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कलयुग के भगवान
तुम हो कलयुग के भगवान गुरु विद्यासागर।
तुम हो ज्ञान के भंडार
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करें गुण गान
गुरु विद्यासागर॥
बाल ब्रह्मचारी के व्रतधारी
सयंम नियम के महाव्रतधारी।
तुम हो जिनवाणी के प्राण
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर॥
दया उदय से पशु बचाते
भाग्योदय से प्राण बचाते
मेरे मातपिता भगवान
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर॥
जैन पथ हमको चलाते
खुद आगम के अनुसार चलते।
वो सब को देते विद्या ज्ञान
गुरु विद्यासागर।
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्यासागर।
तुम हो कलयुग के भगवान
गुरु विद्यासागर।
ज्ञान के सागर विद्यासागर
हम नित्य करे गुण गान
गुरु विद्या सागर॥
शीश झुका के देखो
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
गुरु चरणों में शीश झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
णमोकार मंत्र को जपके तो देखो।
तुम्हारे पाप कर्म धूल जायेंगे सारे।
ये सब अपने जीवन में उतार के तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी॥
निश दिन मंदिर में पूजा करो तुम।
तुम्हे शांति दिल में महसूस होगी।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
देव दर्शन निश दिन करके तो देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी॥
दया और धर्म तुम करके तो देखो।
ये माया सभी यही रह जाएगी सारी।
तेरे अच्छे कर्म ही तेरे संग जायेगे।
बाकि सभी यही पड़ा रह जायेगा सारा।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी।
दान धर्म तुम करके तो देखो॥
गुरु और प्रभु जी शरण में तो जाओ।
संतो की वाणी जा सुनकर तो देखो।
तुम्हे धर्म चेतना का आनंद यही पर मिलेगा।
गुरु और प्रभु की सेवा कर के देखो।
तुम्हे दिल लगी भूल जाने पड़ेगी॥
प्रभु चरणों में सीस झुका के तो देखो।
आचार्यश्री के चरणों में शीश झुका के तो देखो॥
गुरुभक्ति
जय जय-जय जय गुरु देव, मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझ को ले लो।
जय जय-जय जय गुरु देव, मुझे दर्शन दो॥
कल रात सपने में,
मैंने तुम को देखा था।
जैसे कह रहे थे तुम,
आ जाओ मेरी शरण।
ये कैसा सपना था,
क्या सच्च हो सकता है।
यदि ये सच हो जाये,
मेरा जीवन साभार जाये।
जय जय-जय जय गुरु देव, मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझ को ले लो॥
हर शाम सबेरे,
संजय तुम्हे जपता है।
हर सुबह उठाते ही,
तेरी पूजा करता है।
श्रध्दा और भक्ति का,
मुझे इतना फल तो दो।
मेरे दीक्षा गुरुवार,
तेरे कर कमलो से हो।
जय जय-जय जय गुरु देव, मुझे दर्शन दो।
अपनी शरण में तुम,
मुझ को ले लो॥
आचार्यश्री से प्रार्थना
गुरुदेव प्रार्थना है,
अज्ञानता मिटा दो।
सच की डगर दिखा,
गुरुदेव प्रार्थना है।
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने-अपने गुरु शरणम॥
हम है तुम्हारे बालक,
कोई नहीं हमारा।
मुश्किल पड़ी है जब भी,
तुमने दिया सहारा।
चरणों में अपने रख लो,
चन्दन हमें बना दो।
गुरुदेव प्रार्थना है,
अज्ञानता मिटा दो। १.
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने-अपने गुरु शरणम॥
पूजन तेरा गुरवर,
अधिकार मांगते है।
थोड़ा-सा हम भी तेरा,
बस प्यार मंगाते है।
मन में हमारे अपनी,
सच्ची लगन जगा दो।
गुरुदेव प्रार्थना है,
अज्ञानता मिटा दो। २.
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने-अपने गुरु शरणम॥
अच्छे है या बुरे है,
जैसे भी है तुम्हारे।
मुंकिन नहीं है अब हम,
किसी और को पुकारे।
अपना बन लो हमको,
अपना वचन निभा दो।
गुरुदेव प्रार्थना है,
अज्ञानता मिटा दो। ३.
ॐ विद्यागुरु शरणम,
ॐ जैन धर्म शरणम।
ॐ अपने-अपने गुरु शरणम॥
छोड़ दो
की अपना देश है महान।
जिसमें रहते सर्वधर्म इंसान।
विश्व में अलग ही है पहचान।
जिसे लोग कहते हिंदुस्तान।
ये देश है बहुत महान॥
जो नारी की लाज लूटते है।
नहीं उनको देते है सम्मान।
चाहे वह मुल्ला हो या महाराज।
नहीं है देश में इनका स्थान।
ये हिंदुस्तान छोड़ दे॥
जो रखते दिल में राम,
और रखते है इस्लाम।
और भड़कते है लोगों को।
और करते शांति यहाँ की भंग।
ऐसे लोगों के लिए भी,
नहीं है कोई स्थान।
ये सब है देश के गद्दार,
इन्हें करो देश से तुम बाहर।
ये हिंदुस्तान छोड़ दे॥
जो अपनी संस्कृति को जानेंगे।
उसे के अनुसार चलेंगे।
तभी बना पाएंगे फिर से,
इसे हम सोने की चिड़िया।
तभी फिर कह पाएंगे हम,
मेरा देश है बहुत महान॥
जिसे नहीं है इससे प्यार
वो हिंदुस्तान छोड़ दे।
वो ये देश छोड़ दे॥
साथी चाहिए
कटती नहीं उम्र मेरी
अब तेरे बिना।
मुझको किसी से मानो
प्यार हो गया।
जिंदगी की गाड़ी अकेले
अब चलती नहीं।
एक साथी की मुझे
अब ज़रूरत आ पड़ी॥
मिलना मिलाना ज़िन्दगी का
एक दस्तूर है लोगो।
खिल जाता है दिल जब कोई
अपना मिलता है यहाँ।
जिंदगी के इस सफ़र में
मिलकर चलो सभी।
यूँ ही ज़िन्दगी हंसते हँसते
मानो गुजर जायेगी॥
मतलबी लोगों से थोड़ा
बच के तुम चलो।
कब धोका तुम्हें दे देंगे
पता चलेगा भी नहीं।
इसलिए अपनेपन की
परिभाषा तुम सीखो लो।
फिर उसके अनुसार ही
अपनो को तुम चुनो॥
जीवन तुम्हारा सही में
सवंर जाएगा।
हर मुश्किल की घड़ी में
अपना तुम्हें दिख जाएगा।
कौन तेरे साथ खड़े है
मुश्किल की घड़ी में।
सब कुछ तुझे
समाने नज़र आएगा॥
अच्छे बुरे लोग
तुझे दिख जाएंगे।
चक्र संसार का
तुझे समझ आ जायेगा।
जिंदगी को जीना
कोई आसान नहीं होता।
मिल जुलकर जीओगें तो
जिंदगी में आनदं आएगा।
इसलिए साथी का साथ
होना बहुत ज़रूरी हैं॥
भक्ति
भक्ति में करता प्रभु की,
साँझ और सबेरे।
चरण पखारू तेरे
साँझ और सबरे।
चरण पखारू तेरे
साँझ और सबरे।
तेरे मस्त-मस्त दो नैन
मेरे दिलको दे रहे चैन।
तेरे मस्त-मस्त दो नैन।
क्या ज्ञान क्या अज्ञानी जन,
आते है निश दिन मंदिर में।
एक समान दृष्टि तेरी
पड़ती है उन सब पर।
पड़ती है दृष्टि तेरे उन सब पर।
तेरे कर्णना भर दो नैन
मेरे दिलको दे रहे चैन।
तेरी कर्णना भरे दो नैन
मेरे दिलको दे रहे चैन॥
त्याग तपस्या की
ऐसे सूरत हो।
चलते फिरते
तुम भगवान हो।
दर्शन जिसको
मिल जाये बस।
जीवन उनका धन्य होता।
जीवन उनका धन्य होता।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब।
तेरा जिसको मिले आशीर्वाद।
उसका जीवन हो जाये कामयाब॥
भक्ति में करता
विद्यासागर जी की।
चरण पखारू उनके
साँझ सबरे।
चरण पखारू उनके
साँझ सबरे।
तेरी कर्णना भरे दो नैन,
मेरे दिलको दे रहे चैन।
तेरे मस्त-मस्त दो नैन
मेरे दिलको दे रहे चैन।
मेरे दिल को दे रहे चैन॥
खत उनके नाम
खत प्यार का एक
हमने उनको लिखा।
पर पोस्ट उस को
अब तक नहीं किया।
अपने दिलके लब्जो को
अपने तक सीमित रखा।
बात दिल की अपनी
उन तक पहुँचा न सका॥
डर बहुत मुझको उनसे
और अपनों से लगता था।
कही बात का बतंगढ़
कुछ और बन न जाये।
इसलिए मैं अपने प्यार का
इजहार उनसे कर न सका।
और जो आंखों से चल रहा था
उसे ही आगे जारी रखा॥
लगता था एक दिन
बात बन जाएगी।
प्यार के अंकुर
दिलों में खिल जाएंगे।
पर ऐसा अब तक
कुछ भी हुआ ही नहीं।
और दोनों को किनारे
अबतक मिल न सकें॥
फिर समय ने अपना
काम कर दिया।
उनकी ज़िन्दगी में एक
नया अध्याय जोड़ दिया।
और हम किनारे बैठकर
दुनियाँ उजड़ते देखते रहे।
और प्यार का जनाजा
निकलता हम देखते रहे॥
बिना जाँच के परिणाम
उम्र बीत जाती है,
जिंदगी को बनाने में।
मेहनत करनी पड़ती है,
लक्ष्य को पाने में।
तब कही जाकर मंजिल,
हासिल कर पाते है।
और अपनी पहचान,
बना पाते है ज़माने में॥
हँसना तालियाँ बजबना,
आसान नहीं काम होता।
खुदका दर्द पीकर
जो हंसाये जग को।
वो बहुत ज़िंदा दिल
इंसान होता है।
मुर्दा होते है वो
जो गमो में डूबे रहते है।
और ज़िंदा होते हुए
मुर्दा बन जाते है॥
दाग ज़िन्दगी पर
तब लग जाता है।
जब बिना मूल्यांकन के
अंक दिया जाता है।
और ज़िन्दगी को तहबा
कर दिया जाता है।
जिंदा रहते हुए
मार देते है उसे।
और कर देते है
बदनाम उसे जग में॥
बैकिंग प्रणाली
देखो देखो लोगों बैंकों का
क्या हाल हो गया।
लोगो के पैसे जमा होते
हुए भी बैंक कंगाल हो गया।
मध्यमवर्ग वालो की कमाई
व्यापारी लेकर फरार हो गया।
और चूना बैंकको के साथ ही
मध्यमवर्गीयों को लगा गया।
देखो देखो लोगों बैंकों का
क्या हाल हो गया॥
बहुत देखे अमीर जादे जो
बैंक में पैसे जमा करते नहीं।
पर पैसा बैंकों से लेकर
खुदको दिवालिया कर लेते है।
और बैंकों का पैसा फिर
कभी वापिस करते नहीं।
जिससे बैंक के साथ ही
जमाकर्ताओ को डूबा देते है।
और खुदका पैसा लेने
बैंकों के चक्कर लगाते है।
जिसके चलते कुछ तो
भगवान को प्यारे हो जाते है।
और कुछ जमाकर्ता
जीते जी मर जाते है॥
वक्त आ गया है लोगों
जरा संभाल जाओ तुम।
मेहनत की कमाई अपनी
मत जमा करो अब बैंकों में।
रखो सुरक्षित अपने घरों में
अपना अपना धन तुम लोगो।
ब्याज के थोड़े लालच
मत फसो अब तुम लोगो।
यदि जमाकर्ता ऐसा मिलकर
तुम सब कर जाओगे।
तो बैंकों की कार्य प्रणाली
बिल्कुल बदल जाएगी।
फिर कर्जा लेने उद्योगपति
मध्यमवर्गीयों के पास आएंगे॥
फिर कहंगे लोग
देखो देखो बैंकों का
क्या हाल हो गया।
पूरा देश खुशाल हो गया॥
पानी है अनमोल
पानी है अनमोल,
समझो इसका मोल।
जो अभी न समझोगे,
तो सिर्फ़ पानी नाम सुनोगे॥
आने वाले वर्षों में,
पानी बनेगा एक समस्या।
देख रहे हो जो भी तुम,
अंश मात्रा है विनाश का।
जो दे रहा तुमको संकेत।
जागो जागो सब प्यारे,
करो बचत पानी की तुम।
बूंद बूंद पानी की बचत से,
भर जाएगा सागर प्यारा॥
बिन पानी कैसे जीयेंगे,
पड़े पौधे और जीव जंतु।
और पानी बिना मानव,
क्या जीवित रह पाएगा।
बिन पानी के वो, भी मर जायेगा।
और भू मंडल में कोई,
नजर नहीं आएगा।
इसलिए संजय कहता है,
नष्ट न करो प्रकृति के सनसाधनों को॥
बचा लो पानी वृक्षो और पहाड़ों को।
लगाओ और लगवाओ,
वृक्षो को तुम अपनो से।
कर सके ऐसा कुछ हम,
तभी मानव कहलाओगे।
पानी विहीन भूमि में,
पानी को तुम पहुँचोगे।
और पड़ी बंजर भूमि को,
फिर से हराभरा कर पाओगे।
और एक महान कार्य करके,
दुनियाँ को दिखाओगे॥
हिंदी उर्दू मेरी मां
हिंदी मेरी माँ है तो
उर्दू है मेरी खाला।
दोनों ने ही मिलकर
मुझे बचपन से है पाला।
दोनों की रहनुमा ने
लेखक कवि बना डाला।
कैसे मैं भूल जाँऊ
अपनी दोनों मांओ को।
जो कुछ भी में बना हूँ
दोनों के ही कारण॥
हिंदी और उर्दू ने
मुझको दिलाई सौहरत।
बैठा हूँ जो शिखर पर
इबाद है सब उनकी।
जब भी में गिरा तो
थमा है इन दोनों ने।
फिर से मुझे चलना
इन दोनों ने सिखाया है।
कैसे में अपनी माँ और
खाला को भूल जाँऊ॥
कितने कमीने और
खुदगर्ज होते है इंसान।
मतलब के लिए अपने
मां और खाला को लड़वाते है।
और उनकी गर्म हवाओं में
रोटियाँ अपनी शेखते है।
पर फिर भी अलग नहीं
कर पाते दोनों बहिनों को॥
हिंदी मेरी माँ है तो
उर्दू है मेरी खाला।
दोनों ने ही मिलकर
मुझे बचपन से है पाला॥
अकेला
न कोई मेरा है
न ही में किसका।
आया हूँ में अकेला
तो अकेला ही जाऊंगा।
तो फिर क्यों किसी से
बनाये हम यहाँ सम्बंध।
सभी की सोच नहीं होती
लोगो मेरे जैसी।
कितना जीना है हमको
और कब हम मर जायेंगे।
किसी को भी ये बाते
जिंदगी की पता नहीं होती।
इसलिए तो हर इंसान
जीवन जीता है मस्ती से।
और सारे यश आरामो को
भोगता अपने जीवन में।
यदि जीने मरने का समय
पता चल जाएगा उसको।
तो ज़िन्दगी मस्ती से जीयेगा
या समय से पहले मर जायेगा।
विधाता ने यही तो राज
सभी से छुपा के रखा है।
और सभी की ज़िन्दगी को
संसार में उलझा रखा है।
इसलिए उस चक्र में
सभी लोग जीते है।
और कुछ अच्छे तो
कुछ बुरे कर्म वह करते है।
तभी तो स्वर्ग नरक को
सभी यही पर भोगते है।
जो समझ जाता है मानव धर्म
वो अच्छे से जीवन जीता है।
तभी तो वह दान दया के
पथ पर चलता है।
और अपना अगला भव
यही पर निश्चित करता है।
और संसार में अकेला
आता और जाता है॥
जन्माष्टमी
कितना पवन दिन आया है।
सबके मन को बहुत भाया है।
कंस का अंत करने वाले ने,
आज जन्म जो लिया है।
जिसको कहते है जन्माष्टमी॥
काली अंधेरी रात में नारायण लेते।
देवकी की कोक से जन्म।
जिन्हें प्यार से कहते है।
कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम॥
लिया जन्म काली राती में,
तब बदल गई धरा।
और बैठा दिया मृत्युभय,
कंस के दिल दिमाग़ में।
भागा भागा आया जेल में,
पर ढूढ़ न पाया बालक को।
रचा खेल नारायण ने ऐसा,
जिसको भेद न पाया कंस॥
फिर लीलाएँ कुछ ऐसी खेली।
मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी।
माता यशोदा आगे पीछे भागे।
नंदजी देखे तमाशा माँ बेटा का॥
सारे गाँव को करते परेशान,
फिर भी सबके मन भाते है।
गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये,
बन्सी की धुन पर थिरकते है।
और मौज मस्ती करके,
लीलाएँ वह दिख लाते है।
और कंस मामा को,
सपने में बहुत सताते है॥
प्रेम भाव दिल में रखते थे,
तभी तो राधा से मिल पाए।
नन्द यशोदा भी राधा को,
पसंद बहुत किया करते थे।
गोकुल वासियों को भी,
राधा कृष्ण बहुत भाते थे।
और प्रेमी युगलों को भी,
कृष्ण राधा का प्यार भाता है॥
विश्वास
बहुत फक्र करते थे
हम अपनो पर यार।
बंद आंखों से विश्वास
करते थे उन पर हम।
पर पढ़ न सके उन्हें
साथ रहते हुये हम।
तभी तो उठा दिया जनाजा विश्वास का आज।
और आंखे मेरी खोल दी,
की मत करो किसी पर विश्वास॥
जो अपनो से विश्वास
घात करता है।
और अपनो को अपना
बनकर लूटता है।
एक दिन ऐसा आएगा
उनके भी जीवन में।
सब कुछ रहेगा पास
पर अपना न होगा कोई॥
जब तक तेरे सितारे
बुलंद होते है,
तबतक तेरा कोई कुछ
बिगड़ सकता नहीं।
इसलिए तो अपने कामो पर करता रहा घमंड।
पर जब आता है बुरा वक्त
तब कोई भी साथ नहीं देते।
तब अपने किये गये कर्म
याद बार-बार आते है,
पर तब तक देर
हो चुकी होती॥
चार चांद लगा दिया
मेरे गीतों की
सुनकर आवाज़ तुम।
दौड़ी चली आती
हो मेरे पास।
और मेरे अल्फाजो को
अपना स्वर देकर।
गीत में चार चांद
तुम लगा देती हो॥
लिखने वाले से ज्यादा
गाने वाले का रोल है।
चार चांद तब लग
जाते है गीतों में।
जब मेरे शब्दों को
दिलसे तुम गाती हो।
और गीत को अमर
तुम बना देती हो॥
मैं वह ही लिखता हूँ
जो दिलसे निकलता है।
एक एक शब्द मेरा
खुद हक़ीक़त कहता है।
तभी तो पढ़ने वाले भी
खुद गुनगुनाने लगते है।
और रचना को सार्थक
वो बना देते है॥
किसी पर तो आएगा
न दिल की प्यास,
मेरी बुझती है।
न दिल को,
चैन मिलता है।
पर न जाने,
क्यों तुम्हारी यादे।
इस दिल से,
जाती नहीं है॥
कदम क़दम पर,
तुम याद आते हो।
दिलकी गैहराइयो में,
क्यो समाये हो।
क्या रिश्ता है,
तेरा और मेरा।
एक बार सामाने,
आके बताओ तो तुम॥
कसम उस खुदा की,
जिसने तुझे बनाया।
और मोहब्बत को जगाने,
मेरे दिलमें क्यों आये।
दिलमें बसा लूंगा तुम्हें,
रानी बनाकर रख लूंगा।
पर ये तभी संभव है,
जब तुम सामाने आओगे॥
कब किससे कहाँ पर,
प्यार हो जाये।
और मोहब्बत का,
अंकुर पनाप जाए।
दिल है हमारा यारो,
किसी पर तो आएगा।
तो वह आप क्यों, नहीं हो सकते हो॥
मिलन का वियोग
इस अस्त व्यस्त से,
भरे माहौल में।
पत्नी बच्चे आशा,
लागाये बैठी है।
की कब आओगें,
अपने घर अब तुम।
अब तो आंखे भी,
थक गई है।
तुम्हारे आने का,
इंतजार करते करते॥
महीनों बीत गए है,
तुम्हे देखे बिना।
बच्चे भी हिड़ रहे है,
तुमसे मिले बिना।
की कब आएंगे पापा,
हम सब से मिलने।
तभी मम्मी का मुरझाया,
चेहरा खिल जाएगा॥
पिया का वियोग,
क्या होता है।
यह पतिव्रता नारी,
समझ सकती है।
अपनी तन्हाईयो का,
जिक्र किससे कहे।
जब पति ही दूर हो तो,
अपनी व्यथा किससे कहे॥
इस अस्त व्यस्त भरे माहौल से,
कैसे मिले हमे छुटकारा।
कोई तो बताये जिससे,
मिल सके अपने परिवार से।
सबके शिकवे शिकायते,
हम दूर सके इस माहौल में।
और हिल मिलकर अब,
जी सके उनके साथ हम॥
संजय जैन मुम्बई
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