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जिम्मेदारी (Responsibility)
Responsibility: बहुंत सोचा मेने इस ज़िन्दगी से मुहं मोड़ लू
चला जाऊँ सब छोड़ कर सबसे मुंह मोड़ लू
क्या रक्खा है साला इस बेरहम दुनियाँ में अभी
वो दिन गये जब सब कुछ था मस्ती में थे कभी
ना फिकर थी ना कोई चिंता रहती थी हमे ज़रा
मौज मारते थे घूमते फिरते खाते पीते थे ज़रा
इश्क लड़ा लेते थे आशिकी भरपूर थी जीवन में
पैसो की चिंता नहीं उड़ा लेते खुला था जीवन में
अब बुढ़ापे में पछता रहे है धक्के खा रहे है अभी
दिल नहीं लगता कोसते जीवन को मरने जा रहे अभी
तभी ख़्याल आया मूर्ख तो तुम ख़ुद थे जो सोचा ना कभी
आज उड़ा रहे हो मोज उड़ा रहे हो कल ना दिखा था कभी
कहते हो वह दिन मस्ती में थे फिकर चिंता ना की कभी
इश्क आशिकी मोज उड़ाई फ़िक्र ना कल की-की कभी
अब मरने जा रहे हो जीवन से परेशान हो तो जाओ अभी
जो जी ना सका दुखो के साथ वह अब क्या सुख लेगा अभी
हर परिस्थितियों में जिम्मेदारी समझना ही समझदारी हे
राजन बनोगे तभी जब मन को मार कर यही समझदारी है
चाहते हैं अभी
यू छिप-छिप कर आंसू बहाते हैं वो
कभी याद आते हो हमे
क्यो छोड़ दिये हमको सजन तुमने
कभी याद करते हो हमे
क्या कसूर था ये तो बताते
हमने तो प्यार किया था तुम्हे
तुम्ही रूठ कर चले गये
हम तो अभी भी चाहते तुम्हे
हम भावुक है आंसू बहा लेते है
सब सह लेते है ये पता है तुम्हे
तुम बन पत्थर के चले गए
हम केसे जी रहे ये पता है तुम्हे
प्यार अंधा होता है ये जानते हैं
तुम देख कर भी नहीं समझे
हमने तो बंद आंखों से किया प्रेम
राजन तुम देख कर भी नहीं समझे
कैसे भूल सकता हूँ
वर्षा के वह सुहाने दिन कैसे भूल सकता हूँ
रिमझिम बरखा के दिन कैसे भूल सकता हूँ
कच्ची गलियों के
मटमेले पानी को
तेज बहती धारो में
पत्तो फूलो की कतारो को
वर्षा के वह सुहाने दिन कैसे भूल सकता हूँ!
मेघों का गरजना
बहता हुआँ झरना
चमकती दामिनी का उजाला
बादलो का वह गड़गड़ाना
वर्षा के वह सुहाने दिन कैसे भूल सकता हूँ
कच्ची दीवार से बहती माटी
टपकती छत से बरखा का पानी
ठिठुरते रहते थे सर्द हवा से
रखते बर्तन में आता पानी
वर्षा के वह सुहाने दिन कैसे भूल सकता हूँ
ठंडी बोछारे पानी की वह धारे
पत्तो पर शबनम की बूंदे
शाखो से बहता पानी
पवन चलती थी सुहानी
वर्षा के वह सुहाने दिन केसे भूल सकता हूँ
कमरे की खिड़की से आती हवायें
खुलते बंद होते कपाट डराते थे
तेज हवा के झोंके के साथ बरखा
राजन हमे भिगो चलेजाते थे
वर्षा के वह सुहाने दिन कैसे भूल सकता हूँ
रिमझिम वरखा के दिन कैसे भूल सकता हूँ
हिन्दी पर हमे गर्व है
हिन्दी है हम तो हिन्दी पर क्यो ना गर्व करेंगे
अपनी मात्र भाषा हे ये इस पर हम नाज़ करेंगे
क्यो शर्माते हो तुम बोलने पर ये तो अपनी मात्र भाषा है
हम हिन्द के वासी ये तो हमारी धरोहर अपनी भाषा है
मधुर वाणी सजी अलंकार छंदो से रस भरी ये भाषा हमारी
युगों युगों से चली आ रही ऋषि मुनियों की ये भाषा हमारी
हर भाषा से मृदुल मधुर ये भाषा जग में सबसे निराली है
वीणा के तारो जेसी इसमें बसती सरस्वती माता हमारी है
कल कल करती गंगा यमुना जेसी पावन ये वाणी है
शब्द शब्द मोती-सा चमके ये हिन्दी हमारी वाणी है
हमे नाज़ है हम गर्व से कहे हमारी भाषा हिन्दी है
राजन भारत माता की ये तो माथे पर चमकती बिंदी है
धीयाँ
धीयाँ फुल्ला जिहया होंदे हर वेले महकदी राहवण!
तत्ती वा ना लगे इन्हा कू खिलदे वसदे ऐ राहवण!
क्या मंगदे ऐ धीयाँ शोदे सब कोझ वंडदे जो होंदे!
लाड़ मंगदी माँ प्यो दा ते भ्रावा दी ए जां होंवे!
टुर वेंदे ऐ खाली हथ ना अलेंदे भावे ज़ेरी झा होवे!
खेड खिडावणे खेडे ज़ेरे छोड़ गुडियाँ पटोले सारे!
संग सहेलियाँ नाल खेडी पढ़दे ज़ेरे नाल हण सारे!
टुर वेंदी पराये घार हंझू ज़ार-ज़ार ना कोझ अखेंदी!
हर धर्म माँ प्यो दा मान रखेंदी धर्म ऐ धीयाँ निभेंदी!
रब्बा हर घार वेच धी तू डेवी ऐ धीयाँ बऊ प्यारी होंदी
राजनकर डेंदी हू घार कू जित्था वी ऐ धीयाँ होंदी
विनोद ढींगरा राजन
फरीदाबाद हरियाणा
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