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मेरी बेटी मेरी शान (my daughter my pride)
my daughter my pride: लोग नाहक ही परेशान
बेटी से ही घर की शान
बिन बेटी के सब सुनसान
हल्की खारोंच पर बड़ा तिलमिलाती
नहीं किसी से फिर सुर मिलाती
बस छोटी-सी बात पर होती परेशान
मेरी बेटी …
घर की हल्की देख पीड़ा
ज़िम्मेवारी का हर एक बीड़ा
हाथों हाथ निपटाती हर काम
सब के लिये जैसे बाम
चाहे दिन हो य़ा गहरी रात
उस संग जैसे एक बारात
सब का भला करना समझे आन
मेरी बेटी …
घर में हल्की छींक भी आयें
सब से पहले वह पहचान जायें
दवाई और परहेज से रखे ख्याल
चिकनी-चुपड़ी बातों का न कोई माया जाल
मन चंगा और नीयत साफ़
सदा चाहती हर ख़ातिर इंसाफ
हर कमज़ोर की हैं यह जान
मेरी बेटी …
ज़िम्मेवारी खातिर रोटी भी छोड़े
किसी काम से मुंह न मोड़े
कभी चुलबुली कभी गंभीर
मुशकिल समय में बंधाये धीर
हर एक का बनती सहारा
मन से कभी न हारा
सभी में प्यार से फूंके जान
मेरी बेटी…
बचपन से ही ऊर्जावान
पूरे परिवार की एक जान
शिक्षा में भी सदा आगे
ज़िम्मेवारी से कभी न भागे
बहना को भी प्यार से रखे
परिवार को भी एक रखे
जैसे माला में मनके में जान
मेरी बेटी …
व्यंजन भी ख़ूब बनाती
चीज बचे तो अजूबे बनाती
अन्न का करती पूरा सम्मान
बच्चों बुज़ुर्गों की लाडली जान
दादी नानी की तरह गुणवान
सभी के गुण समेटे समान
हैं अद्भूत गुणों की ख़ान
मेरी बेटी…
सखी सहेलियों सारी एक समान
स्कूली आदते सदा एक जान
जीवन में सीखा न कोई घटा जोड़
मुद्रा रूतबे की न कोई मरोड़
हर आंगन में चाहके ज्यों क्यारी
अलग अलग पौधे पर-पर सारी प्यारी
जैसे बाग़ में जूही चम्पा कली जवान
मेरी बेटी …
हैं दुआ हर आंगन में बेटी महके
सुगंध लिये हर फुलवारी चहके
दहेज की ज्वाला कभी न दहके
गुण लिये हर बेटी महके
हर बेटी हर एक ऊँचाई छू जाये
अपना परचम हर तरफ़ लहराये
जैसे तिरंगा देश की शान
मेरी बेटी …
हर बेटी हो देश के नाम
अच्छी नागरिक व प्यार के समान
उज्जवल पल हो विश्व पटल पर
मान मर्यादा विश्व सकल पर
बेटों से न कभी कम रह जायें
उन से भी कांधे से कांधा मिलायें
मां-पिता की नन्ही जान
मेरी बेटी…
मायके ससुराल का अंतर द्वंद हो समाप्त
प्रेम भाव हो हर एक में व्यापत
सास-ससुर भी अपनी नज़र से देख समेटे
जैसे बेटी वैसे बहु को आँचल से लपेटे
बिन वज़ह के फ़र्क़ को मिटायें
पानी पर न लकीर खेंची जायें
न हो किसी रसोई में घमासान
मेरी बेटी …
जैसे बेटे होते सब को ही प्यारे
बहुएँ भी उसी आँख के तारे
बहु बेटी में क्यों भेद हैं ऐसा
जैसे मुद्रा का मुल्य एक जैसा
क्यों आपस में मतभेद बढ़ायें
फिर समाज में जग हंसाई करायें
मानव जीवन सबका एक सामान
मेरी बेटी …
देश के नेता
देश के नेताओं का सब चरित्र देख लीजिये
दुशमनों के घर में इनके मित्र देख लिजिये
तुम काहे लड़ते हो आपस में सारा दिन
अपने बनायें हुये रंगीन चित्र देख लीजिये
देश के …
मेरेतो सपनों का भारत बहुत हसीन था
इनकी तो सोंच का ही दायरा महीन था
किस दौर से गुज़र रहा देश आप जानते
देश के हालात का ख़ुद चलचित्र देख लिजिए
देश के …
जनता चाहे भूखों मरे इन्हें चाहिए केवल केक
मजबूत बहुमंज़िला ईमारत हेतु इन्हें चाहिए केवल रेत
दूसरों का पेट भरें केवल खाली ही ढकोंसले
इशारों पर चलते नैतिकता के चलचित्र देख लिजिये
देश के …
बहुत समझाया इन्हें पर ये नहीं मानते
बटन दबते ही यह किसी को नहीं पहचानतें
देश की नहीं हैं इन्हें रत्ती भर चिंता
दोष अपना हैं अब ख़ुद ही देख लिजिये
देश के …
सिर उठा कर आये मुँह छुपाकर चल दिये
राष्ट्रीय पर्वो पर केवल तिरंगा लहरा चल दिये
देश के ज़ज़्बात और अरमानों से खेलें खूब
सच्चाई छिपानें खातिर होंठ-सी कर चल दिये
जो दोस्त बन पिला रहे आज बोतलों में
उनकी गिनती लिख लो आज ही तुम कातिलों में
जिन्दगी भर नहीं करें किसी का भी भला
वो ही ज़रूर तुम्हें लूटेंगे बुलंद होंसलों से
बड़ा अज़ीब रहा वो
बड़ा अज़ीब रहा वह शक़्स
आज़ तक़ समझ नहीं आया
उम्र तो जीवन से हार गया
रिश्ते भी परिवार पर वार गया
ज़ज़्बात सदा ही शब्दों से हार गया
रहा पैसा वह भी हुनर में हार गया
बस नहीं हारा तो केवल हौंसला
नहीं बिखरनें दिया तो घोंसला
ज़ज़्बात फिर इक़्क़ठे कर नाश्ते पर
सभी को लेकर एक अच्छे रास्ते पर
एकाएक ज़्यादा धमाल कर गया
बैठक में आते ही क़माल कर गया
लोग सूरज से ही मांगते रहे उधार रोशनी
वह चाँद से ही घर रोशन कर गया
कुछ तो हमेंशा चाँद में ही दाग़ रहे ढूंढ़ते
वो सूरज को ही आग लगा रहे जूझते
किसी तरह हालात पर पा लिया क़ाबू
सब को साथ ले बन गए बाबू
फ़िर मिला दिया पर एक चूक हो हुई
भरे पेट में भी महसूस भूख हो हुई
नहीं लिया किसी का भी पक्ष
बड़ा अज़ीब रहा वह शक़्स
बड़ा अज़ीब रहा वह शक़्स…
कुछ नया करने का…
कुछ नया करने का रहा हमारा मन
खुशियों पाने का भी यही रहा फ़न
पर कैसे भरते हम पूरा दम
कोशिश ही करते रह गये हम
आम बातचीत की भाषा में
बस इशारों की परिभाषा में
चाहे हालात सहारे हम गये रम
ज़माने की नज़र कुछ नोट रहे कम
इस लिये कुछ नहीं ख़रीद पाये
गये तो पर उन्हीं के मुरीद हो आये
क्या ग़ज़ब का कमाल हो गया
देखते ही बड़ा धमाल हो गया
उनकी इच्छा और हमारा प्रयास
विफल हो गये सारे क़यास
कभी किसी को धोखा मत देना
शिकायत का भी मौक़ा मत देना
ज़रा थोड़ी खुशियाँ बांट कर देख
दुःख के बादल भी छांट कर देख
भला करने से कुछ मिलता सुकून
इसी सहारे सुधर जायेगी तुम्हारी जून
मानवता ही जग में बड़ी अनमोल
भाई-चारे से बदल तक जाते भूगोल
गर तुम्हारे कारण ख़ुश रहता कोई जन
कुछ नया करने का रहा हमारा मन
कुछ नया करने का…
व्यथा या कोई लाचारी
कैसी रही व्यथा या कोई लाचारी
ज़िन्दगी जीते हुए जंग सदा ही जारी
आदमी खेलता रहा नित नये खेल
झूठे आडम्बर सहारे होता रहा फेल
सदा बिसात बिछा नई चालें चली गई
औरत सदा ही धोख़े से छली गई
अपना अभिमान बचाने ख़ातिर चाहे जुए में हारी
स्वाभिमान के चलते ज़मींदोज़ तक़ हुई बेचारी
रानी झाँसी ने चाहे कुछ हुंकार भरी
बिना ज़ुर्म सती तक़ हुई नारी
दोष आज़ भी नारी का ही बताते
अपने कारनामें उजाले में छिपा जाते
नित छलावे से ही क्यों हार गई नारी
कैसी रही व्यथा या कोई लाचारी
कैसी रही व्यथा या कोई लाचारी…
बस वक़्त बता गया
माना इस मायावी जाल भरी इस दुनियाँ में
मतलबी धरोहर की नायाब चौंधी गुनियाँ में
माता-पिता की मार्फ़त बस अकेले ही आये
बहुत कोशिश पर कुछ ज़्यादा नहीं कर पाये
उसी में मज़बूरन ख़ुश जितना मिला जो मिला
चाहें ख़ुद टूटे पर चेहरा सभी को हँसता मिला
किसी आगे कभी हाथ या झोली नहीं फैलाये
कुछ साथी हक़ की बदौलत मूल ही खा पाये
कईयों ने क़िस्मत और नसीब का दिया वास्ता
कुछ ने नेक या अपने फ़ायदे का दिखाया रास्ता
जो वह करेगा उसी पर बस किया भरोसा
वही पंखों के सहारे ऊँची उड़ान भरवायेगा
उसकी लीला ही विचित्र लेकिन अपरम्पार
जब पेट ही वह भरे फिर क्यों किसी से उधार
जो मिले बस उसी में कर लो तुम गुज़ारा
इसके बिना नहीं लगता हमें कोई चारा
वो तो अपने बन कर ही हमें खा गये
हमारे तो हुनर को साबुत ही पचा गये
बस जीवन साँसों तक़ सीमित रहा
जिन्होंने दिया कुछ करने का मौक़ा
उन्हीं के हाथों मिला जानदार धोखा
अपनों ने सदा ही अद्भुत दुलार दिया
दुल्हन-सी ज़िन्दगी ख्वाबों का हार दिया
लुटेरे उसको भी अपने अंदाज़ में लूट गये
हालात का दे वास्ता फंसा हमें ख़ुद छूट गये
वो अपनी बेच ज़मीर सामाजिक सरोकार ले बैठे
हम सब कुछ लगा दाव पर बस ज़िंदगी हार बैठे
वो सब तो हो इक़्क़ठे अपना व्यापार चला बैठे
हम रह कर अकेले बस व्यवहार जला बैठे
रख भरोसा कर यक़ीन ऐसा सक्क्ष बता गया
रहना जीना पड़ेगा अकेला बस वक़्त बता गया
बस वक़्त बता गया…
सभी की इच्छा
आज़ तो इंतज़ार सभी को
भले ही उसमें
दाग़ नज़र आता
लेकिन
फ़िर भी प्यार
चाँद तो चाँद
जब उस चाँद में
सारे दाग़ बताते
जो केवल दूर से
देखा आज़ तक़
पर इसे तो
बड़ी नज़दीक से
बहुत देखा भाला
कभी कोसा और डांटा
चाँद तो चाँद
फ़िर कैसी काँध
आओ करें तो मनुहार
त्योहार पर तो प्यार
बाक़ी यूँ ही चलेगा
सुबह होगी दिन ढलेगा
सब तरह के शिक़वे गिले
सभी को बराबर मिले
कोई अंदर से ख़ुश
कोई बाहर से प्रसन्न
सभी की इच्छा धन धन्न
सभी की इच्छा धन धन्न…
खेल तो यहाँ सब निगाहों का
अज़ब माया रूपी है यह संसार
किसी की जीत किसी की हार
खेल तो यहाँ सब निगाहों का
सुंदर घाटी और फ़िज़ाओं का
बस हम तो दिल हार बैठे
बताएँ भी तो किसे कैसे
ज़रा बताओ तो अब हज़ूर
इसमें हमारा क्या क़सूर
क़सूर भी निगाहों का रहा
वज़ूद ही चौराहों पर रहा
वज़ह तो बनी कोई और
कैसा अज़ब है यह दौर
ग़लती पर भी न किया ग़ौर
अपने होते भी बिना ठौर
न आंखों में नींद मुंह में कौर
मेल तो बस सब गवाहों का
खेल तो यहाँ सब निगाहों का
खेल तो यहाँ सब निगाहों का…
औक़ात दिखा दी
बिन कारण ही ग़रीब की औक़ात दिखा दी
ग़रीब आज़ भी मज़बूर बस दहाड़े मार रोता
हाथ आया वक़्त रेत माफ़िक़ हाथ से खोता
मीठी चाशनी में भिगो एक लात जमा दी
बिन कारण ही…औक़ात दिखा दी…
दिल का धनवान होते भी अमीर होना सपना
ईमान नहीं बेच सकता बस यहीं एक नपना
लूट लिये पैसे बस रक़म जमा दिखा दी
बिन कारण ही…औक़ात दिखा दी…
बिक गया ईमान तो फिर कैसा रहा ग़रीब
औरों की तरह वह भी बेमानी रहा क़रीब
ईमानधारी के भेष में पक्की बेईमानी सीखा दी
बिन कारण ही…औक़ात दिखा दी…
शराफ़त ईमान बस अब तो काग़ज़ी लगते पैग़ाम
उछाल रहे सब पगड़ियाँ फिर सरेआम लगते दाम
मिलावट कर हर चीज़ खुल्ली बेचनी सिखा दी
बिन कारण ही…औक़ात दिखा दी…
ज़हरीले तो ज़ाम बने कड़वाहट से बनी दवाई
दुश्मन तो अपने हुए ग़ैर बने सब भाई
बेईमानी में ही ईमानदारी साबित कर दिखा दी
बिन कारण ही ग़रीब को औक़ात दिखा दी
बिन कारण ही…औक़ात दिखा दी…
दिल तो है बच्चा
बड़ी अज़ब है बात
कैसा अनोखा इत्तफ़ाक़
दिल तो है बच्चा
मन ही तो सच्चा
कान भी तो कच्चा
देना भी तो गच्चा
अपने भी तो असूल
बस पैसे हो वसूल
और अब क्या करें
हम ही क्यों भरे
वो तो सब वैसे
हम ही तो ऐसे
सब है चलता
बस वहम पलता
उगते नहीं पैसे
मग़र जैसे तैसे
करना तो पड़ेगा
बिन कारण लड़ेगा
तोहमत मत लगाओ
प्यार से समझाओ
इतनी-सी बात
फ़िर क्यों खुराफ़ात
इमान ही डोल गया
कुछ कड़वा बोल गया
झूठ का बोलबाला
सच का मुंह काला
झूठ फिर भी सच्चा
दिल तो है बच्चा
दिल तो है बच्चा…
सब ही मांगें आपकी ख़ैर
अज़ीब चलन इस ज़मानें का
अद्भुत रसूख़ बड़ा मैख़ाने का
कोई काम तो सब ही अपने
न कोई फांसले न ही नपने
बिन निज फ़ायदे सब ही ग़ैर
न ही कोई पूछे आपकी ख़ैर
काम पड़ने पर मोहमाया त्यागे
फ़िर तो आपके आगे पीछे भी भागे
जब मतलब निकल गया तो
हम ही हम बस फिर कौन है वो
काम भले ही उसने करवाया
पर सही तरीक़ा तो हमनें बताया
लाख़ जानकार कुछ भी न होता
बस पहचान तो हर सुर में रोता
लगता एक ही बहुत ज़रूरी
फ़िर न आपस में कोई दूरी
सारे काम बनते ही जाएँ
टूट फूट भी साबुत नज़र आये
फ़िर न कोई शोर शराबा
न कोई भी ख़ून ख़राबा
बापू जी ग़र थोड़े मिल जायें
ग़ैर रिश्ते भी अपनें हो जायें
बस ऐसा होता फिर मेल मिलाप
देखो फिर रावण से भी भरत मिलाप
सब सुविधाएँ मिलें एक छत नीचे
कुछ भी नहीं फिर तो उपर नीचे
फ़िर तो बस एक ही बात
न कोई तू बस आप ही आप
न किसी से दोस्ती न ही बैर
फ़िर न लगता कोई भी ग़ैर
सब ही मांगें आपकी ख़ैर
सब ही मांगें आपकी ख़ैर…
नशा तेरे प्यार का
नशा तेरे प्यार का
देखो तो कितना अज़ीब
हो ग़र कहीं रेंज़ से दूर
कर देता मुझे मज़बूर
ऐसा होता यूं महसूस
हूँ नहीं मैं महफूज़
हैं सिर्फ़ यह तड़पता
हो ग़र कहीं आस पास य़ा करीब
फिर सुन ले मेरे रक्कीब
तो दिल हैं यह धड़कता
तेरा ज़ो हो जाये दीदार
तो होता हूँ दिलदार
न हो ग़र तेरा दीदार
ये दिल रोता ज़ार ज़ार
पुकारता तुझे बारम्बार
तो आजा तो एक बार
तेरी एक झलक को बेताब
हर पल आ रहे तेरे ख़्वाब
नशा तेरे प्यार का …
पता नहीं क्यों
पता नहीं क्यों ज़िन्दगी नफ़रत-सी हो गई
छोटे रहे तो सब अपनें रहे
अब हक़ीक़त भी लग सपनें रहे
हर चीज़ जैसे बर्फ़रत हो गई
पता नहीं क्यों …
पथरीले से सब गाँव रहे
हमें ढ़क कर भी नंगें पांव रहे
भावना ज़िन्दा दिल रहते ही मृत हो गई
पता नहीं क्यों …
हमारे खातिर सदा पीपल-सी छांव रहे
भले आधी धूप व छिले पांव रहे
क्यों हालात-ए-ज़िन्दगी धृणारत हो गई
पता नहीं क्यों …
हर कोई अपने फायदे खातिर
निज स्वार्थ और कायदे खातिर
ज़िन्दगी क्यों विषैले अमृत-सी हो गई
पता नहीं क्यों …
सब से अपनों-सा साथ रहा
जब तक बुज़ुर्गों का सिर पर हाथ रहा
पर छालना तो अब फ़ितरत हो गई
पता नहीं क्यों …
कोई स्थाई समाधान हमें ही ढूंढ़ना होगा
सर्वजन हिताय का मूल मंत्र ही फूंकना होगा
न लगे धरा कतई विकृत हो गई
पता नहीं क्यों …
वीरेन्द्र कौशल
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