
हम आजाद नहीं
जो आज भी हम आप देख रहे हैं, कहते हुए गर्व होता है, मेरा भारत महान पर आज भी हम एक स्त्री के मामले में आजाद नहीं, आज भी हसी उन माताओं पर आती है, जो अपने गर्भ को गिरने जाती है, सिर्फ इस लिए, की उनके कोख में एक लड़की है, लड़का नहीं, सही सुना था कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है, भ्रूण हत्या जैसा महा पाप हम ख़ुद कर बैठती है, ताज्जुब जब होता है, जब एक नन्ही-सी जान जिसको ईश्वर तो लाना चाहते हैं दुनिया में पर हम इंसान नहीं, कभी झाड़ियों में तो कहीं कचरे के डिब्बे में नन्ही-सी जान पाए जाते हैं, बच्चे भगवान की देन है फिर उनमें लिंगका भेद भाव क्यों, मेरे मुताबिक आज की जरनरेशन में ८०% लड़कियाँ माता पिता को अपने पास रख के पाल रही हैं, और वहीं जिसे आप हम कुल का दीपक समझते है, वो माता पिता को वृद्धाश्रम पहुँचा देते हैं।
वह घर नहीं ज हा बेटी का सम्मान नहीं वह, इंसान नहीं जिसे बेटी के होने का ज्ञान नहीं। सामाजिक, मुद्दा ये भी है, की घर से बाहर भी हमारी देश की लड़कियाँ सुरक्षित नहीं है, ऐसा क्यों क्यू की हम ख़ुद एक लड़की को सपोर्ट नहीं करना चाहते, कुछ शायद हो भी जो लड़कियों के साथ बदसुलूकी करे, पर आप के घर में भी ब हन है बेटी है, उसे उसी तरह समझ के उसकी मद द कर दो ताकि वह भी सुरक्षित अपने घर पहुँच जाए, ऐसा होने लग जाए तो शायद कोई लड़की घर से देर रात तक निकलने में ना डरे, ना उसके कपड़ों पर सबको टिप्पणी करने का मौका मिले, बस बन्द करो यार, एक लड़की के साथ हादसा हुआ तो उसके कपड़ों या उसके रात को निकलने पर उंगली ना उठा कर हम ने क्या किया ये सोचे तो कल हमको हमारी, बेटी के लिए डर नहीं होगा, सोच तो आपकी आपके, संस्कारों की है, शायद आप अपने बेटे को ही बचपन से ये सीख दे की एक औरत की इज़्ज़त क्या होती है…
आज मेरी नज़र में ये, दो मुद्दे अहम भूमिका निभाते है सामाजिक तौर पे, इनपर भी विचार करे तो हम बहुत हद तक इनसे निपट सकते हैं…
नेहा दीक्षित
अकोला
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