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महिला दिवस (Women’s Day) जिंदाबाद
Women’s Day: सालभर नारी पर
अत्याचार करते रहिए
जी भर कर उसका
दमन करते रहिए
फिर हर साल ८ मार्च को
अपना प्रेम प्रदर्शित कीजिए
फिर प्रेम से बोलिये
महिला दिवस जिंदाबाद
कभी कोख में मार डालिये
कभी दहेज के लिए जलाइए
कभी पहनावे के लिए डाँटीये
उसके हर इच्छा को मारिये
फिर हर साल ८ मार्च को
महिला दिवस मनाइए
और प्रेम से बोलिये
महिला दिवस जिंदाबाद
दाने-दाने के लिए वर्ष भर
माँ को ख़ूब तरसाइये
फिर मदर्स डे पर
खूब खिलाइए पिलाइये
और मदर्स डे मनाइए
माँ भी तो महिला है
तो फिर प्रेम से बोलिये
महिला दिवस जिंदाबाद
साल भर अंग्रेज़ी में
बकर-बकर करते रहिए
फिर १४ सितंबर को
हिंदी दिवस धूमधाम से मनाइए
भाषा भी तो नारी होती है
तो “दीनेश” फिर प्रेम से बोलिये
नारी दिवस जिंदाबाद
प्रेम की भाषा
गीता कुरान पंडित पठान
सब का यही है कहना
एक है सबका मालिक
जाने सकल जहान
हो दिनेशा जाने सकल जहान
मंदिर मस्जिद गिरजा
आबाद रहे गुरुद्वारा
आपस में मिलकर बढ़ाओ
प्रेम एकता भाईचारा
हो दिनेशा प्रेम एकता भाईचारा
राम रहीम तुलसी कबीर
नानक साईंनाथ महाराज
प्रेम की भाषा बोलिए
संकल्प लीजिए आज
हो दिनेशा संकल्प लीजिए आज
मल्लपुरम में गर्भवती हथिनी की हत्या पर
कोरोना तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद
तुम प्राणियों को मारने आए हो
जिसने मानवता को शर्मसार किया है
क्या तुम ऐसे दरिंदों को चुन-चुन कर मार सकते हो
जो मासूम जानवरों अनबोलते पशुओं पर अत्याचार करते हैं
पृथ्वी का सबसे खतरनाक प्राणी है ये मानव
कहने को तो अपने को सभ्य कहता है
पर इसके हरकतों से शर्म भी शर्मसार होती है
अपने स्वार्थ की खातिर ये दरिंदे कब तक
उन बेजुबान निरीह पशुओं की हत्या करेंगे
यदि वे / वह पकड़े भी जाते हैं / जाता है तो
अदालत तो मानव की ही है न
फैसला तो ज़्यादा कठोर होगा नहीं?
कोरोना तुम सारे विश्व में घूम रहे हो
प्रकृति से कहो कि ऐसा कहर बरपाए कि
ऐसे दरिंदे फिर मनुष्य योनि में जन्म लेना न चाहे
कोई बेजुबान जानवर बन कर ही जन्म ले
मनुष्यों के दोस्त होते हैं गजराज
पर इन स्वार्थियों के कारण घट रहे हैं आज
पिछले साल कहर ढाया था प्रकृति ने वहाँ पर
फिर भी समझ न आया दरिंदों को
बढ़ते रहे अत्याचार उन हाथियों पर
होते रहे जानवर उनके अत्याचारों के शिकार
उन्हें भी मुंह में पटाखा डालकर ही मारना चाहिए
सबसे ज़्यादा पढ़े लिखे हैं वहाँ पर
ऐसी साक्षरता से क्या लाभ
जो मानवता के नाम पर कलंक हो
फिर तो उससे अच्छा अनपढ़ समाज था
जो हमसे ज़्यादा समझदार था
क्या तुम ऐसा कर सकते हो कोरोना
प्रकृति माँ से बेजुबान माँ पर अत्याचार करने का
दंड दिलवा सकते हो तो, दंड दिलवा सकते हो
सपने सच होते हैं
जब होते हैं अपने सच तो
सपने भी सच होते हैं
हर कोई देखता है सपना
सारा जहाँ हो जाये उसका अपना
कोई अच्छे मकान का सपना देखता है
तो कोई अच्छी नौकरी का सपना देखता है
तो कोई विदेश भ्रमण का सपना देखता है
किसी का सपना जल्दी सच होता है
किसी का सपना देर से सच होता है
मेहनत, लगन और ईमानदारी
जहाँ होती हैं वहाँ सपने सच होते हैं
त्याग, तपस्या और बलिदान
जहाँ होते हैं वहाँ सपने सच होते हैं
वफादारी, ईमानदारी और अपनापन
जहाँ होते हैं वहाँ सपने सच होते हैं
इरादें नेक हो तो सपने सच होते हैं
सच्चाई, अनुशासन और विश्वास
जहाँ होते हैं वहाँ सपने सच होते हैं
सबके अपने-अपने सपने होते हैं
भगवान करें सबके सपने सच हो
मैं मुसलमान बन गया
ये तेरा खून ये मेरा खून
गर दोनों का एक है खून
तो तू क्यों हिन्दू बन गया
मैं मुसलमान बन गया
उर्दू का अल्लाह हिन्दी में
भगवान बन गया
मैं——————————
श्री कृष्ण ने दिया जो ज्ञान
वो भागवत गीता बन गई
अल्लाह ने जो उतारी आयतें
वो पाक कुरान बन गया
मैं——————————
हर धर्म ग्रंथ में है एक ही बात
याद करो उस निराकार को
उसके बतलाये राहों पर
चलते रहो दिन रात
यही सबका ईमान बन गया
मैं———————————
इबादत करो या पूजा
बात एक है नहीं कोई दूजा
याद करो उस रब को
यही हमारा जीवन बन गया
मैं——————————
फिर क्यों हम आपस में लड़ते हैं
एक दूसरे से झगड़ते हैं
विचार हमारा क्यों
इतना संकीर्ण बन गया
“दीनेश” मैं मुसलमान बन गया
मैं——————————
प्रकृति का कहर
बढ़ते कंक्रीटो के जंगल से
धरती माँ परेशान है
अपने पूतों की करनी से
ममता लहूलुहान है
छलनी कर दी छाती मेरी
पीठ में छुरा भोंका है
अपनी गलती को सबने
दूसरे के सर थोपा है
जो भी दिया तूने प्रकृति को
वापस वही तूने पाया है
कचरा फेंक सर पर मेरे
कीचड़ से नहलाया है
मांग मेरी सूनी कर दी
काट के जंगल उपवन को
सुहागन होकर भी मजबूर हूँ
विधवा जीवन जीने को
क्या मैं द्रौपदी हूँ
जो अपने स्वार्थ के कारण
कर रहे हो मेरा चीर हरण
जिस आँचल को हटा कर
तुम मुझे कर रहे हो बेआवरण
क्यों भूल जाते हो कि
उसी आंचल के साए में
तुम पलते आये हो
बहुत कुछ दिया है मैंने तुमको
अपने लिए ना सही
अपनी अगली पीढ़ी के लिए
कुछ तो बचा कर रख
ये मानव प्रकृति के कहर से
अब भी तो डरना सीख
अब भी तो डरना सीख
सच्चा मित्र
दिल की बात जिसे कहें
होता वही सच्चा मित्र
दुःख सुख सब हाल में
खींचे सच्चा चित्र
मां-बाप पत्नी बेटा से
कर सके ना जो बात
वो बात साझा करें
अपने मित्र के साथ
दिल से दिल की बात हो
सदा सुखमय एहसास हो
संकट में भी साथ हो
दुःख में सुख में पास हो
मित्र हो कृष्ण जैसा
सुदामा को रंक से राजा बनाय
मित्र हो कर्ण जैसा
आजीवन दुर्योधन का साथ देय
बाली जैसा दिया संकट में साथ
मित्रों विभीषण जैसा
राम को युद्ध में जीताय
बाप का जूता बेटा का पैर
वो भी मित्र कहलाय
जीवन संगिनी बीवी भी
होती मित्र समान
मित्र बना लो प्रभु को
सब कष्ट दूर हो जाय
दिनेश ईश्वर से बड़ा
कोई मित्र नहीं
सब पर होय सहाय
मिलावट
मिलावट मिलना-मिलना मिलन
एक दूसरे में समाहित होना
आज हर चीज में मिलावट है
क्योंकि मिलावट का जमाना है
इस मिलावट से किसी को नफा है किसी को नुक़सान है
इस मिलावट से हर कोई परेशान है इस मिलावट की चक्कर से
कोई भी नहीं बच पाया है
युगों-युगों से मिलावट चल रहा है औरत का मर्द से मिलान
दुनिया बढ़ाने के लिए
सृष्टि के आरंभ में
मनु का शतरूपा से मिलना
आदम और हव्वा का मिलना
महाभारत के लिए
कृष्ण का पांडव से मिलना
लंका विनाश के लिए
विभीषण का राम से मिलना
कंकड़ का अनाज में मिलावट
वजन बढ़ाने के लिए
राजनैतिक दल का एक दूसरे में मिलना
विरोधियों को मिटाने के लिए
खाने में मिलावट, मसाले में मिलावट-मिलावट पानी में, मिलावट दूध में
तेल में मिलावट, प्यार में मिलावट
घर बनाने में मिलावट
सीमेंट बालू सुर्खी चुना का
घर तोड़ने में मिलावट
उल्टी सीधी बातें बनाने का
मिलावट सोने चांदी के गहनों में
मिलावट फूलों का हार बनाने में
एकता के लिए मिलावट
शांति के लिए मिलावट
प्रेम के लिए मिलावट
शादी के लिए दो परिवारों का मिलावट
मिलावट का है जमाना
तो फिर मिलावट से क्या घबराना प्यार में मिलावट
प्यार के इज़हार में मिलावट
पूजा मिलावट
सम्मान में मिलावट
पैदावार बढ़ाने के लिए
खेत में खाद की मिलावट
चाय में चीनी मिलना
शादी में लावा मिलाना
अभिवादन के लिए हाथ मिलाना
देसी में विदेशी मिलाना
इस मिलावट ने बहुतों को हँसाया है
तो बहुत रुलाया है
मैंने कई बातों को मिलाकर
ये कविता बनाई है
मिलावट की महिमा गाई है
मिलावट की महिमा अपरंपार है इसका बहुत बड़ा बाज़ार है
मिलावट के चलते आज
चारों तरफ़ हाहाकार है
किसी को इससे प्यार है
तो किसी-किसी को इनकार है मिलाकर ही तो समाज है
और भरा पूरा परिवार है
नेता जी की नींद
जनता के प्रतिनिधि
जनता को बुद्धू बना कर
जनता के पैसे से
जनता पर राज करने वाले
जनता के चहेते नेता जी
अगर एक दिन जाकर
किसी गरीब जनता के
घर में रात गुजरेंगे
सोएंगे उसके खाट पर
काटेंगे जब मच्छर
बगल में जब भौकेंगें कुत्ते
तब उन्हें समझ में आएगा
कि वह गरीब दिनभर
हार तोड़ मेहनत करने के बाद
दो-चार सूखी रोटी खाकर
नलके का पानी पीकर
सो कर चारपाई पर
किस तरह खर्राटे भरता है
और नेता जी को नींद नहीं आई
रात भर जागे रह जाएंगे
सुबह हड़बड़ा कर उठेंगे
भागेंगे अपने एयर कंडीशन
महल की तरफ़
जिसे खड़ा करने में
कितने गरीबों का खून
बहा है पसीना बन कर
लूट गया है कितनों का हक़
उजड़ी गई है कितनी बस्तियाँ
छीन गया है कई मासूमों का प्यार
उन्हें नींद कहाँ से आएगी
नींद तो उन्हें आती है
जो करते हैं परिश्रम
नेताजी लोग तो
मुफत का माल उड़ाते हैं
सेवा के नाम पर
घोटाला करते हैं
अगला घोटाला
कौन-सा करना है
इसी उधेड़बुन में
जगे रह जाते हैं
इसी उधेड़बुन में जगे रह जाते हैं
दयावान
जलता है सारा विश्व
एशिया महादेश से
जलता है सारा एशिया
प्यारा हिंदुस्तान से
जलता है सारा भारत
कर्मठ एवं सृजनशील बिहार से
जलता है बिहार
जिला सीवान से
जलता है सिवान
थाना बसंतपुर से
जलता है बसंतपुर
पोस्ट खवासपुर से
जलता है खवासपुर
गाँव नंदपुर से
जलता है नंदपुर
मेरे टोले मुहल्ले से
जलता है टोला-मुहल्ला
मेरे घर परिवार से
परिवार वाले जलते हैं
दिनेश भाग्यवान से
इन सब पर दया कर
“दीनेश” बना दयावान है
दरिंदे
वह जुल्मी दरिंदे है
जंगल के बाशिंदे हैं
उनमें कोई तेजपाल है
जो अपने दोस्त की
बेटी को भी नहीं छोड़ता
तो कोई आशाराम है
जो अपनी शिष्या
को भी नहीं छोड़ता
तो कोई जस्टिस गांगुली
जो अपनी छात्रा
को भी नहीं छोड़ता
तीनों बैठे थे
शिखर पर जहाँ
सोच कोई नहीं
पहुँच पायेगा यहाँ
पर कानून के लंबे हाथ
दबोचे गए दो
खा रहे जेल की हवा
सारी हेकड़ी गई
उड़ते फिर रहे थे
बन के परिंदे
अब हो गए
जेल के बाशिंदे
आओ करें संकल्प
धर्म के लिए अब हम और ना लड़ेंगे
एक दूसरे के धर्म की रक्षा हम करेंगे
आओ करें संकल्प
बहुत हो चुकी धर्म की बेदी पर
और बलि हम ना चढ़ेंगे
मानवता का धर्म सबसे बड़ा है
सबको यही समझायेंगे
आओ करें संकल्प
ओ धर्म के ठेकेदारों
तेरी डफली अब और ना बजेगी
एकता के समारोह में
तुमसे रास कराएंगे
आओ करें संकल्प
देश के हर कोने-कोने में
आपसी प्यार और सद्भावना की
ध्वजा हर दिल पर लहरायेंगे
आओ करें संकल्प
दूर करेंगे हम अंध विश्वास को
धर्म के खोखले अनीतियों को
धार्मिक रूढ़ियों और आडंबर को मिटायेंगे
आओ करे संकल्प
धर्म के लिए हम और ना लड़ेंगे
मैं दलित हूँ
मैं दलित हूँ
क्योंकि मैं मंदिर में
पूजा नहीं कर सकता
क्योंकि मंदिर के
देवता को
छूत लग जाएगी
फिर उन्हें शुद्ध
करना पड़ेगा
पंडे पुजारियों को
असुविधा होगी
इसीलिए हमें मंदिर में
जाने से रोकते हैं
जब एक अछूत के
छूने से भगवान
अशुद्ध हो जाएंगे
तो फिर हम दलित
बड़े या भगवान बड़े
बड़े तो हम दलित
ही हुए न
जो हमारे छूने से
भगवान भी
अशुद्ध हो गए
जबकि होना तो
यह चाहिए था कि
भगवान को छूकर
हम दलित भी
पवित्र हो जाते
क्या ऐसा संभव है?
शायद संभव नहीं
क्योंकि जबतक
इन पंडे पुजारियों का
राज रहेगा
तबतक हम दलितों के
सर गाज रहेगा
क्योंकि हम नेता हैं
आगे चमचे पीछे चमचे
दाएँ चमचे बाएँ चमचे बीच
इनके बीच मैं रहता हूँ
क्योंकि मैं नेता हूँ
माफ करेंगें आप
मेरी अपनी कोई बुद्धि नहीं
सेक्रेटरी के लिखे
भाषणों को मैं पढ़ता हूँ
क्योंकि मैं नेता हूँ
मुझे चिंता नहीं
भूख से बिलखते बच्चों की
या दर्द से कराते वृद्धों की
यात्याचार से तंग महिलाओं की
मुझे तो चिंता है
वातानुकूलित कमरों में
रहने वाले उन अमीरों की
जिनके चंदे के बल से
मैं चुनाव जीतता हूँ
क्योंकि मैं नेता हूँ
(चूंकि ऐसे बहुत से नेता है इसलिए ‘मैं’ से अब ‘हम’ पर आते हैं)
हमें चिंता नहीं
बच्चों की शिक्षा की
या बेरोजगार युवा वर्ग की
या बन्द कल कारखानों की
हमें तो चिंता है
अपने पार्टी के कैडरों की
जिनके द्वारा बूथ पर छापा मारने से
हम चुनाव जीतते हैं
क्योंकि हम नेता हैं
योजनाएँ रोज़ बनाते हैं हम
टीवी पर दिखाने के लिए
श्रमिकों को महंगाई भत्ता
दे पाते नहीं
मगर अपना भत्ता कई गुना
बढ़ा लेते हैं हम
क्योंकि हम नेता हैं
गिरगिट भी अब हमसे
रंग बदलना सीखते हैं
अब हमसे रंग बदलना सीखते हैं
बिन पेंदे के लोटे हम
सुविधानुसार लुढ़कते हैं
दो मुहें साँप भी
अब हम से डरा करते हैं
क्योंकि हम नेता हैं
मंदिर क्या मस्जिद क्या
और क्या गुरुद्वारा
हमें तो प्रिय है
संसद का गलियारा
धर्म और मज़हब का झगड़ा
तो हम नेता ही लगाते हैं
फिर जाकर भाईचारे का
संदेश हम सुनाते हैं
क्योंकि हम नेता हैं
मानता हूँ कि हम दोषी हैं
लेकिन आप भी कम दोषी नहीं है
क्योंकि आपने ही तो
वोट देकर हमें जिताया है
“दीनेश” हम अपना दोष
दूसरे के सर मढ़ते हैं
क्योंकि हम नेता हैं क्योंकि हम नेता हैं
युद्ध और जीने का हक
मनुष्यों के लिए
युद्ध कोई नई चीज नहीं
सदियों से युद्ध
होता चला आ रहा है
और होता रहेगा
न मैं रोक सकता हूँ
ना आप रोक सकते हैं
क्योंकि इसे होना ही है
और होनी को कोई
टाल नहीं सकता
सतयुग में भी युद्ध
होता रहता था
देवताओं और राक्षसों के बीच
त्रेता में भी हुआ
राम और रावण के बीच
द्वापर में भी हुआ
कौरवों और पांडवों के बीच
और कलयुग
इसे यदि
युद्ध युग कहें
तो अच्छा रहेगा
तरह तरह के युद्ध
यहाँ पर होते हैं
और होते रहेंगे
इस युग का सबसे
बड़ा युद्ध है
अमीरी और ग़रीबी का युद्ध
अमीरों द्वारा
गरीबों का शोषण
एक ही रात में
पूरे परिवार का सफाया
दो रोटी के लिए
उनकी बहन बेटी का
इज्जत लूटना
अपनी शान की खातिर
बात बात पर उनकी
गर्दन उड़ा देना
दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत
कड़ी धूप
भारी बरसात में रहकर
शाम को बिना मजदुरी
दिए डांट कर भगा देना
मुँह खोलने पर
कोड़ो की बरसात करना
क्या किसी नागासाकी
और हिरोशिमा से कम है
ये युद्ध तो एक दिन हुआ था
मगर ये युद्ध तो
सदियों से चला रहा है
न जाने कब तक चलता रहेगा
आईए इस युद्ध के
विरुध में हम एक
आवाज उठाएँ
कब तक चलेगा
ऐसा अत्याचार
आखिर उन्हें भी तो
जीने का हक़ है
आखिर उन्हें भी तो
जीने का हक़ है
माँ तो बस माँ होती है
न हिंदू होती है न मुसलमान होती है
न सिख होती है न ईसाई होती है
माँ तो बस माँ होती है
न पारसी होती है न जैन होती है
वह तो ममता की पहचान होती है
न गोरी होती है न काली होती है
पर बड़ी दिलवाली होती है
माँ तो बस माँ होती है
प्रेम की दरिया होती है
दया की सागर होती है
हर पल स्नेह की बरसात करती है
माँ तो बस माँ होती है
त्याग और तपस्या की मूरत होती है
ईश्वर अल्लाह भगवान की सूरत होती है
माँ तो बस माँ होती है
न गीत गाती है न ग़ज़ल गाती है
बच्चों को सुलाने के लिए लोरी गाती है
माँ तो बस माँ होती है
अपना दुःख सहकर, अपना दर्द भूलकर
बच्चों के दुख दर्द के लिए तड़पती है
माँ तो बस माँ होती है
हर माँ अपने पुत्र का भला चाहती है
कैकेयी ने भी चाहा तो क्या बुरा किया
भेजकर “दीनेश” बनवास राम को
वनवासियों का उपकार करती है
माँ तो बस माँ होती है
माँ यो बस माँ होती है
किसान
बासी रोटी खाकर
लोटा भर पानी पीकर
बाँध कर पगड़ी सर पर
कांधे पर रख कर
कुदाल और हल
बैलों को साथ ले
चला खेत की ओर
दिन भर धूप में जलते हुए
बारिश में भींगते हुए
और ठंड से कांपते हाथों से
हल चलाता है
तब पैदा होता है
धान गेंहू और
कई तरह के अनाज
तब एअर कंडीशन में पंखा तले
बैठने वाले लोग
खाते हैं मौज से
दाल-रोटी, दाल-भात
वगैरह-वगैरह
और करते हैं महंगा
उनके लिए खाद
बीज और पानी
उनके पैदावार का
मिलता नहीं उचित दाम
फिर भी किसान
करते रहते हैं काम
रात और दिन काम ही काम
अगर वे (किसान)
करने लगे आराम
तो सब रह जायेंगे भूखे
सबका हो जाएगा काम तमाम
दिनेश चंद्र प्रसाद “दीनेश”
कलकत्ता
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