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वह क्यों कुँवारी रही
प्रिय पाठकों… आज आपके लिए प्रस्तुत है लघुकथा ‘वह क्यों कुँवारी रही’ और इस लघुकथा के लेखक हैं गोपाल मोहन मिश्र… तो आइये पढ़ते हैं ये लघुकथा ‘वह क्यों कुँवारी रही’…. लड़कियों के स्कूल में आने वाली नई टीचर ख़ूबसूरत और शैक्षणिक तौर पर भी मज़बूत थी, लेकिन उसने अभी तक शादी नहीं की थी… सब लड़कियाँ उसके इर्द-गिर्द जमा हो गईं और मज़ाक़ करने लगीं कि मैडम आपने अभी तक शादी क्यों नहीं की…?
मैडम ने दास्तान कुछ यूँ शुरू की। एक महिला की पाँच बेटियाँ थीं, पति ने उसको धमकी दी कि अगर इस बार भी बेटी हुई तो उस बेटी को बाहर किसी सड़क या चौक पर फेंक आऊँगा। ईश्वर की मर्जी कि छठी बार भी बेटी पैदा हुई, पति ने बेटी को उठाया और रात के अंधेरे में शहर के बीचों-बीच चौक पर रख आया। माँ पूरी रात उस नन्हीं सी जान के लिए दुआ करती रही और बेटी को ईश्वर के सुपुर्द कर दिया।
दूसरे दिन सुबह पिता जब चौक से गुज़रा तो देखा कि कोई बच्ची को ले नहीं गया, बाप बेटी को वापस घर ले आया। दूसरी रात फिर बेटी को चौक पर रख आया, लेकिन रोज यही होता रहा। हर बार पिता बाहर चौक पर रख आता और जब कोई नहीं ले जाता तो मजबूरन वापस उठा लाता।
यहाँ तक कि उसका पिता थक गया और तब ईश्वर की मर्जी पर राज़ी हो गया। फिर ईश्वर ने कुछ ऐसा किया कि एक साल बाद माँ फिर से गर्भवती हो गई और इस बार उनको बेटा हुआ, लेकिन कुछ ही दिन बाद बेटियों में से एक की मौत हो गई। यहाँ तक कि माँ पाँच बार फिर से गर्भवती हुई और पाँच बेटे हुए, लेकिन हर बार उसकी बेटियों में से एक इस दुनियाँ से चली जाती। इस प्रकार पाँच बेटे जन्मे और पाँच बेटियाँ ईश्वर को प्यारी हो गईं।
अब पाँच भाइयों के बीच सिर्फ एक ही बेटी ज़िंदा बची और वो वही बेटी थी जिससे बाप जान छुड़ाना चाह रहा था। माँ भी इस दुनियाँ से चली गई, इधर पाँच बेटे और एक बेटी सब बड़े हो गए। टीचर ने कहा पता है वो बेटी जो ज़िंदा रही कौन है…? “वो मैं हूँ” और मैंने अभी तक शादी इसलिए नहीं की, क्योंकि पिताजी इतने बूढ़े हो गए हैं कि अपने हाथ से खाना भी नहीं खा सकते और कोई दूसरा नहीं है जो उनकी सेवा कर सके। बस मैं ही उनकी खिदमत किया करती हूँ और वो पाँच बेटे कभी कभी आकर पिताजी का हालचाल पूछ जाते हैं ।
पिता हमेशा शर्मिंदगी के साथ रो रो कर मुझ से कहा करते हैं, मेरी प्यारी बेटी जो कुछ मैंने बचपन में तेरे साथ किया उस पर मुझे माफ करना । मैंने कहीं बेटी की पिता से मुहब्बत के बारे में एक प्यारा सा किस्सा पढा था कि एक पिता बेटे के साथ फुटबॉल खेल रहा था और बेटे की हौसला अफजाई के लिए जान बूझकर हार रहा था। दूर बैठी बेटी पिता की हार बर्दाश्त ना कर सकी और पिता के साथ लिपट के रोते हुए बोली। पापा, आप मेरे साथ खेलें, ताकि मैं आपकी जीत के लिए हार सकूँ।
गोपाल मोहन मिश्र
कमला हेरिटेज, ब्लॉक – ‘ए’
फ्लैट नंबर – 201, बरहेता, पी.ओ. – लहेरियासराय,
दरभंगा, बिहार
846001
मोबाइल नंबर – 9631674694
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