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प्रगति का मूल (core of progress)
(१)
कर्म कर ले,
प्रगति का है मूल (core of progress)।
कटेंगे शूल!
(२)
वीरता दिखा,
इतिहास रच ले।
होगा अमर।
(३)
पतझर है,
निराश मत बन।
आए वसंत।
(४)
चुप्पी साधना,
अनय के समक्ष,
उचित नहीं।
(५)
गरज मत,
बरस कर दिखा।
हरी हो धरा।
(६)
सच्ची कला,
जन हित के लिए,
गंगा पावन।
(७)
राम-नाम ले,
मोह-माया तज दे।
तरेगा तभी।
(८)
झूठ हारेगा,
जीत सच की होगी।
बात है सही।
(९)
शब्द खंजर,
शब्द हैं मरहम।
तोल के बोल।
(१०)
काटा बवाल
हासिल नहीं कुछ।
निरा ढोंग है।
हाइकु ११ – २०
(११)
दिया जलाया
अंधेरा हटे कैसे
तले में झांक।
(१२)
धर्म ओट में
मूरख लड़े क्यों
वो सबका है।
(१३)
मुक्ति चाहे तो
कर्म पथ पकड़
संघर्ष कर।
(१४)
कलुष मिटे,
आलोकित हो मन।
आया शरण।
(१५)
उलटी गंगा,
बहेगी फिर सीधी।
बिगुल फूंक।
(१६)
विपद पड़ी,
तुझे देश पुकारे।
ऋण चुका ले।
(१७)
ये जाने सभी,
गिरगिट तू पूरा।
अब सुधर।
(१८)
प्रजातंत्र में,
प्रजा रोए लाचार,
शर्मनाक है।
(१९)
दिखाए दिशा,
गिरे न मूल्यों से जो,
वही है कला।
(२०)
देख वेदना,
आंखें भरीं छलकीं।
बही कविता।
हाइकु २१ – ३०
(२१)
कर ले मान,
नारी है नारायणी।
जग जननी।
(२२)
सुन आवाज
अपनी आत्मा की।
सही है यही।
(२३)
घन ने ढका,
सूर्य को पल भर,
चमके फिर।
(२४)
समझें जब,
इक-दूजे की चुप,
बातें हैं व्यर्थ।
(२५)
गेंहू सिसके,
गुलाब इतराए।
कैसा विकास?
(२६)
मैला है मन,
साफ करता तन।
देख दर्पण।
(२७)
अब क्यों रोए?
भुगतना पड़ेगा,
फल कर्म का।
(२८)
फेंक मुखौटा,
पोल खुल के रहे,
इंसान बन।
(२९)
मैं हूँ महान
सब दोषों की खान
आईना देख।
(३०)
तूफां बरपा
डट कर सामना।
डर किसका?
हाइकु ३१ – ४०
(३१)
देवी को पूजे,
अजन्मी बेटी मारे
ढोंगी तू पूरा।
(३२)
लकीर छोटी,
हो सके बड़ी तभी
दिशा हो नई।
(३३)
मत धबरा
पथ है अनजाना।
गढ़ रास्ता।
(३४)
बहुत सहा
अब उठा ले सिर,
चीख ज़ोर से।
(३५)
पसीना बहा
सन जा गो रज में,
मिलेगा ब्रज।
(३६)
देख सपने
जीवन का आधार
होंगे साकार।
(३७)
सींकचे तोड़,
उड़ छू ले आसमां।
तौल परों को।
(३८)
महल हंसे
झोंपड़ी सिसकती
नींव हिला दे।
(३९)
बातें तुतली,
ठुमुक चले शिशु
मैया निहाल।
(४०)
देख तो ज़रा
उतरी सांझ परी
गुलाब बनी।
हाइकु – ४१ – ५०
(४१)
टेरी बांसुरी
मोहन रागभरी
राधा बरजै।
(४२)
मैं और तू
बूंद और समुद्र
मिलूं तुझमें।
(४३)
खेल-खिलौने
मस्ती बचपन की
ढूँढूं मैं कहाँ।
(४४)
नभ कागज
सूरज चित्रकार
धरा रंगोली।
(४५)
बरसा मेघ
पौधे हैं खिलखिल
महके गुल।
(४६)
बातें प्रेम की
बही मीठी-सी नदी
मन सरसा।
(४७)
चलता चल
खाई, पाहन, कांटे
सबको दल।
(४८)
बिटिया आई
उजियारा बरसा
मेरे अंगना।
(४९)
पाकर पाती
प्रिय हिय हरषा।
सावन बरसा।
(५०)
चांद निकला।
टिमटिमाते तारे,
रात कटे न।
हाइकु – ५१ – ६०
(५१)
नेवैद्य थाली
धुन शंख-घंटी की
मंदिर सजा।
(५२)
तोरण बंधे
गूंज शहनाई की
दुल्हन आई।
(५३)
मां आई जब
घर घर-सा लगा
चूल्हा महका।
(५४)
मैं का बंधन
जी का जंजाल
तोड़ दे इसे।
(५५)
बूंद बरसी
किरण परस पा
मोती दमका।
(५६)
जिया पुकारे
घर आ मितवा रे
सावन आया।
(५७)
रूठी राधिका,
मोहन मनुहारे,
मुरली चुप।
(५८)
ओढ़नी काली।
झिलमिल सितारे।
हंसी यामिनी।
(५९)
अकाल पड़ा।
सूखी नदी, धरती।
हंसेगा पत्ता।
(६०)
तिमिर छंटा।
बाती ले चली विदा।
त्याग सफल।
हाइकु ६१ – ६९
(६१)
कुहासा घना।
किरण भी आएगी।
यही सच है।
(६२)
अपना लगा।
अनजाना भी कोई।
प्यार है यही॥
(६३)
लागी लगन।
अब राम नाम की।
बुझी तपन।
(६४)
माला तज दे।
न मिले वह ऐसे।
मंथन कर॥
(६५)
हौसला ऊंचा।
चांद हंसे हथेली।
एक दिन तो।
(६६)
दर्द ये मेरा।
समझे न ज़माना।
बस मैं जानूं।
(६७)
चले साथ जो,
धंधे अंधेरे में भी,
वही ईश है॥
(६८)
माटी मूरत,
गहनों से है लदी
नंगा आदमी॥
(६९)
अल्हड़ वह
बहती ग़ज़ल सी
मेरी प्रेयसी
हाइकु ७० – ७८
(७०)
आरती, शंख
मंदिर की धूप सी
मां की ममता।
(७१)
गंगा पावन
किलकाता शैशव
दमक भरा।
(७२)
जान ले यह
नर ही नारायण
छोड़ दे भ्रम।
(७३)
माला तज दे
न मिले वह ऐसे
मंथन कर
(७४)
हौंसला रख
चांद आए हथेली
एक दिन तो।
(७५)
दरद मेरा,
ना समझे ज़माना।
बस मैं जानूं।
(७६)
बही नदी सी,
तोड़ कूल कगार,
कवि की व्यथा।
(७७)
कुहासा घना
छंट कर रहेगा
झांकी किरण।
(७८)
जनता-ज्वाल
चुप बैठी जो अभी
भड़के कल।
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