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उम्रकैद (life prison)
उम्रकैद (life prison) : “कैदी नम्बर ७७४!”
“अब तुम आज से आजाद हो, लो ये कपड़े बदलकर कार्यालय में चलो।”
कोठरी की सांकल खुलने की आवाज़ के साथ रचना हवलदार की कड़कदार आती आवाज़ की ओर देखने लगी।
“आज तुम्हारी रिहाई का दिन आ गया है। स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य में सरकार ने तुम्हारे सुंदर विनयशील आचरण को देखकर तुम्हारी उम्रकैद की सजा समाप्त करने का आदेश दिया है।”
हवलदार ने कोठरी का दरवाज़ा खोलकर रचना को बाहर निकलने का आदेश सुनाया।
रचना ने धारीदार जेल की पोशाक छोड कर रंगीन साडी पहन ली और बाहर खडे हवलदार के साथ जेल के कार्यालय की ओर चल पड़ी। चलते-चलते स्मृतियों की सरिता में गोते लगाने लगी कितना प्यारा घर संसार था मेरे सपनों का नन्हा-सा आशियाना। दो कमरों के शानदार फ़्लैट में हंसमुख पति और दोनों बच्चों के साथ बेहद सुखी थी वह। बेशुमार खुशियों की दौलत बरसती थी। न जाने मेरे घर को किसकी बुरी नज़र लगी कि अचानक रात में विनय के सीने में तेज दर्द होने लगा। जब तक पडोसी रमाकांत के साथ अस्पताल लेकर पहुँची तब तक सब कुछ समाप्त हो गया था।
पैंतीस साल की आयु में मेरी गृहस्थी की नाव मंझधार में डूबने लगी। मैं बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी करने लगी। किंतु बच्चें अपने पिता के बेहद करीब थे। वह उन्हें भुला नहीं पा रहे थे। उन दोनों को छुपकर आँसू बहाते देख मेरा दिल किरचियॉ बनकर टूट जाता, मैं असहाय-सी अपनी क़िस्मत पर अश्क बहाने के सिवाय और क्या कर सकती थी।
गुमसुम दोनों अपने बच्चों को देखकर मन ही मन ग़म से तडपने लगी थी। मैं उन्हें खुश रखने की भरपूर कोशिश करती थी। किन्तु उनके मन से अपने पापा के दूर चले जाने की कमी को पूरा नहीं कर सकी थी। जीवन की पटरी हिचकोले खाती फिर से पुराने ढर्रे पर चल पडी थी।
यदा-कदा रमाकांत जी का बढता सहानुभूतिपूर्ण रवैया मेरे भीतर कहीं उनके सदाशयता पर प्रश्नचिह्न लगाता? तब उन्हें परखने की कोशिश में बच्चों के साथ उनका घुलना मिलना वक़्त की ज़रूरत के हिसाब से बहुत स्वाभाविक लगता था। ख़ुशी से खिलखिलाते बच्चों के चेहरे मेरी आशंका को निर्मूल सिद्ध कर देते। एक दिन पडोसी रमाकांत जी ने ही विवाह का प्रस्ताव रखा और मुझे समझाया कि इतनी लम्बी उमर अकेले काटना सम्भव नहीं है।
“देखो रचना! तुम बहुत समझदार हो। इसलिए कह रहा हूँ कि तुम मुझे ग़लत मत समझना।”
“मैं तुम्हारे बच्चों के जीवन में आने वाली पिता की कमी को दूर करने का प्रयास कर रहा हूँ।”
“दोनों बच्चों की ओर देखो जरा, पिता के प्यार की छाँव बिना बडे होते बच्चों का सम्पूर्ण जीवन बिखर जाता है।
उन दोनों के चेहरे हमेशा मुरझाए रहते हैं यह बात मुझे बहुत विचलित करती है।”
“जी मैं समझ सकती हूँ।”
“अगर आप नहीं होते तो मेरे लिए दोनों बच्चों को सम्भालना नामुमकिन था। आप मुझे सोचने के लिए कुछ समय दीजिए।”
मैने सहमति जताते हुए जबाब दिया था और रमाकांत जी के अहसान को मानते हुए बच्चों की रजामंदी के बाद कोर्ट में जाकर शादी कर ली।
अब हमारी ज़िन्दगी पहले से बहुत खुशगवार होने लगी थी। हम सभी बाहर घूमने जाते होटल खाना खाने चले जाते कभी-कभार सिनेमा आदि भी। मुझे रमाकांत जी के चरित्र में कभी कोई खोट नज़र नहीं आया था। एक दिन तबीयत खराब होने के कारण मैं विद्यालय से छुट्टी लेकर जल्दी घर चली आई। दरवाजे की दूसरी चाबी से ताला खोलकर अन्दर पहुँची तो मुझे कमरे में से बेटी नीतू के चीखने-चिल्लाने की आवाज़ आई।
मैने दरवाज़ा खोल कर भीतर देखा तो रमाकांत का कुत्सित घिनौना रूप मेरे सामने नज़र आया। मेरा सिर चकराने लगा। आँखों में खून का लावा खौलने लगा मेरी मासूम नीतू ख़ुद को बचाने के लिये चिल्ला रही थी और रमाकांत के सिर पर हवस का शैतानी भूत सवार था। उस समय रमाकांत मुझे इंसानी शक्ल में भेड़िया नज़र आ रहा था। नाली का बजबजाता कोई नीच कीडा़ जिसे मेरी अपनी गलती से मेरे मन्दिर जैसे घर में रहने की इजाज़त मिल गयी थी।
मैने आव देखा न ताव बाल्कनी में रखी लोहे की रॉड उठाकर उसके सिर पर ताबड़तोड़ वार पर वार करती चली गई। रमाकांत के सिर से खून का फव्वारा बह निकला। वह वही फ़र्श पर ढेर हो गया। बिना किसी लाग लपेट के मैने पुलिस को फ़ोन कर के आत्म समर्पण कर दिया। केस की सुनवाई होने पर मेरे मुंह से ख़ुद जुर्म स्वीकार करने से बडा सुबूत और क्या हो सकता था?
सुबूत के आधार पर मुझे हत्या करने के जुर्म में उम्रकैद की सजा सुनाई गई। मेरे मन में बहुत बड़ी तसल्ली इस बात की रही कि मैने ऐसे धोखेबाज सौतेले पिता का खात्मा किया है। रिश्तों की मर्यादा तार-तार करने वाले बदनीयत इंसान को उसके किये की सजा अवश्य ही मिलनी चाहिए। हाँ और एक खरी सच्ची बात समझी कि सौतेला पिता कभी बच्चों का सगा पिता नहीं बन सकता। मुझे उम्रकैद की सजा का कोई भी ग़म नहीं हुआ। अब बरामदा पार करने पर सामने ही कार्यालय का दरवाज़ा नज़र आने लगा था।
सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ
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