
15 अगस्त
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15 अगस्त – स्वतंत्रता दिवस का इतिहास, महत्व और गौरवगाथा
हर साल 15 अगस्त भारत के लिए गर्व, सम्मान और देशभक्ति की भावना का दिन लेकर आता है। यह केवल एक राष्ट्रीय अवकाश नहीं, बल्कि वह दिन है जब करोड़ों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान बलिदानों को याद करते हैं। 15 अगस्त 1947 को भारत ने अंग्रेज़ी शासन से मुक्त होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व प्राप्त किया था। यह दिन हमें स्वतंत्रता की कीमत और अपने कर्तव्यों का बोध कराता है।
स्वतंत्रता का संघर्ष – 1857 से 1947 तक
भारत की आज़ादी एक दिन में नहीं मिली, बल्कि यह लगभग दो शताब्दियों के संघर्ष और त्याग का परिणाम थी। आइए इस यात्रा की टाइमलाइन पर नज़र डालते हैं।
1857 – पहला स्वतंत्रता संग्राम
- इसे “सिपाही विद्रोह” या “भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम” कहा जाता है।
- मंगल पांडे के नेतृत्व में यह क्रांति शुरू हुई, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, और बेगम हज़रत महल जैसे वीरों ने भाग लिया।
- भले ही यह संग्राम असफल रहा, लेकिन इसने आज़ादी की चिंगारी जला दी।
1885 – भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
- अंग्रेज़ी शासन के खिलाफ संगठित राजनीतिक प्रयास यहीं से शुरू हुए।
- दादाभाई नौरोजी, बाल गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता की मांग को जनता तक पहुँचाया।
1905 – बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन
- ब्रिटिश सरकार द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया।
- इसके विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ—विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग।
1915 – महात्मा गांधी की वापसी
- गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की सफलता के बाद भारत लौटकर स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।
1919 – जलियांवाला बाग हत्याकांड
- 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में जनरल डायर के आदेश पर निहत्थे लोगों पर गोलियाँ चलाई गईं।
- इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश की लहर फैला दी।
1920–22 – असहयोग आंदोलन
- गांधीजी के नेतृत्व में लोगों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्कूल, कॉलेज, सरकारी नौकरी और विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया।
1930 – नमक सत्याग्रह
- 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने दांडी मार्च शुरू किया और अंग्रेज़ों के नमक कानून का उल्लंघन किया।
- यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जनांदोलन का प्रतीक बन गया।
1942 – भारत छोड़ो आंदोलन
- 8 अगस्त 1942 को गांधीजी ने “करो या मरो” का नारा दिया।
- पूरे देश में स्वतंत्रता की मांग के लिए आंदोलन भड़क उठा।
1947 – आज़ादी की सुबह
- 15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को भारत स्वतंत्र हुआ।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले से तिरंगा फहराया और ऐतिहासिक भाषण “Tryst with Destiny” दिया।
स्वतंत्रता दिवस का महत्व
राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक
15 अगस्त भारत के इतिहास में वह सुनहरा दिन है, जब हमें वर्षों की लंबी दासता से आज़ादी मिली। 15 अगस्त 1947 को हमारे देश ने अंग्रेज़ों की गुलामी की बेड़ियां तोड़कर स्वतंत्रता की सांस ली। यह दिन सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक है, जो हमें स्वतंत्रता संग्राम के वीर बलिदानियों की याद दिलाता है और हमारी एकता, साहस और संकल्प को दर्शाता है।
बलिदान को नमन
15 अगस्त भारत के इतिहास का वह पावन दिन है जब हमारे देश ने अंग्रेज़ी हुकूमत की लंबी गुलामी से आज़ादी पाई। यह आज़ादी किसी उपहार में नहीं मिली, बल्कि लाखों स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष, त्याग और बलिदान का परिणाम है। इसलिए यह दिन केवल उत्सव का नहीं, बल्कि उन वीरों को नमन करने का दिन है जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावर करके हमें स्वतंत्र भारत का आकाश दिया।
एकता और भाईचारा
15 अगस्त केवल आज़ादी का दिन नहीं, बल्कि यह दिन भारत की एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है। 1947 में जब हमारा देश स्वतंत्र हुआ, तब यह आज़ादी सिर्फ एक क्षेत्र, जाति या धर्म की नहीं थी — यह पूरे भारतवर्ष के करोड़ों लोगों की सामूहिक जीत थी। इस दिन हम याद करते हैं कि कैसे विविधता में एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत बनी और भाईचारे की भावना ने हमें स्वतंत्रता दिलाई।
लोकतंत्र की नींव
15 अगस्त 1947 का दिन भारत के इतिहास में केवल स्वतंत्रता का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह हमारे लोकतंत्र की नींव रखने वाला दिन भी है। इसी दिन हमने न केवल विदेशी शासन से मुक्ति पाई, बल्कि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में जन्म लिया, जहां जनता ही सर्वोच्च सत्ता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आज़ादी के साथ-साथ हमें अपने अधिकारों और कर्तव्यों का सम्मान करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों को सहेजना है।
स्वतंत्रता दिवस के प्रमुख आयोजन
- लाल किले पर ध्वजारोहण – प्रधानमंत्री का भाषण और राष्ट्रगान। हर साल 15 अगस्त को देशभर की निगाहें दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले पर टिकी होती हैं। यह परंपरा 1947 से चली आ रही है, जब भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत का पहला तिरंगा इसी किले की प्राचीर पर फहराया था। लाल किले पर ध्वजारोहण केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि यह हमारी स्वतंत्रता, एकता और राष्ट्रीय गर्व का जीवंत प्रतीक है।
- स्कूल-कॉलेज में समारोह – 15 अगस्त भारत के स्वतंत्रता दिवस के रूप में पूरे देश में हर्ष और गर्व के साथ मनाया जाता है। इस दिन स्कूलों और कॉलेजों में समारोह का आयोजन विशेष रूप से किया जाता है, ताकि नई पीढ़ी स्वतंत्रता के महत्व को समझ सके और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हो। यह केवल एक औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि विद्यार्थियों को हमारे देश के इतिहास, बलिदानों और एकता के संदेश से जोड़ने का अवसर है।
- देशभक्ति रैलियाँ – 15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस, भारत के लिए सिर्फ आज़ादी का जश्न मनाने का दिन नहीं, बल्कि यह दिन देशभक्ति की भावना को पूरे देश में फैलाने का अवसर भी है। इस दिन जगह-जगह देशभक्ति रैलियों का आयोजन किया जाता है, जिनका उद्देश्य लोगों में राष्ट्रप्रेम, एकता और बलिदानों की स्मृति को ताज़ा करना होता है।
- ऑनलाइन कार्यक्रम – डिजिटल युग में 15 अगस्त, यानी स्वतंत्रता दिवस, केवल मैदानों और सभागारों में ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन माध्यम से भी धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर कोविड-19 महामारी के बाद से, स्कूल, कॉलेज, सरकारी संस्थान और निजी संगठनों ने ऑनलाइन कार्यक्रमों को एक नई परंपरा के रूप में अपनाया है। इनका उद्देश्य वही है — देशभक्ति की भावना को जगाना, लेकिन माध्यम आधुनिक और तकनीक-आधारित है।
प्रसिद्ध शहीदों का योगदान

भगत सिंह – 23 वर्ष की उम्र में फाँसी, क्रांति का प्रतीक। भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे अमर नायक हैं, जिनका नाम सुनते ही देशभक्ति की लहर हर भारतीय के दिल में दौड़ जाती है। उन्होंने अपने साहस, त्याग और क्रांतिकारी विचारों से अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी। भगत सिंह का जीवन एक संदेश है — कि देश के लिए सच्चा प्रेम केवल शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और त्याग में होता है। उनका बलिदान और विचार आज भी हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपने देश की रक्षा, एकता और प्रगति के लिए हमेशा तत्पर रहें।
राजगुरु और सुखदेव – भारत की आज़ादी की लड़ाई में भगत सिंह के साथ दो और ऐसे वीर थे, जिन्होंने अपने साहस, त्याग और बलिदान से इतिहास में अमर स्थान बनाया — शिवराम हरि राजगुरु और सुखदेव थापर। ये दोनों भगत सिंह के साथी ही नहीं, बल्कि उनके समान विचारधारा और क्रांतिकारी जज़्बे वाले युवा थे। राजगुरु और सुखदेव सिर्फ भगत सिंह के साथी नहीं थे, बल्कि वे स्वतंत्रता आंदोलन के ऐसे स्तंभ थे, जिन्होंने अपने जीवन का हर क्षण देश के नाम कर दिया। उनका नाम हमेशा अमर रहेगा, और उनका बलिदान हमें याद दिलाता रहेगा कि आज़ादी कितनी कठिन संघर्ष और कुर्बानियों के बाद मिली है।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस – भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महान व्यक्तित्व हुए, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस का नाम एक अलग ही सम्मान और जोश के साथ लिया जाता है। उन्होंने अपने जीवन में न सिर्फ़ अंग्रेज़ी हुकूमत को चुनौती दी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक नया और साहसी रास्ता चुना। नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वो नायक थे जिन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि भारत अपनी आज़ादी पाने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार है। उनका जीवन, विचार और बलिदान हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
रानी लक्ष्मीबाई – झांसी की रानी की वीरता अमर है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा में रानी लक्ष्मीबाई का नाम अमर है। उनका साहस, नेतृत्व और बलिदान आज भी हर भारतीय के हृदय में देशभक्ति की लौ प्रज्वलित करता है। वह केवल झाँसी की रानी नहीं थीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण, आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति की सशक्त प्रतीक थीं। रानी लक्ष्मीबाई का जीवन भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय है। उनकी तलवार की चमक, उनके अदम्य साहस और उनकी देशभक्ति ने यह सिद्ध कर दिया कि आज़ादी के लिए बलिदान ही सबसे बड़ा धर्म है।
दुर्लभ तथ्य
- स्वतंत्रता दिवस और पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस (14 अगस्त) केवल एक दिन के अंतर से मनाया जाता है।
- पहली बार 1947 में दिल्ली के लाल किले से तिरंगा फहराया गया था।
- तिरंगे का डिजाइन पिंगली वेंकैया ने तैयार किया था।
प्रेरणादायक उद्धरण
“सारा जहॉं हमारा, हिन्दोस्तां हमारा।” – मोहम्मद इक़बाल
“स्वतंत्रता का अर्थ है अपने लिए नहीं, बल्कि सबके लिए आज़ादी।” – महात्मा गांधी
निष्कर्ष
15 अगस्त सिर्फ़ आज़ादी का उत्सव नहीं, बल्कि यह हमारे कर्तव्यों की याद भी दिलाता है। हमें स्वतंत्रता की इस विरासत को बचाए रखना है और देश को विकास की नई ऊँचाइयों तक ले जाना है।
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