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मदद
मदद: आदेश सिंह राणा
ये बात कूछ दिनों पहले की है मैं एक दिन किसी काम से देहरादून जा रखा था। मैं परेड मैदान में किसी कार्यक्रम में प्रतिभाग करने जा रहा था। जैसे ही मैं तहसील चौक से मुडा तो एक लगभग ८० वर्ष की बूढी औरत अकेली बैठी थी, उनके पास कूछ भारी सामान था और वह सभी से रोड क्रोस कराने की मांग कर रही थी। लेकिन कोई उनकी नहीं सुन रहा था।
अचानक मेरा ध्यान उस ओर गया। मुझे उन पर दया आ रही थी और मैं उनके पास जा पहुँचा मैंने उनका सामान उठाकर उनको पकड़ कर सड़के के दूसरे किनारे ले आया उन्होनें मुझसे देहरादून ताज होटल का पता पूछा। लेकिन मैं भी देहरादून से अंजान था और मैंने एक रिक्शा वाले को रोका और उनसे ताज होटल का पता पूछा रिक्शे वाला भी चलने के लिए तैयार हो गया। मैने बूढ़ी अम्मा को उनके सामान को बिठा दिया और रिक्शे वाले को छोड़ने ने के लिए कहा रिक्शे वाले ने भी १०० रू० किराया माँगा और बूढी अम्मा को ले जाने के लिए तैयार हो गया। बुढी अम्मा ने किराया दिया और मुझे भी दुवायें दे रही थी।
मैंने भी उनका आशीर्वाद लिया और आगे चल दिया। बुढी अम्मा की मदद करके मेरे मन एक अनोखी शांति और गर्व की अनुभूति हो रही थी और ये बात मुझे जीवन भर याद रहेगी। मैं आगे भी इसी तरह मौका मिलने पर अपना कर्तव्य निभाता रहूंगा। पैसो से ना सही लेकिन इंसानियत दिखाकर ही पूण्य और आशीर्वाद कमाऊंगा और हर बार एक सुकून भी अनुभूति को महसूस करूंगा।
आप सभी भी एक दूसरे की मदद करियेगा और इंसानियत निभाईये। आपको भी इसी प्रकार सूकुन की अनुभूति और ख़ुद पर गर्व महसूस होगा।
आदेश सिंह राणा
उत्तरकाशी, उत्तराखंड
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