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झोल
मुझे तो लगता है हमारे सिस्टम में ही नहीं, ऊपर वाले के सिस्टम में भी झोल है। कोई काम ढंग से होता नहीं ऊपर भी। अब देखिए… जिस चीज़ की ज़रूरत नहीं उसको ज़्यादा बना दिया और जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है उसे कम बनाया। ऑक्सिजन और नाइट्रोजन को ही देख लीजिए। नाइट्रोजन को ७८%और ऑक्सिजन को २१% बनानें की क्या ज़रूरत थी?
ये सारा दोष भगवान का है ज़्यादा ऑक्सिजन क्यूँ नहीं बनाया… अगर बनाया होता तो आज लोग ऑक्सिजन की कमी से मरते नहीं। अब हम लोग की क्या गलती? जो देखेंगे वही तो सीखेंगे। हम भी लग गए हैं करोड़ों रुपये के मंदिर और मस्जिद बनानें में। ज़रूरत ज़्यादा है अस्पतालों की तो हुआ करे। हमें क्या… अस्पताल पर ख़र्च कौन करे।
अस्पताल, डॉक्टर और मेडिकल फैसिलिटी को बढ़ाने से क्या फायदा। जान तो ऊपर वाले के हाँथ में है …तो ज़्यादा ज़रूरी है कि मंदिर मस्जिद बनवाया जाए। अब अस्पताल बनाया तो सबके लिए होगा… क्या हिन्दू क्या मुस्लिम…उस से कुछ फायदा नज़र नहीं आ रहा और फिर अगली बार चुनाव भी तो जीतना है… एक पंथ दो काज हो जाएगा। आख़िर वोट बैंक भी तो कोई चीज़ है।
और कौन-सा रोज़-रोज़ महामारी आएगी। अगर आ भी गई तो भगवान ऊपर बैठे हैं, बचा ही लेंगे। हमनें इतने मंदिर मस्जिद बनवाये, इतना दान पुण्य किया। इतना राम-राम और अल्ला-अल्ला किया उसका कुछ तो फायदा मिलेगा ही। इतना फसाद किया धर्म के नाम पर, इतनी जानें कुर्बान की हैं दंगे फैला कर हमने, तो बदले में इस महामारी से जान तो हमारी बचा ही लेगा ऊपर वाला।
और अगर कुछ लोग मर भी गए तो क्या फ़र्क़ पड़ जाएगा, थोड़ी जनसंख्या ही कम होगी… समझते ही नहीं लोग, … बेकार की हाय तौबा मचा रक्खी है। तो चलने देते हैं सिस्टम जैसे चल रहा है…राम भरोसे… कौन इस माथापच्ची में पड़े …
रीना सिन्हा
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