Table of Contents
समय चक्र
समय चक्र
समय बड़ा बलवान है,
समय ज्ञान को जान।
समय न रुकता है कभी,
समय शक्ति पहचान॥
उचित समय पर धारिए,
योजित करिए काम।
आलस दूर भगाइए,
तत्परता अविराम॥
यत्न निरंतर राखिए,
समय पूर्व निज काम।
असफलता से ना डरे,
हिम्मत से ले काम॥
उचित समय को जानकर,
उचित कार्य का ज्ञान।
यही सफलता मंत्र है,
इसी से मिलता मान॥
वक्त आज संदिग्ध है,
आगे हैं अनजान।
धुरी रुकी है विश्व की,
धैर्य ही समाधान॥
क्या होगा आगे भला,
कोई जान न पाए।
समय चक्र के फेर में,
स्थिरता रहे सहाय॥
हे नीलकंठ
हे नीलकंठ! करुणामय मेरे,
दया सिंधु अब लाज धरो।
है आज जगत में त्राहि मची,
हे जगदीश्वर! जग कष्ट हरो।
तुमने ही जगहित धारण कर विष,
कंटक कालन कंठ धरो।
अब दीनन के दु: ख दूर करो प्रभु,
शंभु हरे-हर, विपद हरो॥
त्राहि मची है आज भुवन में,
हे भुजंगधर शिवशंकर हे!
‘कोरोना’ से है त्रस्त जगत,
इस मायावी को मृत कर दे।
तुम ही स्वामी हो अनाथ के,
अब कष्ट हरो जग हरि-हर हे!
प्रभु मानव की अब रक्षा करो,
भय टेरि हरो करुणाकर हे!
तुमने ही सागर मंथन पर,
जग की विपदा को टारा था।
महा हलाहल विष पीकर,
सब कंठन ही निज धारा था।
गंगा की निर्मल वेगमयी,
जलधारा सिर पर धारा था।
सब विषधर सर्पों की माला,
गल में ही आप उतारा था॥
आज बचा लो हे जगदीश्वर!
हे शमशानी! हे कैलाशी!
तुम्हीं से जीवन पाया है,
जग रचा तुम्हीं ने सन्यासी।
जन्म व पालक जग संहारक,
हो त्रिविध रूप हे अविनाशी।
भस्म भूत बन ध्यानमग्न नित,
बंदनीय हे अधिशासी॥
यह है धरती
यह है धरती सब की जननी।
सब जीव-जनाश्रय है उरवी।
यह भू-महिमा अति पुण्यमयी।
अति सुंदर है सब सार गही॥
पद में जल-सागर अंक लिये।
धरती पर शोभित मेघ लिये।
खग-झुंड महान भरे नभ में।
जल भीतर मीन उछाह लिये॥
जल-कुंभक, व्याघ्र विशाल भरे।
सर-बीच खिले जल-जात भरे।
सुषमामयि भू पर वृक्ष हरे।
सब रत्न पदारथ गर्भ धरे॥
बहुमूल्य पदारथ-रत्न धरी।
सब जीवन के सुख की करणी।
जिसका ममतामयि आंचल है।
वरदान भरी हर शक्ति धरी॥
तरु-पुष्प भरी फल-फूल लदी।
सब भार शुभाशुभ के सहती।
जल में, थल में, नभमें, जग में।
सब शक्ति सभी जन संचरती॥
जग भोग रहा सुख है वसुधा।
पर ध्यान नहीं करुणामयि का।
जग में सब आज भरा भय है।
परदूषण है जग फैल रहा॥
सब युद्ध मिसाइल से जग में।
भय का दु: ख है सब छाय रहा।
नभ भी अब धुंध भरा जग है।
अब ओजन-खंडन कष्ट धरा॥
ध्वनि और तरंग करें जग को।
अब ग्लोबल-वार्मिंग का भय है।
जल-वायु प्रदूषित आज भरी।
अब सूरज-ताप धरा पर है॥
वसुधा, अवनी, धरती व मही।
धरिणी, पृथिवी, बल ज्ञानप्रदे।
सब भू-नभ लोक सुशोभित है।
यह वीरप्रदायिनि भू सुखदे॥
मानव
मानव घर में बैठ यहीं तू,
आज विवशता छाई है।
दूर-दूर रह बचना संभव,
नव बीमारी आई है॥
धरती आज सभी सुनी है,
आज प्रकृति भी हँसती है।
जो भी किया अभी तक तूने,
आज इसी में फँसती है॥
लोग घरों में बंद हुए हैं,
जीव जंतु सड़कों पर हैं।
कामकाज सब बंद हुआ है,
वाहन भी अड्डों पर हैं॥
डॉक्टर, पुलिस, सफ़ाई कर्मी,
लगे रात दिन सेवा में।
जीवन दाव लगा संकट में,
देवदूत जनसेवा में॥
माँ का आँचल
माँ जगत कल्याणकर्त्री,
हे धरा, करुणामयी।
प्रेममय आँचल तुम्हारा,
तुम दया ममतामयी।
हो जगत जननी चराचर,
विश्व आँचल में लिये।
सृष्टि के आरंभ में सह,
ताप वायु व जल दिये॥
महापरिवर्तन धरा पर,
ज्वालामय अंगार था।
न थी सृष्टि न कोई प्राणी,
न कोई आकार था।
बस शून्य में बिचरता,
महाकाल विराट था।
इसी धरती के ही आँचल,
ने खिलाया फूल था॥
महाकाश के बीच में,
मार्तण्ड ज्योति-सा जल उठा।
सृष्टि में नवचेतना,
संचार कण-कण भर उठा।
ज्वालाओं के ताप को,
सहती रही बहु काल तक।
माँ वसुधा सह स्वपीड़ा,
छिपाये चिरकाल तक॥
माँ, तू महान है,
समता न कोई तुझसे है।
स्वयं दु: ख सहती रही,
पर जग हँसाया तूने है।
तेरे आँचल से खिला,
नवपुष्प पहला सूर्य बन।
जगमगायी सृष्टि सारी,
धरा-अंबर जगत कण॥
पुष्प है जो जग रचाये,
भुवन संचालन करे।
दिव्य तेज प्रकाश पुंज,
से अवनि-अंबर खिल उठे।
माँ जगत कल्याणकर्त्री,
हे धरा, करुणामयी।
प्रेममय आँचल तुम्हारा,
तुम दया ममतामयी॥
भारत माता के चरणों में
भारत माता के चरणों में, हम सब नमन करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
शीश मुकुट धर वीर धरा ने, हमको आज पुकारा।
हिमगिरि की चोटी से हमने, दुश्मन को ललकारा॥
आओ वीर जवानो सीमा, पर तुम सीना ताने।
भारत वीर-जवानों की, ताकत दुश्मन ना जाने॥
ऊँचा रहे तिरंगा इसकी, जय जयकार करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
आतंकी घुसपैठी को चुन-चुनकर मारेंगे हम।
कश्मीर स्वर्ग है धरती का, स्वर्ग बनाएंगे हम॥
अमन शांति हो भारत में इस पावन देवस्थल पर।
एक देश का एक तिरंगा, फहरे विजयी बनकर॥
विश्वविजय के इस सपने को, हम साकार करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
वीरों की यह पावन धरती, गौरव गान करेगी।
भारत की यह कीर्ति पताका, जय जयकार करेगी॥
बहुभाषी संस्कृति की धरती, सदा सुसज्जित होगी।
सदा विश्व में अपनी गरिमा, से सम्पूजित होगी॥
सुरभित पुष्पित दिव्य धरा का, गौरव गान करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
आज महामारी कोरोना, विश्व में फ़न फैलाए।
कोहराम जग-जग फैला है हाहाकार मचाए॥
डॉक्टर, सेवक, पुलिस, सुधारक ने निष्क्रिय कर डाला।
साहस का परिचय देकर सबने है देश सँभाला॥
साहित्य, ज्ञान, संगीत, कला (से) , हम भी मदद करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
भारत माता के चरणों में, हम सब नमन करेंगे।
आओ मिलकर आज सभी इसका गुणगान करेंगे॥
मां के द्वार
हे दुख हारिणि, कष्ट विदारिणि,
मंगल करणी, जगदंबे।
मातु भवानी, भवभय हारिणी,
जनकल्याणी हे अंबे॥
शेरावाली तू ब्रह्माणी,
हे वरदानी, दया करो।
आज जगत में कष्ट समाया,
हे कल्याणी! कष्ट हरो॥
शैल सुता हे ब्रह्मचारिणी,
चंद्रघंटिका सुरेश्वरी।
कूष्मांडा हे स्कंदमाता,
माँ कात्यायनि महेश्वरी॥
विपद हारिणी हे जगदंबा,
जग के कष्ट हरो माता।
अरि संहारिणि दुष्ट विदारिणि,
जग कल्याणी जग माता॥
खड्गधारिणी देवी भगवती,
हे महामाया जग जननी।
महाशक्ति नव दुर्गा माता,
सिंह वाहिनी हे जननी॥
रक्तबीज मधु कैटभ महिषा,
चंड मुंड कर्तन करणी।
शुंभ-निशुंभ विदारिणि माता,
अरिदल संहारण करणी॥
हे विश्वेश्वरि विश्वेमाता,
हे भक्तजन उद्धारिणी।
दयामयी हे भक्तवत्सला,
तू महान दुख विदारिणी॥
हे विश्वेश्वरि मंगलाकाली,
जनकल्याणी हेअंबे।
भद्राकाली हे महाकाली,
जय माँ दुर्गा जगदंबे॥
जयति-जयति माँ आदिशक्ति माँ,
दुर्गतिहारिणी हे अंबे।
विपदा हर दो आज जगत की,
जग कल्याणी जगदंबे॥
आज सभी करबद्ध द्वार पर,
चरण धूलि सिर नाए हैं।
हे जगमाता आज दुखी जग,
शरण आपकी आए हैं॥
हम भारतीय
युद्ध नहीं है धर्म हमारा,
हम तो शांति पुजारी हैं।
छेड़ा अगर किसी ने तो हम,
नहीं छोड़ने वाले हैं॥
चिंगारी को छेड़ोगे तो,
ज्वाला बने मिटा देंगे।
यदि फिर से टकरावोगे तो,
हम टुकड़े कर डालेंगे॥
अरे दुष्ट! तेरी यह हरकत,
कभी भी सफल ना होगी।
तेरी सारी गीदड़ चालें,
डर डर कर थर्राऐंगी॥
जब हुए फरवरी चौदह को,
शहीद वीर चालीस हुए।
कुर्बानी के बदले तेरे-
अड्डे आतंकी ध्वस्त हुए॥
मिराज दो हज़ार ने भी जब,
कई घमंडी भस्म किये।
बम बरसाकर आतंकी के,
कई ठिकाने ध्वस्त किए॥
बारह मिराज ने जल्दी ही,
बहुत किये दुष्ट खल्लास।
अगर नहीं फिर भी सुधरा तो,
तेरी ज़मीं गिरेंगी लाश॥
साँप पालकर दूध पिलाया,
देख लिया अब इनको भी।
इसी देश में पल-पल बढ़कर,
पत्थर फेंकें आतंकी॥
अभिनंदन ने निज शौर्य से,
किया ध्वस्थ तेरा विमान।
छक्के छुड़ा दिए दुश्मन के,
मार भगाये और विमान॥
सीमा पार उतर अंदर घुस,
जो दहाड़ कर गरजा था।
होश उड़ गए गीदड़ दल के,
वह स्वदेश लौट आया था॥
अभिनंदन, अभिनंदन का,
अभिनंदन तेरे गौरव का।
उन वीर शहीदों का भी है,
अभिनंदन नमन पराक्रम का।
जय भारत, जय भारत धरती,
जय सेना जल, नभ, थल की।
हे मातृभूमि तेरी जय जय,
जय-जय राष्ट्र तिरंगे की॥
जग जननी
जग जननी अर्चन कर तेरा,
चरनन शीश नवाऊँँ।
दर्शन अर्चन तेरा करके,
तेरे ही गुण गाऊँ॥
जीव जगत जननी जगदीश्वरि,
जीवन रक्षा कर दो।
दया दृष्टि दीनन के दुख हर,
संकट सारे हरदो॥
रहें स्वस्थ जो जहाँ भी रहें,
जीवन में सुख होवे।
धरा ही नहीं गगनांगन भी,
संरक्षित सुख होवे॥
आज धरा वृंदावन जैसी,
आओ यहाँ दिखाएँ।
कण-कण धरती के गौरव को,
सुंदर आज सजाएँ॥
सरस्वती महिमा
करूँ नमन कर जोड़, ज्ञान की देवी माता।
सरस्वती का गान, मधुर विद्या माता का।
दया करो हे मातु, विमल मन उज्ज्वल कर दो।
सदा ज्ञान की धार बहे, माता यह वर दो॥
उज्ज्वल ज्ञान प्रकाश दो, माता वीणावादिनी।
अज्ञान तम मन से मिटा, हे माँ, शुभ वरदायिनी॥
हमारे रहोगे दयानाथ हे
हमारे रहोगे दयानाथ हे।
कृपासिंधु तुम हो जगन्नाथ हे।
तुम्हारे सहारे लगी आस है।
तुम्हारा जपूँ नाम विश्वास है॥
बनाए तुम्हीं ने दिवस रात हैं।
सितारे गगन में चमकते रहें।
कुसुम बाग़ में खिल महकते रहें।
फुदककर कबूतर चहकते रहें॥
करूँ वंदना हाथ जोड़े हुए।
लिए आस मन में सजोए हुए।
धरो लाज मेरी महादेव हे।
दुखी दीन मैं हूँ दयासिंधु हे॥
डॉक्टर धाराबल्लभ पांडेय ‘आलोक’
अल्मोड़ा, उत्तराखंड
यह भी पढ़ें-
1 thought on “समय चक्र”