सच है जीवन का बरस गया
सच है जीवन का बरस गया,
लेकिन कुछ लेकर नहीं गया,
अपने छोटे से समय चक्र में,
अनुभव देकर वह बड़े गया,
जीवन जिसको हम कहते हैं,
वह तो महज़ ठिकाना है,
जीवन है उससे परे बहुत,
जिसमें तो आना-जाना है,
यह खेल नहीं कुछ वर्षों का,
जो यहीं खतम हो जायेगा,
सीखेगा नहीं खेलना जो,
रह, रहकर वह पछतायेगा,
हम यात्री हैं इक यात्रा के,
मंजिल का जिसके ज्ञान नहीं,
अच्छे और बुरे राहों की,
भी हमको पहचान नहीं,
अब तक जो देखा नहीं रहा,
कुछ तो आज दिखाकर गया,
सच है जीवन का बरस गया,
लेकिन कुछ लेकर नहीं गया,
मरा वही है दुनिया में,
जिसने पहचान मिटाई,
मरा नहीं अब तक वह है,
जिसने पहचान बनाई,
क्या राम, कृष्ण, नानक, कबीर,
इस दुनिया में मर सकते हैं?
क्या कलाम जैसे दीपक,
इस दुनिया में बुझ सकते हैं?
ये दिये नहीं, ये सूरज हैं,
ये ऊर्जा सदा बनायेंगे,
अपनी दीप्ति रश्मियों से,
जग को ये नहलायेंगे,
अफसोस नहीं इनको था,
जीवन के जाते वर्षों का,
जिन वर्षों में कुछ किया नहीं,
अफसोस इन्हें उन वर्षों का,
इसलिए मनाओ खुशियाँ तुम,
आया है दिवस जन्म का जब,
सोचो इस एक बरस में,
अनुभव कितना-सा बरस गया,
सच है जीवन का बरस गया,
लेकिन कुछ लेकर नहीं गया,
अपने छोटे से समय चक्र में,
अनुभव देकर वह बड़े गया।
अमलेन्दु शुक्ल
सिद्धार्थनगर उ०प्र०
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