Table of Contents
छल (Cheat)
छल (Cheat): रीटा आंखों में आंसू लिए अंतिम बार अपने घर को निहार रही थी। उसे वह समय याद आ रहा है जब वह इस घर में दुल्हन बन कर आई थी। कभी वह घर के आंगन को निहार रही थी और कभी घर के एक-एक सामान को ध्यान से देख रही थी। उसकी आंखों से अश्रुधारा थम नहीं रही थी। अचानक उसका पोता उसे आवाज़ देता है दादी माँ चलो, चलते हैं।
वह बेचारी अपना सामान उठाए गाड़ी में बैठ जाती है। बहु मुंह बनाए आगे गाड़ी में बैठी है। बेटा कहता है, “माँ तुम्हारे रहने का इंतज़ाम कर दिया।” आपको पता है ना मां! “मेरा सारा कामकाज इंग्लैंड में ही है।” बार-बार यहाँ आना संभव नहीं है। यह कहते हुए वह गाड़ी एक तरफ़ पार्किंग में लगाता है। फिर माँ से कहता है “आओ माँ तुम्हें तुम्हारे लिए यहाँ रहने का इंतज़ाम कर दिया है।”
मैंने इसके लिए दस लाख ख़र्चा किया है। माँ ध्यान से उस जगह को देख रही है। ये एक वृद्धाश्रम है जहाँ बेटा आज माँ को ले आया है। बेटा माँ से कहता है “जल्दी ही हम तुम्हें भी यहाँ से ले जाएंगे।” माँ की आंखों में अभी भी आंसू हैं परंतु फिर भी वह ह्रदय से अपने बेटे को आशीर्वाद देकर विदा कर रही है। माता-पिता बूढ़े होने पर बोझ समझना और वृद्धाश्रम में छोड़ देना उनके साथ प्रेम के नाम पर किया गया छल ही तो है।
प्रश्न है उन सभी बच्चों से जो बड़े होकर माता-पिता को बोझ समझने लग जाते हैं कि जब तुम छोटे थे तो माता-पिता तुम्हारी हर छोटी-बड़ी ख़्वाहिश पूरी करते थे।
जब वे हर हाल में तुम्हें हर सुख-सुविधा देने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तत्पर रहते थे। क्यूँ चार बच्चे मिलकर भी माता-पिता के बूढ़े होने पर उनकी सेवा नहीं कर सकते? …? जबकि माता-पिता गरीब भी हो फिर भी वे चार-चार बच्चे भी पाल देते हैं। क्यूँ आज मानवता का स्तर इतना गिरता जा रहा है? …? क्यूँ हम आज सिर्फ़ आधुनिक होते जा रहे हैं पर इन्सान नहीं रहे? …?
क्यूँ आज खून इतना सफेद हो गया कि हमें अपने माता-पिता का प्रेम व हमारे लिए किए गए त्याग दिखाई नहीं देते? …? क्यूँ आज हम पश्चिमी सभ्यता की होड़ में अपने भारतीय संस्कारों को त्यागते जा रहे हैं? …?
ना करो छल माता-पिता के प्रेम के साथ… वरना कल तुम्हारे बच्चे भी तुम्हारे साथ वही करेगें जो आज तुमने अपने माता-पिता के साथ किया…छल-छल और बस छल क्यूँकि जब बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए॥
माधुरी शर्मा ‘मधुर’
अंबाला (हरियाणा)
यह भी पढ़ें-
१- संघर्ष
२- आत्महत्या