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अदिति सवैया (Sawaiya)
अदिति सवैया (Sawaiya): ८ यगण+२१
१२२*८+२१
यति—१२-१४
१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ २१
सवैया सलोने लिखे जा रहे हैं, सजाना इन्हें भाव से सीख जाओ आप,
बनो छंद के व्योम के अंशुमाली, पुरस्कारजीतो बड़ा नाम पाओ आप।
लिखो श्रेष्ठ तो काल साक्षी बनेगा, लगो श्रव्य में कोकिला नित्य गाओ आप।
कृपा शारदे की सदा दिव्य जानो, व साहित्य की साधना उच्च आओ आप।
मानस सवैया
७ यगण+२१
१२२*७+२१
यति—१२—११
१२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ १२२ २१
रहीं नेकियाँ साथ मेरे सदा ही, मिला अंब आशीष से सम्मान।
कभी जो घटा दुःख की छा गई तो, तभी हर्ष खोजे अनोखा ज्ञान।
स्वयं को फँसा जूझता देखता तो, मिले राह कोई भली आसान।
सहारा बना मैं बिना लालसा के, नहीं श्रेय चाहूँ न कोई दान।
बागीश्वरी सवैया
७ यगण+१२
१२२*७+१२
हरे राम बोलो हरे राम बोलो अयोध्या चलो राम जी आ गए,
चलो दर्श पाओ मिटाओ दुःखों को न सूखो गलो राम जी आ गए।
किसी को न रोको किसी को न टोको न साँसें छलो राम जी आ गए,
मिटेगा अँधेरा बढ़ेगा उजेरा न रोओ जलो राम जी आ गए।
शान्ति सवैया
२२१*८+२२
८तगण+२२
वर्ण-२६
यति—१४-१२
२२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२
योगी वही जो करे नित्य व्यायाम सारे, सदा जोश होगा जहाँ योग होगा,
हो भस्त्रिका ज़ोर से श्वास छोड़ो व खींचो, रहो पुष्ट सारे नहीं रोग होगा।
जो देह भारी रहेगी उदासी उबासी, रहे साथ निंदा जहाँ भोग होगा,
पैसे बचेंगे न चिंता रहेगी भलाई, उठो ब्रह्म बेला सही जोग होगा।
रेशमा सवैया
२२१*८+२
८तगण+२
वर्ण-२६
यति—१४-११
२२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २
माँ ईश के तुल्य होती रखे धैर्य भू सा, नहीं दोष कोई सदा ही सही,
माँ नेह की छाँव है दःख में साथ होती, गुणों से सजाती हमेशा रही।
माँ पालती ढालती सद्गुणों को झुको जो, जहाँ स्वर्ग है ज्ञान गंगा बही,
पीड़ा सहे गर्भ की शक्ति अंबा लगे जो, हरे कष्ट ये दिव्य त्यागी मही।
गोकर्ण सवैया
२२१*७+११
७तगण+११
यति-११-१२
२२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ ११
माता पधारो यहाँ ज्ञान रोता, नहीं पूछ है राह होती अगम,
सच्चा झुके नित्य मिथ्या हँसे है, खड़ी विध्न बाधा हुई आँख नम।
झूठा यहाँ मान सम्मान पाता, गुणीं जीव पीछे घिरा घोर तम,
भंडार हो ज्ञान का आप ही माँ, न कोई निराशा न विश्वास कम।
मनोज सवैया
२२१*७+१२
७तगण+१२
यति-११-१२
२२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ २२१ १२
पीड़ा बिना प्रीति होती नहीं है, नहीं लब्ध की सोच हो तो चलना,
रिश्ते हमारे सभी छोड़ देंगे, मिलेगा सदा ताप छोड़ो जलना।
काँटें मिलें फूल भी साथ होंगे, मिले दुःख तो हर्ष ही में ढलना,
हो भाग्यशाली मिला नेह न्यारा, कभी स्वप्न में भी नहीं है छलना।
अदिति सवैया
८ यगण+२१
१२२*८+२१
यति—१२-१४
सवैया गणों से लिखे जा रहे हैं, सजाना इन्हें भाव से सीख जाओ आप,
रचो छन्द प्यारे सितारे बनोगे, पुरस्कारजीतो बड़ा नाम पाओ आप।
नया ये सवैया अनोखा अनोखा, सुरीले सुरों में इसे गा सुनाओ आप।
सुहानी घटा है अनोखी छटा है, तुम्हीं को रटा है चले आज आओ आप।
उड़ान सवैया
नियम
७ रगण +१ भगण + लघु गुरु
(१२-१४ वर्ण पर यति)
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २११ १२
हो गया फाग ही जो मिला आप से,
बुद्धि ही हो गया जो बनी आप मन सी,
धूप मैं जो हुआ आप छाया बनीं,
मैं हुआ बादलों-सा हुईं आप घन सी।
छन्द मैं जो बना आप हैं शिल्प सी,
मैं बना भाव हूँ अर्थ हो, हो छुअन सी,
आह! हूँ हो ख़ुशी हार हूँ जीत हो,
ताप हूँ ठंड हो झूमती हो पवन सी।
गुरुकुल सवैया
२१२*८+१
यति-१२, १३
कुल-२५ वर्ण
भक्ति की शक्ति ले कर्म को मान दो, जीत लोगे सभी युद्ध भी हे! कुलीन,
जो डरे काम से जो टले राम से, धर्म से भी गिरे पुण्य से वह विहीन।
शेष जो भी बचे मृत्यु के बाद में, आप ये मान लो सोच से है नवीन।
सत्य को थाम लो मोक्ष का धाम लो, ईश भी है सदा सत्य के ही अधीन।
हरीश सवैया
नियम
७ रगण +१ भगण + लघु
(१२-१३ वर्ण पर यति) कुल २५ वर्ण
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २११ १
सीख लोगे कभी शिल्प भी कथ्य भी, तो मिलेगी तुम्हें भी सुहानी डगर,
ढूँढता मैं रहा लक्षणा व्यंजना, शब्द के गाँव से आसमानी डगर।
छन्द भी आपकी राह थे देखते, ये बनेगी अनोखी कहानी डगर,
ये सभी को ठिकाना दिखा के रहे, पा गए भाग्य से चौमुहानी डगर।
उड़ान सवैया
नियम
७ रगण +१ भगण + लघु गुरु
(१२-१४ वर्ण पर यति)
२१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २१२ २११ १२
हो गया फाग ही जो मिला आप से, बुद्धि ही हो गया जो बनी आप मन सी,
धूप मैं जो हुआ आप छाया बनीं, मैं हुआ बादलों-सा हुईं आप घन सी।
छन्द मैं जो बना आप हैं शिल्प सी, मैं बना भाव हूँ अर्थ हो, हो छुअन सी,
आह! हूँ हो ख़ुशी हार हूँ जीत हो, ताप हूँ ठंड हो झूमती हो पवन सी।
हरीश सवैया
२१२*७+२११+१
यति-१२, १३
कुल-२५ वर्ण
देश के प्रेम में जो मिली देह को, देह की प्राण की यातना को नमन,
लोक कल्याण के ही लिए जो हुई, आपकी मानसी कामना को नमन।
दीन के कष्ट को जो हरे दीन से, देव की अर्चना याचना को नमन,
जो सभी के लिए सोचता नेक हो, नेक की नेक-सी भावना को नमन।
सुख / कुन्दलता / किशोर / सुखी सवैया
विधान:-आठ सगण + लघु लघु
११२×८+११ (१२, १४ पर यति)
धन की यदि चाह लिखावट से तब आप लिखो कुछ गद्य सुहावन,
लिख दो कथनी करनी गढ़ दो कुछ कोष तुकांत अमोल सुपावन।
यदि ये न करो लिख दो कुछ भी तुम चीख पढ़ो बरसो बिन सावन,
समझो पकड़ो कविता सविता चमको जग में बनके मनभावन।
अरविंद सवैया
आठ सगण+लघु
मन में दुविधा जितनी उतना तगड़ा करना पड़ता उपचार,
कर लो कुछ काम सुनाम मिले हर बात नहीं गहती प्रतिकार।
तज दो प्रतिकार पिता गुरु का मिलता सब है यह जीवन सार।
यदि मैं तुमको सच में अमरत्व प्रदान करूँ समझो उपहार।
सुंदरी सवैया
आठ सगण+गुरु
तपती धरती तपता पवमान तपे जन जीवन मेह बिना रे,
अटके खटके लटके भव में भटके यह जीवन गेह बिना रे।
पियको हियमें भरलो तबभी डसती कसती निशि देहबिना रे।
धन हो तन हो मन हो न दुखी दहता नित जीवन नेह बिना रे।
मनुज सवैया
७ सगण+१भगण (२४वर्ण)
यति—१२-१२ वर्ण पर
११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ ११२ २११
अपना-अपना कहते-कहते, सबके घड़ियाल बजाते वह,
जगती पर वह न सुखी जन हो, जग में कुछ नाम कमाते वह।
सबको खुश हैं करते रहते, सबके तलवे सहलाते वह,
जग चारण हैं सुख दास बने, कवि होकर श्वान कहाते वह।
मनोज शुक्ल “मनुज”
मानस सदन
७ / ४४२, जानकीपुरम विस्तार
लखनऊ
यह भी पढ़ें-
१- समय चक्र
२- अज्ञान
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