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सिपाही की टोपी (military cap)
सिपाही की टोपी (military cap): लाल टोपी “कैदी” है
ब्लू टोपी “जैधी” है
लाल टोपी “बंधुआ मजदूरी” है
ब्लू टोपी अपनी “मन की मंजूरी” है
लाल टोपी “सहनशीलता की परीक्षा” है
ब्लू टोपी “हर परिणाम अच्छा” है
लाल टोपी पर “हुकूमत सबकी लगती खानदानी” है
ब्लू टोपी पर केवल “अपनी निगरानी” है
लाल टोपी की “कुत्तों जैसी कहानी” है
ब्लू टोपी “खरगोश-सी मेहरबानी” है
लाल टोपी “एक अल्हड़ जिंदगानी” है
ब्लू टोपी “समझदारी भरी कृपानिधानी” है
लाल टोपी पर “हर किसी की नज़र भारी” है
ब्लू टोपी की “अपनी ही मनमानी” है
मगही “शराब गीत”
तू काहे पियत शराब
तोहर आदत ई खराब
अब मान ई बात
हमर बाबूजी—-२
तोहरे से घरवा भईल बरबाद
तू काहे पियत शराब
हमर बाबूजी—-२
तोहरे के देख मम्मी रह हई उदास
फुट-फुट के जाग रोव हई रात
हमर बाबूजी—-२
तू काहे पियत शराब
हमर बाबूजी—-२
तारी-दारू में न हई कवनो विटामिन खास
हमर बाबूजी—-२
छोड़ द शराब
हई ये जानलेवा बुखार
हमर बाबूजी—-२
थाली बेचल, लोटा बेचल
बेचल सब खाट
हमर बाबूजी—-२
इहे से भी न मानलव तोहर मिज़ाज त…
बेची देल तू सबे रोजगार
हमर बाबूजी—-२
और बनी गेल तू बड़ी बेरोजगार
हमर बाबूजी—-२
तोहर आदत ई खराब
तू काहे पियत शराब
तोहरे से घरवा भईल बरबाद हमर बाबूजी—-२
अब मान हमर बात
तू छोड़ द शराब
हमर बाबूजी—-२
तू काहे पियत शराब
हमर बाबूजी—-२
वर्दी के बोझ तले
मैं वर्दी के बोझ तले जीवन बताऊंगी
मगर तेरे कोई भी सवाल का जवाब नहीं दे पाऊंगी
अपना कहना हो तो पीछे में कहना
सामने से ये शब्द सुन मैं आंखें दिखाऊंगी
तीन वक़्त की रोटी दे न सके जो हाथ मुझे
उस हाथ का दिया कोई उपहार से
कभी अपनी चौखट तक भी नहीं सजाऊंगी
मैं कमाऊंगी, हाँ ज़रूर कमाऊंगी, बहुत कमऊंगी
मगर बिन जाने तेरी मर्जी इसे हम ही उड़ाऊंगी
ताने मार-मार कर जब तुमने मेरी भविष्य को पहचाना नहीं तो
अब अपनी कोई भी अगला क़दम में
तेरी दखअंदाजी नहीं सहूँगी
तेरी दी जंजीर को एक बार मैंने स्वीकार करी हूँ
अब कोई भी जंजीर लगाने की कोशिश भी किए तो…
मैं तुमसे सारा रिश्ता तोड़
तेरा घर छोड़ आ जाऊंगी
आपने छुआ और ये तन
जिंदगी आपको पाके धन्य हो गई
घिनौनी-सी ये जिस्म की सूरत बदल गई
‘बदबू’ थी जहां-जहाँ “खुशबू” भर गई
मैली ये जिस्म सोना बन गई
“चंदन की खुशबू” आती है अब मुझसे
आप ने छुआ ये तन ‘पारस’ बन गई
ले लिए छीनकर आप जब से ये दिल
हर किसी की आरजू बन गई
क्या फायदा ज़माने की आरजू का अब
जब इसे संभालना आपको छोड़
हर किसी के लिए आफत बन गई
मेरी इस तलाशी ने तो “शिव” तलाश लिया
अब इस तलाश के बाद अरमान कहाँ
कोई और तलाशी की रह गई
ऐसी ज़िन्दगी का सुख कहाँ था मेरे नसीब में
ये तो क़िस्मत है मेरी की नज़र आपसे मिल गई
काम आ गई होगी मेरा एक पल भी
आपके सुकून के लिए
समझिये मेरी ज़िन्दगी सफल हो गई
फकीरों की सहनसीमा
कब तक सहेंगे इतना जितना अब तक सहे हैं
आपको सब पता है ‘सितम’ आप पर किसने किए हैं
अपनी ना तो मेरी तो फिकर कीजिए
अब तो हिसाब रखिए “किसके लिए कितना किए हैं”
मेरी इतनी हैसियत नहीं कि ये सब कहूँ आपसे
मगर मेरी खामोशी चाहते हैं तो
अब अपना फ़िक्र कीजिए “जितना सबका किए हैं”
मुझे क्या लेना देना ऐसी वैसी बातों से
मुझे बस आपकी वैसी ही सलामती चाहिए जैसे
जग सलामती के लिए आप हर रोज़ दुआ किए हैं
अगर कुछ बोल कर मैंने गुनाह की तो माफ़ कीजिए
और मैं ऐसी गुनाह दोबारा ना करूँ
इसके लिए पहले आप
अपने लिए जमा वह सारी खुशियाँ कीजिए
“जो दान किए हैं”
रिमझिम बारिश
सूरत प्यारी है रिमझिम बारिश की
अदा कातिल है रिमझिम बारिश की
एक ख़्वाब हसीन रिमझिम बारिश की
हर दुआ कबूल होती रिमझिम बारिश की
भीगी भीगी-सी ख़्याल रिमझिम बारिश की
हर पल सुकून का पल रिमझिम बारिश की
हर आहट में उमंग रिमझिम बारिश की
हर फाटक पर त्यौहार रिमझिम बारिश की
पागल-सी अदा रिमझिम बारिश की
शायराना मिज़ाज रिमझिम बारिश की
प्रेमियों का अरमान रिमझिम बारिश की
कवियों का ख़ास किताब रिमझिम बारिश की
शुक्रगुजार मैं हर पल रिमझिम बारिश की
देन मेरी लबों की हंसी रिमझिम बारिश
राखी
रिश्ते का अपनापन बताती है “राखी”
रिश्ते का सजावट दिखाती है “राखी”
भाई-बहन से लेकर
माँ-बेटी, पिता-पुत्र, गुरु-शिष्य
और दोस्तों के बीच का प्यार जताती है “राखी”
एक रिश्ते का प्रतीक नहीं “राखी”
हर मधुर रिश्ते का सिंदूर है “राखी”
लाज बचाने से लेकर
हर दर्द भुलाने में भी साथ निभाती है “राखी”
बहन की मीठास है “राखी”
तो शिष्य का झुकाव है “राखी”
भाई का मान है “राखी”
तो दोस्त का सम्मान है “राखी”
पिता की मुस्कान है “राखी”
तो माता का दुलार है “राखी”
रक्षाबंधन का सबसे ख़ास है “राखी”
हीरे मोती से लेकर एक कच्चा धागा तक में भी
लिए समान का भाव है “राखी”
छोटा आकार लिए
ख़ुद में समाए पूरे जगत का प्यार है “राखी”
मेरी राखी
सावन मास की पूर्णिमा का प्रतीक नहीं”मेरी राखी”
हर दिन का है विश्वास “मेरी राखी”
जीने की लालसा है “मेरी राखी”
हर कठिनाई से लड़कर आगे बढ़ाने का हौसला है “मेरी राखी”
मेरी हर लफ्जों की मिठास”मेरी राखी”
एक दिन का त्यौहार नहीं
हर दिन का ही हंसमुख व्यवहार है”मेरी राखी”
खुद के हाथों से बनती है”मेरी राखी”
कम दाम ज़्यादा प्यार का प्रतीक “मेरी राखी”
मंगलसूत्र और सिंदूर से कीमती “मेरी राखी”
तन-धन रक्षक भाई के घर से पहले
जग रक्षक गुरु चौखट से होकर गुजरती है “मेरी राखी”
भाई की कलाई से पहले
गुरु चरण स्पर्श करती है”मेरी राखी”
किन्ही की होठों की हंसी
तो किसी की आंखों की नमी जैसी”मेरी राखी”
हाँ …
कुछ ऐसी ही है “मेरी राखी”
भैया आ रही हूँ मैं
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
रखना घर को सजाकर भैया “बहना आ रही हूँ मैं”
फूलों की डाल से कोई नन्ही कली ना तोड़ना
किन्हीं बड़े, छोटे को घर का मज़दूर कह
आज उनसे काम ना कराना
अपनी बाहों के प्यार का दरवाज़ा लगाना
अपनी मुस्कान को आँगन बिछाना
भैया अपने घर को कुछ ऐसे ही सजाना
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
नन्ही थी जब मैं तोड़ी थी जो-जो खिलौने
भैया उन सबों से एक झूला लगाना
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
रखना घर को सजाकर भैया “बहना आ रही हूँ मैं”
तेरी कलाई सजाने के बहाने
तुझे जी भर के निहारने
तुझे मिठाई खिलाने के बहाने
खुद में कि हर मिठास तुझ में समाने
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
रखना घर को सजाकर भैया “बहना आ रही हूँ मैं”
भैया फिर से नन्ही-सी परी बन के
पूरे आँगन महकाने”आ रही हूँ मैं”
बिन बहना के घर तेरा वीरान पड़ा है जो
उस में फिर से जान जगाने “आ रही हूँ मैं”
दिल छोटा न करना, भाभी के साथ मिलकर
माँ-पापा से बात ऊंचा ना करना
जैसे मैं रहती थी पहले तेरे घर में
वैसे ही फिर से एक दिन खातिर रहने “आ रही हूँ मैं”
तेरी आँगन की चिड़िया
तेरे आँगन की इस डाल से उस डाल पर बैठ के
चहचहाने “आ रही हूँ मैं”
एक नईहरा मेरा और एक ससुराल
अपना कोई ना घर जैसा तेरा वैसा मेरा
इसलिए कह रही हूँ भैया बारंबार
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
रखना घर को सजाकर भैया “बहना आ रही हूँ मैं”
एक दिन के खातिर ही सही
तेरे घर में अपना बचपन सजाने फिर से घर को “आ रही हूँ मैं”
बचपन के दिनों में कंधे पर जो घूमाए थे बाज़ार मुझे
उसी बाज़ार में तेरे संग घूमने फिर से “आ रही हूँ मैं”
मम्मी-पापा और भाभी के लिए ढेरों उपहार
और तेरे लिए ख़ुद चल कर “आ रही हूँ मैं”
तेरे घर आँगन में वापस “आ रही हूँ मैं”
रखना घर को सजाकर भैया “बहना आ रही हूँ मैं”
परिणीता राज ‘खुशबू’
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