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हसीन शहर
मैं इस फ़िराक में सदा रहता हूँ
एक हसीन शहर को ढूंढ़ पाऊँ
जहाँ की मिट्टी न हो रक्त रंजित
ऐसे शहर को मैं पा जाऊँ
जहाँ न दिखे दुःख देने वाले
सुकून की बहारे चलती रहे
बाशिंदे सब अमन परस्ती में हो
सुरभित फ़िज़ा यहाँ फैलती रहे
वहाँ बिगड़ा हुआ हो न आदमी
सज्जनों का शहर, में पा जाऊँ
मैं इस फ़िराक में लगा हूँ
एक हसीन शहर को ढूंढ़ पाऊँ
साफ़ सफ़ाई हो वहाँ हर जगह
रहने वाले का दिल न हो खफा
नूर झलके वहाँ के हर चेहरे पे
नजर आये वहाँ वफ़ा ही वफ़ा
बिटिया रानी
आसमान से बेटी बनके
उतर के आयी मेरे आँगन में
घर मेरा रोशन हो आया
ख़ुशी छा गयी हर आनन पे
खेल खेल में बिटिया नाचती
पैंजनिया झनकाती है
सब खुश होते उसे देखके
जब वह मुलक-मुलक मुस्काती है।
कोमल पुष्प-सी लगती है यह
जैसे कली खिल आयी आँगन में
आसमान से बेटी बनके
उतर के आयी मेरे आँगन में
माँ उसकी सदा बलैया लेती
माँ को भी वह करती है प्यार
नन्हे हाथों से नन्हे काम कर
माँ की सहायता को रहती तैयार
खुशिया ख़ुद चहकी बिटिया से
मेरे घर आँगन के उपवन में
आसमान से बेटी बनके
उतर के आयी मेरे आँगन में
पाठ एक शांति का
कलम से लिखाई मैं ऐसी लिखूं
मोहब्बतों का बाज़ार सज जाये
रंजिशे ख़तम हो सभी की आपसी
हर तरफ़ प्यार ही प्यार पनप जाये
लिखावट मेरी न बने ऐसी
कि किसी की आँखों में आँसू आये
परोसता जाऊँ में लिखावट ऐसी
हर ओर स्नेहिल समंदर लहला जाये
कलम की नोक चुभे न किसी को
हर तरफ़ आपसी समता छाए
न दिखे फिर कहीं फिरका परस्ती
हर तरफ़ समरसता छा जाये
मैं लिख दूँ पाठ एक शांति का
सर्वत्र अमन ही अमन छा जाये
कलम से लिखाई मैं ऐसी लिखूँ
मोहब्बतों का बाज़ार सज जाये
तू बिखरता रहा
जब अच्छा करने का वक़्त था
तब तू बुरा-बुरा करता रहा
सही समय को खोता रहा तू
तन से भी तू बिखरता रहा
सब कुछ धुंधला-धुंधला हुआ
करने की कुछ क्षमता न रही
भले ही अच्छा करने की सोची
पर तुझमे अब वह शक्ति न रही
आखिर बंध गया बंधन में
पड़ा पड़ा तू कहराता रहा
अच्छा करने का वक़्त जब था
तब तू बुरा-बुरा करता रहा
भले ही उम्र तो बड़ी लेता गया
हकीकत में तू छोटा होता गया
तेरे अहम् ने ही तुझे ऐसा बनाया
उम्रदराज हो तू रोता गया
पर भला न कर सकता था
उस वक़्त तू यह न चाहता रहा
जब अच्छा करने का वक़्त था
तब तू बुरा-बुरा करता रहा
बात बने
जो मेरे जेहन में है वह सभी में है
यह समझे सभी तो कोई बात बने
दिलों में जलते अंगारे बुझ जाये
तभी सबके दिलों में खुशियाँ मने
आदमी को आदमी पहचानने लगे
राहें अमन की है फिर देखो सामने
ना गिरने दे किसी को दर्दे दरिया में
कोई आ जाये भाग कर उसे थामने
बहने लगे नांव जब किसी की
बचाये लोग, उसे लगे खेने
जो मेरे जेहन में है वह सभी में है
यह समझे सभी तो कोई बात बने
जिन्हें राहों में चलना नहीं आता
उद्यत हो सभी उसे चलना सिखाने
माहौल सौहार्द का बने ऐसा
कोई न लगे किसी को तड़फाने
एक ही रंग का खून है सभी में
सभी को विश्व वसुन्धरा ने ही जने
जो मेरे जेहन में है वह सभी में है
यह समझे सभी तो कोई बात बने
आँचल तेरा माँ
आँचल माँ तेरा नभ से बड़ा है
इसने सृष्टि को अपने में समेटा है
जिंदगी भर सुरक्षा तू देती है हमें
ऐ माँ तुम पर हमारी बड़ी निष्ठा है
तेरा आँचल है शीतलता का आगर
वात्सल्य रस में यह भीगा हुआ है
ममता लुटाती है तू हे माँ हम पे
प्रसाद तेरा यह तुझ पर छुपा हुआ है
प्रेम पलता रहता है तेरे आँचल में
जो हर पल हमको सुख देता है
आँचल तेरा माँ नभ से बड़ा है
सृष्टि को इसने अपने में समेटा है
संतान तेरी जब पीती है, दूध तेरा
तेरा आँचल उस पर सरक आता है
कहीं नजरा न जाये संतान तेरी
ऐ माँ यह भाव तेरा प्रकट हो आता है
भूल न पाती तेरा प्यार संतान तेरी
जो उसे जीवन भर सुरक्षा देता है
आँचल तेरा माँ नभ से बड़ा है
इसने सृष्टि को अपने में समेटा है
रुठने न देना किसी को
सदियों से संस्कृति रही है यही
कि रूंठे हुओं को मनाना है
अपनों से दूर जो हो गया है
उसे फिर से अपना बनाना है
फिर रूंठने न देना किसी को
बेड़िया बुराई की तोड़ देना
भले मेल न हो किसी के विचारों से
पर दिल से नाता उनका जोड़ लेना
कोई रुठे नहीं कहीं भी कोई
ऐसा आवाम हमको बनाना है
सदियों से रही है यही परम्परा
कि रूठे हुओं को मनाना है
रूंठने वालों, छदम ही रूंठो
रूंठ कर भी प्यार को मनाना है
अवाम में बनी रहे सदा समरसता
सहृदयता से अवाम को सजाना है
किसी के हक़ को छीनना नहीं
वाजिब हक़ को उसे दिलाना है
दूर हो गए है जो अपनों से
फिर से उनको अपना बनाना है
युवा तू सोया न रह
युवा तू सोया न रह अब
क्रांति का तू बिगुल बजा
समाज में जो आ गयी विकृतियाँ
मिटा उन्हें तू दे क़ज़ा
नवनिर्माण करना है तुझको
अवाम को तुझे ही सजाना है
घुस आये है यहाँ घुसपैठिए
उन्हें पीट के दूर भगाना है
सीमा की रक्षा करनी है तुझको
सुरक्षा अवाम की तुझ पर है
अपनी ही तू न सोचते रहना
आज देश का भार तुझी पर है
नवजाग्रति फैलानी है तुझको
जन जन को तू आज जगा
युवा तू सोया न रह अब
क्रांति का तू बिगुल बजा
जन समस्याएँ न रहे कहीं
निराकरण इनका तुझको करना है
एक जुटता का अभियान चला के
समस्यायों को मिटा के रखना है
हक जिसका जो भी है जितना
उसे उसको तुझे दिलाना है
सुचना का अधिकार है जो तेरा
उसको जनहित में तुझे भुनाना है
घूस रिश्वत का जो घुन लगा है
मसल मसल के उसे मिटाना है
जो भी घूस लिया करते हैं
उन सबको धूल चटाना है
हरियाली में तू पीछे न रहना
उचित जगहों पर तू पौध लगा
हर युवा अपने जन्म दिवस पे
पौध लगाए, ऐसी उनमे लगन लगा
भारत माता का तू सपूत है
इस उक्ति को तू न लजा
युवा है सोया न रह अब
क्रांति का तू बिगुल बजा
कृषक तू अपना कर्म कर
कृषक तू अपना कर्म कर
दुनिया के लोगों का पेट भर
कर्मयोग को अपनाना तू
फल की इच्छा कभी न कर
तेरे काम को हर कोई पूछता
तेरा ध्यान सभी रखा करते है
हक़ तुझको तेरा मिलेगा पूरा
तुझे नाज़ देश का कहा करते है
ख्याल तेरा सबको रहता है
तू कार्य की चिंता कभी न कर
कर्म योग को अपनाये जा
फल की इच्छा तू कभी न कर
कब हुई बता तेरी अनदेखी
तनिक लोभी तुझे फँसा लेते
तू थोड़ा अगर पढ़ लिख जाता तो
फिर देख तेरा कोई क्या ले लेते
सियासत में न फँस के रह
ईश्वर पर तू विश्वास कर
कृषक तेरी जय है सदा
न अपनी छवि का बिगाड़ कर
राहें
राहें तो होती है गुजरने के लिए
अम्बार कचरे के लगाने को नहीं
काँच, कांटे चुभेंगे तुम्हारे ही
प्रदूषण फ़ैलाने की वह जगह नहीं
साफ़ सुथरी रहने दो राहों को
इनको सदा चमकती रहने दो
सफर तुम्हारा सुकून भरा होगा
उन्हें अपने स्वरुप में रहने दो
जिन राहों में फैलाया जाता कूड़ा
वहाँ साँस लेना भी मुमकिन नहीं
राहें तो होती है गुजरने के लिए
अम्बार कचरे के लगाने को नहीं
राहें क़दम तुम्हारे बढ़ाती जाती
मंजिल भी तुम्हे दिलाती रहती
कालिख न पोतो राह की दीवारों पे
यह तस्वीर सबको खलती रहती
अपने पर दाग न लगाओ लोगों
क्यूँ कोई राह का दर्द समझता नहीं
राहें तो होती है गुजरने के लिए
अम्बार कचरे के लगाने को नहीं
प्रीत वाला रंग
दुनिया में तो है तरह-तरह के रंग
एक रंग होता है प्रीत वाला रंग
जब प्रीत-रंग में कोई रंग जाता है
दिल में उठ आती, उसके रंगीन उमंग
प्रेमियों में जब है रमता प्रेम का रंग
हो उठता है उनका पुलकित अंग-अंग
हसीन सफ़र ज़िन्दगी का हो उठता शुरू
प्रेम प्रतिदान में फिर दिल नहीं रहता तंग
चमकने लगेगा जब प्रीत का रंग
फिर न रह पायेगा कोई कहीं असंग
जुदाई भी फिर कहीं दिखेगी नहीं
कहीं होगा ज़ख़्म उस पर लगेगा पंख
फैलेगा जब अवाम में प्रीत वाला रंग
सारी दुनिया से फिर मिट जायेगी जंग
दुनिया में तो है तरह-तरह के रंग
एक रंग होता है प्रीत वाला रंग
हाथ अपनों का थामना
दुनिया में तू आ तो गया
न समझा ज़िन्दगी का मायना
खुद को पहचान न पाया तू
जब अपने साये से हुआ सामना
गुस्ताखियाँ तू पुरजोर करता गया
तूने अपनी गलतियों को नहीं माना
माफ़ तुझको करे भी तो कैसे
तूने लूटा है अपनों का खजाना
मिन्नतें करते गये तेरे सामने
दिखाते भी गए तुझे तेरा आयना
दुनियाँ में तू आ तो गया
न समझा ज़िन्दगी का मायना
जीना तुझे था अपनों के लिए
तूने तो मरना मिटाना सिख लिया
जुल्मी ज़िन्दगी को ढो-ढो के तूने
अपनी मातृ भूमि को बोझ दे दिया
अब तू अपनों को दूर न कर
तू हाथ अपनों का थामना
खुद को न पहचान सका तू
तेरा जब हुआ वक़्त से सामना
निर्मल धारा
कहाँ लुप्त हो गयी है अब
बहती सरिता की अविरल धारा
नदी किनारे रहते जीवों का
दुविधा में हो गया जीवन सारा
वनस्पतियाँ कुम्हला गयी हैं
वन भी मासूम हो गए हैं
पय पीने को तरस गए है वे
जीव भी वन के दुखी हो गए हैं
किसने रोका है इसकी धारा को
अवरोध बनाये हैं दीवारों के
बाँध बनाये वह तो अच्छे
पर क्यों छीना नदी किनारों को
नदी के जल को जला दिया है
क्यों समझ न रहा जग सारा
मलबा सारा इसमें बहाके
मनुष्यों ने ये क्या कर डाला
नदियाँ रहेगी तो हम रहेंगे
हमें ऐसा लगाना होगा नारा
दूषित न होने देंगे नदियों को
ये रही है सदा हमारी सहारा
जीवन-दायिनी नदियाँ होती है
अमृत तुल्य है इनकी धारा
कहाँ लुप्त हो गयी यहाँ से
बहती नदियों की अविरल धारा
लेखनी तू लिखती रह
लेखनी तू लिखती रह
तेरी लिखाई रोक मत
पढ़ के अच्छा या बुरा लगे
लोगों का होगा अपना मत
बुराई पर नकेल कस
अपनी तीखी की नोक से
डरना नहीं तू दुर्जनों से
उनकी नोंक झोंक से
दमन कर दुर्व्यसनों का
बनादे दुर्जनो को हत
लेखनी तू लिखती रह
तेरी लिखाई रोक मत
तू प्यार लिख प्यारी लगेगी
प्यार करने वालों को
एक नयी रोशनी देगी
बिना आँखों वालों को
उजाला फैला तेरी स्याही से
अंधियारे की बना दुर्गत
लेखनी तू लिखती रह
तेरी लिखाई रोक मत
भटके हुओ को राह दिखा
घूसखोरों पर कर प्रहार
अवाम को सजा तू स्याही से
और कर तू अमन का प्रसार
अपनी नोक तू चुभा ऐसी
जुल्मियों की बने दुर्गत
लेखनी तू लिखती रह
तेरी लिखाई रोक मत
बिटिया आयी आँगन में
बेटी हुई विदा जब घर से
बाबुल उसका बहुत रोया
रोना रुक नहीं पाया उसका
जैसे उसने सब अपना खोया
जब बिटिया आयी आँगन में
उसने आँगन में खुशियों को बोया
खुशबु बिखेरी उसने बहुत सी
उसके बिछुड़न पर बाबुल रोया
माँ भी बिलखी बहुत विदा पे
दिल का टुकड़ा उससे दूर हुआ
किसी और की हो गयी वो
जैसे माँ हारी जीवन का जुआ
पर जुदा नहीं हो पायी बेटी
बाबुल घर उसका सदा रहेगा
जब भी विपदा बाबुल घर आवे
दिल उसका तब फफकता रहेगा
जब तक रही बिटिया बाबुल घर
उसने घर को था ख़ूब सजाया
बेटी विदा हुई जब घर से
बाबुल का दिल बहुत रोया
माँ की आशाओं को रंगत देना
भले न देना माँ को माणक मोती
पर माँ को दिल अपना दे देना
दिल उसका तुम दुखने न देना
उसकी आँखों में आँसू मत देना
बहुत लाड किया तेरा तेरी माँ ने
तुझको इसका मोल चुकाना है
तिरस्कार कभी मत करना माँ का
उसके दिल से कभी दूर न जाना
जब तक नींद तुझे न आयी
माँ तेरी तब तक न सो पायी
तू हुआ रुग्ण जब कभी भी
तेरी माँ की आँखों में थी रुलाई
रोता था जब तू गोद में उसके
तुझको झूले में ख़ूब झुलाया था
मत भूलाना तू उसकी ममता को
उससे तूने जीवन अपना पाया था
माँ की आशाओं को रंगत देना
अपना सब अर्पण उसको कर देना
भले न देना माँ को माणक मोती
पर माँ को दिल अपना दे देना
मुनाफकत
कहता तो तू कुछ ओर ही
मगर करता मन की कुछ ओर ही
मुनाफकत अपना के जो तू रहता है
तो तेरी खिलाफत का कहीं छोर नहीं
तेरी कहनी और करनी में कभी
तू फ़र्क़ बना के मत रखना
फजीलत अपनी बना के रख तू
फिर सुकूँ के स्वाद को तू चखना
नाफरमानी कभी तू करना नहीं
हुक्म बड़ों का तू सदा मानना भी
कौनसी राह सही है या गलत
तू चलने से पहले उसे पहचानना भी
मुनाफकत का मुखोटा उतार फेंक दे
सही कर तभी तेरी होगी भोर ही
कहता तो तू कुछ ओर ही
मगर करता मन की कुछ ओर ही
हक़ मुस्कुराने का
हक़ मुस्कुराने का तभी है तुझको
जब तू किसी को रुलाये नहीं
आत्म सन्तोष तुझे तब ही मिलेगा
जब तू किसी को कभी सताए नहीं
पुण्य की परिभाषा जब तू समझेगा
हर आदमी तुझे अपना लगने लगेगा
पाप ही पाप अगर पनप गया तो
तेरा वजूद ख़ुद तडफने लगेगा
आज जो है पाप, अपराध, अन्याय
करना तू अपने को इनके हवाले नहीं
हक़ मुस्कुराने का तभी है तुझको
जब तू किसी को रुलाये नहीं
पुण्य कर्म जब तू करने लगेगा
यह पुण्य ही तेरा रखवाला बनेगा
साथ इसका तू कभी छोड़ना नहीं
सत्कर्म करके ही तू सत्पुरुष बनेगा
किसी को तकलीफ देने की मंशा
कभी भी तेरे मन में आये नहीं
हक़ मुस्कुराने का तभी है तुझको
जब तू किसी को रुलाये नहीं
अहमियत पिता की
जिंदगी को ज़िया जाए कैसे
यह गुर पिता ने मुझे सिखाया है
अहमियत पिता की है ही ऐसी
उन्होंने मुझे सुमार्ग ही सुझाया है
फर्ज मेरा है उन्हें मैं भूल न पाऊँ
जिन्होंने मुझे आशीष भरपूर दिया है
सुख दुःख में जीवन क्या होता है
यह ज्ञान उन्होंने मुझको दिया है
कैसे मैं सुख से जीवन जियूँ
वे मुझे आज भी सही राह दिखाते हैं
मैं कैसे शिखर तक पहुँच जाऊँ
हरपल हौसला मुझे वह दिलाते हैं
पिता को मैं कभी भूल न पाया
वो मेरे सपने में अक्सर आते हैं
जहाँ भी करता हूँ मैं कोई गलती
ख्वाब में आकर मुझे समझाते हैं
खुश रहना सिखलाया मुझे पिता ने
भले ही लोगों ने मुझको खिजाया है
जिंदगी को ज़िया जाए कैसे
यह गुर पिता ने मुझको सिखाया है
रिमझिम यह बारिश
रिमझिम रिमझिम बारिश में
मन मादक मेरा हो आता है
मन भावन सूरत पास नहीं है
उसे याद वह करने लग जाता है
रिमझिम रिमझिम बारिश मुझको
प्यार में एक दिन भिगो गई थी
प्यारी सूरत जो मुझसे दूर थी
यह वर्षा उसको मुझसे मिला गई थी
हो आई थी प्रीत आपसी हममें
वो लम्हा सामने आ जाता है
रिमझिम रिमझिम बारिश में
मन मादक मेरा हो आता है
प्रेम की प्यास मेरी बुझ आती
जब रिमझिम बारिश बरसती है
प्यार प्रफुल्लित हो आता मुझपे
जब शक्रधनु की छवि झलकती है
रात चांदनी में जब बारिश बरसी थी
प्रेयसी का रूप सामने हो आता है
रिमझिम रिमझिम बारिश में
मेरा मन मादक हो आता है
बेटा बेटियों में फर्क
यह क्या हो रहा है बच्चियों के संग
बच्चों की तरह उनका पोषण नहीं होता
कुपोषण से मज़बूत वह हो नहीं पाती
सदा उनको डर-डर के जीना ही होता
कोख माँ की कमजोर रह जाती है फिर
प्रसव के वक़्त उसे जीवन खोना होता
दबंगियों के द्वारा कभी ये कुचली भी जाती
कभी कभी अपमानित इन्हे होना भी होता
मजबूत न रह पाती मनस्थिति इनकी
दबी दबी-सी ये औरत बन के रहती है
ससुराल में दुखी बहुत होती रहती है ये
घरेलु हिंसा का दंश भी भोगती रहती है
समाज में दर्जा उसे दोयम का मिलता
उसे आगे बढ़ने नहीं दिया है जाता
बोझ समझा जाता है इन लड़कियों को
सुरक्षा के नाम पर पहरे में रखा है जाता
काश तब्दीली आ जाए ऐसी समाज में
जहाँ बेटा बेटी में फ़र्क़ नहीं हो रहा होता
आज बच्चियों के साथ यह क्या हो रहा है
बच्चों की तरह इनका पोषण नहीं होता
बड़ा दर्द दिया है तुमने
जिस ज़मीं ने जिन्दा रखा है तुमको
उसी को तकलीफ तुम दे रहे हो
किसी की आंखों में तुम आँसू भरते रहे
किसी का रक्त बहा तुम खुश हो रहे हो
रक्त रंजित ज़मीं को तुमने किया है
यह ज़मीं नहीं तुमको माफ़ करेगी
समझ रखो ये ज़मीं औरों की भी है
न समझे तो गाज फिर तुमपे गिरेगी
वनों को हटा के वनस्पतियाँ मिटा के
वनजीवों को यातना तुम दे रहे हो
जिस ज़मीं ने जिन्दा रखा है तुमको
उसी को तकलीफ तुम दे रहे हो
समंदर को भी नहीं छोड़ा है तुमने
प्रचुरता से उसमे प्रदुषण को घोला है
नदियों को जिन्दी नहीं रहने दी तुमने
उनके लिए तुमने मुँह मौत का खोला है
बड़ा दर्द दिया है तुमने पर्यावरण को
अपने पाप की नैया को तुम खे रहे हो
जिस ज़मीं ने जिन्दा रखा है तुमको
उसी को तकलीफ तुम दे रहे हो
छोड़ दो तुम अब दर्द देना ज़मीं को
प्रकृति को आँसूं देने का काम न करो
तुम जो कर रहे हो काम है अनीति का
वो पाप है, छोड़ो उसे तुम करने से डरो
जमीं से तुमने बहुत कुछ लिया है
जरा सोचो तो उसे तुम क्या दे हो
जिस ज़मीं ने जिन्दा रखा है तुमको
उसी को तकलीफ तुम दे रहे हो
ऐ मेरे गगन
क्षितिज़ पर आ झाँक जरा
पुकार सुन ऐ मेरे गगन
उधड़े जा रही है तेरी अवनि
तू आ के मेरा बन बसन
खींच रहे है मेरे आँचल को
बहुत लुटेरे यहाँ आ धमके
चाँद गुमसुम हो गया है
मायूस, सितारे भी न चमके
गात मेरा सब नोंच रहे है
जख्मी दिल मेरा हो रहा है
मेरी बेटियाँ जो है नदियाँ
उनका आब कोई सोंख रहा है
बदरंग मेरा आँचल हो गया
फैला दिया इतना प्रदूषण
कालिख-सा तम मुझपे फैला
काँप उठा है मेरा कण-कण
मेरे अरियों ने आग लगायी
मैं सह नहीं पा रही हूँ अगन
रक्षा कर तू अब तो मेरी
ऊपर वाले ऐ मेरे गगन
बेटी दुनिया में
क्यूँ दुनिया यह समझती नहीं है
कि बेटी ही बढ़ाती है दुनिया को
क्यूँ यह सोच बना रखी लोगों ने
कोख में, मारन जिन्दा गुड़िया को
संसार सजाया करती बेटियाँ
ये सृजक बन कर आती है
नन्ही सलोनी बाल बालिकाएँ
हम सबका मन हुसलती है
बेटी के है रूप अनेकों
यह समझ है सारी दुनिया को
क्यूं है सोच बना रखी लोगों ने
कोख में, मारन जिन्दा गुड़िया को
बड़ी हो के, ये हमारी बेटियाँ
पुरुषों का हाथ बटाती है
संग में सदा साथ रह कर के
घर में खुशहाली लाती है
अगर न रही बेटियाँ जग में
फिर जहांन कहाँ से बढ़ पायेगा
गर न बचाया बेटियों को हमने
तो अपने घर को कौन बचाएगा
सरिता तेरा पानी
पहचान तेरी विस्मृत हो गई
सरिता! तेरा पानी कौन पी गया
चित्कार भी तू कर नहीं सकती
तेरे होठों को कोई-सी गया
तेरी लहराती चाल की आवाज
कलकल छलछल गुम हो गई
जल भी नाराज हो चला गया
तेरी ज़मीन ग़मगीन हो गई
लहरे लिए तेरा रास्ता भी अब
मायूस मायूस रहने लगा है
तेरा तन सूखा रूखा हो गया
तेरा दिल अब रोने लगा है
तेरे होठों पर तरी तर थी
उसे कोई समेट ले गया
पहचान तेरी क्यूँ गुम हो गई
सरिता तेरा पानी कौन पी गया
तेरा रखवाला जो जंगल था
तेरी बस्ती से विदा हो गया
दो तट मध्य तेरा जो बसेरा था
तोड़ा किसी ने, वह गुम हो गया
तेरे दर्द से पर्वत भी दुखी है
तेरा आँचल उड़ कहीं चला गया
तेरी दशा पर इंसान द्रवित नहीं है
अभी जाने उसे क्या हो गया
तेरा आँचल उलझ के जीर्ण हुआ
वह दुखी हो परेशान हो गया
सरिता तू विस्मृत होती गई
ऐ सरिता पानी तेरा कौन पी गया
तट तेरा वीरान हो गया
वहाँ कुछ भी आबाद नहीं है
तेरे तट पर उगने वाले पेड़ों का
अब वहाँ कोई निशान नहीं है
जीवों का टोला अब यहाँ
तेरी तरफ़ रुख नहीं करता
भूल से अगर आ भी जाता
प्यास लिए वह भटकता रहता
भूले भटके कोई पशु पक्षी आता
वहाँ पानी का निशान न पाता
बिन पानी किलोले करें कैसे वो
उसका मन दुखी हो बुझ जाता
नदी तेरे तल को देख जीव
नभ की ओर ताकने लगता
तेरा प्यार जो उसमे रमा था
उससे अब वह भागने लगता
सरिता तेरी सुंदरता को
किस दुष्ट की नज़र लग गई
तेरा वजूद मिट चला तुझी से
तेरे आंसुओं की झड़ी लग गई
क्षुब्ध है मेरा मन देख तेरी दशा
सोचूं मैं अब तक कैसे जी गया
पहचान तेरी विस्मृत हो गई
ऐ सरिता तेरा पानी कौन पी गया
मुझे आस है स्वपन लेता हूँ मैं
तू फिर से सजने सँवरनें लग गई है
तेरे साथ सब हैं, घबराना मत,
कि तू किसी आपदा से घिर गई है
रमेश चंद्र पाटोदिया “नवाब”
प्रताप नगर सांगानेर जयपुर राजस्थान
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