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बांस: शक्ति, शांति, समृद्धि एवं सौंदर्य का समन्वय
बांस: शक्ति, शांति, समृद्धि एवं सौंदर्य का समन्वय: आदिकाल से ही पेड़-पौधों से मानव एवं पशु-पक्षियों का सम्बंध परस्पर पूरकता का रहा है। सघन वन-उपवन हों या उद्यान-वाटिका। पर्वत-पठार हों या फिर घाटी-तराई की भूमि। खेत-खलिहान की मेड़ हो या सर-सरिताओं के तट, घर का आह्लादित आंगन हो या देवालयों का पावन परिसर, सर्वत्र किसी न किसी रूप में छोटे-बड़े पेड़ों की अवस्थिति शीतल छांव, सुगंध, सौंदर्य एवं शांति प्रदान कर रही होती है। इन पेड़-पौधों के परिकर में घास परिवार ने भी अपनी उपयोगिता से एक विशेष स्थान एवं महत्त्व प्राप्त किया है। घास वंश से सम्बंधित सदाबहार बांस लोकजीवन में अपनी सांस्कृतिक एवं आर्थिक योगदान से समादृत है।
यही कारण है कि बांस मानव जीवन का अभिन्न संगी-साथी बन परिवेश का हिस्सा हो गया है। खेत, खलिहान, उपवन, बड़े आंगन में उगता रहा बाँस अब ड्राइंगरुम की शोभा भी बनने लगा है। बाँस मानव जीवन में शक्ति, समृद्धि, सौंदर्य एवं शांति का प्रतीक है और लचीलेपन एवं सतत ऊर्ध्व गमन-गतिशीलता का भी। बाँस हरीतिमा का पोषक है और ताप का शोषक भी। बांस भोजन, औषधि, साज-सज्जा, निर्माण, फर्नीचर एवं सौंदर्य प्रसाधन है और पहचान की ध्वज-पताका के बंधन का संसाधन भी। बांस झंझावातों से जूझने की जिजीविषा का परिचायक है। बांस संगीत के सप्त स्वरों का आधार बन बांसुरी से उपजा मनमोहक राग है। बाँस जीवन के आरंभ की सुमधुर ध्वनि है और अंत की आहट भी। बांस वर-वधू के सप्तपदी का साक्षी है तो विवाह मंडप की शुभता का दिव्य दर्शन भी। बांस व्यक्ति की अंतिम यात्रा की शायिका निर्माण का एकमात्र साधन है। नौका चालन की पतवार है, तो अपराधी के लिए कठोर दण्ड भी।
निर्विवाद रूप से बांस मानव जीवन का सहचर है, संवाहक है। इसीलिए प्रत्येक वर्ष १८ सितम्बर को विश्व बांस दिवस के रूप में मनाने, बाँस के विविध उपयोग एवं महत्त्व से जन-जन को परिचित कराने एवं जागरूकता के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन किये जाते हैं। ये आयोजन एक थीम पर आधारित होते हैं। वर्ष २०२५ की थीम है-अगली पीढ़ी का बाँस: समाधान, नवाचार और डिजाइन। इस वर्ष का यह विषय बांस के अधुनातन प्रयोग, नवाचार एवं रचनात्मक प्रदर्शन, टिकाऊ उपयोग के तरीके खोजने हेतु आमजन को प्रेरित-उत्साहित करेगा ताकि पर्यावरण अनुकूल सामग्री के उत्पादन एवं दैनंदिन उपभोग में आवश्यक वृद्धि हो। वर्ष २००९ में बैंकाक, थाईलैंड में आयोजित ८वें विश्व बांस सम्मेलन के अवसर पर प्रत्येक वर्ष १८ सितम्बर को विश्व बांस दिवस के वैश्विक आयोजन की सहमति बनी थी। बाँस पर केंद्रित जागतिक आयोजन से सामान्य जन बाँस के सांस्कृतिक महत्त्व, आर्थिक उपयोगिता एवं निर्भरता, पारिस्थितिकी में योगदान से परिचित होगा साथ ही बाँस से बनी वस्तुओं के अधिकाधिक दैनंदिन प्रयोग को बढ़ावा भी मिलेगा।

बांस के प्रयोग के मिले अनेकानेक प्रमाण बांस के उपभोग की प्राचीनता को तो सिद्ध करते ही हैं बल्कि मानव के विवेक एवं कौशल का भी परिचायक हैं कि किस प्रकार प्राचीन काल से ही मानव ने बाँस का प्रयोग शिकार करने हेतु धनुष-बाण, भाला एवं बरछी जैसे हथियार-औजार बनाने, स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु औषधि बनाने, मकान के निर्माण करने, संगीत में बांसुरी जैसा साज गढ़ने, चित्रकला के आलेखन हेतु कूंची बनाने, पोषण हेतु भोजन में प्रयोग करने तथा सामान रखने हेतु उचित पात्र बनाने हेतु बाँस का विविध रूपों में प्रयोग किया था। बांस से डलिया-टोकरी और हाथ के पंखे बनाना परम्परागत कार्य था। पर आजकल तो बाँस से काग़ज़ और कपड़ा भी बनाया जा रहा है। वर्तमान काल शोध एवं कल्पना की मेधा का चरम काल है। कोई भी क्षेत्र और उत्पाद नहीं बचा जहाँ कल्पना के रंग न बिखरे हों। तो कल्पना की रचनात्मकता तथा शोध एवं नवाचार से भला बाँस कैसे बचा रह सकता था। आज बाँस के शताधिक प्रकार के खिलौने, गृहसज्जा की नानाविध वस्तुएँ और आरामदायक फर्नीचर सहित रासायनिक द्रव एथेनाल तैयार किया जा रहा है। बुलेटप्रूफ जैकेट बनाने में बाँस के फाइबर का प्रयोग हो रहा है। बाँस के कोमल रेशों से निर्मित अंत: वस्त्रों की आज वैश्विक मांग लगातार बढ़ती जा रही है। बिजली के उपकरण भी बनाये जा रहे हैं। मकानों की छतें एवं फ़र्श बाँस से तैयार किये जा रहे हैं। पर्दे, चटाईयाँ, झालर, रसोई के बर्तन, सिंचाई हेतु पाईप बनाने में बाँस का ख़ूब उपयोग किया जा रहा है। बाँस का तेल सौंदर्य उत्पादों में डाला जाता है।
बांस वातावरण में आक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड के अनुपात का संतुलन बनाते रखने में सक्षम होता है। भारतीय महीनों की तरह हर वस्तु का भी शुक्ल और कृष्ण पक्ष होता है, अर्थात् लाभ के साथ हानि भी जुड़ी होती है। बाँस जंगल की शान है किंतु यही बाँस गर्मियों में आपस में रगड़कर आग पैदा कर जंगल जलाने का कारण भी बनते हैं। किंतु यह आग जंगल की व्यवस्था को नव जीवन देती है। बाँस हमारे जीवन में शांति, संगीत, समृद्धि एवं शक्ति के संवाहक बनें, यही कामना है।
प्रमोद दीक्षित मलय
लेखक शैक्षिक संवाद मंच उ.प्र. के संस्थापक हैं। बांदा, उ.प्र.
मोबा- ९४५२०८५२३४
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