जीत न नेताओं की है और न पार्टी की, जीत के हीरो साइलेंट वोटर
हरियाणा विधानसभा चुनाव: हरियाणा में भाजपा ने तीसरी बार सत्ता में आकर नया इतिहास रच दिया है। सुबह 9 बजे पहले राउंड तक कांग्रेस के रिकॉर्डतोड़ रुझानों ने एकबारगी तो भाजपा के कार्यकर्ताओं से लेकर दिल्ली तक के नेताओं के होश उड़ा दिए थे, लेकिन जिस तरह से अचानक आई एक आंधी ने हवा का ऐसा रुख बदला कि कांग्रेस के साथ वो हो गया जिसकी कोई उम्मीद भी नहीं कर सकता।
जो भाजपा चुनाव प्रचार और एग्जिट पोल के दौरान सत्ता से काफी दूर दिख रही थी। कार्यकर्ता से लेकर बड़े नेता तक विश्वास भरे नहीं थे। यहां तक प्रचार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री मनोहरलाल से लेकर पार्टी के पूर्व मंत्रियों और नेताओं को लोगों की तल्खियों से दो चार होना पड़ा था। रही सही कसर इन एग्जिट पोल वाले महानुभावों ने कर दी थी, थोड़ी बहुत उम्मीद जो कार्यकर्ताओं को भाजपा के सम्मानजनक स्थिति में आने की थी, उसे इन्होंने जोर के झटके से तोड़कर रख दिया था।
फिर भी ‘ पीके ‘ की तरह छाती पर हाथ रख कर आल इज वेल, आल इज वेल ,कहकर यही सांत्वना दे रहे थे कि शायद काउंटिंग में कुछ इज्जत बच जाए। मतदान के बाद के ये 60 घंटे इनके लिए युग की तरह बीत रहे थे। पर वो कहावत है ना कि जिसी नकटी देवी, उस ए उत पुजारी’।
सभी तंत्र भाजपा की हार साबित करने पर तुले थे, पर वो रिजल्ट तक हार न मानने पर अड़े थे। इसी कॉन्फिडेंस ने उन्हें आज सुबह सुबह टीवी के सामने बैठने के लिए राजी किया था। पर ये क्या टीवी खोलते ही कांग्रेस 70 पार दिखी तो चेहरे मुरझा गए। टीवी बंद हो गए। एक घंटे बाद ही सारे समीकरण बदलने लगे तो ‘ आंध्यां की माक्खी राम उडावै’ कहावत ने मुरझाए कमल को ऐसी ऑक्सीजन दी कि मुर्दों में भी जान आ गई।
भाजपा को इतनी बड़ी कामयाबी मिलना किसी बड़े चमत्कार से कम नहीं है। इस चमत्कार को पार्टी या कार्यकर्ताओं के दम पर होने की कहना न्यायसंगत नहीं होगा। नेताओं – कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रचार में सुनने को मिले विरोध स्वर किसी से छिपे नहीं है। ऐसे में ये चमत्कार हुआ कैसे। इसकी शाबाशी दे किसे। तो ये शाबाशी मिलने के हकदार प्रदेश के साइलेंट वोटर हैं। ये चमत्कार इन्हीं के द्वारा किया गया है। ये वो मतदाता हैं जो लगातार एक महीने तक चुनाव प्रचार रूपी लहर में हिचकोले खाते रहे। लहर के थपेड़ों से जरा भी घबराये नहीं। लहरों ने उन्हें खूब डराया भी कि हमारे साथ बहो, अन्यथा डूब जाओगे। उन्होंने कुछ नहीं किया, डूबते को तिनके के सहारे ज्यों किनारे का एक छोर मजबूती से पकड़े रहे। और जैसे ही मौका मिला, फौरन बाहर छलांग लगा लहरों से निकल गए और जीत का ऐसा झंडा गाड़ा कि लहरें देखती रह गईं।
हरियाणा में एक और कहावत बड़ी मशहूर है कि ‘अगेती फसल और अगेती मार करणियां की होवै ना कदे बी हार’। मतलब फसल की पहले की गई बिजाई और पहले झटके में दूसरे पर कड़क मार हमेशा लाभदायक होती है। हार का खतरा इससे कम होता है। भाजपा का हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आना भी उनकी अगेती फसल का लाभ है। समय से पहले चुनाव, उम्मीदवारों का को मैदान में उतारकर भाजपा ने अपनी स्थिति को मजबूत करने का काम किया। उम्मीदवारों का विरोध हुआ तो पहले से रूठों को मनाने के लिए तैयार टीम अधिकांश को अपने पाले में लाकर बगावत के सुरों को ढीला करने में कामयाब रही।
सत्ताविरोधी लहर बनाने में कांग्रेस ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। किसान-जवान-पहलवान के जरिए नैरेटिव खूब गढ़ा गया। प्रचार के दौरान कांग्रेस काफी प्रभावी रही। हर जगह निकाली गई बड़े बड़े काफिले निकाले गए। ट्रैक्टर रैलियों से किसानों के भारी समर्थन का खूब दावा किया गया। जेसीबी द्वारा कांग्रेस उम्मीदवारों पर जगह जगह फूलों की बरसात कर प्रचार में एकतरफा माहौल बनाने में कामयाब भी दिखे। प्रचार में हर जगह आगे रहकर भाजपा उम्मीदवारों के लिए सिरदर्दी बने। जिससे बात करो वही कांग्रेस की लहर कहता दिखा।
इसी लहर में साइलेंट जोन में रहे वोटर अब उलट फेर कर गए। जीत हार के दावों से दूर रहे इन साइलेंट वोटर्स ने न कांग्रेस की लहर को स्वीकारा और न ही किसी नारीत्व को। बड़ी ही खामोशी के साथ अपने अधिकार का प्रयोग किया और फिर से काम लग गए। न चेहरे पर मुस्कान दिखाई और न ही दर्द दिखाया। सामान्य रहे, सामान्य दिखे पर चमत्कार असामान्य कर गए। भाजपा के बड़े नेता भले ही इस जीत पर अपनी पीठ थपथपा लें, एक दूसरे को जीत का श्रेय दे दें। कोई माने या न माने जीत का श्रेय साइलेंट वोटर्स को है।
सुशील कुमार ‘नवीन’
96716 26237
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार है
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