Table of Contents
मेरा हिन्दुस्तान (my hindustan)
my hindustan: हिन्दुस्तान में गॉंव है, गली है, चौबारा है।
इंडिया में सिटी है, मॉल है, पंचतारा है।
हिन्दुस्तान में घर है, चबूतरा है, दालान है।
इंडिया में फ़्लैट और मकान है।
हिन्दुस्तान में काका है, बाबा है, दादा है, दादी है।
इंडिया में अंकल आंटी की आबादी है।
हिन्दुस्तान में खजूर है, जामुन है, आम है।
इंडिया में मैगी, पिज्जा, माजा का नकली आम है।
हिन्दुस्तान में मटके है, दोने है, पत्तल है।
इंडिया में पोलिथीन, वाटर व वाईन की बोटल है।
हिन्दुस्तान में गाय है, गोबर है, कंडे है।
इंडिया में सेहतनाशी चिकन बिरयानी अंडे है।
हिन्दुस्तान में दूध है, दही है, लस्सी है।
इंडिया में खतरनाक विस्की, कोक, पेप्सी है।
हिन्दुस्तान में रसोई है, आँगन है, तुलसी है।
इंडिया में रूम है, कमोड की कुर्सी है।
हिन्दुस्तान में कथडी है, खटिया है, खर्राटे हैं।
इंडिया में बेड है, डनलप है और करवटें है।
हिन्दुस्तान में मंदिर है, मंडप है, पंडाल है।
इंडिया में पब है, डिस्को है, हॉल है।
हिन्दुस्तान में गीत है, संगीत है, रिदम है।
इंडिया में डान्स है, पॉप है।
हिन्दुस्तान में बुआ है, मौसी है, बहन है।
इंडिया में सब के सब कजन है।
हिन्दुस्तान में पीपल है, बरगद है, नीम है।
इंडिया में वाल पर पूरे सीन है।
हिन्दुस्तान में आदर है, प्रेम है, सत्कार है।
इंडिया में स्वार्थ, नफ़रत है, दुत्कार है।
हिन्दुस्तान में हजारों भाषा हैं, बोली है।
इंडिया में एक अंग्रेज़ी एक बडबोली है।
हिन्दुस्तान सीधा है, सहज है, सरल है।
इंडिया धूर्त है, चालाक है, कुटिल है।
हिन्दुस्तान में संतोष है, सुख है, चैन है।
इंडिया बदहवास, दुखी, बेचैन है।
क्योंकि …
हिन्दुस्तान को देवों ने, वीरों ने रचाया है।
इंडिया को लालची, अंग्रेजों ने बसाया है।
झूठे झगड़े आदर्श गाँव तिवरान हमारा
फिर क्यो होती है लड़ाई
आदर्श गाँव तिवरान में भाई
ना कारण कोई लड़ाई का,
ना कोई लड़ने वाला है।
जो फूल खिला है डाली पर,
वो तो झड़ने वाला है।
सबको यहाँ से जाना भैया,
किस लिए लड़ाई झगड़ा।
मैं और तू है झूठ दोस्तों,
झूठा इनका रगड़ा।
प्यास बुझा ना सके तुम्हारी,
जो सपने का प्याला है।
ना कारण कोई लड़ाई का,
ना कोई लड़ने वाला है।
झूठ बात है सारी जग की,
झूठी रिश्तेदारी है।
हक जता रहे हैं झूठा सब,
झूठे यहाँ अधिकारी हैं।
पकड़ यहाँ की मौत छुड़ा दे,
सब यहाँ छूटने वाला है।
ना कारण कोई लड़ाई का,
ना कोई लड़ने वाला है।
फिर क्यो होती है लड़ाई
आदर्श गाँव तिवरान में भाई
कौन तुम्हें है कहने वाला,
कौन हो तुम ये जानो।
जो छुपा हुआ दोनों के भीतर,
उस सच को पहचानो।
नाच रहा है कौन फूल में,
कौन देख रंग वाला है।
ना कारण कोई लड़ाई का,
ना कोई लड़ने वाला है।
फिर क्यो होती है लड़ाई
आदर्श गाँव तिवरान में भाई
दीपक तेरा सतगुरु चरणमें,
बिल्कुल सही ठिकाना है।
ना कारण कोई लड़ाई का,
ना कोई लड़ने वाला है।
फिर क्यो होती है लड़ाई
आदर्श गाँव तिवरान में भाई
गाँव की जनता चुप क्यो है
गाँव की जनता चुप क्यो है
हसी ठिठोली बहुत हुवा
अब गान्डिव-सी टंकार करो
या केशव के पाँचजन्य-सा
प्रलयी प्रचंड हुंकार करो
वोटो के लालच में देखो
प्रधानो के घोषणा कैसे
होते है गाँवों के चमचो की
फुलो की स्वागत होती है
कोई भी उठ कर आता है
उलुल जुलुल बक जाता है
गाँव-घर की मर्यादा संस्कृति
खत्म करने की बात कर जाते
गांव-घर का अपमान देख कर
फिर भी जनता चुप क्यो है
चमचे गुंडे अत्याचारी मवाली
जीभ काटने से क्यो डरते है
कहे दीपक अब गरजेगे
बनकर गांडिव की टंकार
छोडेगे नहीं अब उसको
जो गाँव-घर से करे खिलवाड़
गाँव पर गीत
आदर्श गाँव तिवरान हमारा
गाँव वालों मिलकर रहना
और नहीं कुछ तुमसे कहना
गाँव वालो मिलकर रहना। ।
हम सब एक ही माँ के हैं बेटे
एक ही माँ की गोद में हैं लेटे।
टूटे ना इस माँ का यह गहना
गाँव वालों मिलकर रहना। ।
जो भी यहाँ आतंक मचाए
उसको हम सब मार भगाएँ।
उस दुश्मन को अब छोड़ें ना
गाँव वालों मिलकर रहना। ।
कर्म, आदर्श और मानवता
हम सबके हैं प्राणों से प्यारे।
कोई भी इनको अब तोड़े ना
गाँव वालों मिलकर रहना। ।
चाचा, चाची, भाई, भतीजा
सब आपने हैं भाई-भाई।
अब आपस में झगड़ा हो ना
गाँव वालों मिलकर रहना। ।
कहो दिवाली कैसे आई
कहो दिवाली कैसे आई?
नेता जी को मस्ती छाई
रोजी से है रोटी गायब
सीपों से है मोती गायब
दीपों से है ज्योति गायब
कहो दिवाली कैसे आई?
घर में राशन नहीं किराना
वेतन का भी नहीं ठिकाना
रही उधारी अभी चुकाना
कहो दिवाली कैसे आई?
फसलों पर भी पड़ी गिरानी
सर के ऊपर बहता पानी
दीपक की तो यही कहानी
कहो दिवाली कैसे आई?
बेटी घर में हुई सयानी
शादी की है बात चलानी
बैंको की है किश्त पटानी
कहो दिवाली कैसे आई?
छुटकी की भी फ्राक फटी है
टूयशन फी भी नहीं पटी है
बस्ता क़लम किताब रटी है
कहो दिवाली कैसे आई?
पत्नी के हैं तेवर तीख़े
माइके से नहीं जो आई
लड़के भी हैं वैसा सीखे
खुशियाँ नहीं, केवल हैं चीखें
कहो दिवाली कैसे हो आई?
मम्मी जी को है लगी बीमारी
कहतीं मुझसे बारी बारी
दुआ दवा से मैं तो हारा
कहो दिवाली कैसे आई?
पिता जी तो साधु सन्यासी
चिलम चढ़ी तो आती खाँसी
हरदम जपते मथुरा काशी
कहो दिवाली कैसे आई?
बड़का भैया हुआ आवारा
चालीस में भी रहा कुंवारा
दिन में भी गिनता है तारा
कहो दिवाली कैसे आई?
रहा मित्र का हाल सुनाना
बात बात पर देता ताना
मांगू कुछ तो करे बहाना
कहो दिवाली कैसे आई?
आशाओं का धैर्य टूटता
हर कोई मुझे लूटता
धीरे से विश्वास पूछता
कहो दिवाली कैसे आई?
पड़ी दरारें सम्बंधो पर
शपथ लिये उन अनुबंधों पर
व्यथा कह दिया कुछ छंदों पर
कहो दिवाली कैसे आई?
भारत का नया गीत
आओ बच्चों तुम्हे दिखायें,
शैतानी शैतान की।
नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की…॥
बड़े-बड़े नेता शामिल हैं,
घोटालों की थाली में।
सूटकेश भर के चलते हैं,
अपने यहाँ दलाली में॥
देश-धर्म की नहीं है चिंता,
चिन्ता निज सन्तान की।
नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की…॥
चोर-लुटेरे भी अब देखो,
सांसद और विधायक हैं।
सुरा-सुन्दरी के प्रेमी ये,
सचमुच के खलनायक हैं॥
भिखमंगों में गिनती कर दी,
भारत देश महान की।
नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की…॥
जनता के आवंटित धन को,
आधा मंत्री खाते हैं।
बाकी में अफसर ठेकेदार,
मिलकर मौज उड़ाते हैं॥
लूट खसोट मचा रखी है,
सरकारी अनुदान की।
नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की…॥
थर्ड क्लास अफसर बन जाता,
फर्स्ट क्लास चपरासी है,
होशियार बच्चों के मन में,
छायी आज उदासी है॥
गंवार सारे मंत्री बन गये,
मेधावी आज खलासी है।
आओ बच्चों तुम्हें दिखायें,
शैतानी शैतान की…॥
नेताओं से बहुत दुखी है,
जनता हिन्दुस्तान की।
ग्राम प्रधान
देश प्रदेश में विपदा क्या आयी
ग्राम प्रधान हो गये माला, माल
गाल पिचक गये सब जनता के
ग्राम प्रधान उड़ा रहे है माल
करते धरते कुछ भी नहीं ये
बजा रहे है मुफ्त में गाल
कितना भारी हो चाहे तूफान
ग्राम प्रधान लगा रहे बातो के पाल
जब भी लगा महोदय को
खुलने वाली है उनकी पोल
लडाई, झगडे, फैला कर
बटौर रहे हैं अब वे बोट
करें बात विकास की
नियत में है उनकी झोल
जनता बीच में बजती है
प्रधान जी बनकर के ढोल
खुद के सिवाय कुछ नज़र न आता
पहन रखे है प्रधान जी एयसा खोल
बिना दिये ही सब दे देवे
प्रधान जी बोले एयसा बोल
करा के भ्रष्टाचार गाँव शहर में
करे है मस्ती पूरी रैन
बात कोई खुलन न पाये
लगा दिये है मुह पर बैन
सरक गया जब रात का घूंघट
सरक गया जब रात का घूंघट
चांद अचानक मुस्काया
मिल गई गरमी से राहत
जिसकी थी सबको चाहत
लो आ गई वर्षा ऋतु भाई
लेकर नयी सौगात है भाई
झूम उठे हरे पेड़-पौधे
भर गए हर कुवे-तालाब
खिल गए सबके चेहरे
जैसे खिलता कमल गुलाब
राहु-केतु दो भाई भाई
राहु-केतु दो भाई भाई।
किसने यह बात चलाई।
धोखा दग़ा इनकी फितरत।
सीधे कभी लड़े न लड़ाई।
गुरु है राहु केतु है बेटा।
दोनों की हो गई है सगाई।
जब देखो तब मुह बनाते।
भ्रष्टाचार, चोरी, है भाई,
एक है भाई दुसरा भतीजा
आज सुनाऊँ मैं तुम्हें,
ऐसे नारों की बात
ऐबो की ग़र बात करूँ
कट जाएगी सारी रात।
जरा-जरा-सी बात को लेकर
काट दें मानव की आंत।
ऐसे है ये दुष्ट निशाचार
मिली जिन्हें मानव की जात।
बनते है दोनों बड़े शरीफ
है एक राहू तो दूजा केतु
काम वही करते है दोंनो
होता है जिसमें कोई हेतु।
स्वार्थ सिद्ध खातिर वह दोनों
बना दे बातों से सागर में सेतु।
कब तक बाँधे रखोगे तुम
मिथ्या बातों के ख्याली सेतु।
था दोनों की नीयत में खोट
था एक धूर्त तो दस्यु एक।
एक नहीं दो चार नहीं
वो बुरे काम करते थे अनेक।
हड़प-हड़प कर दीन का पैसा
बने फिरे हैं आज वह नेक।
जान्च-परख ले उनके दिल को
मुफ्त में ना तू घुटने टेक।
ऊँगली दिखाने वाले का जो
हाथ दिया करते थे तोड़
लगा काम जब आज है उनका
हाथ वही अब रहे हैं जोड़।
एक ही पथ के दोनों राही
लगी आज इनमेंं है होड़।
भूल के भी इन्हें वोट न देना
दिशा जीवन की देंगे मोड़।
कोरोना काल औेर ससुराल
कोरोना काल में जब पहुँच गया ससुराल!
बहुत ही अजीब-सा था वहाँ का हाल!
घर की घंटी बजाते ही सास दौड़ी आई!
देख जमाई को आज, मजबूरी में मुसकाई!
बोली थोड़ी देर गेट पर आप ठहर जाओ!
वाश वेशन पर सैनिटाइजर से हाथ धो आओ!
पढे लिखे हो चेहरे पर मास्क नहीं लगाया?
घर पर ही रहना था किसी ने नहीं समझाया?
खैर आ ही गए हो तो दरवाजे पर जूते दो उतार!
पैर धोकर आ जाओ चाय रखी है तैयार!
मन में उठा क्रोध पर कुछ कह नहीं पाया!
लगा जैसे जमाई नही, कोई राक्षस ससुराल आया!
इज्जत तो सारी आज कोरोना ने हर ली!
बाकी की कसर सासू माँ ने पूरी कर ली!
फिर बेआबरू हो क़दम साली की ओर बढ़ाया!
वहाँ से भी नकारात्मक-सा उत्तर आया!
वो बोली सामाजिक दूरी को समझ नहीं पाये?
हमारे इतनी पास क्यूँ जीजाजी चले आऐ?
दूर से ही करती हूँ आज आपको नमस्ते!
छोटे साले ने भी दूर से हाथ हिलाया, हंसते हंसते!
फिर ससुर जी की मधुर आवाज़ दी सुनाई!
कवारंटाइन करना रे, बाहर से आया है जमाई!
चाय हाथ में थी, पर नहीं जा रही थी गटकी!
चाय ख़त्म होते ही, लगाना चाह रहा था घुडकी!
जो काम सरकार लोकडाउन में नहीं कर पाई!
ससुराल वालों ने एक ही दिन में थी समझाई
श्रमिक दिवस
श्रमिक दिवस, मजबूर दिवस
एक मई है श्रमिक दिवस, श्रमिक दिवस का मजबूर दिवस
श्रमिकों का सम्मान दिवस, मान मिले सम्मान मिले
एक मई है श्रमिक दिवस, श्रमिको का मंजूर दिवस
उधोग, फैक्ट्री, बगीचा चाहे, घर, गिट्टी, रेता ईंटा पत्थर ढोते
जिवन अपना दाव लगाते, श्रम करते संसार बनाते
एक मई है, श्रमिक दिवस, श्रमिक दिवस का मंजूर दिवस
मान मिले सम्मान मिले, एक मई मंजूर दिवस है
मजदूर, मजबुर, श्रमिक भाई के जिवन का कोई मोल न है
कड़ी, मेहनत, घन घोर, परिछा, मेहनत करके पसीना बहाते
पेट बच्चो, परिवार, का, भरते कभी ना हारें नीज जीवन से
एक मई है, श्रमिक दिवस, श्रमिक दिवस का मंजूर दिवस
एक मई है, श्रमिक दिवस, श्रमिक दिवस का मंजूर दिवस
महामारी हो करोना वायरस, अधिक श्रमिक, मारे जाते
मजदूर को कभी हिन ना मानो, झ्स जीवन को स्वर्ग बनाते
ममता का एहसास करते, जीवन को स्वाभिमान बनाते
समाज को नई दिशा, दिखाते है सच्चे मज़दूर! व कहलाते
ठंड, गर्मी चाहे बरसात, अपना काम लगन से करते हैं।
कर्म करो फल मिलता है, यही सोच कर रह जाते हैं
मेहनत और मजदूरी करते, काम कोई हो लगन से करते।
एक मई को श्रमिक दिवस है, काम तो उस दिन भी करते।
गांव शहर प्रदेश कहीं भी, काम कहीं जो मिल जाता है।
पत्नी बच्चों को घर में छोड़कर वहीं पर काम पर लगजाते
सदा करते मज़दूर परिश्रम हैं, मगर मजबूर कहलाते है
बड़े महल सबके बनाते हैं फिर भी महल से दूर रहते हैं।
ना कोई समझता दर्द है इनका, ये भूखे पेट रहते हैं,
एक मई है, श्रमिक दिवस,
श्रमिक दिवस का मंजूर दिवस इन्हें मज़दूर कहते
श्रद्धांजलि
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
अभी तो मैं बालक ही था
पैरो पर ना खड़ा हूँवा
तुम मुझे छोड़ के चले गये
क्या शीना क्या काठी था
थाम के उगली चलते थे
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
दोनो भाई मेरे बड़े उफानी
मै इनको कैसे समझाऊ
जिवन के अधियारो मे
बिछड़ गये बड़े पापा तुम हमसे
गाँव शहर विरान हो गया
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
अब नहीं लौट के आने वाले
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
कैसे ढाढस बधाऊ जीवन को
कंधे पर बैठ के घुमा कर्ता था
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
अभी तो मैं बालक ही था
रिस्ते नाते जोड़ा था
तोड के तुम चले गये
खाते है घर के सुना पन
आप के सब्दो को सुनता हू
मन में दुख की पीड़ा होती है
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
अभी तो मैं बालक ही था
हस हस के बाते करते थे
बड़े पापा तुम कहा चले गये
अभी तो मैं बालक ही था कितनी वे मनहूस घड़ी थी
गुम सुम घर में मौन खड़ी थी
अब नहीं होती बाते तुम से
बड़े पापा तुम कहा चले गये
अभी तो मैं बालक ही था
मुझे वे साम याद आती है
जब तुम घोड़े बनते थे
झूला मुझे झुलाते थे
बड़े पापा तुम आये तुम चले गये
अभी तो मैं बालक ही था
लाकडाऊन
जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा था
मानव की मानवता खुन के आशु मरते हमने देखा था
जमाती ने जो गुण खिलाये कोरोना का विस्तार हुवा
कोरोना ने जो ताड्व मचाया देश कोरोना का गुलाम हुवा
मानव की मानवता को हमने कफन के लिये रोता देखा था
मरघट के चबूतरा में पालीथीन लिपटे, मानव शरीर देखा था
हिन्द ह्रदय सम्राट की धरती साधू संतों की चित्कार सुनी
भिड़ तंत्र की मानवता में सन्तो का जो निर्मम अंत हुवा
मानव की मानवता में माँ हथिनी बेजुबान प्राणी तड़पते देखा था
माँ हथिनी गर्भवती निर्दयता से तड़पते बिलखते बारूद से मरते देखा था
जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा
स्वार्थ भाव में अपनों को अपनों के हाथों मरते देखा था
भाई को भाई के सफलता से चिढ़ते चिडाते हमने देखा था
चंद सब्दो में गोली चलती मरते लोगों को हमने देखा था
कोरोना महामारी में नेता जी ने जो गुण खिलाये थे
कुर्शी के दीवाने नेता जी उनपे हम कया भरोसा करते है
नेता जी ने धर्म जाती पर रार कर जो ज़हर फैलाये है
कोरोना का ना अंत हुवा दुगुना दिल्ली में विस्तार हुवा
करो भरोसा मिट्टी में एक दिन मिट्टी में मिल जाना है
जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा
श्रमिक को पैदल पीटते पीटाते भूख से मरते लाचार देखा
नेता जी को हंसी ठिठोली पीटते गोली चलाते हमने देखा
जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा
मानव की मानवता खुन के आशु मरते हमने देखा
अभिनन्दन
जय डाक्टर धरणीधर
सन् बयालीस की साल में,
देवभूमि प्रयाग में।
ता दिन लिए अवतार
धरणीधर महाराज।
महावीर के तनय प्यारे,
सुमित्रा माँ के आंखों के तारे।
प्रयागराज में ज्ञान लिए,
जन सेवा मन ठान लिएँ।
एम बी-बी एस की डिग्री पाई,
सन् साइठ के साल में।
तन मन समर्पित कर राष्ट्र को,
देश भक्ति दिखलाएँ।
कहें पंडित दीपक भारती हे धरणीधर,
जग विख्यात हैं तेरे कर्म है महान
मानव सेवा ही सदा, रहा
हे महामानव तेरा धर्म।
तुम देवो के अवतार
वैधराज जगपालक कहलाये
जन सेवा जन पालन हार
दुख में जिसने आप को पुकारा
सुख दायक पर पीड़ा हर्ते
आ समीप आप बिराजे
निद्रा तंद्रा भय के त्यागी
मनुज प्रेम जिवन अनुरागी
रह्ता बंद रोग का ताला
जब विपत्ति में लोग मिले
हस कर सबको गले लगाय
हे डाक्टर धरनीधर जगपालन हार
आप को कोटि-कोटि प्रणाम
अभिनंदन है
अभिनंदन है अभिनंदन है
(१) =हे कोरोना के सुर्बिर।
हे कोरोना के कर्मवीर
अभिनंदन है अभिनंदन है
काल करोना संकट जो छाया
त्राहिमाम उठते स्वर से जग थर्राया
धिरज धैर्य हिम्मत त्यागी बनके
जग को थामे कोरोना सुर्वीर योधा बनके
हे कोरोना के सुर्बिर
हे कोरोना के कर्मवीर
अभिनंदन है अभिनंदन है
(२) =हे पुलिस प्रसासन अधिकारी
कैद से न जाये कोई खाली
घर में रोक के रखे महाप्रयोजन
मौत के साये में मौत से युध
प्रतिभा की प्रतिमा में अडे हुवे
हे पुलिस प्रसासन अधिकारी
हे कोरोना के कर्मवीर
हे कोरोना के सुर्बिर
अभिनंदन है अभिनंदन है
(३) =हे चिकित्सक अधिकारी
बैधराज जन पालन हारी
निद्रा तंद्रा भय को त्यागे
सबसे बडे सुरछा कर्मी
कर्मयोगी हठ कर्मी बनके
सबको बचा स्वयं भी बचना
जब विप्तिया मानव पर आते
हस के विप्ती दूर भगाते
हे कोरोना के कर्मवीर
हे कोरोना के सुर्विर
अभिनंदन है अभिनंदन है
(४) =हे कोरोना के कर्मवीर
हे कोरोना के सुर्वीर
सिखा सिखर पर खड़े हुवे
दिन रात में अडे हुवे
खोज के भूखो को देना भोजन
स्वच्छ दूत सेवाकारी
चाहे निजी हो या सहकारी
सेवा भाव समर्पण का
मानव में मानवता जो दिखलाये
हे कोरोना के सुर्वीर
हे कोरोना के करमविर
अभिनंदन है अभिनंदन है
(५) = सारे रास्ते जब बंद हुवे
तुम मानव धर्म निभाये हो
सारे अधिकारी गण खड़े हुवे
सेवा भागी जन हितकारी हुवे
काल करोना संकट जो छाया
त्राहिमाम उठते स्वर से जग
थर्थर थर्राया वे समय है आया
विकट महामारी सब उठा रहे
जिम्मेदारी सारे सेवा कर्मी
जनसेवक का करते है।
अभिनंदन है अभीनंदन है
हे जगपालक
हे जगपालक आपको, बारम्बार प्रणाम।
सदा बनाए आपने, जग के बिगड़े काम॥
हे माता के राज दुलारे।
निज जीवन परहित में वारे।
तुमसे आलोकित जग सारा
तुम गरीब को दिए सहारा॥
हालातों से कभी न हारे।
दुनियाँ कह साहसी पुकारे॥
हे जननायक हे प्रतिपालक।
राजनीति के तुम संचालक॥
ज्ञान ज्योति की लिए पिपासा
संगम तट पर किए निवासा।
खपटीहा भी लगता पावन।
सैदाबाद लगे मनभावन॥
ब्राह्मण वंशी परम कुलीना
शुद्ध सात्विक जीवन जीना॥
रम्पा देवी पत्नी रूपा।
करती जीवन परम् अनूपा॥
मैहर काशी दर-दर भटके।
सारे कष्ट ज्ञान से गटके॥।
राम लखन के सुत मेधावी।
राज कुमारी के मनभावी॥
अल्पआयु में भाई खोए।
दुख से लड़े किंतु न रोए॥
तेंदूपत्ता दिया सहारा।
हर विपत्ति से किया उबारा॥
जगन्नाथ जी हुए सहाई।
बढ़ी तुम्हारी नित्य कमाई॥
बिजली शौचालय या नाली।
रहा न कोई सुख से खाली॥
तुम गरीब के पाँव पखारे।
देव् रूप मानव तन धारे॥
सबको भोजन सबको पानी।
जीवन में भर रहे रवानी॥
हम सब तुमको शीश झुकाते।
निशदिन गीत तुम्हारा गाते॥
सब कृपा दिखाओ स्वामी।
हे मानव में बहुआयामी॥
मदन तुम्हें नित पूजे देवा।
करता विश्व तुम्हारी सेवा॥
ख्यातिलब्ध हो नाम तुम्हारा।
पूजे तुम्हें सकल संसारा॥।
जनता करती एक पुकार
लौट आइए अब सरकार।
जन-जन का बस एक ही नारा।
बनिए विंध्याकांत सहारा॥
त्रस्त-त्रस्त है जनता सारी।
दूर करो इनकी लाचारी॥
तुमसे है करवद्ध निवेदन।
राष्ट्र प्रेम हित ले लो जीवन॥
तुमसे सुखी हुआ संसार
इतना दिया विश्व को प्यार।
पड़ा हुआ था जीवन सूना
तुमने किया प्रेम को दूना॥
नित्य प्रेम बरसाओ स्वामी
है जनार्दन अंतर्यामी।
कल जो रिस्ते जुड़ते थे आज ये रिस्ते टुटे है
हम राम बाबा की सन्ताने, हम आपस में क्यों लड़ते हैं?
है खून सभी का एक यहाँ, क्यों इसको नहीं समझते हैं?
टूट रहें हैं आज न जाने क्यों पागलपन के चक्कर में।
हो करके हम एक यहाँ क्यों नहीं प्रेम से रहते है?
हम राम बाबा की सन्ताने, हम आपस में क्यों लड़ते हैं?
कुछ चन्द धूर्त ताकतों ने हम पर डाला अपना डेरा है।
हम नहीं देखते सच को हैं छाया क्यों घना अँधेरा है?
क्या बुद्धि मर गई हम सबकी, जिससे करते परवाह नहीं।
हम सम्मोहित हो देख रहे, जैसे आया कोई सँपेरा है।
कुछ चन्द धूर्त ताकतों ने हम पर डाला अपना डेरा है।
अब भी वक़्त नहीं गुजरा और हुआ बहुत नुक़सान नहीं।
गर अब भी नहीं सम्भलते हैं तो जीना होगा आसान नहीं।
सुत सभी भारती माँ के हैं, कोई भेद नहीं करना हमको।
हमें गुलशन यह महकाना है, करना है सुनसान नहीं।
अब भी वक़्त नहीं गुजरा और हुआ बहुत नुक़सान नहीं।
नुकसान न होने पाये अब इसलिये बात यह कहते हैं।
प्यार बाँटने वालों का सम्मान नहीं क्यों करते हैं।
क्यों नहीं काटते वृक्ष घृणा के आपस की पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण गुटबन्दी हम करते है
मुरझाते प्रेम के पौधे को क्यों नहीं बचाया करते हैं। हम राम बाबा की सन्ताने, हम आपस में क्यों लड़ते
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया
कितना अजीब, मांगा ख़ूब रहम का भीख,
सामने थे दुष्टों के वंशज, क्रूर दानव पतित,
बिना गुनाह तीनों तड़प-तड़प कर मर गया,
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया,
हिन्दू ह्रदय सम्राट की पावन धरती पालघर,
पागल कुत्तों का झुंड थे बिल्कुल बेखौफ निडर,
अत्याचार की अनंत गाथा से मानवता सिहर गया,
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया,
लाठी डंडों से बुज़ुर्ग साधु संतो पर निर्मम वार,
अनसुनी रह गई उनकी हृदयविदारक चीत्कार,
कानून का रखवाला ही इज़्ज़त उसकी हर गया,
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया,
आम आदमी के जेहन में सिर्फ़ एक सवाल,
किन पापियों ने किया इंसानियत को कंगाल,
क्षत विक्षत शव सबको आतंकित कर गया,
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया,
हर भारतीय के दिल से आती सिर्फ़ एक आवाज,
क्रूरता का नंगा खेल खेलने वालों का हो सत्यानाश,
उपद्रवियों का उत्पात सोचने को विवश कर गया,
भीड़ तंत्र की निर्दयता से सारा देश डर गया
तिवारी होकर
तिवारी होकर के तिवारी का
हम सभी करे सम्मान
सभी तिवारी एक हमारे
मत उसका करो नुकसान
चाहे तिवारी कोई भी हो
मत उसका करो अपमान
जो ग़रीब हो अपना तिवारी
धन देके धनवान करो
हो गरीब तिवारी की बेटी
मिलकर कन्या दान करो
अगर तिवारी लड़े चुनाव
शत प्रति शत मतदान करो
हो बीमार कोई भी तिवारी
उसे रक्त का दान करो
बिन घर के कोई मिले तिवारी
उसका खड़ा मकान करो
केश अदालत में ग़र उसका
बिना फीस के काम करो
अगर तिवारी दिखता भूखा
भोजन का इंतज़ाम करो
अगर तिवारी की हो फायल
शीघ्र काम श्री मान करो
तिवारी की अटकी हो राशि
शीघ्र आप भुगतान करो
तिवारी को ग़र कोई सताये
उसकी आप पहिचान करो
अगर ज़रूरत हो तिवारी को
घर जाकर श्रमदान करो
अगर मुसीबत में हो तिवारी
फौरन मदद का काम करो
अगर तिवारी दिखे वस्त्र बिन
उसे वस्त्र का दान करो
अगर तिवारी दिखे उदास
खुश करने का काम करो
अगर तिवारी घर पर आये
तिलक लगा सम्मान करो
अगर फ़ोन पर बाते करते
पहले जय परशुराम करो
अपने से हो बड़ा तिवारी
उसको आप प्रणाम करो
हो गरीब तिवारी का बरूआ
उसकी मदद तमाम करो
बेटा हो गरीब का पढ़ता
कापी पुस्तक दान करो
ईशवर ने ग़र तुम्हें नवाजा नहीं आप अभिमान करो।
आओ ताल से ताल मिलाएँ
आओ ताल से ताल मिलाएँ,
गांव तिवरान को खुशहाल बनाएँ
गाँव घर में ज्योति जलाएँ,
खेत खलिहान में मोती बिखराएँ।
नफ़रत को दिल से भगाएँ,
प्रेम प्यार की बगिया लगाएँ।
राहों से चुनकर कांटे हटाएँ,
बदले में वहाँ फूल खिलाएँ।
आओ ताल से ताल मिलाएँ,
गाँव तिवरान को खुशहाल बनाएँ।
आओ ताल से ताल…………
परायापन को जड़ से मिटाएँ,
अपना पन से गाँव को सजाएँ।
सत्य अहिंसा मन में बसाएँ,
भाई भाई के उलझन सुलझाएँ।
गैरों को हम, अपना बनाएँ,
स्नेह महक से गाँव महकाएँ।
आओ ताल से ताल मिलाएँ,
गाँव तिवरान को खुशहाल बनाएँ।
आओ ताल से ताल……………
देशभक्ति की भावना जगाएँ,
समता एकता के बूटे लगाएँ।
इस गाँव को, आदर्श गाँव बनाएँ,
अनुराग की, बांसुरी बजाएँ।
खुशियों का, कलश छलकाएँ,
घर आंगन में सुधा बरसाएँ।
आओ ताल से ताल मिलाएँ,
गाँव तिवरान को खुशहाल बनाएँ।
आओ ताल से ताल…………
दीपक भारतीय तिवारी
यह भी पढ़ें-
२- धरोहर
6 thoughts on “मेरा हिन्दुस्तान (my hindustan)”