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आकाश नाप लो (measure the sky)
कोशिश करो अंजुल में आकाश नाप लो (measure the sky)
कोशिश करो बिगुल में सारांश भांप लो
ईमान की राह पर बेमुड़े ही चलना तुम
कोशिश करो असल में दशांश’ जाप लो
(सब तरफ़ का ध्यान)
कोई नहीं समझेगा यहाँ मार हालात की
कोशिश करो नसले-जिस्मे-पाश’ ताप लो
(पीढ़ियों का बंधन)
जाने कैसे हाथ नीचे आस्तीन बढ़ गयी
कोशिश करो अगले बे-आवास सांप लो
सच का साथ दो कहने का हौसला रखो
कोशिश करो ग़लत पर बेहवास कांप लो
मत करो पेचीदा ये ज़िन्दगी है “उड़ता”
कोशिश करो सुकून-ए-साँस आप लो
उभर आया..
तुझे देख पुराना इश्क़ उभर आया
तेरी आँखों में रश्क़’ नज़र आया (गुस्सा)
तेरे ही वास्ते मैंने छोड़े थे ये रास्ते
आज सरेराह ताकता शजर’ आया (पेड़)
एक अरसा हो गया सावन रुठे हुए
आज कहाँ से नीरभर बजर’ आया (बादल)
मैं तो भूल गया अतीत के पहलू को
कैसे तेरे शहर में नया गजर’ आया (भोर घंटा)
क्या रखा देखने ऊँचे आशियानो में
अपने सुकून का वही कजर’ आया (कोठरी)
सूखती दुनिया को और क्या दिखता
जैसे कि ख़्वाब में बहता पजर’ आया (झरना)
जीने की आरजू जंगल में जीना भला
एक घर बनाने को सामने हजर’ आया (पत्थर)
किस बात का घमंड करे आदमी “उड़ता”
नहीं कोई अमर है नाहि अजर’ आया
(जो बूढ़ा ना हो)
साथी जाने लगे
एक एक कर दोस्त साथ छोड़ जाने लगे
हमें सरेराह यूँ बीच रास्ते छोड़ जाने लगे
उनके साथ बिताये लम्हें कल की बात है
ऐसे रोज़ाना ग़मगीन हुए दिन आने लगे
क्यों अच्छे सहयात्री अंत तक नहीं चलते
हमें वक़्त तगाज़गी-ए-सबब बताने लगे
कैसा ये बेमौसमी बहाना बनाया गया है
सर पर एहतियात के बादल मंडराने लगे
कोई हल ही नहीं दिल की बेचानियों का
हम ये दूरियों का भी रिश्ता निभाने लगे
जिनको जाना था वो चले गए “उड़ता”
तुम क्यों जमाने में मायूसी कमाने लगे
धुंधले हर्फ
आजकल सभी रिश्ते बर्फ होते जा रहे हैं
आजकल धुंधले मेरे हर्फ होते जा रहे हैं
पता चलने लगी है असलियत सभी की
नाते खोखले हो कमजर्फ’ होते जा रहे हैं
(ख़त्म )
कितनी उम्मीदें पाल बैठे हम अपनों से
नकली भौतिकता में सर्फ’ होते जा रहे हैं
(खर्च )
कमजोर हो मतलब के पुलिंदो पर खड़े
वैसे हम भीड़ में सावर्फ’ होते जा रहे हैं
(अकेला)
“उड़ता”कुछ लोग ज़र्फ़’ होते जा रहे हैं
(बर्तन)
और बाकी दुनिया से कर्फ़’ होते जा रहे हैं
(कट कर अलग होना)
मुश्किल आवाज
तू जब भी मुश्किल में होगा आवाज होगी
तू जब भी बोझिल में होगा आवाज होगी
तू जो उधार लेगा तुझे वापिस देना होगा
वर्ना त्रासदी बन प्रकृति नजरअंदाज होगी
दुनिया कर्मफल के समतुल्य पर टिकी है
हर कूसर्प पर रखी नज़र कोई बाज़ होगी
मतकर खिलवाड़ तुझे जवाब देना होगा
तू अदना सा है ये प्रकृति सरताज होगी
कोशिश कर बीच के फासले मिट सकें
यही रख प्राथमिकता, यही काज होगी
सारी ही दुनिया बीमारों से भरी पड़ी है
सब्र और नियत ही सबका ईलाज होगी
“उड़ता”तेरी हर धड़कन तेरा साज़ होगी
तेरे व्यवहार से निर्धारित तेरा आज होगी
शिकायत अच्छी है
अगर कुछ बदले तो शिकायत अच्छी है
अगर कुछ संभले तो शिकायत अच्छी है
हर बात के लिए कोई दूसरा ज़िम्मेदार है
खुद को बचाने के लिए रवायत अच्छी है
हालात तो ख़राब अकसर होते रहे हैं
सरकारी आश्वासनों की हिदायत अच्छी है
सौ बार सोचो उनपर ऊँगली उठाने से
गिरेबान ना झांको तो शराफत अच्छी है
देश के बारे में कौन कितना सोचता है
संसद बैठ चिल्लाने की अदायत अच्छी है
विपक्ष में बैठकर लानत देना आसान है
कोई उपाय दे सको तो हिमाकत अच्छी है
मुश्किल है वक़्त सहयोग की दरकार है
बचे बाकी के दौर में सदाकत’ अच्छी है (सत्य)
“उड़ता”देखो हर कोई बस दोष दे रहा
निज का इंतजाम हो बगावत अच्छी है
खुद को देखूं
दुनियावी चाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी हाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी शतरंज हर शय में ही मात छिपी है
दुनियावी जाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी फासले यूँ बैठ कम नहीं होने वाले
दुनियावी मलाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी परेशानियों को कब छोर मिला है
दुनियावी काल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी रिश्तों में कुछ खोखलापन आया है
दुनियावी सवाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
दुनियावी फटेहाल अलग “उड़ता” खुद को देखूं
दुनियावी कमाल अलग है बेहतर खुद को देखूं
थम जाए
बहुत हुआ मंजर अब थम जाए
बहुत हुआ खंजर अब थम जाए
मुश्किलें बेहद बढ़ती जा रही है
बहुत हुआ पिंजर’ अब थम जाए (जेल)
हासिल नहीं है हिस्से की साँसें
बहुत हुआ अंजर’ अब थम जाए (स्वर्ग-दूत)
टूटने लगी है सब्र और उम्मीदें
बहुत हुआ पंजर’ अब थम जाए (ढांचा )
हटे खरपतवार तो कुछ नया हो
बहुत हुआ बंजर अब थम जाए
कुछ करने से हल होगा “उड़ता”
बहुत हुआ संजर’ अब थम जाए
(राजकुमार बनना )
मेहनत का काम
ना मेहनत का काम अधम का होवै सै
गैल चालण का काम कदम का होवै सै
रिश्ते-नातां मैं कायदा शरम का होवै सै
बस सारी उमर न्यूए भरम का होवै सै
मिलेगा उतना जो करम मैं लिख राख्या
यो सिलसिला तो जनम का होवै सै
कौय ना जानै कित के होणा सै आगै
बस जीते जी साथ बलम का होवै सै
हुक्के के भहाने बैठ लिए यार पुराणे
कदै-कदै का बखत चिलम का होवै सै
बात दिमाग़ मैं आज्या कलम का होवै सै
“उड़ता”बोल जोड़तोड़ करण का होवै सै
साल बदला है
देखो तो साल बदला है
देखो तो हाल बदला है
हवा में ठंडक आयी है
देखो तो काल’ बदला है(वक़्त )
नाराज़गी गिले-शिकवे
देखो तो फाल’बदला है (नज़रिया)
नयी उम्मीद और आशाएँ
देखो तो भाल’ बदला है (सोच का दायरा)
चल रही पुरानी कश्ती
देखो तो पाल बदला है(नाव-पताका)
मीन-जल विचरण करती
देखो तो जाल बदला है
“उड़ता”ना जंगली राल’ बदला है
(सदाबहार पेड़)
देखो तो साल बदला है
सुरेंद्र सैनी बवानीवाल “उड़ता”
झज्जर – 124103 (हरियाणा)
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१- घूँघट
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