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क्यों बिखर रहे हैं परिवार…! (Why are families disintegrating…!)
दोस्तों आज हम लेकर आये हैं एक और आलेख… जी हाँ… रिश्तों की वास्तविकता को दर्शाता आलेख… क्यों बिखर रहे हैं परिवार (Why are families disintegrating)…! और इस आलेख के लेखक हैं गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड, वर्ल्ड बुक ऑफ़ लन्दन, इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड आदि में शामिल जाने-माने साहित्यकार मनोज कुमार “मंजू”… तो चलिए पढ़ते हैं यह आलेख…
हम सभी जानते हैं कि शादी दो शरीरों का मिलन नहीं अपितु दो परिवारों का मिलन होता है… या यूँ कहूँ कि दो विचारधाराओं का मिलन होता है। परन्तु क्या हम सभी इस बात को मानते हैं…? किसी भी तथ्य को जानना एक अलग बात है… लेकिन उसको अपने जीवन में ढालना एक अलग बात है।
शादी से पहले न केवल लड़का लड़की की वल्कि दोनों ही परिवारों की एक दूसरे से कई अपेक्षाएँ होती हैं… कई सारे सपने होते हैं और जब अपेक्षाएँ पूरी नहीं होती… जब सपने बिखरने लगते हैं… तो टकराव पैदा होते हैं। रिश्ते बिखरने लगते हैं। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन क्या सभी रिश्तों के बिखरने का कारण मात्र यही है…? मेरे हिसाब से केवल ३० प्रतिशत रिश्ते इन्हीं बजहों से बिखर जाते हैं… फिर ७० प्रतिशत रिश्तों के बिखराव का कारण क्या है…? इसका कारण है, आपसी प्रतिद्वंदिता। तो प्रतिद्वंद्वी कौन हैं…? प्रतिद्वंद्वी हैं दोनों परिवार।
शादी के बाद जब लड़की दुल्हन बनकर नए घर आती है… तो लगभग ७० प्रतिशत घरों में उसका दिल से स्वागत होता है। सास-ससुर, पति, देवर, ननद सभी बड़े प्रसन्न होते हैं। जब दुल्हन को ससुराल में स्नेह और अपनापन मिलने लगता है, तो वह भी ख़ुद को सौभाग्यशाली समझती है। परन्तु जैसे ही वह अपने मायके वालों से अपने ससुराल वालों की प्रसंसा करने लगती है, बस… यहीं से शुरू होती है प्रतिद्वंदता।
मायके वालों को अपना अस्तित्व खतरे में दिखाई देने लगता है… उनको यह बात हजम नहीं होती कि उनकी अपनी लड़की उनके सामने किसी और की प्रसंसा करे। उनको लगता है कि उनकी लड़की के ससुराल वाले उनसे उनकी लड़की को छीनना चाहते हैं। वह अपनी लड़की पर हक़ जताने की कोशिश करते हैं, वह भूल जाते हैं कि उन्होंने स्वयं अपनी लड़की की जिम्मेदारी किसी और को सौंप दी है। अब उसका एक अलग परिवार है। एक खूबसूरत भविष्य है।
और फिर कशमकश शुरू होती है, अपने अस्तित्व को क़ायम रखने की… अपना हक़ जताने की। बात-बात पर लड़की के ससुरालीजनों में कमियाँ निकालना, उन्हें नीचा दिखाना… ये सब प्रपंच रचे जाते हैं। वर्चस्व की इस लड़ाई में वे यह भी भूल जाते हैं कि इससे उनकी लड़की का भविष्य संकट में पड़ने वाला है… उसका अपना घर वर्वाद हो सकता है। कितनी घिनौनी सोच है यह।
जब आप किसी और के घर में दखलंदाजी करेंगे, तो क्या वह आपसे खुश होगा…? नहीं… वल्कि दोनों परिवारों में दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। अपने ही हाथों अपनी संतान के हँसते खेलते जीवन में ज़हर घोल देना… ये कहाँ की समझदारी है। कितने ही रिश्ते लड़की के घर में अपना वर्चस्व क़ायम रखने की भेंट चढ़ गए। न जाने कितने घर इस घिनौनी सोच के कारण उजड़ गए। कब तक चलेगा ये सिलसिला…? कब बदलेगी ये सोच…?
मनोज कुमार “मंजू”
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