अगर अंबेडकरवादी होने मात्र से इतना ख़ौफ़ है तो संवैधानिक मूल्यों का कोई अर्थ नहीं रहता संविधान की रक्षा ही सत्य में अंबेडकरवाद हैं।
सभी से पुनः निवेदन करते हैं कि इस बिंदु पर गहनता से विचार करने की ज़रूरत है आशा करते हैं सभी साथी सभी बुद्धिजीवी समाज संगठन और देश के लोग इसके खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करेंगे इसी के साथ आपका साथी भरत कुमार आगलेचा आपको नीला सलाम जय भीम पेश करता है।
भरत कुमार आगलेचा
जिला पाली राजस्थान
मरुधर (मारवाड़)
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